मेथी (ट्राइगोनेला फीनम- ग्रीकम) की खेती
मेथी (ट्राइगोनेला फीनम- ग्रीकम) की खेती

लवणीय जल सिंचाई द्वारा मेथी (ट्राइगोनेला फीनम- ग्रीकम) की खेती (Cultivation of fenugreek (Trigonella foenum- graecum) by saline water irrigation)

मेथी भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में काफी समय से जंगली रूप में उगती पाई गई है, फिर भी इसकी उत्पत्ति पूर्वी यूरोप और इथोपिया मानी जाती है। भारत में मेथी मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। देश में मेथी के कुल क्षेत्रफल का लगभग 80 प्रतिशत राजस्थान में पाया जाता है।
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मेथी की खेती पूरे भारतवर्ष में की जाती है। इसकी सब्जी में केवल पत्तियों का प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही बीजों का प्रयोग मसाले के रूप में किया जाता है। मेथी में प्रोटीन के साथ-साथ विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। हमारे देश में मेथी का उपयोग शाक एवं मसाले के रूप में किया जाता है। मेथी की पत्तियाँ एवं कोमल फलियाँ सब्जी के रूप में उपयोग में लाई जाती हैं। मेथी के सूखे दानों का उपयोग मसाले के रूप में, सब्जियों के छौंकनें, अचार और आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है। मेथी का शाक एवं दानों का प्रयोग करने से मधुमेह रोग में फायदा मिलता है।

मेथी भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में काफी समय से जंगली रूप में उगती पाई गई है, फिर भी इसकी उत्पत्ति पूर्वी यूरोप और इथोपिया मानी जाती है। भारत में मेथी मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। देश में मेथी के कुल क्षेत्रफल का लगभग 80 प्रतिशत राजस्थान में पाया जाता है।

मेथी ठंडे मौसम की फसल है और यह पाले के आक्रमण को भी सहन कर लेती है। इसकी वानस्पतिक बढ़वार के लिए लम्बे समय तक ठण्डे मौसम की आवश्यकता होती है।

मेथी का उत्पादन रबी की फसल के रूप में किया जाता है। अधिक वर्षा वाले स्थानों पर कम उगाई जाती है। मेथी उगाने के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमियां उपयुक्त रहती है, जिनमें जल निकासी का उचित प्रबन्ध हो। मेथी की खेती के लिए मृदा का पीएच मान 6 से 7 होना चाहिए। प्रयोगों में पाया गया कि खारे पानी के क्षेत्रों में वैद्युत चालकता 4 से 6 डेसी. / मीटर वाले जल से मेथी की पैदावार ली जा सकती है।

उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में मेथी की बुवाई का उपयुक्त समय मध्य सितम्बर से मध्य नवम्बर होता है, वैसे पत्तियों के लिए मेथी की बुवाई फरवरी में भी कर सकते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई का उपयुक्त समय मार्च-अप्रैल है। लेकिन आजकल मेथी को सब्जी के लिए खरीफ ऋतु में भी उगाया जा रहा है।

मेथी की उन्नत प्रजातियां जैसे अर्ली बंचिग कसूरी मेथी, लेह सलेक्शन-1, राजेन्द्र क्रांति, हिसार सोनाली, पंत रागिनी एम. एच. 103, सी.ओ.-1, आर. एम. टी. - 1 एवं आर.एम. टी. - 143 इत्यादि हैं।

सामान्य मेथी का 25 कि.ग्रा. तथा कसूरी मेथी का 20 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है। लेकिन खारे जल वाले क्षेत्रों में मेथी के बीज की मात्रा 20 से 25 प्रतिशत ज्यादा बोई जानी चाहिए ताकि खेत में पर्याप्त मात्रा में पौधों की संख्या बनी रहे।

छिटकवां विधि

इस विधि में खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लेते हैं फिर उनमें बीज को छिटक कर मिट्टी की पतली परत से ढंक देते हैं।

मेथी में अन्तः क्रियाएं करने तथा अधिक पैदावार लेने के लिए कतारों में बुवाई करना लाभदायक रहता है। इसमें कतार से कतार की दूरी 20 से 25 सेंमी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंमी. रखते हैं। सामान्यतः मेथी का जमाव 5-6 दिन में हो जाता है, लेकिन कसूरी मेथी का अंकुरण 7-8 दिन में होता है । बुवाई से पहले मेथी के बीज को राइजोबियम मेलोलोटी कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए।

मेथी की बुवाई से पहले खेत में 100 से 150 कुंटल प्रति हैक्टर की दर से गोबर की खाद आखिरी जुताई पर मिट्टी में मिला देनी चाहिए। इसके अलावा 40 कि० ग्रा० नत्रजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 50 कि०ग्रा० पोटाश प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में देनी चाहिए। फास्फोरस तथा पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा नत्रजन की आधी मात्रा दो भागों में बांट कर छिड़काव के रूप में देनी चाहिए। प्रथम खुराक 25 से 30 दिन तथा द्वितीय खुराक 40 से 45 दिन पर खड़ी फसल में आधा-आधा करके देनी चाहिए।

मेथी के उचित अंकुरण के लिए भूमि में पर्याप्त नमी होना अत्यधिक आवश्यक है। यदि खेत में नमी कम हो तो एक हल्की सिंचाई करनी चाहिए। मेथी में अन्य सिंचाईयां 7-12 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए।

निराई-गुड़ाई करने से उचित पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। दूसरी सिंचाई के बाद हल्की गुड़ाई आवश्यक है जिससे पानी पर्याप्त मात्रा में मिट्टी में जाकर नमी उत्पन्न कर सके। खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत में बुवाई से पहले फ्लूक्लोरेलिन का 0.75 कि०ग्रा०/ हैक्टर की दर से छिड़काव आवश्यक है तथा 50 दिन के बाद एक निराई आवश्यक है।

मेथी की बुवाई के लगभग 4 सप्ताह बाद पहली कटाई कर लेते हैं। इसमें पौधों को भूमि के निकट से काटते हैं। इसके बाद 4-6 कटाईयों के बाद उखाड़ कर गुच्छों में बांधकर बाजार में भेज देते हैं। आमतौर पर पौधों को उखाड़ते नहीं हैं बल्कि 3-4 कटाईयों के बाद पौधों को छोड़ देते हैं ताकि उनसे बीज लिया जा सके।

मेथी की फसल को केवल सब्जी के लिए उगाया जाता है तो 90 से 100 कुंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल जाती है। यदि पत्ती तथा बीज दोनों के लिए मैथी को उगाया गया है तब 2 से 3 कटाई के बाद 20 से 25 कुंटल प्रति हेक्टेयर पत्ती तथा 8 से 10 कुंटल प्रति हेक्टेयर बीज मिल जाता है। लेकिन यदि केवल बीज के लिए मेथी को उगाया जाता है तब 12 से 15 कुंटल प्रति हैक्टर तक प्राप्त होता है।

तालिका 7- सिंचाई जल की लवणता का मेथी के उपज कारक एवं उपज पर प्रभाव

 

लवणीय जल सिंचाई में मेथी की फसल उगाने पर कई वर्ष तक परीक्षण किया गया। परीक्षण में सिंचाई जल की वैद्युत चालकता (नहरी जल 4, 6 एवं 8 डेसी. / मीटर) थी। तालिका 7 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि मेथी के उपज कारक जैसे फली की लम्बाई (सेंमी.), फली में दानों की संख्या, दाने की उपज / पौधा (ग्राम) इत्यादि सार्थक रूप से सबसे अधिक नहरी जल में पाये गये। साथ ही साथ वैद्युत चालकता 4 डेसी. / मीटर तथा नहरी जल एवं 6 डेसी. / मीटर में आपस में कोई सार्थक अन्तर नहीं था। लेकिन उपज कारकों में सबसे कम बढ़ोत्तरी, वैद्युत चालकता 8 डेसी. / मीटर में दर्ज की गयी। मेथी की उपज सार्थक रूप से नहरी जल, वैद्युत चालकता 4 एवं 6 डेसी. / मीटर में समान थी, लेकिन सबसे कम वैद्युत चालकता 8 डेसी. / मीटर से प्राप्त हुई। संबंधित उपज भी इन्हीं उपचारों में सबसे अधिक थी। तालिका 7 से ज्ञात होता है कि सबसे अधिक शुद्ध आय रुपये 51,200 नहरी जल तथा सबसे कम रुपये 38,310 वैद्युत चालकता 8 डेसी. / मीटर पर प्राप्त हुई ।

स्रोत-अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:

प्रभारी अधिकारी

अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना

"लवणग्रस्त मृदाओं का प्रबंध एवं खारे जल का कृषि में उपयोग" राजा बलवंत सिंह महाविद्यालय, बिचपुरी, आगरा-283105 (उत्तर प्रदेश)

ईमेल: aicrp.salinity@gmail.com

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