थार मरुस्थल की जैव विविधता
थार मरुस्थल की जैव विविधता

राजस्थान में थार मरुस्थल की जैव विविधता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की रिपोर्ट-2007 में पश्चिमी भारत में वैश्विक घटकों और जलवायु परिवर्तनों के प्रभाव का दावा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक अर्द्ध-शुष्क एवं उप-आर्द्र क्षेत्रों की तुलना में शुष्क क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन प्रारूप अधिक देखने को मिला है। पिछले डेढ़ दशक से थार मरुस्थल में तापमान में वृद्धि, वर्षा की मात्रा में अत्यधिक परिवर्तनशीलता, नमी की मात्रा में वृद्धि और वायु पैटर्न में तेजी से बदलाव हुए है। ये बदलाव ग्लोबल वार्मिंग, खनन गतिविधियों में वृद्धि, नहरी सिंचाई में विस्तार औद्योगिकीकरण, भूमि उपयोग प्रारूप में परिवर्तन, परमाणु विस्फोट आदि कारणों से यहाँ देखने को मिल रहे है, जिसका प्रभाव घास आधारित मरूद्भिद पारिस्थितिकी तंत्र पर हुआ है।
Published on
10 min read

भारतीय थार मरुस्थल विश्व का सबसे समृद्ध मरुस्थल है। इसका अधिकांश भाग पश्चिमी राजस्थान के अन्तर्गत आता है। शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क जलवायु के अनुभव के साथ यहाँ मरूद्भिद प्रकार का पारिस्थितिकी तंत्र अपने आप में विशिष्ट है। जैव विविधिता की दृष्टि से यह अत्यंत सम्पन्न प्रदेश है। वैश्विक और स्थानीय कारणों से थार मरुस्थल की जलवायु में परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं।

हालांकि इन परिवर्तनों के स्थायित्व को लेकर अभी असमंजस की स्थिति है। मानवजनित कारणों से यह जलवायु परिवर्तन तीव्र गति से हो रहे हैं। जलवायु प्रारूप में बदलाव से यहाँ की जैव विविधता पर व्यापक प्रभाव परिलक्षित हो रहे हैं। प्रस्तुत शोध लेख में राजस्थान राज्य में थार मरुस्थल के बदलते जलवायु प्रारूप का जैव विविधता पर प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। यह अध्ययन द्वितीयक समंकों एवं सूचनाओं पर आधारित है। राजस्थान राज्य के 1.75 करोड हैक्टेयर क्षेत्र में थार मरुस्थल का विस्तार पाया जाता है। सीमित प्राकृतिक संसाधनों से युक्त इस मरुस्थल की गणना विश्व के सबसे अधिक आबाद मरुस्थल के रूप में की जाती है। यहाँ जैव जगत और पर्यावरण के बीच सामंजस्य अपने आप में विशिष्ट है। उष्ण एवं शुष्क जलवायु प्रधान होने के बावजूद जैव विविधता की दृष्टि से अन्य मरुस्थलों की तुलना में सबसे सम्पन्न है। 

किन्तु पिछले कुछ वर्षों से यहाँ वैश्विक एवं स्थानीय कारणों से जलवायु में परिवर्तन देखने को मिल रहे है, इनमें से अधिकांश कारण मानवजनित हैं। जलवायु प्रारूप में होने वाले परिवर्तनों का जैव विविधता पर प्रभाव हो रहा है। स्थानिक प्रजातियों सिमटती जा रही है और जैव विविधता में बदलाव हो रहे हैं, जो एक चिंता का विषय है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की रिपोर्ट-2007 में पश्चिमी भारत में वैश्विक घटकों और जलवायु परिवर्तनों के प्रभाव का दावा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक अर्द्ध-शुष्क एवं उप-आर्द्र क्षेत्रों की तुलना में शुष्क क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन प्रारूप अधिक देखने को मिला है। पिछले डेढ़ दशक से थार मरुस्थल में तापमान में वृद्धि, वर्षा की मात्रा में अत्यधिक परिवर्तनशीलता, नमी की मात्रा में वृद्धि और वायु पैटर्न में तेजी से बदलाव हुए है। ये बदलाव ग्लोबल वार्मिंग, खनन गतिविधियों में वृद्धि, नहरी सिंचाई में विस्तार औद्योगिकीकरण, भूमि उपयोग प्रारूप में परिवर्तन, परमाणु विस्फोट आदि कारणों से यहाँ देखने को मिल रहे है, जिसका प्रभाव घास आधारित मरूद्भिद पारिस्थितिकी तंत्र पर हुआ है। जैव विविधता की दृष्टि से थार मरुस्थल माइक्रो हॉट स्पॉट है, इसलिए इसे जीव मरू प्रदेश भी कहते है। विश्व की 6.4 प्रतिशत वानस्पतिक प्रजाति इसी मरुस्थल में पाई जाती है। इसके अलावा यहाँ 350 पक्षी प्रजाति, 60 स्तनपायी, 35 रेप्टाइल्स और 5 एम्फिबियन वर्ग की प्रजातियों तथा हजारों किस्म के कीट पतंगे पाए जाते है। जलवायु में हो रहे बदलाव के कारण स्थानीय प्रजाति के वनस्पति एवं जीव जन्तु धीरे धीरे लुप्तप्राय होते जा रहे है तथा नई प्रजाति की जैद किस्मों का यहाँ विकास हो रहा है तथा बाहरी आक्रामक प्रजातियों का यहाँ आगमन हुआ है। यह प्रदेश भविष्य में मरुदमिद एवं जन्तुओं का जीन डोनर प्रजाति क्षेत्र है। अतः यहाँ पायी जाने वाली जैव विविधिता का संरक्षण एवं पोषण अत्यंत आवश्यक है।

शब्दकोश: जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन, थार मरुस्थल, जीन डोनर प्रजाति क्षेत्र, मरूद्भिद पारिस्थितिकी तंत्र ।

सीमित प्राकृतिक संसाधनों से युक्त थार मरुस्थल की गणना विश्व के सबसे अधिक आबाद मरुस्थल के रूप में की जाती है। उष्ण जलवायु प्रधान होने के बावजूद जैव विविधता की दृष्टि से यह अत्यन्त सम्पन्न प्रदेश है। जैव जगत और पर्यावरण के मध्य समायोजन अपने आप में विशिष्टता लिए हुए है। किन्तु पिछले कुछ वर्षों में यहाँ वैश्विक और स्थानीय कारणों से जलवायु प्रारूप में परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। इनमें अधिकांश कारण मानव जनित है। जलवायु दशाओं में होने वाले परिवर्तनों का इस प्रदेश की जैव -विविधता पर व्यापक प्रभाव हुए है। सिमटती स्थानिक जैव प्रजातियों एवं आक्रामक बाहरी प्रजातियों के आगमन से यहाँ का मरूद्भिद एवं घास आधारित पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा हो रहे है जो एक चिंताजनक विषय है। 

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) की रिपोर्ट - 2007 में भी पश्चिमी भारत में वैश्विक घटकों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का दावा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार अर्द्धशुष्क एवं उपार्द्र क्षेत्रों की तुलना में शुष्क क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन प्रारूप अधिक देखने को मिलता है। पिछले डेढ़ दशक से यहाँ जलवायु में सूक्ष्म परिवर्तन देखने को मिल रहा है। वर्ष 2006 में राजस्थान राज्य के बाडमेर जिले में अतिवृष्टि से बाढ़ आना इसी बात का संकेत है। जलवायु परिवर्तन से जैव विविधता में बदलाव इस क्षेत्र की मुख्य समस्या है जैविक दशाओं में बदलाव से पारिस्थितिकीय असंतुलन की समस्या पैदा हो सकती है।

  • थार मरुस्थल के जलवायु प्रारूप में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करना।
  • जलवायु प्रारूप में परिवर्तन के लिए उत्तरदायी कारकों की पहचान करना ।
  • थार मरुस्थल की जलवायु बदलाव का जैव विविधता पर प्रभावों का विश्लेषण करना।
  • थार मरूस्थली प्रदेश में पारिस्थितिकी संतुलन एवं जैव विविधता के विकास हेतु आवश्यक सुझाव प्रस्तुत करना।

अध्ययन क्षेत्र भारत के उत्तरी पश्चिमी भाग में स्थित थार मरुस्थल है। यह 22 डिग्री 30 से. से 32 डिग्री 5 उत्तरी अक्षांशो तथा 68 डिग्री 5 से 75 डिग्री 45 पूर्वी देशांतरों के मध्य स्थित है। यह मुख्यत: राजस्थान, गुजरात, पंजाब एवं हरियाणा राज्यों में लगभग थार मरुस्थल 3.17 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। राजस्थान राज्य में लगभग 1.96 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में थार मरुस्थल विस्तृत है, जो देश के लगभग 61.86 प्रतिशत भाग है। भारतीय कृषि आयोग के अनुसार राजस्थान के 12 पश्चिमी जिले श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चुरू, झुंझुनू सीकर, नागौर, जोधपुर, बाडमेर, जैसलमेर, जालोर, पाली इससे आवृत हैं।

Map

यह अध्ययन द्वितीयक समकों एवं सूचनाओं पर आधारित है। आंकड़े एवं सूचनाएँ भारतीय जल - विज्ञान विभाग, भारतीय मौसम विज्ञान, जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल रिपोर्ट, काजरी संस्थान की रिपोर्ट, विभिन्न शोध पत्रों एवं शोध प्रबन्ध से एकत्र किए गए हैं। इसके लिए पत्र-पत्रिकाओं और अखबारों से भी सूचनाएँ एकत्र की गई हैं। एकत्र समंको एवं सूचनाओं को अध्ययन के उद्देश्यानुसार वर्गीकृत एवं विश्लेषित किया गया है ताकि अपेक्षित निष्कर्षों की प्राप्ति की जा सके।

राजस्थान राज्य में थार मरुस्थल की जलवायु भाश्क- अर्द्धशुष्क प्रकार की है। ग्रीष्म काल में औसत तापमान 30 डिग्री से 35 डिग्री सेल्सियस तथा शीतकाल में 3 डिग्री से 10 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। यहाँ मई एवं जून सबसे गर्म माह होते हैं। सम्पूर्ण वर्षा का लगभग 85 प्रतिशत भाग दक्षिणी-पश्चिमी मानसून प्राप्त होता है। वर्षा का औसत 100 मिलीमीटर से 400 मिलीमीटर तक रहता है। यहाँ वार्षिक वाष्पोत्सर्जन की मात्रा 200 सेन्टीमीटर तक पहुंच जाती है। सापेक्षिक आर्द्रता अक्टूबर से लेकर मई माह तक बहुत कम रहती हैं। ग्रीष्मकाल में यह मात्र 2 से 3 प्रतिशत तक रह जाती है। वर्षा ऋतु में यह 60 से 70 प्रतिशत हो जाती है। यहाँ वर्षा से अधिक वाष्पीकरण हो जाता है। पवनों की गति 20 से 30 किलोमीटर प्रति घंटा तक रहती है। इस प्रकार यहाँ जलवायु की विषम दशाएं हैं। जलवायु दशाओं के अनुरूप यहाँ घास आधारित मरूद्भिद पारिस्थितिकी तंत्र का विकास हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में इस प्रदेश की जलवायु दशाओं में परिवर्तन देखने को मिले हैं।

आई.पी.सी.सी. की रिपोर्ट- 2007 के अनुसार पश्चिमी भारत में वैश्विक घटकों और जलवायु परिर्वतन के प्रभाव प्रमाणित हुए हैं। अर्द्धशुष्क एवं उपार्द्र क्षेत्रों की तुलना में भाश्क क्षेत्रों में जलवायु बदलाव अधिक है। वर्ष 1960 से 2011 के दौरान इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा में 0.56 मिलीमीटर प्रति वर्ष की वृद्धि दर्ज की गई है। बीकानेर, जैसलमेर, पाली, जिलों में यह वृद्धि विशेष रूप से दर्ज की गई है। एक ही दिन में होने वाली वर्षा का औसत भी बढ़ा है। वर्ष 2006, 2015, 2016 व 2017 में इस क्षेत्र में बाढ़ का आना इसी का परिणाम है। यदि वर्षा दिनों की संख्या पर गौर किया जावे तो 1960 में ये 72 वर्षा दिन थे जो 2012 में 86 वर्षा दिन रहे। इस प्रकार इस क्षेत्र में वर्षा दिनों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। थार मरुस्थल प्रदेश में वर्ष 1960 में औसत वार्षिक वर्षा 191 मिलीमीटर थी, जो वर्ष 2015 में 458 मिलीमीटर दर्ज की गई (तालिका -1 के अनुसार)।

थार मरुस्थल में औसत वार्षिक वर्षा की परिवर्तशीलता (तालिका 1)

वर्ष

औसत वार्षिक वर्षा (मीलीमीटर में)

1960

191

1965

186

1970

265

1975

461

1980

190

1985

149

1990

383

1995

307

2000

240

2005

215

2010

447

स्रोत - भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

यह जलवायु बदलाव का एक बड़ा संकेत है। पिछले कुछ सालों से यहाँ मानसून अधिक सक्रिय रहा है। तापमान में निरंतर वृद्धि एवं अधिक शक्तिशाली न्यूनदाब केन्द्र का विकसित होना पाया गया है। थार मरुस्थल में सूक्ष्म जलवायु परिवर्तन प्रकृतिजन्य एवं मानवजन्य कारणों से हुए है। ये कारण इस प्रकार हैं- -

  • ग्लोबल वार्मिंग
  • नहरी सिंचाई में वृद्धि
  • खनन गतिविधियों
  • तीव्रऔद्योगिकीकरण
  • भूमि उपयोग प्रारूप में परिवर्तन
  • अरब सागरीय मानसून का अधिक सक्रिय होना
  • बंगाल की खाड़ी में न्यूनदाब का मध्य भाग में विकसित होना।

यह प्रदेश भी ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों से अछूता नहीं रहा है। साथ ही खनन एवं औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि होने से इस प्रदेश में धूलकणों एवं ग्रीन हाऊस गैसों की मात्रा में वृद्धि हुई है जिससे आर्द्रताग्राही नाभिकों की मात्रा बढ़ी है। इस क्षेत्र में इंदिरा गांधी नहर परियोजना एवं नर्मदा नहर परियोजना के कारण नहरी सिंचाई क्षेत्र में वृद्धि हुई है, जिससे इस क्षेत्र के वायुमण्डल में नमी की मात्रा बढ़ी है। मौसम विज्ञानी महेश पालवट के अनुसार बंगाल की खाड़ी में न्यूनदाब अब उत्तर की ओर विकसित न होकर मध्य में विकसित हो रहा है, जो उत्तर पश्चिम की बजाय पश्चिम की ओर स्थानान्तरित होता है। इससे थार मरुस्थल में न्यूनदाब और अधिक शक्तिशाली केन्द्र के रूप में विकसित हो रहा है। साथ ही पूर्वी जेट वायुधारा उत्तरी हिन्द महासागर में नीचे उत्तर कर अरब सागरीय मानसून से मिलकर उसे और अधिक सक्रिय बना रही है। वैज्ञानिकों के मत अनुसार वर्ष 2004 के समुद्री भूकम्प के कारण पृथ्वी के अक्ष पर 3" का झुकाव बढ़ा है.

जिससे उत्तरी गोलार्द्ध में जेट स्ट्रीम उत्तर की ओर विस्थापित हुई है तथा उसके कमजोर पड़ने से मानसून ट्रफ का विस्तार हिमालय की तलहटी तक हो रहा है। इससे जोधपुर गंगानगर से आगे तक का क्षेत्र मानसून से प्रभावित हो रहा है। इसके अलावा अरावली में गैप्स बढ़ने के कारण भी बंगाल की खाड़ी का मानसून पश्चिमी राजस्थान तक पहुंच रहा है। इस प्रकार पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र में मानसून की सक्रियता में वृद्धि हुई है। वर्ष 1974 एवं 1998 में हुए परमाणु परीक्षण भी कुछ हद तक तापमान में वृद्धि के लिए उत्तरदायी माने जा सकते है। वर्तमान में इस क्षेत्र में तेजी से बढ़ती जनसंख्या, निर्माण कार्यों में वृद्धि सिंचित भूमि में वृद्धि घास आधारित चारागाहों का कृषि भूमि व अन्य कार्यो में रूपान्तरण, फसल प्रारूप में परिवर्तन आदि कारणों से भूमि उपयोग प्रारूप में परिवर्तन हुए हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर जलवायु में बदलाव देखने को मिले हैं।

यह प्रदेश जैव-विविधता की दृष्टि से माइक्रो हॉट स्पॉट है। यह जैव विविधता की दृष्टि से सम्पन्न प्रदेश होने के कारण जीव मरूप्रदेश भी कहलाता है। विश्व की 6.4 प्रतिशत वानस्पतिक प्रजाति इसी क्षेत्र में पाई जाती है। यहाँ लगभग 700 किस्म के पेड़-पौधे एवं 107 किस्म की घासें पाई जाती है। खेजडी, रोहिडा, बबूल, कैर, जाल, बेर, खैर, फोग, खींप नागफनी, सेवण, धामण, मूंज, बुर, मोचिया आदि प्रमुख वनस्पति विद्यमान हैं। यहाँ लगभग 350 पक्षी प्रजाति 35 रेप्टाइल्स प्रजाति, 60 स्तनपायी प्रजाति, 5 एम्फीबियन प्रजाति और लगभग हजारों किस्म के कीट पतंगे पाए जाते है। इस प्रकार मरू प्रदेश की स्थानीय प्रजातियों घास आधारित विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र की जनक है। यह प्रदेश भविश्य में मरूद्भिद वनस्पति का जीन डोनर प्रजाति क्षेत्र है, किन्तु थार प्रदेश की जलवायु में हो रहे सूक्ष्म बदलावों का

जैव विविधता पर प्रभाव परिलक्षित हो रहे है। ये प्रभाव इस प्रकार हैं - 

  • प्राकृतिक रहवासों का सिमटना।
  • स्थानीय प्रजातियों का संकटापन्न होना।
  • स्थानीय जीव जन्तुओं का प्रवसन
  • नई प्रजातियों का विकास होना।
  • खाद्य श्रृंखला का विक्षुब्ध होना ।
  • मरुद्भिद वनस्पति का कम होते जाना।

प्रदेश में लगभग 39 जीव जन्तुओं और 55 प्रजाति के पेड़-पौधे खतरे में है। रेतीली मृदा में नमी की वृद्धि से यह चिकनी मृदा में परिवर्तित हो रही है, जिससे मरूद्भिद वनस्पति खतरे में हैं, बार-बार बाढ़ आने से इस क्षेत्र में कीट पतंगों की नई प्रजातियां विकसित हो रही है। 

नमी की मात्रा बढ़ने से यहाँ मैदानी एवं हिमालयी क्षेत्रों की नई प्रजातियों का उद्भव हो रहा है। वर्ष 2019 में यूरेशियाई प्रजाति की कैटाप्सीला पोमोना नाम की तितली ने यहाँ प्रवास किया और बड़े पैमाने पर पुनरूत्पादन किया। यह जलवायु परिवर्तन का एक जैव सूचक भी है, जीवों के प्राकृतिक रहवास सिमटते जाने के कारण स्थानिक प्रजाति के जीव जैसे गोडावण, ब्लैकबक, चिंकारा, भेड़िए आदि का अस्तित्व खतरे में है। वर्ष 2017 में राष्ट्रीय मरुउद्यान में केवल 37 गोडावण ही बचे थे, जो आजादी के समय 1350 थे। भोश गोडावण भी पाकिस्तान की ओर प्रवास कर रहे हैं। चिंकारा और ब्लैक बक की संख्या कम होने से खाद्य श्रृंखला के शीर्ष पर स्थित मेड़िए (केनिस ल्यूपस) अब 100 से भी कम रह गए हैं। पन्छ की रेड डाटा बुक में गोडावण, सफेद भौंह टिटहरी, सलेटी टिटहरी आदि भामिल हो चुकी है यहाँ रेगिस्तानी जलवायु, मैदानी जलवायु में परिवर्तित हो रही है, जिसके कारण मरूद्भिद वनस्पति कम होती जा रही है। रोहिडा, खेजड़ी, फोग, खींप, सेवण घास, देशी बोरडी, धामण, मुरट धीरे धीरे कम होती जा रही है। यहाँ टाइफा, अरण्डी डोनक्स, क्रासिपस, सेकरम स्पॉटेनियम जैसी नई प्रजातियों का विकास हुआ है। मैदानी इलाकों की चिडियों, रेंगने वाले जीव विकसित हो रहे है। बाह्य प्रजातियाँ आक्रामक प्रकार की हैं, जिनका इस क्षेत्र में तेजी से विस्तार हो रहा है। फोग मरुस्थल की बाँधे रखता है लेकिन उसका धीरे धीरे ह्रास हो रहा है। इस प्रकार थार मरुस्थल की जैवविविधता में तेजी से परिवर्तन हो रहे है।

थार पारिस्थितिकी तंत्र पर्यावरणीय संतुलन की अनुपम भेंट है जिसका समय रहते संरक्षण एवं संवर्द्धन अत्यन्त आवश्यक है। काजरी और आफरी इस क्षेत्र में अनुसंधान तथा संरक्षण के लिए निरन्तर प्रयासरत है। उनके द्वारा समय-समय पर जारी शोध रिपोर्ट से अवगत होता है कि समय रहते इस पारिस्थितिकी तंत्र को पोषित नहीं किया गया, तो भविष्य में यहाँ की समृद्ध जैव विविधता से आने वाली पीढ़ियां अज्ञात रहेंगी। इस क्षेत्र में मरूद्भिद् वनस्पति की पुनर्स्थापना एवं स्थानिक प्रजाति की वनस्पति की पंक्तियों को गोचर व ओरण भूमि के रूप में विकसित किया जाये। जीवों के प्राकृतिक रहवासों के निकट सड़क मार्ग नहीं बनाए जाने चाहिए। नहरी सिंचित क्षेत्रों में दलदल के विस्तार पर रोक के पुख्ता इंतजाम किए जाने चाहिए। परम्परागत जल संरचनाओं का विकास किया जाना चाहिए। जैव विविधता के सरंक्षण हेतु स्थानीय समुदाय की समझ व संवेदनशीलता विकसित की जानी चाहिए। तमिलनाडु राज्य की तर्ज पर पारिस्थितिकीय निगरानी तंत्र राजस्थान में भी शुरू किया जाना आवश्यक है। वन्य जीवों के संरक्षण से जुड़ी योजनाओं में भी बदलाव की आवश्यकता है। राज्य में गोडावण के अतिरिक्त अन्य किसी जीव के संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया है। इस प्रकार थार मरुस्थल में जैव विविधता का संपोषण अत्यन्त आवश्यक है। प्राकृतिक कारणों एवं मानवीय गतिविधियों से रेगिस्तान की प्रकृति में बदलाव से थार मरुस्थल का संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र बदल रहा है, जिसका संरक्षण एवं संपोषण प्रत्येक व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी है।

  • बीदावत, दिलीप ( 2021 अप्रैल 13) थार की जैव विविधता को बचाने की जरूरत India water portal,

  • https://www.indiawaterportal.org/ चौहान, डी. (2011 जनवरी-मार्च ) बदल रही है थार की पारिस्थितिकी भूगोल और आप 10 (1). 18-22. 2.

  • दहिया, जी. (2019 अक्टूबर 22 ) तितलियों का माइग्रेशन बदल रही है, थार मरुस्थल की जलवायु, राजस्थान पत्रिका.

  • साईवाल. एस. (2023) राजस्थान का भूगोल, कॉलेज बुक हाउस.

  • शर्मा. सी. ( 2020 ) मरूधरा में जलवायु परिवर्तन एवं कृषि पारिस्थितिकी, श्री बालाजी पब्लिकेशन,

  • शर्मा एच.एस. एण्ड शर्मा. एम. एल. ( 2022 ) राजस्थान का भूगोल, पंचशील प्रकाशन

  • Bhardwaj, V.K. & Gupta, M. (2014). Micro- Climatic Changes in Thar desert in india Development & Challenges. Himalayan Journal of Development and Democracy, 9(1), 13-18.

  • Indian Meteorological Department. (2014, April). Rainfall Structure of thar "The great Indian Desert."

  • Poonia, S., & Rao, A.S. (2018). Climate and Climate change scenarios in the Indian thar region. In w.Leal filho (Ed.), Handbook of Climate Change Resilience, Springer Nature Switzerland AG 2018 (PP. 1-14). Springer Nature Switzerland AG2018.

  • लेखक परिचय  : सहायक आचार्य, भूगोल, लाल बहादुर शास्त्री राजकीय महाविद्यालय, कोटपूतली जयपुर, राजस्थान।

  • स्रोत : International Journal of Education, Modern Management, Applied Science & Social Science (IJEMMASSS) ISSN: 2581-9925, Impact Factor. 6.882 Volume 04, No. 04 (I) October-December, 2022, pp. 225-230

     

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org