पहचानिए
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तालाब या इंफिल्ट्रेशन टैंक पर कृत्रिम वर्षाजल रिचार्ज संरचनाओं की सहायता से नदियों का पुनरुद्धार ; एक केस स्टडी

तालाब, झील, पोखर, आहर, नाहर, खाव, चाल-खाल, गड्ढे ये सभी भूजल के पुनर्भरण का जरिया हैं। तालाब को पृथ्वी का रोम कूप भी कहते हैं। नदियों के किनारों के एक बड़े कैचमेंट के इन परम्परागत जलस्रोतों के पुनर्जीवन से कोई नदी भी जिंदा हो सकती है? एक केस स्टडी बहुत कुछ कहती है - 
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1(अ) * तालाब/ पोखर या इंफिल्ट्रेशन टैंक और उसमें कृत्रिम वर्षाजल रिचार्ज संरचनाओं

सेरपुर फार्म के सबसे निचले स्थल पर एक तालाब / गड्ढा दीर्घव्रताभ आकार ( Ellipsoidal shape) में खोद कर उसमें एक "कैविटी वेल " बनाया गया है,  जिसकी कुल गहराई 55 फीट तालाब तलहटी की भू सतह से नीचे तक है,  जिसमे ऊपर 15 फीट गाढ़ा, उसके नीचे 30 फीट गहराई तक  05 इंच व्यास का पीवीसी पाइप,  उसके नीचे 10 फीट मजबूत क्ले लेयर में बोर को नेकेड ( nacked) छोड़ दिया गया है, और उसके नीचे स्थित बालू के स्ट्रेटा (एक्विफर) में वेल डेवलपमेंट द्वारा कैविटी बनाई गई है। इस संरचना में भू सतह से उपर 12  इंच पाइप को भी रखा गया है जो चैम्बर में स्थित है। जो दो चैंबर्स  बनाए गए हैं उसमें प्रथम वाटर कलेक्शन चैंबर और दूसरा फिल्टर चैंबर की तरह कार्य करते हैं। तालाब/ गड्ढे की औसत गहराई लगभग 14  फीट और क्षेत्रफल लगभग 22000 स्क्वायर फीट है । इस तालाब या इंफिल्ट्रेशन टैंक (Infiltration Tank) के मध्य भाग में इसे नीचे स्थित बालू स्तर तक खोदा गया है, जिससे इसकी  तलहटी से भी सीधा जल छन कर रिचार्ज हो सके। इस फार्म में मेड़बंदी  भी की गई है जिससे खेत का पानी खेत में ही रह सके,और लगभग  दस एकड़ के क्षेत्र का वर्षा जल स्वतः ढलान के अनुरुप बह कर इस तालाब में एकत्र होकर यहां भूजल पुनर्भरण कर सके। इस संरचना द्वारा प्रत्येक  वर्ष मानसून सीजन में  लगभग 198800 क्यूबिक फीट , या  5629389 लीटर, या 1487128 गैलन (यू एस), या  56 29389 क्यूबिक मीटर संग्रहीत वर्षा जल एक बार मानसून बारिश में लगभग 10 दिनों के अंदर भूगर्भ में अवशोषित हो जाता है। इस प्रकार प्रति वर्ष मानसून काल में वर्षा से उपरोक्त तालाब लगभग दो बार पूरा भर कर कुल लगभग 11258778 लीटर, या  397600 क्यूबिक फीट, या 2974256 गैलन( यू एस), या 11258 क्यूबिक मीटर वर्षा जल का पुनर्भरण धरती के गर्भ में स्थित छिछले भूजल भंडार ( First Aquifer System or Phreatic Aquifer System) में संभव हो जाता है। उपरोक्त फार्म की बाहरी मेड पर, एवं इस पोखर के आस पास भी व्रक्षारोपण कर नीम, पीपल, ढाक या पलाश, सागौन, आम, बबूल, बांस आदि के वृक्ष लगाए गए हैं जो जैविक विविधता बनाए रखने के साथ साथ भूमि कटान एवं पर्यावरण के दृष्टिकोण से लाभकारी सिद्ध हो रहे हैं।

3 (स) * इस विधि से वर्षा जल रिचार्ज करने के लाभ एवं संस्तुतियां,,,
         

  • 1* छिछले भूगर्भ जल भंडार ( Shallow Aquifer System or Phreatic Aquifer System) के वर्षा जल से रीचार्ज होने पर दीर्घकालिक गिरते भूजल स्तर पर अंकुश लगता है ।

  • 2*  खेत से बाहर व्यर्थ में वर्षा जल बह जाने से बचता है,  जो कुछ स्तर तक बाढ़ नियंत्रण में भी सहायक होता है ।

  • 3*  बड़े वृक्ष जैसे पीपल, बरगद, पाकर, आम, इमली आदि को  लाभ होता है जो अपनी गहरी जड़ों द्वारा जल अवशोषित कर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं (photophilic Plants)।

4 (द) * इस से निकटवर्ती नदी और उनकी सहायक नदियों  के क्षेत्र ( बेसिन/ उप बेसिन) में भूजल स्तर में वृद्धि होती है,और परिणाम स्वरूप समय के साथ भूजल स्तर के निरंतर गिरने के कारण  यदि नदी /सहायक नदी प्रतिकूल रूप से प्रभावित होकर भूजल दाईं  स्थिती ( Effluent stage) में पहुंच गई हैं, तो समय के साथ धीरे धीरे वह पुनः वापस भूजल ग्राही स्थिति ( Effluent stage) में पहुंच सकतीं है। भूजल दाईं स्थिति में कोई नदी अपना जल भूमिजल को देती है, जब कि इसके विपरीत भूजल ग्राही नदी बेस फ्लो द्वारा भूमिजल ग्रहण करती है। अधिकांश सदानीरा नदियां ( Perennial Rivers)  भूजल ग्राही स्थिति ( Effluent stage) में होती हैं, क्योंकि वह वर्ष पर्यन्त भूजल भंडार से बेस फ्लो के रूप में जल गृहण करती रहती हैं,  परिणामतः जल प्रवाह की निरंतरता बनी रहती है और वह सूखती नहीं हैं।

5 (य) * नदी या सहायक नदी के बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों के आसपास यदि इन भूजल पुनर्भरण संरचनाओं का खेतों में सघनता से " क्लस्टर्स " के रूप में निर्माण किया जाए, तो यह भूजल भंडार को भरने के साथ साथ कुछ सीमा तक बाढ़ नियंत्रण एवं जलीय पर्यावरण संतुलन में भी लाभकारी सिद्ध हो सकतीं हैं।

6 (र) * इन संरचनाओं के निर्माण से आसपास के क्षेत्रों में समय के साथ खाली हो चुके भूजलभण्डार का पुनर्भरण होने से  जमीन में नमी बनी रहेगी, जो कृषि एवं एवं वानस्पतिक हरियाली बनाएं रखने में भी सहायक सिद्ध होगी।

7 (ल) * सामाजिक, धार्मिक, स्वयं सेवी, संबंधित सरकारी अर्धसरकारी संस्थाओं, एवं पर्यावरण मित्रों द्वारा यदि वृहद जागरूकता अभियान चलाकर ऐसी ही जल संरक्षण संवर्धन तकनीक अपनाने हेतु किसानों को प्रोत्साहित किया जाए, तो अवश्य ही समय के साथ जल संसाधन, नदी सरंक्षण संवर्धन, पर्यावरण संबंधी मंगलकारी परिणाम प्राप्त होंगे ।

लेखक अजय वीर सिंह, वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक हैं। जलसंसाधन, नदी विकास और गंगा सरंक्षण मंत्रालय, भारत सरकार अब जलशक्ति मंत्रालय से संबद्ध सीजीडब्ल्यूबी से रिटायर हुए हैं। सदस्य, लोकभारती परिवार हैं और सदस्य, सलाहकार समिति, श्री श्रीरविशंकर गुरुदेव इंस्टीट्यूट ऑफ रिवर रिजुवनेशन, बैंगलोर भी हैं। 

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