अंजीर

Published on
2 min read

अंजीर (अंग्रेजी नाम फ़िग, वानस्पतिक नाम:  फ़िकस कैरिका , प्रजाति फ़िकस, जाति कैरिका, कुल मोरेसी) एक वृक्ष का फल है जो पक जाने पर गिर जाता है। पके फल को लोग खाते हैं। सुखाया फल बिकता है। सूखे फल को टुकड़े-टुकड़े करके या पीसकर दूध और चीनी के साथ खाते हैं। इसका स्वादिष्ट जैम (फल के टुकड़ों का मुरब्बा) भी बनाया जाता है। सूखे फल में चीनी की मात्रा लगभग ६२ प्रतिशत तथा ताजे पके फल में २२ प्रतिशत होती है। इसमें कैल्सियम तथा विटामिन  ए और  बी काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इसके खाने से कोष्ठबद्धता (कब्जियत) दूर होती है।

अंजीर का वृक्ष छोटा तथा पर्णपाती (पतझड़ी) प्रकृति का होता है। तुर्किस्तान तथा उत्तरी भारत के बीच का भूखंड इसका उत्पत्ति स्थान माना जाता है। भूमध्यसागरीय तट वाले देश तथा वहाँ की जलवायु में यह अच्छा फलता-फूलता है। निस्संदेह यह आदिकाल के वृक्षों में से एक है और प्राचीन समय के लोग भी इसे खूब पसंद करते थे। ग्रीसवासियों ने इसे कैरिया (एशिया माइनर का एक प्रदेश) से प्राप्त किया; इसलिए इसकी जाति का नाम कैरिका पड़ा। रोमवासी इस वृक्ष को भविष्य की समृद्धि का चिह्न मानकर इसका आदर करते थे। स्पेन, अल्जीरिया, इटली, तुर्की, पुर्तगाल तथा ग्रीस में इसकी खेती व्यावसायिक स्तर पर की जाती है।

अंजीर की खेती भिन्न-भिन्न जलवायु वाले स्थानों में की जाती है, परंतु भूमध्यसागरीय जलवायु इसके लिए अत्यंत उपयुक्त है। फल के विकास तथा परिपक्वता के समय वायुमंडल का शुष्क रहना अत्यंत आवश्यक है। पर्णपाती वृक्ष होने के कारण पाले का प्रभाव इस पर कम पड़ता है। यों तो सभी प्रकार की मिट्टी में इसका वृक्ष उपजाया जा सकता है, परंतु दोमट अथवा मटियार दोमट, जिसमें उत्तम जल निकास (ड्रेनेज) हो, इसके लिए सबसे श्रेष्ठ मिट्टी है। इसमें प्राय खाद नहीं दी जाती; तो भी अच्छी फसल के लिए प्रति वर्ष प्रति वृक्ष २०-३० सेर सड़े हुए गोबर की खाद या कंपोस्ट जनवरी-फरवरी में देना लाभदायक है। इसे अधिक सिंचाई की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। ग्रीष्म ऋतु में फल की पूर्ण वृद्धि के लिए एक या दो सिंचाई कर देना अत्यंत लाभप्रद है।

अंजीर कई प्रकार का होता है, परंतु मुख्य प्रकार चार हैं: (१) कैप्री फिग, जो सबसे प्राचीन है और जिससे अन्य अंजीरों की उत्पत्ति हुई है, (२) स्माईना, (३) सफेद सैनपेद्रू, और (४) साधारण अंजीर। भारत में मार्सेलीज़, ब्लैक इस्चिया, पूना, बँगलोर तथा ब्राउन टर्की नाम की किस्में प्रसिद्ध हैं। अंजीर के नए पौधे मुख्यत कृत्तों (कटिंग) द्वारा प्राप्त होते हैं। एक वर्ष की अवस्था की डाल का इस कार्य के लिए प्रयोग किया जाता है। कृत्त जनवरी में लगाए जाते हैं और एक वर्ष बाद इस प्रकार तैयार हुए पौधों को स्थायी स्थान पर पंद्रह-पंद्रह फुट की दूरी पर रोपते हैं। प्रति वर्ष सुषुप्ति काल में इसकी कटाई-छँटाई करनी चाहिए क्योंकि अच्छे फल पर्याप्त मात्रा में नई डालियों पर ही आते हैं। फल अप्रैल से जून तक प्राप्त होते हैं। लगाने के तीन वर्ष बाद वृक्ष फल देने लगता है और एक स्वस्थ, प्रौढ़ वृक्ष से लगभग ४०० फल मिलते हैं। पत्तियों के निचले भाग में एक प्रकार का रोग लगता है जिसे मंडूर (रस्ट) कहते हैं, परंतु यह रोग विशेष हानिकारक नहीं है।

सं. ग्रं.- आइसन गुस्टाव दि फ़िग (यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑव ऐग्रिकल्चर, १९०१)। (ज. रा. सिं.)

अन्य स्रोतों से:

गुगल मैप (Google Map):

बाहरी कड़ियाँ:

विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia):

संदर्भ:

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org