भ्रंश (Fault)
तनाव मूलक भूसंचलन की तीव्रता के कारण भूपटल की शैलों में एक तल के सहारे उत्पन्न दरार या विभंग (fracture) जिसमें विभंगतल के सहारे बड़े पैमाने पर शैल खंडों का स्थानांतरण होता है। जिस तल के सहारे भ्रंश का निर्माण होता है उसे भ्रंश तल (fault plane) कहते हैं।
भ्रंश मुख्यतः चार प्रकार की होती हैं- सामान्य भ्रंश, व्युत्क्रम भ्रंश, पार्श्विक भ्रंश (नतिलंब सर्पण भ्रंश), और सोपान भ्रंश। जब किसी भ्रंशतल के सहारे दोनों ओर के शैल-खंड विपरीत दिशाओं में सरकते हैं, सामान्य भ्रंश (normal fault) का निर्माण होता है। इसमें शीर्षभित्ति भ्रंशतल के सहारे नीचे की ओर सरक जाती है जिससे भ्रंशतल का ढाल प्रायः खड़ा या तीव्र होता है।
व्युत्क्रम भ्रंश (reverse fault) में भ्रंशतल के सहारे दो शैल-खंड आमने-सामने खिसकते हैं और एक शैल खंड दूसरे शैलखंड पर चढ़ जाता है। भ्रंशतल के सहारे शैल खंडों में क्षैतिज संचलन होने पर पार्श्विक भ्रंश (lateral fault) का निर्माण होता है जिसमें कगारों की रचना बहुत कम हो पाती है। जब किसी भूभाग में कई समानांतर भ्रंशें इस प्रकार पायी जाती हैं कि सभी भ्रंशतल के ढाल की दिशा समान हो, इसे सोपानी भ्रंश (step fault) कहते हैं।
भ्रंशन क्रिया द्वारा स्थलखंड का कुछ भाग ऊपर तथा कुछ भाग नीचे की ओर स्थानांतरित हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप कई प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण होता है जिनमें रिफ्ट घाटी, ब्लाक पर्वत, होर्स्ट, ग्राबेन आदि अधिक महत्वपूर्ण हैं।
यह पृथ्वी की भूपटल में हुई टूटन है, जिसमें चट्टानें एक-दूसरे के सापेक्ष इसी के सामांतर विस्थापित होती है। यह कुछ सेंटीमीटर से लेकर कई किलोमीटर तक हो सकता है। विस्थापन का स्वरूप क्षैतिज, तिर्यक या लंबवत हो सकता है।