चीनी

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चीनी मिट्टी एक प्रकार की सफेद और सुघट्य मिट्टी हैं, जो प्राकृतिक अवस्था में पाई जाती है। डा. ग्रिम के कथनानुसार, ''चीनी मिट्टी वह खनिज पदार्थ है जो, फेल्सपार या उसके समान रासायनिक संघटनवाले खनिजों के रासायनिक विघटन से प्रकृति में बनती है।'' इसका रंग सफेद होता है और इसमें प्राकृतिक सुघट्यता होती है। इसका रासायनिक संघटन जलयुक्त ऐल्यूमिनो-सिलिकेट (Al2O3. 2SiO2. 2H2O) है। चीनी मिट्टी को केओलिन भी कहते हैं। चीनी भाषा में केओलिन का अर्थ पहाड़ी डाँडा होता है। डांडे बहुधा फेल्सपार खनिज के होते हैं और इस फेल्सपार का रासायनिकविघटन होने के कारण चीन मिट्टी या ''केओलिन'' इन्हीं डाँडों में पाई जाती है, बल्कि उस सफेद और सुघट्य मिट्टी को भी कहते हैं जो विघटन के स्थान से बहकर किसी अन्य स्थान में जमा हो जाती है। इसलिये चीन मिट्टी दो प्रकार की होती है : 1. वह जो विघटनस्थल पर पाई जाती है तथा 2. वह जे विघटन के स्थान से बहकर दूसरे स्थान में जमी पाई जाती है।

मृद्भांड उद्योग में उपयागी हाने के लिय चीनी मिट्टी कें कुछ और गुण होने चाहिए जैसे, 1. गीली रहने पर उसे मनचाही आकृति दे देना, 2. सूखने पर कठोर हो जाना, 3. सूखने पर या आग में पकने पर भी दी हुई आकृति का ज्यों का त्यों बना रहना, 4. सूखने वा आग में पकाने पर नियमित रूप से सिकुड़ना तथा 5. ऊँचे ताप पर न गलना।

इन गुणों को ध्यान में रखते हुए उपर्युक्त दो प्रकार की चीनी मिट्टी का आगे ओर भी वर्गीकरण किया जा सकता है, जैसे 1. वह चीनी, मिट्टी जो आग में पकाने पर सफेद रहती है, और वह चीन मिट्टी; जो आग में पकाने पर सफेद नहीं रहती; 2. सूखने और पकाने पर अधिक सिकुड़नेवाली चीनी मिट्टी और कम सिकुड़नेवाली चीनी मिट्टी; 3. ऊँचे ताप पर गल जानेवाली और न गलनेवाली; 4. विशेष सुघट्य और कम सुघट्य मिट्टी तथा 5. छोटे कणोंवाली मिट्टी और बड़े कणोंवाली मिट्टी।

विशेष प्रकार के गुणोंवाली मिट्टी ही विशेष प्रकार के उद्योग में अधिक उपयोगी सिद्ध होती हे, जैसे ऊँचे ताप को सह सकनेवाली मिट्टी का उपयोग तापसह ईटों के बनाने में होता है। प्याले, कटोरी इत्यादि बनाने में आग में पकाने पर सफेद रहनेवाली मिट्टी को ही लोग अधिक पसंद करते हैं। मकान इत्यादि बनाने के लिये पकाने पर सुंदर और लाल हो जानेवाली मिट्टी अधिक उपयोगी है। कपड़ा, कागज या रबर बनाने के उद्योग में खूब छोटे कणोंवाली सफेद मिट्टी की ही अधिक माँग है।

चीनी मिट्टी का उपयोग बर्तन, प्याले, कटोरी, थाली, अस्पताल में काम में लाए जानेवाले सामान, बिजली के पृथक्कारी, मोटर के स्पार्क प्लग, तापसह ईटें इत्यादि बनाने में होता है। रबर, कपड़ा तथा कागज़ बनाने में चीनी मिट्टी को पूरक की तरह उपयोग में लाते हैं। कभी कभी इसे दवा के रूप में भी खिलाते हैं। हैजा इत्यादि बीमारी में ''केओलिन'' दी जाती है।

उपयोग में लाने के पहले चीनी मिट्टी को अपद्रव्यों से मुक्त करना आवश्यक है। यह क्रिया चीनी मिट्टी को पानी से धोकर की जाती है। चीनी मिट्टी को पानी में मिलाकर नालियों में बहाया जाता है। अपद्रव्य भारी होने के कारण नीचे बैठ जाते हैं। और चीनी मिट्टी पानी के साथ बह जाती है। कुछ दूर बहने के उपरांत यह चीनी-मिट्टी-युक्त पानी एक टंकी में जमा कर लिया जाता है। कुछ समय के बाद चीनी मिट्टी भी पानी में नीचे बैठ जाती है। ऊपर का पानी निकाल लिया जाता है और मिट्टी सुखा ली जाती है। तब यह काम में लाई जाती है।

भारत में चीनी मिट्टी बिहार की राजमहल पहाड़ियों और पथरगट्टा नामक स्थान के पास, दिल्ली के आसपास की पहाड़ियों में तथा केरल प्रदेश में त्रिवेंद्रम के पास कुंडारा नामक स्थान में अच्छी और प्रचुर मात्रा में मिलती है। राजस्थान में कई स्थानों पर (विशेषकर पहाड़ियों पर), मध्यप्रदेश, बंबई, गुजरात, मद्रास, बंगाल और आंध्रप्रदेशों में भी चीनी मिट्टी बहुतायत से पाई जाती है। असम और पंजाब में भी चीनी मिट्टी प्रचुर मात्रा में पाई जाने की संभावना है। (मनोहर लाल मिश्र)

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