ज्वर

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ज्वर (Fever) उष्मानियमन (heat regulation) की अव्यवस्था से होनेवाली तापवृद्धि, ज्वर है। तापवृद्धि के निम्नांकित कारण हैं :

1. तांत्रिकातंत्र कार्य में बाधा -


मनुष्यों में इस प्रकार का ज्वर विरल है। आधारगंडिका (basal ganglia) और पौंस (Pons) के रक्तस्राव के कारण इस प्रकार का ज्वर होता है। निम्नश्रेणी के प्राणियों में रेखी पिंडाग्र (anterior portion of corpusstriatum) को उत्तेजित करने से तापोत्पादन बढ़कर ज्वर आता है। तंत्रिकातंत्र (nervous system) को आघात पहुँचने से उत्पन्न होनेवाला तीव्रज्वर बहुधा इसी प्रकार का होता है; परंतु उसमें वाहिकासंकोचन (vasoconstriction) से होनेवाली उष्णतानाशन की कमी भी कारण हो सकती है।

2. उष्णतानाशन में बाधा -


मलाशय के ताप से कुछ कम ताप पर प्राणियों को रखने से यह बाधा होती है। मनुष्यों में लू लगने से उत्पन्न ज्वर बहुधा इसी कारण से होता है।

3. जैवाणुक जीवविष (bacterial toxins) और रासायनिक द्रव्य -


अल्पमात्रा में इनका इंजेक्शन तापवृद्धि करता है और अधिक मात्रा में ताप को घटाता है।

कारण कोई हो, तापवृद्धि से शरीरगत प्रोटीनों का नाश होता है, जिसका परिमापन (estimation) मूत्र में उत्सर्जित नाइट्रोजन, गंधक, फॉस्फोरस, ऐसीटोन, ऐसीटोऐसीटिक तथा बी-ऑक्सीब्यूटिरिक अम्ल की मात्रा से होता है।

ज्वर में अनेक अंगों की कार्यहानि होती है। पाचकग्रंथियों की कार्यहानि से भूख घटकर, अन्नसेवन कम मात्रा में होने से रोगी अपनी चर्बी और प्रोटीनों पर जीवित रहकर शीघ्रता से कृश होता है। यकृत्‌ में ग्लाइकोजन का संचय तथा यूरिया का उत्पादन ठीक न होने से पित्तसंघटन बदलकर कभी कभी उसमें सारभूत संघटकों का अभाव हो जाता है और मूत्र में यूरिया घटाकर ऐमिनो नाइट्रोजन और ऐमोनिया बढ़ते हैं। यकृत्‌ में कणीदार (granular) और वसामय अपकर्ष (degeneration) भी होता है। वृक्क की कार्यहानि से मूत्र में ऐल्ब्यूमिन, ग्लोब्यूलिन, प्रोटिओज इत्यादि उत्सर्जित होते हैं। तांत्रिकाकोशिकाओं में रचना और कार्य की विकृतियाँ होती है। रक्त क क्षारीयता तथा श्वेतकणिकाओं की, विशेषतया बह्वाकृतियों (polymorphs) की, संख्या आंत्रज्वर जैसे कुछ ज्वरों में घटती है और न्यूमोनिया जैसे कुछ ज्वरों में दुगुनी तक बढ़ती है। [भास्कर गोविंद घाणेकर]

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बाहरी कड़ियाँ:


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संदर्भ:


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