कोलीफार्म बैक्टीरिया प्रदूषण (Coliform bacteria in Hindi)

Published on
4 min read

“कोलिफ़ॉर्म” क्या है?


कोलीफ़ॉर्म एक प्रकार का जीवाणु है जो कि पानी के माइक्रोबायोलॉजिकल अध्ययन के लिये एक सूचक अवयव (Parameter) के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। कोलीफ़ॉर्म विशिष्ट बैक्टीरिया (जीवाणु) का एक समूह होता है, जो मिट्टी, खराब सब्जी, पशुओं के मल अथवा गन्दे सतह जल में पाया जाता है। सामान्यतः कोलीफ़ॉर्म उपचारित सतह जल तथा गहरे भूजल में नहीं पाया जाता। ये सूचक अवयव रोगजनकों (Pathogens) के साथ भी पाया जा सकता है (जो कि रोग उत्पन्न करने का कारण बनता है), लेकिन सामान्यतः यह स्वस्थ मनुष्यों में बीमारी उत्पन्न नहीं करता, लेकिन जिन मनुष्यों के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो उन्हें जोखिम में डाल सकते हैं।

कोलीफ़ॉर्म को Pathogen के मुकाबले पानी की गुणवत्ता जाँचने में एक सही मानक माना जाता है, क्योंकि यह अधिक विश्वसनीय है। कोलीफ़ॉर्म के मुकाबले पैथोजन (रोगजनक जीवाणु) जल में बहुत कम मात्रा में पाये जाते हैं अतः उन्हें पृथक करने की सम्भावना भी कम हो जाती है। फ़िर भी यदि पीने के पानी में कोलीफ़ॉर्म अधिक मात्रा में है तो उसे “बायोलॉजिकली” प्रदूषित ही माना जाता है।

प्रयोगशाला में पानी के नमूने से कोलीफ़ॉर्म की मात्रा का पता कैसे लगाया जाता है?


सिर्फ़ सूक्ष्मदर्शी से पानी की जाँच अविश्वसनीय मानी जाती है, अतः काउंटी प्रयोगशाला ने पानी में कोलीलर्ट (Colilert) की उपस्थिति या अनुपस्थिति को मानक बनाया है। संक्षेप में कहा जाये तो पानी में कोलीफ़ॉर्म की मात्रा पता करने हेतु दो अलग-अलग परीक्षण हैं। पहला तरीका है – 100 मिली पानी के नमूने को विकास माध्यम में 35 डिग्री पर 24 घंटे रखा जाता है। 24 घंटे के बाद, सिर्फ़ कोलीफ़ॉर्म ही विकास माध्यम को भोजन के रूप में ग्रहण करना शुरु कर देता है, जिसके कारण पानी के नमूने में बदलाव आना शुरु हो जाता है। उसी के साथ-साथ दूसरे परीक्षण में मल में उपस्थित कोलीफ़ॉर्म का परीक्षण किया जाता है, अर्थात परीक्षण शुरु से अन्त तक 24 घंटे में पूरा हो जाता है।

1) “कोलीफ़ॉर्म पूरी तरह अनुपस्थित” रिपोर्ट का अर्थ है कि पानी का नमूना लिये जाते समय कोलीफ़ॉर्म नहीं था तथा वह पानी पीने योग्य था।
2) “कोलीफ़ॉर्म पूरी तरह उपस्थित” रिपोर्ट का अर्थ है कि जाँच के लिये पानी के नमूने में कोलीफ़ॉर्म पाया गया और यह पीने के योग्य नहीं है, इस पानी को “सुपर-क्लोरीनेट” करने की सलाह दी जाती है।
3) “फ़ीकल कोलीफ़ॉर्म” (E.Coli) उपस्थित रिपोर्ट का मतलब है कि नमूना लेते वक्त पानी में बैक्टीरिया थे और यह पानी पीने योग्य नहीं है हालांकि इसे “क्लोरीनेट” करके उपयोग किया जा सकता है। कैलीफ़ोर्निया के स्वास्थ्य विभाग ने पीने के पानी हेतु कुछ मानक तय किये हैं और उसके अनुसार पीने के पानी के किसी भी नमूने में कोलीफ़ॉर्म बैक्टीरिया पाया जाना स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित नहीं है।

पानी कैसे “कोलिफ़ॉर्म” से प्रदूषित होता है?


प्रत्येक सतह जल के स्रोत जैसे नदियों, नहरों, झीलों के पानी में कुछ न कुछ संदूषण उपस्थित होता ही है, क्योंकि इस पानी का उपयोग पशु-पक्षी, मानव तथा अन्य जलचरीय प्राणी करते रहते हैं। घर पर पीने से पहले प्रत्येक सतह जल को उपचारित करना आवश्यक होता है, जिसमें जीवाणुओं का शोधन, परजीवियों को निकालना, जैसे उपाय भी शामिल करना चाहिये, जो कि पानी के पूरी तरह से संशोधित होने में बाधा उत्पन्न करते हैं।

कुंए और अन्य उथले भूमिगत जलस्रोत, उनके आसपास गलत निर्माण कार्य, भारी बारिश अथवा बाढ़ आदि के कारण प्रदूषित हो सकते हैं। इन जलस्रोतों में सतह का गन्दा पानी रिसने से, सीवेज प्रणाली ठीक न होने अथवा सीवर पाइपों के लीकेज होने के कारण भी प्रदूषण फ़ैल सकता है। पानी के नमूने में कोलीफ़ॉर्म पाये जाने की रिपोर्ट उस नमूने में उंगली डुबाये जाने से भी आ सकती है। कुँए अथवा बावड़ी के पानी का कोलीफ़ॉर्म परीक्षण किये जाने से पहले उसे पूरी तरह सुपर-क्लोरिनेटेड कर लेना चाहिये, खासकर उस स्थिति में जबकि उसमें या उसके आसपास कोई निर्माण कार्य किया गया हो।

मैं कैसे अपने कोलीफ़ॉर्म प्रदूषण का इलाज कर सकता हूं?


सबसे पहले अपने कुएं, पानी की टंकी तथा अन्य स्थिर जल स्रोतों का परीक्षण करें कि क्या उनमें प्रदूषण युक्त होने की कोई सम्भावना है? अधिकतर ऐसा होता है कि कुएं अथवा बावड़ी अच्छी तरह से निर्मित होते हैं और उनका कोलीफ़ॉर्म प्रदूषण सिर्फ़ “क्लोरीनेशन” के द्वारा ही उपचारित हो जाता है। इस विधि में कुँए में गहरे तक क्लोरीन ब्लीच को एक शाफ़्ट के जरिये डाला और हिलाया जाता है तथा उसे लगभग आधा घंटा ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। उसके बाद घर में लगे सभी नलों को एक साथ खोलकर कुंए का पानी बहने दिया जाता है ताकि सभी नल भी कोलीफ़ॉर्म मुक्त हो सकें। यह सुनिश्चित करें कि मकान में बने सभी नल चालू हालत में हों। क्लोरीन की गंध आने लगे तब नलों को बन्द करके आगे की प्रक्रिया शुरु की जाती है। इसके बाद कुंए के पानी को रात भर के लिये (12 घंटे) स्थिर छोड़ दिया जाता है। अगले दिन बचा हुआ क्लोरीनेटेड पानी नल खोलकर बहा दिया जाता है, जब तक कि उसमें से क्लोरीन की गन्ध आना बन्द न हो जाये। जब एक बार पानी में से क्लोरीन पूरी तरह चली जाये (जिसे स्वीमिंग पूल टेस्ट किट से भी जाँचा जा सकता है), पानी को पुनः कोलीफ़ॉर्म संदूषण की जाँच के लिये प्रयोगशाला में ले जाया जाता है। सामान्यतः इस प्रक्रिया से पानी पूर्णतः कोलीफ़ॉर्म मुक्त हो जाता है। एक सामान्य घरेलू ब्लीच के लिये क्लोरीन की मात्रा 5.25% के अनुसार होनी चाहिये – एक 6 इंच के बोरवेल में प्रति 66 फ़ुट पानी के स्तर (अर्थात 100 गैलन पानी) के लिये 1 क्वार्ट क्लोरीन का उपयोग करना चाहिये। कुछ मामलों में यदि फ़िर भी पानी का प्रदूषण नहीं जाता तब उस कुंए / बोरवेल का पुनर्निर्माण किया जाना आवश्यक हो जाता है।

अन्य स्रोतों से

बाहरी कड़ियाँ:

विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia):

शब्द रोमन में:

संदर्भ:

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org