मारवाड़ (जोधपुर) राज्य का एक संक्षिप्त परिचय
संस्कृत शिलालेखों, पुस्तकों आदि में जोधपुर राज्य का नाम मरु, मरुस्थल, मरुमेदिनी, मरुमंडल, मारव, मरुदेश और मरुकांतार मिलते हैं, जिनका अर्थ रेगिस्तान या निर्जल देश होता है तथा स्थानीय भाषा में इसे मारवाड़ और मुरधर (मरुधरा) कहते हैं। जब से जोधपुर नगर बसा है तब से वह जोधपुर राज्य के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ है।
मारवाड़ नाम वैसा ही है, जैसा कि कठियावाड़, झालावाड़ आदि। स्थानीय शब्दों में वाड़ का अर्थ रक्षक होता है अतएव मारवाड़ का अर्थ रेगिस्तान के रक्षित देश है।
जोधपुर राजय राजपुताने (राजस्थान) के दक्षिण-पश्चिम में 24 37 और 27 42 उत्तरी अक्षांश तथा 70 5 और 75 22 पूर्व देशांतर के मध्य फैला हुआ है। इसका क्षेत्रफल 35016 वर्गमील है।
जोधपुर राज्य के उत्तर में बीकानेर, उत्तर-पश्चिम में जैसलमेर, पश्चिम में थार मरुस्थल, दक्षिण-पश्चिम में कच्छ का रण, दक्षिण में पालनपूर और सिरोही, दक्षिण-पूर्व में उदयपुर, पूर्व में अजमेर तथा किशनगढ़ और उत्तर-पूर्व में जयपुर राज्य है।
पर्वत – श्रेणियाँ
जोधपुर राज्य में अरावली पर्वत की श्रेणियाँ सांभर झील के पास से प्रारंभ होकर दक्षिण-पूर्व में उदयपुर और सिरोही राज्यों की सीमाओं तक चली गई है। इनके अतिरिक्त और भी कई पहाड़ियाँ हैं, जिनमें मुख्य जसवंतपुरा की सूंघा की पहाड़ी (ऊँचाई 3257 फुट), सिवाना के पास छप्पन की पहाड़ी (3199 फुट), जालोर के पास सोनगढ़ (2408 फुट) है। सबसे ऊँची पहाड़ी, जिसकी ऊँचाई 3607 फुट है, नाणा स्टेशन के करीब 13 मील पूर्व में है।
नदियाँ तथा झीलें
जोधपुर राज्य में सालभर बहनेवाली एक भी नदी नहीं है। यहाँ की मुख्य नदी लूणी है। यह नदी अजमेर के दक्षिण-पश्चिम की पहाड़ियों से निकलती है, जहाँ इसे सागरमती कहते हैं। गोविन्दगढ़ के पास सरस्वती नदी, जो पुष्कर से निकलती है, उसमें मिल जाती है। वहाँ से आगे वह लूणी कहलाती है और जोधपुर राज्य में प्रवेश करती है। वह पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम में बहती हुई कच्छ के रण में जा गिरती है। जोधपुर राज्य में उसका बहाव 200 मील है। अजमेर से लेकर आबू तक की पहाड़ियों के पश्चिमी ढाल का पानी उसमें मिलता है। यह उष्ण काल में सूख जाती है। बालोतरे तक इसका जल मीठा रहता है तथा वहाँ से आगे खारा होता जाता है। इसके जल को खेती में काम लाने के लिए बीलाड़ा के पास एक बाँध बांधकर जसवंत सागर नाम का एक बड़ा तालाब बनाया गया है, जिससे लगभग 20000 एकड़ से अधिक भूमि पर सिंचाई संभव हो सकती है।
मीठे पानी की कृत्रित झीलों में जसवंत सागर, सरदार समंद, एडवर्ड समंद, बाल समंद और कायलाणा है। इनमें जसवंत सागर सबसे बड़ी झील है, जिससको महाराजा जसवंत सिंह (द्वितीय) ने बनवाया था। इनके अतिरिक्त कई छोटे-छोटे तालाब हैं जिनके जल से खेती होती है।
खारे पानी की झीलों में सांभर, डीडवाना और पंचभद्रा की प्राकृतिक झीलें हैं। इन झीलों से नमक बनता है। सांभर झील सबसे बड़ी झील है।
सांभर झील - यह राजस्थान की ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। इसका अपवाह क्षेत्र लगभग 500 वर्ग किलोमीटी क्षेत्र में फैला है। यह झील दक्षिण - पूर्व से उत्तर - पश्चिम की ओर लगभग 32 किलोमीटर लंबी तथा 3 से 12 किलोमीटर चौड़ी है। ग्रीष्म काल में वाष्पीकरण के तीव्र दर के कारण इसका आकार बहुत कम रह जाता है। इस झील में प्रतिवर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 60000 टन नमक होने के अनूमान है। इसका क्षेत्रफल 145 वर्ग किलोमीटर है। इसके पानी से नमक बनाया जाता है। यहाँ सोडियम सल्फेट संयंत्र स्थापित किया गया है जिससे 50 टन सोडियम सल्फेट प्रतिदिन बनाया गया है।
डीडवाना झील - यह झील वर्तमान नागौर जिले में स्थित है। यह 4 किलोमीटर लम्बी है और इससे भी नमक तैयार किया जाता है। इस झील में चिपचिपी काली कीचड़ है जो सांभर झील के अनुरुप है। डीडवाना नगर से 8 किलोमीटर की दूरी पर सोडियम सल्फेट यंत्र लगाया गया है। इस झील से उत्पादित नमक का प्रयोग वर्तमान जोधपुर तथा बीकानेर जिलों में किया जाता है।
पंचभद्रा झील - वर्तमान बाड़मेर जिले में पंचभद्रा नगर के निकट यह झील स्थित है। यह लगभग 25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर विस्तृत है। यह झील वर्षा के जल पर निर्भर नहीं है बल्कि नियत वादी जल स्रोतों से इसे पर्याप्त खारा जल मिलता रहता है। इस जल से भी नमक तैयार होता है।
जलवायु
जलवायु के संबंध में राज्य स्वास्थ्यप्रद समझा जाता है। यहाँ उष्ण काल में गर्मी बहुत पड़ती है। अप्रील, मई और जून महीने में लू चलती है और आँधियाँ आती हैं। राज्य के पश्चिमी भाग में गर्मी अत्यधिक रहती है। गर्मी बहुत पड़ने पर तापमान 48 डिग्री तक चला जाता है। रेत जल्दी ठंडा हो जाता है, जिससे रात में ठंडक रहती है।
शीतकाल में ठंड बहुत पड़ती है तथा कभी-कभी तापमान 4 डिग्री तक पहुंच जाता है। रेतीले प्रदेश में रेत के जल्दी ठंडे हो जाने के कारण सर्दी की अधिकता रहती है।
वर्षा
सामान्यतः इस राज्य में कम वर्षा होती है, परन्तु पश्चिमी और उत्तरी हिस्से की अपेक्षा दक्षिणी-पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में जहाँ पर्वत श्रेणियां तथा जंगल पाए जाते हैं, वर्षा अधिक होती है। यहाँ की वर्षा का सालाना औसत 15 से 20 इंच के बीच है। पहले राज्य में जल की कमी होने के कारण लोग अपने-अपने मकानों में जल संग्रहण के लिए टांके बनवाते थे।
जमीन और पैदावार
जोधपुर राज्य में दो प्रकार की भूमि है। एक तो वह जिसमें खरीफ और रबी दोनों फसलें होती हैं, दूसरा रेतीला मैदान, जिसमें एक ही फसल (खरीफ) होती है। राज्य के पूर्वी, दक्षिणी और कुछ दक्षिण-पश्चिमी भागों अर्थात सांभर, परबतसर, मेड़ता, बीलाड़ा, कुछ हिस्सा जोधपुर, जैतारण, सोजत, पाली, देसूरी, बाली, जालोर और जसवंत पुरा में दोनों फसलें होती हैं। इन क्षेत्रों में रबी की फसल अधिकतर कूंओं सा तालाब के जल से होती है। उत्तरी, पश्चिमी और कुछ दक्षिणी हिस्सों अर्थात डीडवाना, नागोर, फलोदी, जोधपुर, शेरगढ़, पचपद्रा, सिवाना, शिव, मालानी और सांचोर आदि में केवल खरीफ की फसल होती है, जो चौमासे की दृष्टि पर निर्भर है।
खरीफ की फसल की पैदावार बाजरा, ज्वार, मक्का, मोठ, मूंग, तिल, सूई और सन है। इनमें बाजरा सबसे अधिक पैदा होता है, ज्वार तथा मोठ उससे कम होते हैं तथा शेष वस्तुएँ बहुत कम होती हैं। रबी में गेंहु, जौ, चना, सरसों, अलसी और राई होती हैं। जहाँ कूँओं या तालाब के जल की सुविधा है वहाँ इसकी खेती होती है। कहीं-कहीं गन्ने की खेती भी होती है। कूँओं से जल रहट या चडस के द्वारा निकालकर खेतों में पहुंचाया जाता है।
फलों में मतीरा, खरबूजा, ककड़ी, अमरुद, सिंघाड़ा, आम, नारंगी, केला और अनार तथा शाकों में गोभी, लहसुन, प्याज, आलू, मूली, शकरकंद, शलजम, गाजर, मेथी और बैंगन आदि होते हैं।
जंगल
जोधपुर राज्य के विशेषकर अरावली के पश्विमी ढाल की ओर के बाली, देसूरी, परबतसर, सोजत तथा सिवाना के परगनों में जंगल है। इनमें सालर, गूलर, कड़ाया, धौ आदि वृक्ष पाए जाते हैं। ढाल के नीचे के हिस्सों में पलाश, बेर, खेर, धामण और धौ के वृक्ष होते हैं। धौ और खेर की लकड़ी इमारतों के काम में आती है। बबूल प्रायः मैदानों में होता है। नीम के पेड़ भी पाए जाते हैं। जंगल की पैदावार में इमारती लकड़ी, जलाने की लकड़ी, बांस, घास, शहद, मोम, गोंद आदि हैं।
जंगली जानवर और पशु-पक्षी
यहाँ के पालतू पशुओं में ऊँट, गाय, भैंस, घोड़ा, गधा, भेंड़ और बकरी है। घोड़े तथा ऊँट सवारी के काम आते हैं। इस प्रांत में ऊँट बहुत ही उपयोगी जानवर है। इसे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। सपारी के अतिरिक्त उससे पानी, लकड़ी तथा पत्थर आदि की ढुलाई और खेतों में हल जोतने का काम भी लिया जाता है। जंगली जानवर में बाघ, चीता, रीछ, सूअर, भेड़िया, लकड़बग्घा, नीलगाय, हिरण, चीतल और खरगोश अरावली पर्वत के जंगलों में पाए जाते हैं। गाँवों के पास मोर, तोते और कबूतर पाए जाते हैं।
खानें
जोधपुर राज्य के जलोर तथा सोजत की खानों से जस्ता एवं तांबा निकाला जाता है। सांभर, डीडवाना और पंचभद्रा के झीलों में नमक पैदा होता है। सबसे बढिया संगरमरमर मकराने में मिलता है। इसी पत्थर से आगरा का ताजमहल, अजमेर के आना सागर पर की बारादरियाँ, दिल्ली का दीवाने खास और कलकत्ते का विक्टोरिया स्मारक भवन आदि कई सुंदर इमारतें बनी हैं। इस पत्थर के टुकड़े से बना हुआ चूना सफेदी के लिए सर्वोत्तम समझा जाता है। मकान की छतों के लिए काम में आने वाली पत्थर की लम्बी-लम्बी पट्टियाँ जोधपुर, खाँटू आदि में मिलती है। मकानों के चुनाई के काम का पत्थर जोधपुर, पचपद्रा, सोजत, पाली, खाटू, मेड़ता, नागोर आदि में पाया जाता है। कड्डी (जो इमारती पत्थरों को चिपकाने में सीमेंट का काम देती है) नागोर, फलोदी और बाड़मेर में निकलती है। मुलतानी मिट्टी, जिसे राजपुताना में मेट कहते हैं और जो बाल धोने तथा बढिया बर्तन बनाने आदि के काम में आती है, फलोदी तथा बाड़मेर में पाई जाती है।
अन्य स्रोतों से:
गुगल मैप (Google Map):
बाहरी कड़ियाँ:
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विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia):
संदर्भ:
1 - http://www.ignca.nic.in/
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