मोमजामा या लिनोलियम (Linoleum)

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मोमजामा या लिनोलियम (Linoleum) कठोर तलवाला लचीला पदार्थ होता हैं, जो फर्श के ढँकने में प्रयुक्त होता है। इसे गाढ़े कपड़े, या टाट के ऊपर सुघट्य पदार्थ को दबाकर अथवा संपीडित कर, चिकने स्तर के रूप में तैयार किया जाता है। कपड़े के तल पर ऐसा कठोर आवरण चढ़ा मोजामा लचीला होता है। इसमें प्रयुक्त होनेवाला सुघट्य पदार्थ अलसी के तेल और रेज़िन (प्राकृतिक या संश्लिष्ट) की पिघलाकर, भली भाँति मिलाकर, बनाया जाता है। उसमें वर्णाक, खनिज पदार्थ एवं पूरक भी मिलाए जाते हैं। वर्णकों के कारण मोजामे का कठोर तल कई रंगों का बनाया जा सकता है। गाढ़े कपड़े के स्थान में नमदावाला, या बिटुमिनी कागज भी प्रयुक्त हो सकता है। आजकल फर्श के ढँकने के लिये जो मोजामा बनता है, उसमें कागज के गत्ते का अधिकाधिक व्यवहार हो रहा है। अलसी के तेल के बने पदार्थो के स्थान में आज संश्लिष्ट रेज़िन का उपयोग बढ़ता जा रहा है। ऐसे लिनालियम फर्श को चित्तकर्षक डिज़ाइनों में चमकाते हैं और टिकाऊ फर्श को ढँकने के लिये अधिकाधिक व्यवहार में आ रहे हैं। इन्हें हम वास्तविक लिनोलियम नहीं कह सकते, क्योंकि वास्तविक लिनालियम में अलसी के तेल का रहना आवश्यक हैं। अलसी के तेल के रहने के कारण ही इसका नाम लिनोलियम पड़ा था। लिनोलियम का आविष्कार 1860 ई. में फ्रेडरिक वाल्टन नामक वैज्ञानिक द्वारा हुआ था और यह नाम उन्होंने का दिया हुआ है। आजकल कुछ ऐसे पदार्थ भी मोमजामा कहलाते हैं जिनके निर्माण में अलसी का तेल प्रयुक्त नहीं होता।

प्रारंभ में मोमजामे का उत्पादन एक रंग में ही होता था, पर इस शताब्दी के प्रारंभ से उपयुक्त वर्णकों और जटिल परिष्कृत रीतियों से इसका उत्पादन अनेक रंगों और डिजाइनों में होने लगा है। आजकल एक विशेष प्रकार का मोमजामा भी बनता हैं, जिसे छपाईवाला मोमजामा कहते हैं। इसमें पतले किस्म के मोमजामे के ऊपर बहुरंगीय प्रतिरूप में नम्य तैल लेप से ऊपरी तल पर छपाई की हुई होती है। छपाई के उपरांत मोमजामे के ऊपरी तल पर नाइट्रोसेल्यूलोज़ से, या अन्य प्रलाक्षारस से, अथवा मोम से पॉलिश की हुई होती है।

मोमजामे के उत्पादन में सुघट्य पदार्थ का निर्माण विशेष महत्व रखता है। इसमें सामन्यत: अलसी का तेल और एक, या अधिक रेज़िन प्रयुक्त होते हैं। ऐसे बने पदार्थ को लिनोलियम सीमेंट कहते हैं। इसका निर्माण दो क्रमों में होता है। एक क्रम में ऑक्सीकरण, या अन्य रीति, से अलसी का तेल तैयार किया जाता हैं। दूसरे क्रम में अलसी के तेल की रेज़िन, या खनिज पदार्थ, या पूरक के साथ मशीनों में भली भाँति मिश्रित किया जाता है। मिश्रित करने का काम मशीनों में होता है। यहाँ बर्णक भी मिलाया जा सकता हैं। तेल को पिघले हुए रेज़िन के साथ मिलाकर गर्म करते हैं, फिर उसमें 10 से 20 प्रतिशत तक कठोर रेज़िन मिलाते हैं। इससे जो उत्पाद प्राप्त होता है, उसे लियोलियम सीमेंट कहते हैं। इसे अब परिपक्व होने के लिये कई सप्ताह तक निश्चित ताप पर छोड़ रखते है। उपर्युक्त सीमेंट की 35 से 40 प्रतिशत मात्रा में ज्रबर, कॉर्क धूल, लकड़ी की धूल (35 से 45 प्रतिशत तक और वर्णक (15 से 25 प्रतिशत तक) मिलाकर महीन पीसते हैं। ऐसे प्राप्त लेप को गाढ़े कपड़ों, टाट, या गत्ते पर चिकनी चादर के रूप में चढ़ाकर, संपीडक कलेंडर, या द्रवचालित, दाबक से दबाते हैं। उसे फिर 500 से 700 सें. ताप पर भट्ठे में सुखाते हैं। सूख जाने पर तल कठोर हो जाता हैं। सूखने के स्तर का निर्धारण जल अवशोषण की मात्रा से मालूम करते हैं। सामान्यत: मोजामा कई वर्षो तक काम देता हैं। इसमें प्रयुक्त सीमेंट के अम्लीय गुण के कारण सोडा या अन्य क्षारीय पदार्थो से बार बार घोने से यह अपेक्षाकृत श्ध्रीा खराब हो जाता है। अधिक समय तक चलाने के लिये मोजामे को केवल पानी से घोना चाहिए और सूखने के उपरांत मोम की पॉलिश लगा देनी चाहिए। कॉर्क लिनालियम में कॉर्क रहता है। यह ध्वनि को मंद कर देता हैं। अधिकांशत: गिरजाघरों में ही इसका उपयोग होता है। (अभय सिन्हा)

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