प्रति ऑक्सीकारक (Antioxidants)

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प्रति ऑक्सीकारक (Antioxidants) या प्रतिउपचायक वे यौगिक हैं। जिनको अल्प मात्रा में दूसरे पदार्थो में मिला देने से वायुमडल के ऑक्सीजन के साथ उनकी अभिक्रिया का निरोध हो जाता है। इन यौगिकों को ऑक्सीकरण निरोधक (OXidation inhibitor) तथा स्थायीकारी (Stabiliser) भी कहते हैं। तथा स्थायीकारी (Stabiliser) भी कहते हैं। अनेक यौगिक हवा में खुले रखे जाने पर हवा के ऑक्सीजन द्वारा स्वत: ऑक्सीकृत (autooxidise) हो जाते हैं। इस रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप उन पदार्थो में कुछ अवांछनीय गुणधर्म आ जाते हैं, जो उनको साधारण उपयोग के लिये अनुपयुक्त कर देते हैं। इस प्रकार के अनेक परिवर्तनों का बोध साधारण इंद्रियों द्वारा हो जाता है। अत: स्वत: ऑक्सीकरण द्वारा पदार्थो के बिगड़ जाने तथा अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने का ज्ञान मनुष्य को बहुत दिनों से था यद्यपि स्वत: ऑक्सीकरण की क्रिया का पूर्ण ज्ञान काफी बाद में हो पाया।

स्वत: ऑक्सीकरण की क्रिया चार पदों में संपन्न होती है : (1) प्रारंभिक पद जो बहुत ही मंद गति से घटित होता है, (2) क्रमश: तीव्र होनेवाली गति, (3) लगभग स्थायी गति तथा (4) अंतिम ह्रासोन्मुखी गति। प्रथम पद तथा दूसरे पद की मंद गति तक की जो अवधि होती है उसे प्ररेण अवधि (Induction period) कहते हैं और यह इस बात को प्रदर्शित करता है। यह बात श्रृंखला अभिक्रिया (Chain reaction) के आधार पर ऑक्सीकरण अभिक्रिया प्रक्रम की पुष्टि करती है।

स्वत: ऑक्सीकरण प्रक्रिया में श्रृंखलावाहक का काम मुक्तमूलक (free radical) करते हैं जो बहुत ही सक्रिय होते हैं। स्वत: ऑक्सीकृत होनेवाले अणु में जो सबसे निर्बल कार्बन हाइड्रोजन बंध होता है उसी के टूटने से ये मूलक बनते हैं। अत: इस प्रकार के पदार्थ में आसानी से निकल जानेवाले एक हाइड्रोजन परमाणु की उपस्थिति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उसमें एक द्विबंध भी होना चाहिए जिसके साथ मुक्तमूलक संयुक्त हो सके।

प्रतिऑक्सीकारक अधिकांश कार्बनिक यौगिक, जैसे ऐरोमेटिक एमीन, फ़िनोल, एमीनो फ़िनोल आदि होते हैं जो सरलता से हाइड्रोजन परमाणु निकालकर मुक्तमूलक में परिणत हो सकें और श्रृंखलित क्रिया का प्रसारण कर सकें। प्रतिऑक्सीकारक अपना कार्य करते समय स्वत: नष्ट हो जाते हैं या स्वत: ऑक्सीकृत होनेवाले पदार्थ इनको क्रमश: नष्ट कर देते हैं।

रबर, गैसोलीन तथा स्नेहक तेल (lubricating oil) आदि कुछ पदार्थो में तो प्रतिऑक्सीकारक स्वत: विद्यमान रहते हैं पर उनके शोधन के समय वे नष्ट हो जाते हैं। अत: इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि वे नष्ट न हों या शोधन के बाद फिर उनमें और प्रतिऑक्सीकारक मिलना पड़ता है।

अनेक ऐल्डीहाइड, जेसे बेंजैल्डिहाइड बहुत ही तीव्र गति से स्वत: ऑक्सीकृत हो जाते हैं अत: उसे रोकने के लिये हाइड्रोक्वीनोन, ऐल्फानैफथाल, कैटीकोल आदि प्रतिऑक्सीकारकों का उपयोग करना पड़ता है।

सं. ग्रं. एम. एम. बोस ऐंड वी. सुब्रह्मणयम : ऐंटीऑक्सीडैंट इन साइंस ऐंड इंड्रस्ट्री; एनसाइक्लोपीडिया ऑव केमिकल टेक्नोलोजी खंड 2, (1948)। (रामदास तिवारी)

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