वायुमंडलीय ट्रेस गैसें अर्थ, परिभाषा | atmospheric trace gases meaning, defination in Hindi

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वायुमंडलीय ट्रेस गैसें : एक परिचय

वायुमंडलीय ट्रेस गैस किसी भी प्रकार की गैसें होती हैं, जो वायुमंडल में सांद्रता में छोटी हों। यह गैसें वायुमंडल में पीसीबी या उससे भी कम मात्रा की सांद्रता में होती हैं। वायुमंडल में एक प्रतिशत से कम होते हुए भी वायुमंडल के संतुलन में इनका अपना एक महत्व होता है। पृथ्वी के वायुमंडल में ट्रेस गैसें नाइट्रोजन (78.1%) ऑक्सीजन (20.9%) और आर्गन (.93%) आदि 99.934% (जल वाष्प शामिल नहीं) के अलावा अन्य गैसें हैं। इस संदर्भ में, ट्रेस गैसें सभी वायुमंडलीय गैसों का 1% से भी कम बनाती हैं। नोबल गैस आर्गन (Ar) पृथ्वी के वायुमंडल में पाई जाने वाली सबसे आम ट्रेस गैस है। वायुमंडल के भीतर अन्य ट्रेस गैसों में हाइड्रोजन (H), हीलियम (He), नियॉन (Ne), क्रिप्टन (Kr), और क्सीनन (Xe) शामिल हैं। 

पृथ्वी का वायुमंडल (Earth Atmosphere)

सौर मंडल में पृथ्वी एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसका एक विशेष प्रकार का वायुमंडल है, जिसके कारण यहाँ जीवन संभव है। सूर्य से इसकी दूरी और इसका वायुमंडल, इसके वातावरण को गर्म तथा रहने लायक बनाता है। यह एक ऐसा ग्रह है जहाँ पर जल तीन रूपों में पाया जाता है। जैसे ठोस, द्रव तथा गैस । पृथ्वी का वायुमंडल जैविक क्रियाओं के साथ-साथ भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तनों से बनता है। सूर्य सहित अधिकांश ग्रहों पर मुख्य रूप से हाइड्रोजन तथा हीलियम गैसें पाई जाती हैं। शुक्र एवं मंगल. इन दोनों ग्रहों के भी वायुमंडल भिन्न हैं। पृथ्वी का वायुमंडल अपने पड़ोसी ग्रहों शुक्र एवं मंगल से पूर्णतः भिन्न है। इन दो ग्रहों शुक्र एवं मंगल पर कार्बन डाईऑक्साइड गैस मुख्य रूप से पाई जाती है।

पृथ्वी पर भारी मात्रा में जल वाष्प होता है। इनका भिन्नात्मक प्रतिशत ध्रुवीय क्षेत्रों एवं रेगिस्तानी क्षेत्रों में परिवर्तनशील होता है, तथा लगभग 4 प्रतिशत उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में भी होता है फिर भी पृथ्वी पर अधिकतम जल का प्रतिशत तरल रूप में है। कुल जल का लगभग 0.0001 प्रतिशत भाग वायुमंडल में होता है। जल की भी ऊष्मा स्थानान्तरण में मुख्य भूमिका होती है। मुख्यतः सागरों से जल का वाष्पीकरण हवाओं के द्वारा होता है तथा उसके द्वारा उत्पन्न ऊष्मा का भी आवागमन वायुमंडल में होता है। जल की दूसरी महत्वपूर्ण भूमिका यह है कि सागर बहुत सी वायुमंडलीय गैसों का स्रोत तथा उनको विलुप्त करने का काम करता है। कार्बन डाइऑक्साइड एक ऐसी गैस है, जिसका सागर में अधिक भंडार है।

वायुमंडल की नाम पद्धति (Nomenclature of Atmosphere)

वायुमंडल की विभिन्न परतों के गुणों के तथा क्षेत्रों के विशेष उर्ध्वाधर ताप ग्रेडियंट को विभेदित करने के लिए ताप प्रोफाइल का प्रयोग किया जाता रहा है। पृथ्वी की सतह से. औसत तापमान लगभग 10 से 16 किमी तक, ऊँचाई के साथ साथ घटता है। (10 किमी ध्रुवीय क्षेत्र में तथा 16 किमी उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में) यह क्षेत्र क्षोभमंडल कहलाता है। इस क्षेत्र में 85 से 90 प्रतिशत तक वायुमंडलीय द्रव्यमान होता है। इस क्षेत्र में. ऊर्जा का तथा द्रव्यमान का तेजी से ऊर्ध्वाधर संवहन क्रियाओं के साथ फेरबदल होता है। ऊर्ध्वाधर फेरबदल के लिए औसत समय नियतांक कई सप्ताह तक होता है। रासायनिक उत्पादों का आवागमन सतह तथा खुले क्षोभमंडल में सीधे-सीधे परिसीमा स्तर जो सतह से 01 किमी पर है, के स्थायित्व पर निर्भर करता है। क्षोभमंडल से ऊपर तापमान बढ़ता है और यह 50 किमी की ऊँचाई तक बढ़ता है। वह सीमा जहाँ पर तापमान का घटना बंद हो जाता है। वह ट्रोपोपॉज कहलाता है। उसी प्रकार समताप मंडल (स्ट्रेटोस्फियर) का ऊपरी भाग स्ट्रेटोपॉज कहलाता है। समताप मंडल का क्षेत्र नकारात्मक ह्रास दर (लैप्स रेट) का क्षेत्र है तथा यह गर्म हवाओं का क्षेत्र है। यह ठंडी हवा के ऊपर गर्म हवा का स्थाई क्षेत्र है। कभी-कभी मौसमी घटना तथा भौगोलिक स्थिति के कारण सतह पर भी तापमान नकारात्मक होता है। यह प्रतिलोमन प्रदूषकों को बाहर जाने से रोकता है तथा आपस में मिलने नहीं देता है। समताप मंडल में तापमान का बढ़ना ओजोन के कारण होता है जो सौर मंडल से आने वाली अल्ट्रावाइलेट किरणों को पूरी तरह से अवशोषित कर लेता है। इस क्षेत्र में वायुमंडल की 90 प्रतिशत ओजोन पाई जाती है जिसकी अधिकतम सांद्रता 25 किमी ऊँचाई पर है। निचले स्ट्रेटोस्फियर में घुसने वाले पदार्थ के लिए विशिष्ट वास समय एक से तीन वर्ष तक होता है, 50 किमी से ऊपर तापमान पुनः घटता है। स्ट्रेटोपॉज तथा लगभग 85 से 90 किमी के बीच का क्षेत्र मेसोस्फियर कहलाता है तथा इसकी ऊपरी सतह मेसोपॉज कहलाती है। वायुमंडल का मेसोपॉज क्षेत्र सबसे ठंडा क्षेत्र होता है (T-18° k) उसमें ह्रास दर (लेप्स रेट) लगभग 3.7 डिग्री केल्विन प्रति किमी. होती है। यह क्षेत्र तेजी से होने वाली मिक्सिंग के लिए जाना जाता है। मेसोपॉज से ऊपर का भाग थर्मोस्फियर कहलाता है। इस क्षेत्र में तापमान अधिकतम बढ़ता है जो कि सौर्य ऊर्जा पर पूर्णतः निर्भर है। अतः यह क्षेत्र रात की अपेक्षा गर्म दिन दिखाता है। ऋतुएँ तथा सौर क्रियाएँ तापमान में परिवर्तन का कारण होती है। थर्मोस्फीयर के अधिकतम गर्म होने का कारण यह है कि वहाँ वायुमंडल बहुत विरल है। यह लगभग सतह का छवाँ भाग है जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार के विकिरण में टकराव तथा विकिरण ऊर्जा स्थानांतरण के द्वारा ऊर्जा का ह्रास होता है। थर्मोस्फीयर को गर्म करने के लिए सौर विकिरण जिम्मेदार है जिसकी अधिकतम पराबैंगनी विकिरण की तरंग दैर्ध्य लगभग 100 नैनों मीटर से कम होती है। उच्च ऊर्जा फोटोन के कारण फोटो आयोनाइजेशन हो जाता है। 60 किमी से ऊपर निष्क्रिय अणु एवं परमाणु के अलावा बहुत सी संख्या में आयन तथा इलेक्ट्रॉन भी होते हैं। यह क्षेत्र आइनोस्फीयर कहलाता है।

लेखक डॉ. एस. के. पेशिन ‘मौसम विज्ञान के महानिदेशक’ कार्यालय
में वैज्ञानिक 'एफ' हैं।
 

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