धरती का उत्सव है बारिश

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मछलियों के लिए भी पोखर में पर्याप्त पानी होगा। जल्द ही वह चकत्तेदार फोर्कटेल चिड़िया यहां लौट आएगी। शायद एक न एक दिन वह हिरण भी लौटकर आए, जो उस दिन अपनी प्यास बुझाए बिना यहां से चला गया था। मैं कॉटेज की खिड़कियां खोल देता हूं और बारिश और उससे नम हुई धरती की अतुल्य सौंधी गंध को भीतर आने देता हूं।

पानी की बूंदें नन्हीं जरूर होती हैं, लेकिन वे किसी जादू के पिटारे से कम नहीं होतीं। एक मायने में ये बूंदें सीप भी हैं और मोती भी। पानी की हर बूंद सृजन और स्वयं जीवन के एक अंश का प्रतिनिधित्व करती है। जब गर्मियों के लंबे और थका देने वाले मौसम के बाद धरती पर मानसून की पहली फुहारें पड़ती हैं तो धरती के उल्लास के बारे में कुछ न पूछिए। तपिश से झुलसी धरती बारिश की हर बूंद का मन प्राण से स्वागत करती है। वह अपने तमाम रंध्रों को खोल देती है और हर बूंद से अपनी प्यास बुझाती है। वह पिछले कई माह से धूप में तप रही थी। उसमें दरारें पड़ गई थीं और मिट्टी की नमी समाप्त हो चुकी थी। इस विषादग्रस्त धरती पर बारिश की बूंदें क्या पड़ती हैं, मानो कोई चमत्कार हो जाता है। रातों-रात जाने कहां से घास उग आती है। धरती हरियाली की चादर ओढ़ लेती है। सब कुछ नया-नया नजर आने लगता है। ऐसा लगता है जैसे धरती ने नए सिरे से जीवन की शुरुआत की हो। बारिश की पहली बूंदें पड़ने के बाद जो सौंधी महक उठती है, उसकी तुलना मनुष्य द्वारा ईजाद किए गए किसी भी इत्र से नहीं की जा सकती। उसके सामने अच्छे से अच्छा परफ्यूम भी फीका है।

बारिश धरती का उत्सव है। घास, पत्तियों, फूलों की पंखुरियों, कीड़े-मकोड़ों, पक्षियों, जीव-जंतुओं और मनुष्यों के धड़कते हुए हृदय के लिए बारिश खूब सारी खुशियां लेकर आती है। बारिश की फुहार में भीगने के लिए बच्चे सड़कों पर दौड़े चले आते हैं। यहां तक कि मवेशी भी, जिन्होंने गर्मियों की लंबी दुपहरें सूखे जल-स्रोतों और चरागाहों के इर्द-गिर्द भटकते हुए काटी थीं, बारिश के बाद कीचड़ में कुछ इस तरह मजे से पसर जाते हैं, जैसे कि वह स्वर्गलोक की आरामगाह हो। मानसून की मेहरबानी अगर बनी रहे तो जल्द ही नदियां और झीलें भी उफनने लगती हैं। कुछ दिन पहले की बात है। मैं हिमालय की तराइयों में टहल रहा था कि मैंने पाया कि कई किलोमीटर तक सफर करने के बावजूद कहीं कोई बस्ती नजर नहीं आ रही है। मैं खुद को कोस रहा था कि मैं अपने साथ पानी क्यों नहीं लेकर आया। तभी मुझे फर्न की हरी-भरी झाड़ियों के पीछे कुछ हलचल नजर आई। मैंने आहिस्ता से झाड़ियां हटाईं तो देखता क्या हूं कि चट्टान के पीछे पानी का एक छोटा-सा सोता है! एक प्यासे मुसाफिर के लिए पानी का सोता अमृत की धारा से कम नहीं होता।

मैं वहां घंटों रहा और सोते से पानी की एक-एक बूंद को टपकते और नीचे बहते देखता रहा। हर बूंद से सृजनात्मकता झलक रही थी। बाद में मैंने पाया कि इस सोते से निर्मित हो रही जलधारा अन्य धाराओं के साथ मिलकर एक हहराती हुई नदी बन गई है, जो पहाड़ी रास्तों पर उछलकूद मचाती हुई नीचे मैदानों की ओर अपनी उर्वरता का वरदान लिए चली जा रही है। यह नदी किसी अन्य नदी से जाकर मिलती है और वह किसी अन्य से। विशालकाय महानदियों का जन्म इसी तरह होता है। हजारों किलोमीटर का सफर तय करने के बाद अंत में वे जाकर समुद्र में मिल जाती हैं। बूंद से सागर तक की यात्रा पूरी हो जाती है। ताओ धर्म के प्रवर्तक और दार्शनिक लाओत्से ने कहा था :

‘पानी की तरह हो जाओ। जो व्यक्ति पानी की तरह तरल, मृदुल और सहनशील होता है, वह किसी भी बाधा को पार कर सकता है और समुद्र तक पहुंच सकता है।’

पानी की तरह तरल हो जाने का अर्थ है विनम्र हो जाना, किसी से व्यर्थ विवाद न करना और चुपचाप अपनी राह पर बढ़ते चले जाना।

बारिश धरती के लिए उत्सव है

गर्मियों के दिनों में यह पोखर तकरीबन पूरी तरह सूख जाता है। कुछ दिनों पहले तक इसमें महज इतना ही पानी था कि वह मछलियों और मेंढकों के जीवित रहने भर के लिए ही काफी था लेकिन अब जब मैं ये पंक्तियां लिख रहा हूं तो तस्वीर काफी कुछ बदल चुकी है। मेरे कॉटेज की टिन की छत पर बारिश की बूंदें टपाटप बरस रही हैं। मैं बाहर झांककर देखता हूं तो पाता हूं कि आकाश से हो रही अमृतवर्षा पोखर के खाली प्याले को धीरे-धीरे भर रही है। अब यहां से प्राणी प्यासे नहीं लौटेंगे, मछलियों के लिए भी पोखर में पर्याप्त पानी होगा। जल्द ही वह चकत्तेदार फोर्कटेल चिड़िया यहां लौट आएगी। शायद एक न एक दिन वह हिरण भी लौटकर आए, जो उस दिन अपनी प्यास बुझाए बिना यहां से चला गया था। मैं कॉटेज की खिड़कियां खोल देता हूं और बारिश और उससे नम हुई धरती की अतुल्य सौंधी गंध को भीतर आने देता हूं।

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