जलवाष्प से बने बादल वर्षा करके कुछ इस तरह पूरा करते हैं धरती का जल-चक्र।
जलवाष्प से बने बादल वर्षा करके कुछ इस तरह पूरा करते हैं धरती का जल-चक्र। स्रोत : इंडिया वाटर पोर्टल

बादलों का विज्ञान समझ कर आप भी लगा सकते हैं मौसम का अनुमान

बादलों का अध्‍ययन करके ही मौसम वैज्ञानिक देते हैं बादल फटने, ओला वृष्टि और हिमपात से लेकर बाढ़, सूखा और हिमस्‍खलन और भूस्‍खलन जैसी प्राकृतिक घटनाओं की चेतावनी
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आकाश में घुमड़ते बादल बच्‍चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर उम्र के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं। काले बादल, घने बादल, सफेद ओर रुईदार बादल जैसे रूपों में अकसर हम इन्‍हें देखते और पहचानते हैं। पर, मौसम विज्ञान की दृष्टि से बादल के कितने वर्ग और प्रकार होते हैं, इसकी जानकारी आमतौर पर लोगों को नहीं होती।

मौसम विज्ञान में बादलों को उनकी ऊंचाई और संरचना के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। इनकी जानकारी लोगों के लिए उपयोगी हो सकती है, क्‍योंकि बादलों की पहचान और इनकी बनती-बिगड़ती आकृतियां और स्थितियां हमें मौसमी बदलाव का संकेत देती हैं। इन्‍हें जान-समझ कर हम हमारी ज़िंदगी को प्रभावित करने वाले मौसमी उतार-चढ़ावों और संभावित संकटों का अंदाज़ा लगा कर खुद को इनके प्रभाव और नुकसान से बचा सकते हैं। 

क्‍यों ज़रूरी है बादलों को समझना? 

मौसम वैज्ञानिक बादलों का अध्ययन काफी गहराई से करते हैं, क्‍योंकि बादलों की विविधता कई तरह की मौसमी परिस्थितियों को जन्म देती है। बादल फटने, ओला वृष्टि और हिमपात से लेकर बाढ़, सूखा और हिमस्‍खलन और भूस्‍खलन  जैसी प्राकृतिक आपदाओं का अनुमान बादलों का अध्‍ययन करके लगाया जाता है। साथ ही बादलों से जुड़ी सूचनाओं का इस्तेमाल हवाई जहाजों व समुद्री जहाजों के संचालन में काफी महत्‍वपूर्ण होता है।

यहां तक कि दुर्गम व पहाड़ी इलाकों में सड़क व रेल यातायात में भी कई बार इसकी अहम भूमिका होती है, क्‍योंकि इन क्षेत्रों की यात्रा में बारिश और दृश्‍यता (विजिबिलटी) की काफी अहम भूमिका होती है। इस सबको देखते हुए मौसम विभाग बादलों की गतिविधियों पर लगातार बारीकी से नज़र रखता है। यह काम मौसम पर्यवेक्षण टावरों के विशाल नेटवर्क, मौसम गुब्बारों, रडारों, कृत्रिम उपग्रहों से मिलने वाली सूचनाओं और आंकड़ों की मदद से किया जाता है। मौसम विभाग उच्च क्षमता वाले कंप्यूटरों और विभिन्न अंकगणितीय मॉडलों की मदद से इस डेटा का विश्‍लेषण करके मौसम संबंधी सूचनाएं व अलर्ट जारी करता है।

बारिश के पानी से ही रीचार्ज होते हैं झील, तालाब नदियों जैसे हमारे जलाशय। भूजल का पुनर्भरण भी वर्षा के जल से ही होता है।
बारिश के पानी से ही रीचार्ज होते हैं झील, तालाब नदियों जैसे हमारे जलाशय। भूजल का पुनर्भरण भी वर्षा के जल से ही होता है। स्रोत : इंडिया वाटर पोर्टल

ऊंचाई और संरचना के आधार पर बादलों के प्रकार

हममें से अधिकतर लोग बादलों की ऊंचाई का अनुमान नहीं लगा पाते। बादलों की ऊंचाई में अकसर काफी अंतर होता है, जिसका उनसे होने वाली वर्षा, बर्फ़़बारी या ओला वृष्टि आदि से सीधा संबंध होता है। सामान्यतः जिन बादलों को हम देखते हैं, उनकी ऊंचाई 1,800 मीटर से 5,500 मीटर तक होती है। लेकिन, वायु के वेग, पवन और आकाशीय बिजली से उत्‍पन्‍न विद्युतीय गतिविधियों के चलते कई बार कुछ बादल इस दायरे को तोड़ते हुए धरती से 15,000 मीटर की ऊंचाई तक भी पहुंच जाते हैं। 

मौसम वैज्ञानिक बादलों को उनकी संरचना और ऊंचाई के अनुसार विभिन्न नामों से पहचानते हैं। संरचना के आधार पर बादलों को मुख्यतः तीन वर्गों पक्षाभ (सिरस), कपासी (क्यूमुलस), और स्तरी (स्ट्रेटस) में बांटा गया है। इन्हें ये लैटिन नाम वर्ष 1804 में दिए गए थे। सिरस का शाब्दिक अर्थ घुंघराले बाल जैसा, क्यूमुलस का ढेरनुमा और स्ट्रेटस का अर्थ परतदार होता है। इसके साथ ही बादलों को धरती से आकाश में निम्न, मध्यम और अधिक ऊंचाई के आधार पर भी वर्गीकृत किया गया है।

लगभग 6,000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित बादलों के लिए ‘सिरो’ यानी ‘पक्षाभ’ शब्‍द का उपयोग किया जाता है। करीब 1,800 से 6,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बादलों के नाम के आगे ‘एल्टो’ यानी ‘मध्य’ जोड़ा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ ऊंचाई है। इससे नीचे के निम्न स्तरीय बादलों के लिए कोई उपसर्ग नहीं है, जबकि भूमि के समीप स्थित बादलों को धुंध या कोहरा कहा जाता है। वर्षा लाने वाले बादलों के नाम के पीछे ‘निम्बस’ यानी वर्षा शब्द जोड़ा जाता है।

एक समान पतली परतों वाले स्तरी बादल 1800 मीटर से नीचे स्थित होते हैं। ये भूरे कंबल की तरह दिखाई देते हैं। कोहरा स्तरी बादल ही होता है। कपासी बादल 1800 मीटर से नीचे स्थित होने वाले झोंकेदार बादल हैं। इन बादलों का आधार समतल होता है। इन बादलों से अकसर वर्षा नही होती, हालांकि कभी-कभी ये बादल लंबे होकर वर्षा और बिजली गरजने यानी विद्युत झंझा का कारण बनते हैं। 

करीब दो हज़ार मीटर से नीचे स्थित समतल आधार व झोंकेदार शीर्ष वाले विस्तृत बादलों को स्तरी कपासी बादल कहा जाता है। ये बादल रंगों में विविधता वाले सफेद या भूरी चादर जैसी तहों वाले होते हैं। ये बादल कभी-कभी हल्की बारिश भी कर सकते हैं। 

करीब 1800 से 6000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मध्यम आकार के झोंकेदार बादलों को मध्य कपासी बादल कहते हैं। ये ढेरों छोटी रुई की गेंदों जैसे दिखाई देते हैं। एक किलोमीटर मोटाई वाले मध्यकपासी बादल सामान्यतः समूह में बनते हैं। वहीं, करीब 5500 मीटर ऊंचाई पर देखे जाने वाले झोंकेदार बादलों को पक्षाभ कपासी बादल कहा जाता है। अन्य सभी उच्च स्तरीय बादलों के समान पक्षाभ कपासी बादल भी हिमकणों से बने होते हैं। 

पक्षाभ बादल पतले और झुण्ड में होते हैं। करीब 5500 मीटर ऊंचाई पर स्थित ये बादल अति ठंडी पानी की सूक्ष्म बूंदों के जमने से बने हिम-कणों को खुद में समेटे रखते हैं। ये बादल सामान्यतः साफ मौसम के सूचक होने के साथ ऊंचाई पर हवा की दिशा बताते हैं।इसी तरहविशाल स्तंभाकार कपासी-वर्षी बादल करीब 15000 मीटर यानी 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं। ये बादल भारी बारिश, तेज हवाओं और तड़ित घटनाओं को उत्पन्न करने में सक्षम हैं। कपासी-वर्षी बादल बौछारें, हिमपात, ओले और बिजली उत्पन्न करते हैं।

प्रकाश के परावर्तन के कारण बादल हमें काले, सफेद, भूरे और लाल, नारंगी जैसे विभिन्‍न रंगों में नज़र आते हैं।
प्रकाश के परावर्तन के कारण बादल हमें काले, सफेद, भूरे और लाल, नारंगी जैसे विभिन्‍न रंगों में नज़र आते हैं।स्रोत : इंडिया वाटर पोर्टल

बादलों के रंगों का राज़

आकाश के नीले होने के बावजूद नीले प्रकाश के विकिरित अणुओं की तुलना में बादलों में मौजूद जल की बूंदों से सफेद प्रकाश के परावर्तित होने के कारण हमें अधिकतर बादल श्वेत रंग के दिखाई देते हैं। इसके अलावा कई बार हम लाल, नारंगी और गुलाबी रंग के बादलों को भी देखते हैं। सामान्यतया ऐसे बादल केवल सूर्योदय या सूर्योस्त के समय देखे जाते हैं। बादल स्वयं रंग-बिरंगे नहीं होते, उनके रंगीन दिखने का कारण वायुमंडल में मौजूद धूल कण और गैस कणों द्वारा सूर्य प्रकाश के प्रकाश में मौजूद किसी खास रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन करना होता है। यह ठीक वैसा ही है, जैसा सफेद कागज पर लाल प्रकाश डालने पर कागज लाल रंग का दिखाई देता है। 

बादलों का आकार बढ़ने पर उनमें उपस्थित जल की सूक्ष्म बूंदें आपस में मिलकर वर्षा के लिए बड़ी बूंदों का निर्माण करती हैं। इस दौरान सूक्ष्म जल बूंदों के मध्य की खाली जगह के भी विस्तारित होने के कारण सूर्य से आता प्रकाश बादलों को अधिक भेद सकता है। हालांकि बादल यदि बहुत विशाल हैं, तब उसमें प्रवेश करने वाले प्रकाश का कम भाग ही परावर्तित होता है। इस प्रकाश के अवशोषण से बादल हल्का या गहरे भूरे रंग का दिखाई देता है। इस प्रकार के गहरे भूरे रंग के बादलों को देखकर बारिश या हिमपात के होने का अनुमान लगा सकते हैं।

विभिन्न प्रकार के बादलों के रंग को देखकर भी हम अगामी कुछ घंटों या दिनों में मौसम की स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। सफेद या भूरे बादलों का रंग लंबे समय तक अपरिवर्तित रहता है, जबकि लाल, नारंगी और गुलाबी रंग-बिरंगे बादलों का रंग जल्दी-जल्दी बदलता है। 

कैसे होती है वर्षा और बर्फ़बारी

बादलों में संघनित रूप में उपस्थित जल की सूक्ष्म बूंदों या हिमकणों के आपस में जुड़कर बड़ी बूंदें बनने पर बादल उन्हें लंबे समय तक रोक कर नहीं रख पाते। ऐसे में ये बड़ी बूंदें बारिश या हिमकण के रूप में धरती पर गिरती हैं। इस प्रकार बादलों में असंख्य बूंदों के आपस में टकराने और मिलने पर वर्षा की बूंदें बनती हैं। बादलों में जल की बूंदों का आकार बहुत ही छोटा होता है। आमतौर पर वर्षा की बूंदों का व्यास 0.0254 सेंटीमीटर से लेकर 0.635 सेंटीमीटर तक होता है। शान्त हवा में वर्षा की बूंदें 3 से 8 मीटर प्रति सेकेण्ड की दर से बरसती हैं। बारिश की बूंदों के बरसने की गति उनके आकार पर निर्भर करती है।

जब बादलों के नीचे वायुमंडल में जलवाष्प अधिक होती है तब यह जलवाष्प बादलों में हिमकण में बदल जाती है। हिम-कणों, हिमलव (स्नोलेक) और अन्य जमे कणों के पिघलने पर भी वर्षा की बूंदें बनती हैं। जब हिमांक बिंदु से कम तापमान वाली हवा में जल की सूक्ष्म बूंदों में हिमकण मौजूद होते हैं। तब जल की सूक्ष्म बूंदों के वाष्पन से हिमकणों का आकार बढ़ता है।

वायु दाब के कारण जल अणु का परिवर्तन जल से बर्फ़ की अवस्था में होने लगता है। इस प्रकार बादल में हिमकणों में तीव्र वृद्धि होती है। हिमांक बिंदु से कम तापमान होने पर बादलों में तैरते हुए हिमलव हिमपात करके धरती को बर्फ़ की सफेद चादर से ढक देते हैं। बर्फ़-कणों में वृद्धि होने से भारी बर्फ़ गिरती है। इस प्रकार पहाड़ी क्षेत्रों में सर्दियों के मौसम में अकसर बारिश और हिमपात होता है। 

धरती की सतह के अधिकतर भाग से वाष्पन होता रहता है, जिसके कारण धरती पर सदैव कहीं न कहीं वर्षा होती रहती है। हालांकि, वाष्‍पन और वर्षा के अनुपात में भारी अंतर देखने को मिलता है। किसी भी समय धरती की सतह के केवल दो से पांच प्रतिशत हिस्से पर ही वर्षा होती है, जबकि धरती पर वाष्पन की क्रिया इसके 95 से 98 प्रतिशत भाग पर चलती रहती है। इस प्रकार बादल मौसम और धरती के जल चक्र में अहम भूमिका निभाते हैं।

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