हिमाचल के हमीरपुर में बना जल मीनार, पानी लाने का बोझ कम कर रहा है
गांव के प्रवेश द्वार पर बाईं ओर एक पानी का टैंक है। उसके ऊपर सौर पैनल लगे हैं और यह खंभों पर टिका है। दूसरी ओर, महिलाएं आपस में बातें करती, हंसती और हल्के-फुल्के पल बांटती नजर आती हैं। पहली नजर में लगता है कि वे टैंक के पास बने मंदिर में प्रार्थना के लिए इकट्ठा हुई हैं।
शाम के समय बल्ह में यह आम नजारा है। पास के पस्तल गांव की महिलाएं भी तरह-तरह के बर्तनों के साथ टैंक के पास जमा होती हैं। बुजुर्ग सिमरो देवी मुस्कुराते हुए कहती हैं, “अब मिट्टी के घड़ों की जगह स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों ने ले ली है। इससे युवा महिलाओं का जीवन आसान हो गया है।”
हमीरपुर जिले के सुजानपुर ब्लॉक में बल्ह और पस्तल गांवों की महिलाओं की पानी की समस्या ‘जल मीनार’ ने हल कर दी है। 56 साल की कुसुम लता और टैंक के पास इकट्ठा अन्य महिलाएं बताती हैं कि जल मीनार बनने से पहले उनका जीवन कितना मुश्किल था।
2021 तक मणिहल ग्राम पंचायत के गांवों में भयंकर जल संकट था। प्राकृतिक जल स्रोत सूख रहे थे। पारंपरिक सीढ़ीदार जल प्रणाली ‘बावड़ी’ का पानी भी कम हो रहा था। बल्ह और पस्ताल गांव सबसे ज्यादा प्रभावित थे।
“हम हिमाचल प्रदेश के जल शक्ति विभाग के हैंडपंप और एक छोटी नदी ‘सलासी’ पर निर्भर थे। ‘हर घर नल, हर घर जल’ योजना के तहत पानी मिलता था, लेकिन वह भी सिर्फ दो घंटे के लिए,” कुसुम लता बताती हैं।
तब और अब
65 साल की सिमरो देवी, जो वहां की सबसे बुजुर्ग महिला हैं, अपनी जवानी की कहानी सुनाती हैं। वे बताती हैं, “जल मीनार ने नई पीढ़ी का जीवन आसान कर दिया। जब मैं नई दुल्हन बनकर गांव आई थी, तब महिलाओं को बहुत मुश्किलें झेलनी पड़ती थीं। सुबह 4 बजे हम उठकर नदी के पास बनी ‘बावड़ी’ से पानी लाने जाते थे। इसे स्थानीय लोग ‘सलासी’ कहते हैं। हमें कई चक्कर लगाने पड़ते थे। घर के काम और पीने के लिए 20-22 घड़े पानी लाना पड़ता था। पशुओं के लिए भी 18-20 घड़े पानी चाहिए होते थे। वे दिन बहुत कठिन थे।”
बल्ह में जल मीनार बनने तक हालात वही रहे। 2021 में टाटा ट्रस्ट से जुड़ी देहरादून स्थित हिमोत्थान सोसाइटी ने एचडीएफसी बैंक पोषित समग्र ग्रामीण विकास कार्यक्रम के अंतर्गत जनसहयोग से 5000 लीटर का जल टैंक बनवाया। हिमोत्थान की फील्ड कोऑर्डिनेटर शशि बाला बताती हैं, “टैंक की क्षमता तय करने के लिए हमने सर्वे किया। हमें पता चला कि हर परिवार को औसतन 20-25 लीटर पानी चाहिए, यानी 1-2 घड़े। एक घड़े में 15-20 लीटर पानी आता है।”
साझा प्रयास
जल मीनार ने साफ पानी की समस्या भी हल की। हैंडपंप से पीला-गंदला पानी निकलता था, जिसमें बदबू होती थी। कुसुम लता कहती हैं, “जब हिमोत्थान की टीम आई, तो हमने साफ पानी की मांग की।”
दिसंबर 2021 में हैंडपंप के पानी का नमूना लिया गया और हिमाचल प्रदेश सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग की प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा गया। जांच में पानी में ई. कोलाई बैक्टीरिया मिला। हिमोत्थान के जल विशेषज्ञ मोहित कुमार बताते हैं, “ई. कोलाई का मतलब है कि पानी सीवेज या पशु अपशिष्ट से दूषित है। यह छोटे बच्चों, कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वालों और बुजुर्गों के लिए खतरनाक हो सकता है।” पानी में लोहे की मात्रा और पीएच स्तर भी ज्यादा था।
2021 में गांव की बैठक में इस पर चर्चा हुई। मणिहल पंचायत की तत्कालीन प्रधान शारदा रानी ने जल शक्ति विभाग को पत्र लिखकर हैंडपंप में सबमर्सिबल पंप लगाने की अनुमति मांगी। उन्होंने लिखा कि जल मीनार 70 गरीब परिवारों को साफ पानी देगा। दिसंबर 2021 में जल शक्ति विभाग ने सबमर्सिबल पंप को मंजूरी दी। इसका रखरखाव ग्रामीणों को करना था।
गांव के पुरुषों ने टैंक की सफाई की जिम्मेदारी ली। रिखी राम, कुलदीप, मेहर चंद और प्रेम चंद मिलकर जल मीनार को ठीक रखते हैं। मीनार से जुड़े मामलों को गांव की 15 सदस्यीय जल उपयोगकर्ता समिति देखती है।
आज गांव का जल संकट पुरानी बात हो गया है। जैसे पारंपरिक जल स्रोत पवित्र माने जाते हैं और समारोहों का केंद्र होते हैं, वैसे ही जल मीनार अब गांव का नया केंद्र है—एक पवित्र स्थान।
खुवाजा परमेश्वर ब्याह च ओना...
कने बरकत देनी सभी कैसी च...
सुक-पक्का रहे, चार दिन निम्मल ही रखिया...