आइस स्तूप
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लद्दाख में कृत्रिम हिमनद: जल संकट का समाधान

लद्दाख जल संकट समाधान : कृत्रिम हिमनद, आइस स्तूप, जल संरक्षण के लिए नवप्रवर्तन।
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लद्दाख, भारतीय हिमालय का एक शुष्क पर्वतीय क्षेत्र, ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्राकृतिक हिमनदों के सिकुड़ने से गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। विशेष रूप से वसंत ऋतु में, जब खेती के लिए पानी की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, तो जल की भारी कमी देखी जाती है। ऐसे में कृत्रिम हिमनद, जिन्हें आइस स्तूप भी कहा जाता है, एक अभिनव समाधान के रूप में उभरे हैं। ये संरचनाएं सर्दियों में अपशिष्ट पानी को बर्फ के रूप में संग्रहित करती हैं और गर्मियों में धीरे-धीरे पिघलकर सिंचाई के लिए उपयोगी जल उपलब्ध कराती हैं। हम जानेंगे, विस्तार से हिमनदों की प्रभावशीलता, निर्माण विधियों, सामाजिक-आर्थिक प्रभावों, इसमें शामिल संगठनों, और सोनम वांगचुक की भूमिका के बारे में।

आइस स्तूप क्या है?

"आइस स्तूप" एक कृत्रिम बर्फ संरचना है जो शंकु (स्तूप) के आकार में बनाई जाती है, ताकि सर्दियों में पानी को बर्फ के रूप में संग्रहित किया जा सके और गर्मियों में वह धीरे-धीरे पिघलकर सिंचाई के लिए उपलब्ध हो। यह नाम बौद्ध स्तूप के आकार से प्रेरित है। इस तकनीक में गुरुत्वाकर्षण और ऊँचाई का उपयोग करके पानी को पाइपों के माध्यम से ऊपर ले जाया जाता है, जहाँ वह हवा में फुहारा बनकर जम जाता है और एक बर्फ की संरचना बना लेता है। आइस स्तूप लद्दाख जैसे शुष्क क्षेत्रों में जल संरक्षण का अनोखा और टिकाऊ उपाय बन गया है।

निर्माण और प्रकार

कृत्रिम हिमनद विभिन्न तकनीकों से बनाए जाते हैं:

  • नदियों पर झरने (Cascades): जैसे फुक्शे (1987 में बनाया गया), जो मौजूदा धाराओं पर आधारित हैं।

  • साइड घाटियों में मोड़: जैसे नांग (1999 से), जहां मुख्य धारा से पानी को साइड घाटियों में मोड़ा जाता है।

  • बेसिन संरचनाएं: जैसे इगू और गैंगलेस, जो बड़ी मात्रा में पानी संग्रहित करने में सक्षम हैं।

  • लंबवत आइस स्तूप: जैसे फ्यांग में, जिनमें उच्च-घनत्व प्लास्टिक पाइपों से शंकु के आकार की बर्फ की संरचना बनाई जाती है।

इन संरचनाओं का निर्माण मुख्य रूप से सर्दियों में होता है, जब तापमान -30°C तक गिर जाता है। उस समय पानी को बर्फ में बदलकर संग्रहित किया जाता है, ताकि वसंत में वह पिघलकर फसलों के लिए सिंचाई जल बन सके।

प्रभावशीलता और चुनौतियां

शोध से पता चलता है कि इन हिमनदों की प्रभावशीलता जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करती है। उदाहरणस्वरूप, इगू हिमनद ने 0.137 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 1.18 से 2.94 अतिरिक्त सिंचाई चक्र प्रदान किए, लेकिन अन्य क्षेत्रों जैसे नांग, सक्ती, और लेह में केवल 30% से कम क्षेत्र की सिंचाई हो सकी। बाढ़, भूस्खलन, फ्रोजन पाइप्स जैसी समस्याएं और श्रम तथा रखरखाव की चुनौतियाँ भी इनकी सफलता को प्रभावित करती हैं।

सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

कृत्रिम हिमनदों ने स्थानीय किसानों की उत्पादकता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है, विशेषकर नकदी फसलों जैसे आलू के उत्पादन में। हालांकि, पानी के वितरण को लेकर गांवों के बीच विवाद भी उत्पन्न हुए हैं। इन संरचनाओं का निर्माण सरकार, NGOs, और स्थानीय समुदायों के सहयोग से हुआ है। वाटरशेड डेवलपमेंट प्रोग्राम और क्राउडफंडिंग जैसे प्रयासों ने आर्थिक और सामाजिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया है।

लद्दाख में कृत्रिम हिमनद परियोजनाओं में शामिल संगठन

  • आइस स्तूपा प्रोजेक्ट: सोनम वांगचुक द्वारा स्थापित यह परियोजना स्थानीय समुदायों को तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण प्रदान करती है। 2015 में फ्यांग में बने स्तूप के लिए इस परियोजना ने 125,000 USD क्राउडफंडिंग से जुटाए।

  • LEHO (लद्दाख पर्यावरण और स्वास्थ्य संगठन): यह संगठन पर्यावरण संरक्षण और जल प्रबंधन में सक्रिय है और कई गांवों में तकनीकी सहायता प्रदान करता है।

  • SECMOL (सिक्यूलर स्कूल ऑफ लद्दाख): शिक्षा और नवाचार को बढ़ावा देने वाला यह संस्थान स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करता है।

  • LAHDC (लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद): यह सरकारी निकाय इन परियोजनाओं के लिए वित्तीय और प्रशासनिक सहायता प्रदान करता है।

सोनम वांगचुक की भूमिका

सोनम वांगचुक, एक प्रसिद्ध इंजीनियर और सामाजिक नवप्रवर्तक हैं, जिन्होंने लद्दाख में कृत्रिम हिमनदों की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया। 2014 में उन्होंने पहला आइस स्तूपा फ्यांग में बनाया और स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण देकर इसे आंदोलन में बदल दिया। उन्होंने न केवल तकनीकी समाधान प्रस्तुत किए बल्कि वैश्विक स्तर पर जलवायु अनुकूलन के लिए एक मॉडल भी प्रस्तुत किया। 2018 में उन्हें रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

जलवायु परिवर्तन और अनुकूलन

हालांकि आइस स्तूपों को जलवायु परिवर्तन के समाधान के रूप में देखा जाता है, वे वास्तव में अल्पकालिक जल संरक्षण के उपकरण हैं। इनकी प्रभावशीलता सर्दियों में जल संग्रहण, रनऑफ और फ्रीज-थॉ चक्रों पर निर्भर करती है, जो दीर्घकालिक जलवायु चुनौतियों के लिए सीमित समाधान प्रदान करती है।

भविष्य की दिशा

कृत्रिम हिमनद लद्दाख में जल संकट का एक अभिनव समाधान हैं, लेकिन इनकी सफलता जलवायु, तकनीक और सामाजिक भागीदारी पर निर्भर करती है। "कृत्रिम हिमनद" की बजाय "आइस रिजर्वोअर" शब्द अधिक उपयुक्त हो सकता है, क्योंकि ये प्राकृतिक हिमनदों के स्थानापन्न नहीं हैं। भविष्य में, अनुसंधान, डिज़ाइन में सुधार, और सतत वित्त पोषण इन संरचनाओं की दीर्घकालिक प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं।

स्रोत और संदर्भ

  1. Stanzin, D., & Mishra, A. (2022). Artificial glaciers as climate adaptation in Ladakh Himalaya: Efficacy, challenges, and social outcomes. Current Science, 122(6), 723–732.
    https://www.currentscience.ac.in/Volumes/122/06/0723.pdf

  2. Sonam Wangchuk's Ice Stupa Project. HIAL and SECMOL official resources. https://www.icestupa.org

  3. LEHO (Ladakh Environment and Health Organization). NGO Activity Reports and Community Projects. http://www.leholadakh.org

  4. LAHDC Leh. Ladakh Autonomous Hill Development Council official site. http://leh.nic.in

  5. Down to Earth Magazine (2018). Ice Stupa: A solution to Ladakh’s water woes.
    https://www.downtoearth.org.in

  6. BBC News (2015). The Ice Stupa: How artificial glaciers are helping farmers in Ladakh.
    https://www.bbc.com/news/world-asia-india-31837714

  7. UNDP India (2021).Climate adaptation initiatives in the Himalayas.
    https://www.in.undp.org

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