उत्तराखंड में हर साल घट रही 3672 हेक्टेयर खेती की जमीन
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में खेती-किसानी लगातार संकट में है। हर साल हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर होती जा रही है, जिससे किसानों के जीवनयापन और राज्य की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ रहा है। 2000 में राज्य गठन के समय उत्तराखंड में 5,17,628 हेक्टेयर कृषि भूमि थी, जो अब घटकर 4,29,487 हेक्टेयर रह गई है। यानी पिछले 24 वर्षों में 88,141 हेक्टेयर कृषि भूमि कम हो चुकी है। इस alarming स्थिति ने सरकार और समाज दोनों को चिंता में डाल दिया है।
कृषि भूमि के घटने के कारण
शहरीकरण और औद्योगीकरण: मैदानी इलाकों में बढ़ते शहरीकरण के कारण कृषि भूमि को आवासीय और व्यावसायिक उपयोग में लिया जा रहा है।
गांवों से पलायन: रोजगार और बेहतर जीवन की तलाश में लोग पहाड़ों से मैदानी इलाकों की ओर पलायन कर रहे हैं, जिससे खेत खाली हो रहे हैं।
वन्यजीवों द्वारा फसल क्षति: जंगली जानवर जैसे बंदर, सूअर और नीलगाय फसलों को नुकसान पहुँचा रहे हैं, जिससे किसान खेती छोड़ने को मजबूर हैं।
मौसम परिवर्तन और जलवायु संकट: अनियमित वर्षा, सूखा और बेमौसम ओलावृष्टि के कारण किसानों को खेती से मुनाफा नहीं हो रहा है।
परती भूमि का बढ़ना: 2000 में उत्तराखंड में 1,07,446 हेक्टेयर परती भूमि थी, जो अब 2,15,982 हेक्टेयर हो गई है।
सरकार की रणनीति और संभावित समाधान
सरकार अब बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने की कोशिश कर रही है। कृषि मंत्री गणेश जोशी के अनुसार, विभिन्न सरकारी संस्थाएँ जैसे कृषि एवं उद्यान विभाग, जलागम विकास योजना, उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड, सगंध पौधा केंद्र, जैविक उत्पाद परिषद आदि इस दिशा में काम कर रहे हैं।
संभावित समाधान
जैविक और आधुनिक खेती को बढ़ावा: जैविक खेती और उन्नत कृषि तकनीकों को अपनाकर किसानों को खेती की ओर आकर्षित किया जाए।
गांवों में आजीविका के साधन उपलब्ध कराना: स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ाने से पलायन रोका जा सकता है।
वन्यजीवों से सुरक्षा: खेतों को सुरक्षित करने के लिए बाड़बंदी और अन्य तकनीकी उपायों को बढ़ावा देना आवश्यक है।
पानी की समस्या का समाधान: जल संग्रहण प्रणालियों का विस्तार कर सिंचाई सुविधाओं को बेहतर बनाना होगा।
सरकार द्वारा विशेष योजनाएँ: बंजर हो चुकी भूमि को पुनर्जीवित करने के लिए सरकारी अनुदान और सब्सिडी योजनाओं को लागू किया जाए।
अंत में
उत्तराखंड की खेती लगातार सिकुड़ती जा रही है, जो भविष्य में राज्य के खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकती है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार, किसानों और समाज को मिलकर प्रयास करने होंगे। आधुनिक कृषि तकनीकों, जल प्रबंधन और किसानों को आर्थिक सहायता देकर इस संकट से उबरा जा सकता है। यदि ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में खेती पूरी तरह से समाप्त होने का खतरा बना रहेगा।