भूमि संसाधन संरक्षण में मृदा की उपयोगिता

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मिट्टी एक अमूल्य संसाधन है जिसका उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए। कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त मृदाओं पर खेती ही की जानी चाहिए, न कि निर्माण कार्य। मकान, पार्क एवं मनोरंजन स्थलों के लिए बंजर एवं अनुपजाऊ भूमि का ही उपयोग करना चाहिए। भूमि का उचित चयन कार्य ही सफलता का द्योतक होता है। इससे हमारी उपजाऊ भूमि भी सुरक्षित रहेगी तथा विकास कार्य भी होते रहेंगे। भू-संसाधन संरक्षण देश के सामार्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अतः यह समय की मांग है कि इस पहलू पर विशेष ध्यान दिया जाए।मिट्टी या मृदा जीवन-भरण का एक महत्वपूर्ण अंग है, क्योंकि मनुष्य के भोजन का उत्पादन इसी पर निर्भर करता है। अतः कृषि के क्षेत्र में मृदा को ‘मेरुदंड’ की संज्ञा दी गई है। किसी भी देश की सुख-समृद्धि तथा विकास के लिए उस देश की मृदा और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का अच्छा होना नितांत आवश्यक है। हमारे देश में एक चिंतनीय विषय बन गया है कि उत्पादक भूमि निरंतर कम हो रही है। भूमि की प्रति व्यक्ति उपलब्धता वर्ष 1950 में 0.48 हेक्टेयर थी जो वर्ष 2000 तक घटकर 0.15 हेक्टेयर हो गई। इतना ही नहीं जो भूमि उपलब्ध है उसका भी प्रति वर्ष 16.35 टन प्रति हेक्टेयर की दर से कटाव हो रहा है।

यह एक विडम्बना ही कही जाएगी कि एक ओर तो उपजाऊ मिट्टी भू-क्षरण द्वारा नष्ट हो रही है, दूसरी ओर हम अपनी आवश्यकता के लिए इसी उपजाऊ कृषि भूमि पर मकान बनाते चले जा रहे हैं। यही नहीं सड़कें, रेल लाइनें तथा नहरों आदि का जाल भी हमने इन्हीं उपजाऊ कृषि क्षेत्र पर पहले से ही रखा है। बाग-बगीचे तथा अन्य मनोरंजक स्थलों के लिए भी कृषि भूमियों का उपयोग किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में कृषि योग्य उपजाऊ भूमि निरंतर कम होती जा रही है।

मिट्टी पौधों की वृद्धि के लिए एक प्राकृतिक माध्यम है। अच्छी उपज के लिए मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों का फसल के अनुसार होना अत्यावश्यक है। इन तीनों में से किसी भी एक गुण में ह्रास होने से उपज प्रभावित होती है। आजकल किसान मिट्टी के भौतिक गुणों को बिना ध्यान में रखे खेती कर रहे हैं, फलस्वरूप उन्हें आशान्वित उत्पादन प्राप्त नहीं हो रहा है। मिट्टी की भौतिक अवस्था दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है और देश की खाद्यान्न स्थिति भी प्रभावित हो रही है।

मिट्टी के भौतिक गुण उसके कणों की मात्रा, आकार, आकृति, विन्यास आदि पर निर्भर करते हैं। इसके साथ ही मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा, रन्ध्रों का आयतन, रूप और किसी एक निश्चित समय पर रन्ध्रों में हवा और पानी के अनुपात का भी मिट्टी के भौतिक गुणों पर प्रभाव पड़ता है।

मिट्टी की संरचना, गठन, घनत्व, सरंध्रता, रंग, पारगम्यता, तापक्रम, हवा और पानी का अनुपात आदि मिट्टी के महत्वपूर्ण भौतिक गुण हैं। इन्हीं गुणों के आधार पर मिट्टी की भौतिक दशा अच्छी या खराब कही जाती है।

मिट्टी की जलधारण क्षमता, जल प्रवेश की गति, वायु संचार, मिट्टी का तापक्रम, पौधों को खड़ा रखने की क्षमता, उर्वरकों का उपयोग, मिट्टी में होने वाली रासायनिक और जैविक क्रियाएं और भूमि-सुधारकों का उपयोग आदि कार्य मिट्टी के भौतिक गुणों पर ही निर्भर करते हैं।

मिट्टी की भौतिक अवस्था की रक्षा और सुधार

खेत की जुताई और अंतःकर्षण क्रियाएं

कार्बनिक और हरी खाद का उपयोग

फसल-चक्र

भू-सुधारकों का उपयोग

पलवार का उपयोग

जल-निकास का प्रबंध

रेतीली मिट्टियों के लिए विशेष विधियां

1. क्षमता वर्ग-
वर्ग-I:
वर्ग-II:
वर्ग-III:
वर्ग-IV:
वर्ग-V:
वर्ग-VI:
वर्ग-VII:
वर्ग-VIII:

क्षमता उपवर्ग

क्षमता इकाई

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