समेकित जैविक खेती प्रणाली की जरूरत, फोटो क्रेडिट : लोक सम्मान
समेकित जैविक खेती प्रणाली की जरूरत, फोटो क्रेडिट : लोक सम्मान

उत्तराखंड के किसानों की खाद्य, पोषण और पर्यावरण सुरक्षा

उत्तराखंड के किसानों के लिए समेकित जैविक खेती प्रणाली (आईओएफएस) एक प्रभावी समाधान है। यह प्रणाली प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और सामुदायिक भागीदारी को समेकित करती है, जिससे खाद्य, पोषण और पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित होती है। - धनंजय कुमार सिंह, संतोष कुमार यादव, सुप्रिया त्रिपाठी और योगेश शर्मा
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उत्तराखंड, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध, मुख्यतः एक कृषि प्रधान राज्य है, यहां कृषि के लिए अनुकूल भूगोल, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद हैं। हालांकि, पारंपरिक खेती से हटकर रासायनिक-आधारित कृषि पद्धतियों की ओर बढ़ते रूझान ने मृदा की उर्वरता में कमी, जल संसाधनों का क्षरण और जैव विविधता की हानि जैसी गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है। इन चुनौतियों का समाधान प्रदान करने के लिए टिकाऊ समेकित जैविक खेती प्रणाली (आईओएफएस) एक प्रभावी विकल्प के रूप में उभर रही है। यह प्रणाली जैविक खेती, प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और सामुदायिक भागीदारी को समेकित करती है। इसका उद्देश्य किसानों की आजीविका और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करने के साथ-साथ पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना है। जैविक खेती में मुख्य बाधा आवश्यक जैविक आदानों की सीमित उपलब्धता है, जो मृदा स्वास्थ्य और फसल पोषण के लिए आवश्यक है। इस चुनौती को ऑन-फार्म और ऑफ-फार्म संसाधनों के पुनर्चक्रण और क्षेत्र-विशिष्ट घटकों को समेकित करके हल किया जा सकता है।"

समेकित जैविक खेती प्रणाली एक समग्र ऑन-फार्म संसाधन प्रबंधन रणनीति है। यह संसाधनों का संरक्षण और पर्यावरणीय गुणवत्ता बनाए रखते हुए किसानों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार की गई है। खेत की उपयुक्तता के आधार पर घटकों का सावधानीपूर्वक चयन और कार्यान्वयन बाहरी आदानों पर निर्भरता को कम करता है। कृषि को अधिक टिकाऊ और लाभकारी बनाता है। इस मॉडल को भारत के विभिन्न राज्यों में सफलतापूर्वक लागू किया गया है, जहां फसलों, सब्जियों, फलों और पशुधन का प्रभावी उपयोग करके स्थायी कृषि समाधान प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

आज के समय में, वैश्विक स्तर पर कृषि उत्पादन में निरंतर वृद्धि की आवश्यकता महसूस की जा रही है। वर्ष 2050 तक दुनिया की जनसंख्या 10 बिलियन से अधिक हो जाने की संभावना है। इससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती बन गई है। इस चुनौती को पूरा करने के लिए पारंपरिक कृषि पद्धतियों में सुधार और नवीनतम कृषि तकनीकों का समावेश अनिवार्य हो गया है। 

इनपुट-गहन कृषि पद्धतियों, जैसे कि सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग ने उत्पादन में वृद्धि की है। इसके साथ ही पर्यावरणीय क्षति, मृदा की उर्वरता में कमी और किसानों की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

इन चुनौतियों का सामना करने के लिए जैविक खेती एक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में उभरकर सामने आई है। जैविक खेती प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने और खाद्य की गुणवत्ता में सुधार करने का प्रयास करती है। हालांकि, जैविक खेती में फसल पोषण और मृदा के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक जैविक आदानों की उपलब्धता एक मुख्य चुनौती है। इस समस्या का समाधान करने के लिए समेकित जैविक खेती प्रणाली (आईओएफएस) एक प्रभावी रणनीति के रूप में सामने आई है।

इनपुट-गहन कृषि पद्धतियों की चुनौतियां 

हरित क्रांति के दौरान कृषि में उर्वरकों, कीटनाशकों और सिंचाई के अत्यधिक उपयोग ने फसल उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हालांकि, इन उच्च ऊर्जा आदानों का अनुचित चयन और निरंतर उपयोग पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दे रहा है। मृदा की उर्वरता में कमी, जल संसाधनों का क्षरण और जैव विविधता में कमी इसके प्रमुख परिणाम हैं। 

उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में, जहां प्राकृतिक संसाधन सीमित और संवेदनशील हैं, इन समस्याओं का प्रभाव और भी अधिक गंभीर है।

इन समस्याओं का समाधान करने के लिए जैविक खेती ने एक वैकल्पिक कृषि प्रणाली के रूप में अपना स्थान बनाया है। जैविक खेती प्राकृतिक संसाधनों और जैविक आदानों का उपयोग करके पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने का प्रयास करती है।

समेकित जैविक कृषि प्रणाली का महत्व

समेकित जैविक कृषि प्रणाली (आईओएफएस) एक ऑन-फार्म संसाधन प्रबंधन रणनीति है। इसका उद्देश्य संसाधन आधार की रक्षा करते हुए, कृषक परिवारों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए टिकाऊ और लाभदायक कृषि उत्पादन करना है। यह मॉडल जैविक आदानों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए ऑन-और ऑफ-फार्म संसाधनों का प्रभावी पुनर्चक्रण और घटकों का एकीकरण करता है।

समेकित जैविक कृषि प्रणाली मॉडल निम्न प्रमुख लाभ प्रदान करता है

आंतरिक आदान मांग की पूर्तिः खेती प्रणाली के घटकों को सावधानीपूर्वक चुना और क्रियान्वित किया जाता है, ताकि वे आंतरिक रूप से आदानों मांग को पूरा कर सकें। इससे बाहरी आदानों पर निर्भरता समाप्त हो जाती है।

पर्यावरणीय गुणवत्ता का संरक्षणः जैविक कचरे का पुनर्चक्रण मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करता है, जिससे पर्यावरणीय गुणवत्ता में सुधार होता है।

कृषक परिवारों की आवश्यकताओं को पूरा करनाः टिकाऊ और

लाभदायक कृषि उत्पादन के माध्यम से कृषक परिवारों की आजीविका में सुधार होता है और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

समेकित जैविक खेती प्रणाली के घटक और कार्यान्वयन

प्राकृतिक संसाधनों का पुर्नचक्रण 

आईओएफएस में खेत में उपलब्ध अपशिष्ट जैसे पौधों के अवशेष, पशु मल और फसल अपशिष्ट का उपयोग करके मृदा पोषण बनाए रखा जाता है। जैविक अपशिष्ट को खाद और वर्मी कम्पोस्ट के रूप में परिवर्तित किया जाता है। इससे मृदा की उर्वरता में सुधार होता है और पर्यावरणीय प्रदूषण में कमी आती है।

फसल विविधता और चक्रीकरण

फसल चक्रण और सह-फसल रोपण के माध्यम से मृदा की उर्वरता और कीट नियंत्रण सुनिश्चित किया जाता है। उदाहरण के लिए, गन्ना और मसूर की सह-फसल का उपयोग किया जा सकता है, जो नाइट्रोजन संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है। यह विधि मृदा में पोषक तत्वों की कमी को रोकती है और फसल उत्पादन में सुधार करती है।

स्थायी जल प्रबंधन

जल संचयन और सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को अपनाकर जल संसाधनों का कुशल उपयोग किया जाता है। वर्षा जल संचयन से खेत में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। इससे सिंचाई की लागत कम होती है और जल संकट से निपटा जा सकता है।

पशुधन और कृषि का एकीकरण

पशुपालन, मुर्गीपालन और मत्स्यपालन जैसे उद्यम खेती में जोड़े जाते हैं। इससे किसान को अतिरिक्त आय का स्रोत मिलता है। पशुधन से प्राप्त गोबर का उपयोग जैविक खाद के रूप में किया जाता है, जिससे मृदा की उर्वरता बढ़ती है और कृषि उत्पादन में सुधार होता है।

जैविक कीटनाशक और खाद

नीम, तुलसी और अन्य पारंपरिक जड़ी-बूटियों से तैयार जैविक कीटनाशक पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखते हैं। ये जैविक कीटनाशक बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए कीटों को नियंत्रित करते हैं। जैविक खाद का उपयोग मृदा की उर्वरता बढ़ाने और फसलों की गुणवत्ता सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

उत्तराखंड में आईओएफएस मॉडल की संभावनाएं

उत्तराखंड की भौगोलिक और पर्यावरणीय परिस्थितियां आईओएफएस मॉडल को अपनाने के लिए अनुकूल हैं। राज्य में निम्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है:

  1. पर्वतीय क्षेत्रों के लिए विशेष डिजाइनः छोटी जोत वाले किसानों के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।

  2. महिला सशक्तिकरणः खेती में महिलाओं की भागीदारी और पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना।

  3. प्रशिक्षण और जागरूकताः किसानों को आईओएफएस तकनीकों के लाभऔर उपयोग के बारे में जागरूक करना।

नीतिगत उपाय और समर्थन

उत्तराखंड में आईओएफएस मॉडल को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए राज्य सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और अनुसंधान संस्थानों को एक साथ काम करने की आवश्यकता है। उत्तराखंड सरकार को जैविक खेती को बढ़ावा देने और किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने की नीति अपनानी चाहिए। इसमें निम्न नीतिगत उपाय शामिल हो सकते हैं:

  1. सब्सिडी और ऋण योजनाएं: जैविक खेती में निवेश करने वाले किसानों को सब्सिडी और सस्ते ऋण उपलब्ध कराना।

  2. प्रमाणन और ब्रांडिंगः जैविक उत्पादों के लिए प्रमाणन और ब्रांडिंग प्रणाली स्थापित करना। इससे किसान अपने उत्पादों को उच्च मूल्य पर बेच सकें।

  3. बाजार तक पहुंचः किसानों के जैविक उत्पादों के लिए बाजार तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सहकारी समितियां और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म का निर्माण।

समेकित जैविक खेती प्रणाली का विकास

जैविक प्रबंधन एक समेकित रणनीति है, इसलिए केवल एक या दो चरणों को बदलने या अपनाने से उल्लेखनीय सुधार नहीं हो सकते हैं। उत्पादन को अधिकतम करने के लिए सभी आवश्यक तत्वों को व्यवस्थित तरीके से विकसित किया जाना चाहिए। इन कार्यों में निम्न बिंदु शामिल हैं:

  1. आवास विकासः जैविक खेती प्रणाली का एक अभिन्न भाग ऐसे वातावरण का प्रबंधन है, जो कई जीवन रूपों के पोषण के लिए उपयुक्त है। यह जलवायु के लिए उपयुक्त वृक्षों और पौधों की एक विस्तृत श्रृंखला को बनाए रखने और कृषि विविधता की सुनिश्चितता देकर पूरा किया जा सकता है। ये झाड़ियां और वृक्ष न केवल मृदा की गहरी परतों से मृदा की ऊपरी परत तक पोषक तत्वों के परिवहन को सुनिश्चित करेंगे, बल्कि वे पक्षियों, शिकारियों और लाभकारी कीटों को भी आकर्षित करेंगे। इसके साथ ही आहार और आश्रय के रूप में भी काम करेंगे।

  2. खेतों पर आदान उत्पादन के लिए बुनियादी ढांचाः खेत की 3-5 जगह उपयोगिताओं के लिए आरक्षित रखें जिसमें पशुधन, वर्मीकम्पोस्ट बेड, कम्पोस्ट टैंक, वर्मीवॉश कम्पोस्ट इकाइयां आदि के लिए जगह शामिल हैं। इस क्षेत्र में वृक्ष लगाए जाने चाहिए। सभी उपयोगिता बुनियादी ढांचे को छाया की आवश्यकता होती है। इस उपयोगिता क्षेत्र में पानी के पंप, सिंचाई कुओं और अन्य साधनों के लिए बुनियादी ढांचा भी शामिल हो सकता है।

    ढलान और पानी के प्रवाह के आधार पर उपयुक्त स्थानों पर वर्षा जल संरक्षण (प्रति हैक्टर 1 गड्ढा) के लिए रिसाव टैंक बनाए जाने चाहिए। यदि संभव हो, तो खेत में आदर्श रूप से 20×10 मीटर आकार का तालाब बनाएं। तरल खाद तैयार करने के लिए कुछ 200 लीटर के टैंक (प्रति एकड़ 1) और पौधों के लिए कुछ कंटेनर रखें।

  3. फसलें उगानाः स्थान, मृदा और जलवायु के अनुकूल उपयुक्त फसलें उगाना। यह सुनिश्चित करता है कि फसलें स्वस्थ रूप से विकसित हों और उनकी उत्पादन क्षमता अधिकतम हो।

  4. फसल क्रम और संयोजन योजनाः फसल क्रम और संयोजन योजना को लागू करना, ताकि मृदा की उर्वरता बनी रहे और फसलों में निरंतरता बनी रहे।

  5. फसलचक्र योजनाः तीन से चार वर्ष की रोटेशन योजना को अपनाना, ताकि मृदा की उर्वराशक्ति बनी रहे और कीट नियंत्रण में सहायता मिले।

जैविक प्रणाली में रूपांतरण

जैविक प्रणाली अपनाते समय यह आवश्यक है कि प्रणाली और क्षेत्र की बुनियादी आवश्यकताओं को ठीक से समझा जाए और दीर्घकालिक रणनीतियों पर पहले ध्यान दिया जाए। देश के अधिकांश हिस्सों में जैविक कार्बन और मृदा के सूक्ष्मजीव भार की कमी के कारण मृदा का खराब स्वास्थ्य एक बड़ी समस्या है। पानी की उपलब्धता में कमी और तापमान में वृद्धि समस्याओं को और बढ़ा रही है। आदानों और ऊर्जा की आपूर्ति के लिए बाजार पर बहुत अधिक निर्भरता ने कृषि को कम रिटर्न के साथ लागत गहन उच्च आदानों उद्यम बना दिया है।

यह व्यापक रूप से ज्ञात तथ्य है कि पौधों की कुछ जैविक प्रक्रियाएं जैसे नाइट्रोजन स्थरीकरण जैसे पोषक तत्वों को प्राप्त करने में शामिल हैं जैसे नाइट्रोजन स्थरीकरण आमतौर पर नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक डालने से बाधित होते हैं। मृदा वैज्ञानिक आमतौर पर गैर-विवेकपूर्ण उर्वरक के उपयोग के विरूद्ध चेतावनी देते हैं और जैविक खाद के उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं अन्यथा इससे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो सकती है। इस प्रकार जैविक खेती प्रणालियों में रसायनों के लिए कोई जगह नहीं है। इन सभी चिंताओं को दूर करने और एक ऐसी प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है, जो न केवल उत्पादक और कम लागत वाली हो बल्कि आने वाली सदियों के लिए संसाधन संरक्षण और टिकाऊ भी हो।

प्रणाली का अनुकूलन

'फार्मर फर्स्ट एंड लास्ट मॉडल' 'प्रौद्योगिकी हस्तांतरण' प्रतिमान का एक विकल्प है, जो वैज्ञानिक की व्यावसायिक प्राथमिकताओं, मानदंडों और लक्ष्यों के बजाय किसान की प्राथमिकताओं और धारणाओं पर आधारित है। प्रारंभिक बिंदु संसाधनों तक सीमित पहुंच वाले किसानों द्वारा सामना किए जाने वाले संसाधनों, मांगों और मुद्दों की वैज्ञानिक समझ होना और परामर्श और संदर्भ स्रोतों के रूप में अनुसंधान स्टेशनों और प्रयोगशालाओं की भूमिका को पहचानना है।

मूल्यांकन के साधन के रूप में प्रौद्योगिकी का उपयोग, खेतों पर तथा किसानों के सहयोग से किए गए अनुसंधान एवं विकास और अनौपचारिक सर्वेक्षण विधियों का उपयोग इस प्रतिमान की विशेषताएं हैं। स्थानीय रूप से 'उपलब्ध वैकल्पिक' संसाधनों के सर्वोत्तम संभव उपयोग के लिए, कृषि प्रणाली को ठीक से समेकित किया जाना चाहिए।

एक एकड़ क्षेत्र में समेकित जैविक खेती मॉडल

समेकित जैविक खेती प्रणाली (आईओएफएस) मॉडल एक समन्वित दृष्टिकोण है। इसे उत्पादन, स्थिरता और आय को अनुकूलित करने के लिए विकसित किया गया है। इस मॉडल में वर्मीकम्पोस्ट गड्ढे और फार्मयार्ड खाद (एफवाईएम) गड्ढे शामिल हैं, जो उच्च गुणवत्ता वाले जैविक उर्वरक का उत्पादन करते हैं और मृदा की उर्वराशक्ति एवं संरचना को सुधारते हैं। फसल विविधीकरण इस मॉडल की एक प्रमुख विशेषता है। इसमें खरीफ मौसम में गन्ना, मसूर और लहसुन की अंतरवर्ती खेती, रबी मौसम में गेहूं और ग्रीष्म एवं शीतकालीन सब्जियों की खेती शामिल है। इसके अतिरिक्त, चावल-गेहूं फसल प्रणाली अपनाई जाती है, जो भूमि उपयोग को अधिकतम करती है और वर्षभर उत्पादन सुनिश्चित करती है।

पशुधन घटक के तहत, एक समर्पित गौशाला में पशुओं का प्रबंधन किया जाता है। पशुओं से प्राप्त गोबर और मूत्र का कुशलतापूर्वक खाद निर्माण में उपयोग किया जाता है। इससे पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण सुनिश्चित होता है और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है। खेत प्रबंधन और संचालन को सुचारू बनाने के लिए श्रमिकों के लिए एक अलग कक्ष भी उपलब्ध करवाया गया है। यह प्रणाली न केवल पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा देती है, बल्कि पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण, मृदा में जैविक कार्बन को सुधारने और किसानों के लिए अधिक लाभप्रदता सुनिश्चित करती है। आईओएफएस मॉडल एक स्थायी कृषि पद्धति का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो पर्यावरणीय और आर्थिक लक्ष्यों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है।

एक एकड़ भूमि के लिए एक प्रभावी विभाजन सारणी इस तरह से तैयार की जा सकती है, ताकि विभिन्न घटकों के लिए क्षेत्र का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सके। यह विभाजन कृषि उत्पादकता, मृदा की उर्वरता और आय के विविध स्रोत सुनिश्चित करने के लिए है।

इस मॉडल में विभिन्न प्रकार की फसलों, सब्जियों और मछलीपालन के माध्यम से 1 एकड़ क्षेत्र में कुल रुपये 1,23,366 की आय उत्पन्न होती है। इसमें 750 एम गेहूं की किस्में और मिश्रित फसलें (गन्ना, मसूर और लहसुन) उगाई जाती हैं। इनसे रुपये 15,914. रुपये 17.273 और रुपये 46,648 की आय प्राप्त होती है। इसके अलावा, 750 एम में शीतकालीन (प्याज, शिमला मिर्च, पत्ता गोभी, टमाटर आदि) और ग्रीष्मकालीन (भिंडी, टिंडा, खीरा, तरबूज) सब्जियों से क्रमशः रुपये 24,565 और रुपये 11,130 की आय होती है। मछली पालन से रुपये 3255 की अतिरिक्त आय मिलती है। यह मॉडल एक व्यवस्थित और विविध कृषि प्रणाली को प्रदर्शित करता है, जो किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मदद करता है।

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