घर की जरूरतों ने गाँव का हुलिया बदल दिया

Published on
3 min read

मैं अपनी मेहनत से अपने परिवार की दशा बदलना चाहती थी। और इसके लिये मेरे पास जरिया सिर्फ खेती ही था। इसी प्रयास में मैं राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय गई, जहाँ से मैंने अपनी जमीन के अनुकूल खेती की उन्नत जानकारी हासिल की। फिर मैंने पपीते के साथ ओल (जिमीकंद) की खेती भी शुरू की। अपनी फसल को सीधे बाजार में बेचने के बजाय मैंने दूसरा रास्ता अपनाया। इस घटना को साढ़े तीन दशक से भी ज्यादा वक्त बीत चुका है। मैंने दसवीं की पढ़ाई पूरी ही की थी कि मेरी शादी कर दी गई। मैं अपने पति के साथ संयुक्त परिवार में रहने लगी। मेरे पति परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ तम्बाकू की खेती करते थे।

शादी को कुछ ही वक्त बीता था कि परिवार का बँटवारा हो गया, और मेरे पति के हिस्से में जमीन का एक टुकड़ा आया। जमीन का वही टुकड़ा हम पति-पत्नी के जीवन का सहारा था। मेरे पति अब भी तम्बाकू की खेती करते थे। चूँकि मैं थोड़ा पढ़ी-लिखी थी, सो मेरे दिमाग में समाज पर तम्बाकू के दुष्प्रभाव की बात चलती रहती थी।

मैंने अपने पति से भी यह साल पूछा कि आप तम्बाकू ही क्यों उगाते हैं। पर शायद मेरी चिन्ताएँ पति पर कोई असर डालने में नाकाम रहीं। यह देख मैंने खुद फावड़ा उठाने का फैसला लिया और अपने खेत के एक हिस्से में सब्जियों की खेती शुरू कर दी। इससे पहले मुझे खेती करने का कोई अनुभव नहीं था, मगर इच्छाशक्ति के बल पर मैं एक झटके में शर्मीली गृहिणी से महिला किसान में बदल गई।

दिन में जब मेरे पति तम्बाकू की पत्तियाँ बेचने के लिये शहर में होते, मैं उस वक्त खेत में अपनी क्यारियाँ सँवारने में जुटी रहती। लेकिन मेरी राह इतनी आसान कहाँ थी। कठिन परिश्रम के बाद जब मुझे फल मिलने का अवसर आया, तो प्रकृति मुझसे रूठ गई। मेरी पहली फसल बाढ़ की भेंट चढ़ गई।

कुदरत की बेरुखी निराश करने वाली थी, पर मैं इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं थी। मैंने फसल बदली और धान की खेती शुरू की। साथ ही खेत की मेड़ पर पपीता, केला और आम के पौधे भी लगाए। खेती के इन सामान्य प्रयोगों का परिणाम भी साधारण ही रहा। वह नहीं मिला, जिसकी मुझे तलाश थी।

दरअसल मैं अपनी मेहनत से अपने परिवार की दशा बदलना चाहती थी। और इसके लिये मेरे पास जरिया सिर्फ खेती ही था। इसी प्रयास में मैं राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय गई, जहाँ से मैंने अपनी जमीन के अनुकूल खेती की उन्नत जानकारी हासिल की। फिर मैंने पपीते के साथ ओल (जिमीकंद) की खेती भी शुरू की।

अपनी फसल को सीधे बाजार में बेचने के बजाय मैंने दूसरा रास्ता अपनाया। मैंने घर में जैम, जेली, अचार, मुरब्बा और आटा आदि तैयार करके बाजार मे बेचना शुरू किया। इस काम से मुझे पहले की अपेक्षा कई गुना ज्यादा आय होने लगी। आस-पास के लोग खासकर महिलाओं को मेरे बारे में पता चला, तो मेरा काम देखने मेरे घर आने लगीं।

मेरे अनुभवों को सुनने के बाद दूसरी महिलाओं ने भी काम करने की इच्छा जाहिर की। मैंने किसी को निराश नहीं किया और महिलाओं के अनेक स्वयं सहायता समूह बनाए। बैंक लोन और विभिन्न सरकारी योजनाओं की मदद से उन महिलाओं का काम भी चल निकला।

मुजफ्फरपुर जिले के मेरे गाँव में आज हर खेत से खुशहाली की फसल पैदा होती है। घरों में बेकार बैठी रहने वाली महिलाओं ने मेहनत से अपने परिवारों का आर्थिक हुलिया ही बदल दिया है। यह किसी जादू सरीखा है और खुशकिस्मती से मैं इस परिवर्तन की साक्षी हूँ।

इस काम के लिये मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक मुझे सम्मानित कर चुके हैं। मुझे लोग किसान चाची के नाम से जानते हैं। मैं अब भी साइकिल चलाती हूँ, बाजार जाती हूँ, महिलाओं को खेती के टिप्स देती हूँ और उनकी आर्थिक आजादी में अपना योगदान देती हूँ।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org