In the event of an early or excessive monsoon, excess water can be drained from fields to prevent flooding and redirected for groundwater recharge.
समय से पहले या अधिक वर्षा की स्थिति में खेत जलभराव का खतरा बढ़ जाता है, जिसका निकास तय करके भूजल पुनर्भरण के लिए प्रयोग किया जा सकता है।छायाकार: प्रसाद पंचाक्षरी, छवि स्रोत: Unsplash

लगातार अनिश्चित होते मानसून से ऐसे निपटें किसान

वर्षा जल संचयन और पानी की उपलब्धता के हिसाब से चुनी गई फसलें उगाकर मानसून के अनिश्चित असर को कम किया जा सकता है।
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मानसून को लेकर किसानों के मन में बहुत उम्मीदें रहती हैं। गर्मी की तपिश के बाद सूखी ज़मीन पर जब पहली बारिश की बूंद गिरती है तो सिर्फ मिट्टी ही नहीं महकती, लोगों की उम्मीदें भी महकने लगती हैं। मानसून भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इतना महत्वपूर्ण है कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने मानसून को ही भारत का असली वित्त मंत्री कह दिया था। 

मानसून कम तापमान वाले इलाके से अधिक तापमान वाले इलाकों की ओर चलने वाली मौसमी हवाओं की एक जटिल प्रणाली है, जो समुद्र और ज़मीन के बीच तापमान के अंतर के कारण बनती है। जैसे, इस समय सूर्य पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध के सबसे नज़दीक है, जिसकी वजह से उत्तर का पूरा मैदानी इलाका गर्म हो जाता है। इस गर्मी से बने निम्न दबाव की वजह से समुद्र की ठंडी, नम हवाएं मैदानों की तरफ़ चलने लगती हैं। इन्हें हम मानसूनी हवाएं या मौसमी हवाएं कहते हैं।

पर इस व्यवस्था में कभी-कभी एल नीनो (मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर के गर्म होने के कारण मानसून का कमज़ोर होना) और ला नीना (मध्य और मध्यपूर्व भूमध्यीय प्रशांत महासागर की सतह के ठंडे होने के कारण मानसून का मज़बूत होना) जैसे व्यवधान भी आ जाते हैं, जिनसे मानसून अनियमित हो जाता है। यहीं, यह भी जानना जरूरी है कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण भी मानसून के घटने-बढ़ने, अल्पवृष्टि, अतिवृष्टि जैसी एक्सट्रीम वेदर कंडीशन की घटनाएं बढ़ रही हैं। 

इस साल भी कुछ ऐसा ही हुआ है। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक आमतौर पर मानसून पहली जून को केरल में घुसता है और फिर उत्तर की ओर बढ़ते हुए 15 जुलाई तक देश के लगभग सभी भागों तक फैल जाता है। इस बार मानसून एक जून की जगह 24 मई को ही केरल पहुंच गया। सिर्फ़ यही नहीं, इस बार रफ़्तार भी इतनी तेज़ रही कि 7 जून तक महाराष्ट्र पहुंचने वाला मानसून अगले दिन 25 मई को ही महाराष्ट्र जा पहुंचा। ऐसा 1990 के बाद, यानी पिछले 35 सालों में पहली बार हुआ है कि मानसून इतनी तेज़ी से महाराष्ट्र तक पहुंचा है।

इससे किसानों की तैयारी अधूरी रह गई है, जो फसलें कटनी थीं, वे समय से कट नहीं पाई और खराब हो गईं।

फिलहाल का संकट : समय से पहले आया मानसून बना किसानों की मुसीबत

मुद्दा यह है कि किसान हर साल एक निश्चित समय क्रम के अनुसार अपनी फसल की तैयारी करता है। इस तरह की अनियमितता के कारण उसकी तैयारी अधूरी रह जाती है और अक्सर फसल का नुकसान हो जाता है। असमय और अनियमित बारिश, ओलावृष्टि, अतिवृष्टि और अल्पवृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं का किसानों पर सबसे ज़्यादा असर होता है।

इस बार की इस अनियमित वर्षा ने महाराष्ट्र के अलावा गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में खेती को भारी नुकसान पहुंचाया है। 

गुजरात के सौराष्ट्र-कच्छ से अनार, पपीते और टमाटर की फसलें बर्बाद होने की खबर है। कर्नाटक में 522 हेक्टेयर में लगी केले की फसल बारिश की वजह से बर्बाद हो गई। बहुत नमी और तेज बारिश की वजह से कई प्रमुख सब्जी की फसलें भी खेतों में सड़ गईं

मौसम की मार लगातार 

पिछले एक दशक (2015–2024) में भारतीय कृषि ने मॉनसून की अनिश्चित चाल और जलवायु परिवर्तन का दोहरा प्रहार झेला है। एल नीनो, ला नीना और मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन जैसे वैश्विक मौसमी घटनाक्रमों ने कभी सूखा, कभी बाढ़ और कभी असमान बारिश जैसी स्थितियां पैदा की हैं।

इस दशक में भारत ने तीन बड़े सूखे (2015, 2018, 2023) और चार बाढ़ों (2017, 2019, 2020, 2022) का सामना किया, जिनसे करीब करोड़ों हेक्टेयर फसल भूमि प्रभावित हुई। ऐसे में, पहले ही अन्य समस्याओं से जूझ रहे कृषि क्षेत्र के लिए अनिश्चित मानसून एक बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है।

क्या करें किसान 

मानसून जल्दी आने की स्थिति में

अगर मानसून जल्दी आ जाए तो इसके दो खतरे हैं, जिनसे निपटना है -

पहला यह कि कई बार मानसून के जल्दी आकर चले जाने के कारण, बाद में लंबे समय के लिए सूखे की स्थिति हो जाती है। ऐसे में, किसान एक बैकअप प्लान रखें, यानी कि उनके पास पानी का भंडारण हो। दूसरे, वे कम अवधि वाली फसलें चुनें। 

मानसून जल्दी आने की अवस्था में फसलों में जल भराव का खतरा रहता है, इससे बचने के लिए जल निकासी और अतिरिक्त पानी को भंडारण के लिए या भूजल रिचार्ज के लिए प्रयोग करें। बायोफेंसिंग करें यानी मेड़ पर पेड़ जरूर लगाएं।

अतिवृष्टि में कई बार खेतों में फसलों में पानी खड़ा रह जाता है। जिससे फंगस आदि की संभावना बढ़ जाती है। प्याज जैसी फसलों में ये दिक्कतें ज्यादा रहती हैं। इससे बचने के लिए, रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन किया जा सकता है।  

मानसून देर से आने की स्थिति में 

देर से मानसून आने की स्थिति में देर से बोई जाने वाली फसलें लगाएं, जैसे ज्वार, बाजरा, मूंग आदि। साथ ही, ज़मीन में नमी संरक्षण तकनीकों, यानी गहरी जुताई, बायो मल्चिंग आदि का सहारा लेना होगा। इसके अलावा, यदि सिंचाई के लिए तालाब या भंडारण की व्यवस्था हो, तो वहां से पानी लेकर समय पर फसल का काम शुरू किया जा सकता है।

वर्षा औसत से ज़्यादा होने की स्थिति में 

अतिवृष्टि से बचने के लिए खेतों में रिचार्ज-वेल या पुनर्भरण कुएं की व्यवस्था की जा सकती है। यानी कि खेत में कुएं और छोटे तालाब बनाकर अतिरिक्त पानी को भूजल में बदलें।

सूखे की स्थिति में 

सूखे की स्थिति में ऐसी फसलें चुनें, जो बहुत कम पानी में भी हो जाती हैं। साथ ही, सिंचाई की वॉटर स्मार्ट तकनीकें, जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर आदि का इस्तेमाल करें। खाद, बीज, कृषि औजारों के साथ ही अब पानी के भंडारण के लिए तालाब, रिचार्ज-वेल की व्यवस्था करनी होगी, तभी सूखे की स्थिति में पानी की दिक्कतों से पार पाया जा सकेगा।

बदलाव की कहानियों से सीखें

देशभर में कई किसान और इलाके जलवायु अनुकूलन के इनोवेशन से मिसाल बना रहे हैं। मध्य प्रदेश के देवास ज़िले में भूजल का स्तर 700-800 फीट पर पहुंच गया था और मानसून की अनिश्चितता के कारण फसलें लेना मुश्किल हो गया था। इलाके में सिंचाई के लिए कई-कई ट्यूबवेल खोदने पड़ते थे, क्योंकि भूजल स्तर गिरने के कारण ट्यूबवेल सूख जाते थे। 

इससे निपटने के लिए, ज़िले के हाटपिपलिया गाँव में किसान रमेश पटेल ने अपने खेत में रीचार्ज कुआँ और सिंचाई तालाब बनाया। साथ ही, मल्चिंग तकनीक अपनाकर सोयाबीन की पैदावार 25% तक बढ़ाई और अब वे तीनों मौसम में खेती कर पा रहे हैं। 

देवास में मुख्यतः सिंचाई तालाब का प्रयोग किया गया। खेत के क्षेत्रफल का 5-7 प्रतिशत हिस्सा तालाब बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया। अतिवृष्टि की दशा में अतिरिक्त पानी इन तालाबों में भर जाता है, सूखे की स्थिति में तालाब से पानी लेकर सिंचाई की जाती है। गर्मी में तालाब भरे हों तो बत्तख पालन कर लिया जाता है। मानसून में प्रकृति ने जो दिया, उसके हिसाब से तैयारी जरूरी है। इन उपायों के चलते आज देवास के कुछ गांवों में भूजल 20-30 फीट पर मौजूद है। देवास में ऐसी हजारों कहानियां हैं।

ऐसे उदाहरण बताते हैं कि इनोवेशन और वैज्ञानिक समझ के साथ काम करके, अनिश्चित मॉनसून के बावजूद खेती को सुरक्षित और लाभकारी बनाया जा सकता है।

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