जल उपयोग दक्षता बढ़ाने हेतु सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली

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सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली सामान्य रूप से बागवानी फसलों में उर्वरक व पानी देने की सर्वोत्तम एवं आधुनिक विधि है। सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के द्वारा कम पानी से अधिक क्षेत्र की सिंचाई की जा सकती है। इस प्रणाली में पानी को पाइप लाइन के द्वारा स्रोत से खेत तक पूर्व-निर्धारित मात्रा में पहुँचाया जाता है। इससे एक तरफ तो जल की बर्बादी को रोका जा सकता है, तो दूसरी तरफ यह जल उपयोग दक्षता बढ़ाने में सहायक है। सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली अपनाकर 30-37 प्रतिशत जल की बचत की जा सकती है। साथ ही इससे फसलों की गुणवत्ता और उत्पादकता में भी सुधार होता है। सरकार भी ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ के मिशन के अन्तर्गत फव्वारा व टपक सिंचाई पद्धति को बढ़ावा दे रही है।



सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को आम जनता, किसानों व प्रसारकृमियों में और अधिक लोकप्रिय बनाने की जरूरत है, ताकि संरक्षणपूर्ण प्रौद्योगिकियों के प्रयोग से बेहतर जल प्रबन्धन एवं जल उपयोग दक्षता को अधिक लाभप्रद बनाया जा सके। कम पानी वाले क्षेत्रों में ड्रिप सिंचाई प्रणाली अपनाई जानी चाहिए।

भारत केवल 4 प्रतिशत जल संसाधनों के साथ दुनिया की 16 प्रतिशत आबादी को खाद्य व पोषण सुरक्षा प्रदान करता है। आने वाले समय में बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण कृषि के लिये पानी की उपलब्धता काफी कम हो जाएगी। इस प्रकार बढ़ती आबादी के खाद्य व पोषण के लिये पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादन करना हमारे देश के प्रबन्धकों एवं शोधकर्ताओं के लिये एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य होगा। दुनिया के लगभग सभी देशों में तेजी से बढ़ते औद्योगिकीकरण एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण पानी की आपूर्ति फसल उत्पादन हेतु एक प्रमुख समस्या बनती जा रही है। इस सम्बन्ध में सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो सकती है। सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली सामान्य रूप से बागवानी फसलों में उर्वरक व पानी देने की सर्वोत्तम एवं आधुनिक विधि है। सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के द्वारा कम पानी से अधिक क्षेत्र की सिंचाई की जा सकती है। इस प्रणाली में पानी को पाइप लाइन के द्वारा स्रोत से खेत तक पूर्व निर्धारित मात्रा में पहुँचाया जाता है। इससे एक तरफ तो जल की बर्बादी को रोका जा सकता है, तो दूसरी तरफ यह जल उपयोग दक्षता बढ़ाने में सहायक है।

सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली अपनाकर 30-37 प्रतिशत जल की बचत की जा सकती है। साथ ही इससे फसलों की गुणवत्ता और उत्पादकता में भी सुधार होता है। सरकार भी ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ के मिशन के अन्तर्गत फव्वारा व टपक सिंचाई पद्धति को बढ़ावा दे रही है। फव्वारा सिंचाई से सतही सिंचाई की अपेक्षा 10 से 35 प्रतिशत जल की बचत व 10-30 प्रतिशत तक फसल उत्पादन में वृद्धि होती है। टपक सिंचाई विधि से पेड़-पौधों का जड़ क्षेत्र नम रहता है जिससे लवण की सान्द्रता अधिक नहीं होती है। खेतों में सिंचाई के लिये ज्यादातर कच्ची नालियों का प्रयोग किया जाता है जिससे लगभग 30-40 प्रतिशत जल रिसाव के कारण बेकार चला जाता है। साथ ही खरपतवारों व जलमग्नता की समस्या पैदा होती है। बदलते परिदृश्य में किसानों व ग्रामीणों को खेत का पानी खेत में और गाँव का पानी गाँव में संरक्षित करने का संकल्प लेना चाहिए। गत कई वर्षों से फसलोत्पादन में जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिये सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली का प्रयोग किया जा रहा है। केन्द्र सरकार ने ‘हर खेत को पानी’ के लक्ष्य के साथ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की शुरुआत की है। इसके तहत देश के हर जिले में समस्त खेतों तक सिंचाई के लिये पानी पहुँचाने की योजना है। इस योजना को लागू करने की जिम्मेदारी कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के साथ-साथ ग्रामीण विकास मंत्रालय और जल संसाधन मंत्रालय को दी गई है।

बारानी क्षेत्र और कृषि उत्पादन

सरकारी प्रयास व योजनाएँ

सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली

फव्वारा सिंचाई पद्धति

सारणी 1 फव्वारा सिंचाई प्रणाली के अन्तर्गत पानी की बचत एवं पैदावार में बढ़ोत्तरी

क्र.सं.

फसल का नाम

पानी की बचत (प्रतिशत में)

पैदावार वृद्धि (प्रतिशत में)

1.

गेहूँ

35

24

2.

जौ

56

16

3.

बाजरा

56

19

4.

कपास

36

50

5.

चना

69

57

6.

ज्वार

55

34

7.

सूर्यमुखी

33

20

फव्वारा सिंचाई विधि के लाभ

फव्वारा सिंचाई में बाधाएँ

ड्रिप सिंचाई पद्धति

सारिणी - 2 सिंचाई की विभिन्न विधियों/प्रणालियों में जलदक्षता

क्र.सं.

सिंचाई प्रणाली

जल दक्षता प्रतिशत में

1.

बॉर्डर

30

2.

कूंड

33

3.

क्यारी

35

4.

ड्रिप

98

5.

फव्वारा

50

ड्रिप सिंचाई पद्धति को टपक सिंचाई को टपक सिंचाई या बूँद-बूँद सिंचाई के नाम से भी जाना जाता है। ड्रिप सिंचाई प्रणाली का विकास 1960 के दशक के आरम्भ में इजराइल तथा 1960 के दशक के अन्त में ऑस्ट्रेलिया व उत्तरी अमेरिका में हुआ। इस समय अमेरिका में ड्रिप सिंचाई प्रणाली के अन्तर्गत सर्वाधिक क्षेत्र लगभग 10 लाख हेक्टेयर है। इसके बाद भारत, स्पेन, इजराइल का स्थान है। ड्रिप सिंचाई पद्धति में जल को पाइप लाइन तंत्रों के द्वारा पौधों के जड़ क्षेत्र के आस-पास आवश्यकतानुसार दिया जाता है। ड्रिप सिंचाई के तहत पानी को पाइप नेटवर्क के माध्यम से सीधे पौधों के जड़ क्षेत्र में सतह या उपसतह पर ड्रिपर्स के माध्यम से दिया जाता है। इस प्रणाली में बूँद-बूँद द्वारा फसलों व बागवानी पौधों की सिंचाई की जाती है। टपक सिंचाई द्वारा 50-60 प्रतिशत सिंचाई जल की बचत, फसल उत्पादन में वृद्धि, खरपतवारों के प्रकोप में कमी और फसल उत्पाद की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। इस विधि से उर्वरकों का सिंचाई के साथ प्रयोग करना भी सम्भव है। इससे उर्वरक उपयोग दक्षता तो बढ़ती ही है। साथ ही 30-40 प्रतिशत उर्वरक की भी बचत की जा सकती है। वर्तमान में देश में इसका उपयोग लगभग 5 लाख हेक्टेयर भूमि पर हो रहा है। इस आधुनिक सिंचाई प्रौद्योगिकी की तरफ देश के किसानों का रुझान बढ़ता जा रहा है। प्लास्टिक से बने पाइप सिंचाई के खेतों या बागों में सिंचाई के लिये व्यावहारिक दृष्टि से उत्तम होते हैं।

अनेक अनुसन्धान केन्द्रों पर किये गए अध्ययनों से गन्ना, कपास, केला, टमाटर, फूलगोभी, बैंगन, करेला, मिर्च आदि फसलों में ड्रिप सिंचाई से अन्य प्रचलित सिंचाई विधि की अपेक्षा उपज वृद्धि के साथ-साथ पानी की भी बचत दर्ज की गई। विभिन्न प्रयोगों में धान-गेहूँ फसलचक्र में कुल 9,750 घन मीटर पानी प्रति हेक्टेयर के लिये आवश्यक है जबकि टपक सिंचाई प्रणाली से 8,840 घन मीटर पानी प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। इस प्रकार धान-गेहूँ फसल चक्र में पानी की बचत होती है। यह विधि मृदा के प्रकार, खेत के ढाल, जलस्रोत और किसान की दक्षता के अनुसार अधिकांश फसलों के लिये प्रयोग में लाई जा सकती है। फसलों की पैदावार बढ़ने के साथ-साथ इस विधि से फसल उत्पाद गुणवत्ता, कीटनाशियों एवं उर्वरकों का दक्ष उपयोग, खरपतवारों का कम प्रकोप एवं सिंचाई जल की बचत सुनिश्चित की जा सकती है। आजकल ड्रिप सिंचाई प्रणाली पूरे विश्व में लोकप्रिय होती जा रही है। सीमित जल संसाधनों और दिनों-दिन बढ़ती जल माँग और भूजल प्रदूषण की समस्या को कम करने के लिये ड्रिप सिंचाई तकनीक बहुत लाभदायक सिद्ध हो रही है। जिन क्षेत्रों में ऊँची-नीची भूमि को समतल कर पाना कठिन या असम्भव होता है, उन क्षेत्रों में टपक सिंचाई प्रणाली द्वारा व्यावसायिक फसलों को आसानी से उगाया जा सकता है। सिंचाई की इस विधि का प्रयोग कर 30-40 प्रतिशत तक उर्वरकों की बचत, 70 प्रतिशत तक जल की बचत के साथ उपज में 100 प्रतिशत तक वृद्धि की जा सकती है। इसके अलावा ऊर्जा की खपत में भी कमी होती है।

भविष्य में टपक सिंचाई तकनीक सिंचाई जल की बढ़ती हुई आवश्यकता की पूर्ति करने हेतु एक सशक्त साधन है। टपक सिंचाई प्रणाली को मुख्य रूप से बागवानी फसलों में अधिक प्रभावी पाया गया है जिसमें सिंचाई की जल उपयोग दक्षता 95 प्रतिशत तक देखी गई है। बदलते परिवेश में भारत सरकार के प्रयासों से टपक सिंचाई तकनीक किसानों के बीच काफी लोकप्रिय होती जा रही है। टपक सिंचाई तकनीक से सिंचाई क्षेत्र में नारियल फसल का योगदान लगभग 22 प्रतिशत है। आम, अंगूर, केला, अनार आदि फसलों में भी टपक सिंचाई का प्रयोग किया जा रहा है। गत कई वर्षों के दौरान देश में ड्रिप सिंचाई के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि हुई है। हमारे देश में लगभग 81.4 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में सूक्ष्म सिंचाई विधि से सिंचाई की जा रही है। महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और तमिलनाडु आदि राज्यों में बड़े पैमाने पर ड्रिप सिंचाई विधि का प्रयोग अनेक फसलों में हो रहा है जिनमें फल वृक्षों का क्षेत्रफल सर्वाधिक है।

सारणी-3 विभिन्न फसलों के अन्तर्गत टपक सिंचाई प्रणाली से जल बचत एवं उपज में वृद्धि

क्र.स.

फसल

जल बचत (प्रतिशत में)

उपज में वृद्धि (प्रतिशत में)

1.

गन्ना

50

30

2.

कपास

55

30

3.

भिंडी

40

15

4.

बैंगन

55

20

5.

तोरई

60

20

6.

पत्ता गोभी

60

25

7.

अंगूर

50

90

8.

मूँगफली

40

70

9.

नींबू

80

35

10.

पपीता

60

75

11.

मूली

73

15

12.

मिर्च

60

45

स्रोत : खेती, 2016 आईसीएआर

ड्रिप सिंचाई के लाभ

फर्टिगेशन

तालिका - 4 उर्वरक उपयोग व सिंचाई के विभिन्न तरीकों के अन्तर्गत उर्वरक उपयोग दक्षता (प्रतिशत में)

पोषक तत्व

छिटकवां विधि

ड्रिप

ड्रिप + फर्टिगेशन

नाइट्रोजन

30-35

65

95

फास्फोरस

20

30

45

पोटाश

50

60

80

स्रोत- इंडियन फार्मिंग, 2016

सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को आम जनता, किसानों व प्रसारकृमियों में और अधिक लोकप्रिय बनाने की जरूरत है, ताकि संरक्षणपूर्ण प्रौद्योगिकियों के प्रयोग से बेहतर जल प्रबन्धन एवं जल उपयोग दक्षता को अधिक लाभप्रद बनाया जा सके। कम पानी वाले क्षेत्रों में ड्रिप सिंचाई प्रणाली अपनाई जानी चाहिए। इससे पानी के अनावश्यक अपव्यय पर रोक लगेगी। जिससे भावी पीढ़ी को पर्याप्त सिंचाई जल के साथ सुरक्षित जल भण्डार भी प्राप्त हो सकें।

लेखक परिचय


लेखक जल प्रौद्योगिकी केन्द्र, भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, नई दिल्ली में कार्यरत हैं। ई-मेल : v.kumardhama@gmail.com

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