जलग्रस्त क्षेत्रों में सुगन्धित खस की खेती।
जलग्रस्त क्षेत्रों में सुगन्धित खस की खेती।

जलग्रस्त क्षेत्रों में सुगन्धित खस की खेती

Published on

खस का इस्तेमाल सिर्फ ठंडक के लिए ही नही होता, आयुर्वेद जैसी परम्परागत चिकित्सा प्रणालियों में औषधि के रूप में भी होता है। यह जलन को शान्त करने और त्वचा सम्बन्धी विकारों को दूर करने में प्रयोग किया जाता है।

खस या वेटीवर एक भारतीय मूल की बहुवर्षीय घास है, जिसका वानस्पतिक नाम वेटीवेरिया जिजेनऑयडीज है, जो पोएसी परिवार के अन्तर्गत आती है। पौधे के जमीन के अन्दर रहने वाले भाग में हल्के पीले रंग या भूरे से लाल रंग वाली उत्कृष्ट जड़ें होती हैं, जिनसे आसवन पर व्यवसायिक स्तर का खस का तेल प्राप्त होता है। खस की रेशेदार जड़ें नीचे की ओर बढ़ती हुई 2.3 मीटर तक भूमि की गहराई में फैलती हैं और इन जड़ों की सुगन्ध बहुत ही दृढ़ होती है। खस के सुगन्धित तेल की कीमत राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में 20 से 25 हजार रुपये लीटर तक मिल जाती है। जमीन बाढ़ ग्रस्त हो, बंजर हो या पथरीली, इसकी खेती हर जगह की जा सकती है। आये दिन प्राकृतिक आपदा के कारण खेती बर्बाद हो जाती है, ऐसे में किसानों के लिये इसकी खेती लाभकारी सिद्ध हो सकती है।
 

उत्पादन और उपयोग

भारत में खस की विधिपूर्वक एक फसल के रूप में खेती राजस्थान, असम, बिहार, उत्तरप्रदेश, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश और मध्यप्रदेश में की जाती है। खस की व्यावसायिक खेती भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बाग्लादेश, श्रीलंका, चीन और मलेशिया में की जा रही है। इसके अलावा अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, ग्वाटेभाला, मलेशिया, फिलीपींस, जापान, अंगोला, कांगो, डोमिनिकन गणराज्य, अर्जेंटीना, जमैका, मॉरीशस और होंडुरास में भी खस की खेती की जाती है। उत्तर भारत में उत्पादित होने वाले खस के सुगन्धित तेल की प्रीमियम गुणवत्ता की कीमत अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत अच्छी प्राप्त होती है। खस की जड़ों से निकाला गया सुगन्धित तेल मुख्यतः शर्बत, पान मसाला, खाने के तम्बाकू, इत्र, साबुन तथा अन्य सौन्दर्य प्रसाधनों में प्रयोग किया जाता है। इसकी सूखी हुई जड़ें लिनन व कपड़ों में सुगन्ध में हेतु प्रयुक्त की जाती हैं। खस का इस्तेमाल सिर्फ ठंडक के लिए ही नहीं होता, आयुर्वेद जैसी परम्परागत चिकित्सा प्रणालियों में औषधि के रूप में भी होता है। यह जलन को शान्त करने और त्वचा सम्बन्धी विकारों को दूर करने में प्रयोग किया जाता है।
 

अनुकूल वातावरण

फसल उत्पादन प्रौद्योगिकी

फसल प्रबन्धन

खस के पौधों को समान्यतः अधिक पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती है, हालांकि शुष्क क्षेत्रों में अधिक उपज प्राप्त करने के लिए 6 से 8 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे क्षेत्रों में जहाँ वर्षा अच्छी होती है एवं साल भर नमी बनी रहती है, सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। खस की जड़ों का फैलाव अधिक होने के कारण अधिक मात्रा में पोषक तत्व मृदा से लेते हैं। इसीलिए खाद एवं उर्वरकों का उपयोग करने से तेल की उपज में वृद्धि होती है। खस की फसल में 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किग्रा. फास्फोरस एवं 40 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष डालना चाहिए। खेत की तैयारी के समय फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी खुराक दी जाती है और बेहतर परिणाम के लिए 3 महीने के अन्तराल में नाइट्रोजन की खुराक 2 बराबर भागों में दी जाती है।
 

फसल सुरक्षा

जड़ों की खुदाई

जड़ों की खुदाई रोपाई के 12.14 माह में करते हैं। जड़ों की खुदाई प्रारम्भ करने से पहले पौधे के जमीन से 35.40 सेंमी. ऊपरी भाग को काट दिया जाता है। जड़ों की खुदाई का सर्वोत्तम समय दिसम्बर होता है क्योंकि समय तेल की मात्रा जड़ों में अधिक पाई जाती है। जिन स्थानों पर ठंड अधिक होती है वहाँ पर जड़ों की खुदाई फरवरी माह में करना उचित रहता है। जड़ों की खुदाई करते समय खेत में हल्की नमी रहने से खुदाई में आसानी होती है। जड़ों की खुदाई ट्रैक्टर द्वारा मिट्टी पलटने वाले हल से 40.45 सेंमी. गहराई तक जड़ों की खुदाई सुविधापूर्वक की जा सकती है।
 

आसवन एवं तेल का भण्डारण

खस की जड़ों का सुगन्धित तेल का उत्पादन वाष्प आसवन द्वारा किया जाता है। इसकी जड़ों से सामान्यतः तेल निकालने के लिए 14-16 घंटे जड़ों का आसवन करना उपयुक्त रहता है। आसवन से पहले खस की जड़ों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेना चाहिए। जड़ों की खुदाई के तुरन्त बाद अथवा 1-2 महीने रखने के पश्चात भी तेल निकाला जा सकता है। खस के सुगन्धित तेल में नमी, हवा और सूर्य के प्रकाश का तेल की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसीलिए तेल को स्टील या एल्युमिनियम के हवा बंद पात्र में एकत्र करके किसी छायादार स्थान पर सामान्य तापक्रम पर रखना चाहिए तथा तेल को जिस कंटेनर में रखा जाए वह स्वच्छ और जंग से मुक्त होना चाहिए।
 

रासायनिक संरचना एवं तेल की गुणवत्ता का मूल्यांकन

खस के सुगन्धित तेल की रासायनिक संरचना सबसे संयुक्त है और इसके सुगन्धित तेल में 50 से भी अधिक रासायनिक घटक पाए जाते हैं, जिनमें मुख्य रासायनिक घटक बेन्जोइक एसिड, वेटीविरोल, फुरफुरल और वीटोवोन हैं। खस के तेल की गुणवत्ता का निर्धारण भौतिक-रासायनिक गुणों रासायनिक रूपरेखा के माध्यम से किया जाता है।
 

उपज एवं कमाई

जड़ की उपज 15.20 कुंतल हेक्टेयर एवं तेल 20.25 किग्रा हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है, जिसमें तेल का उत्पादन 0.2 से 0.5 प्रतिशत तक मिलता है, जोकि प्रजाति, जड़ की आयु, आसवन की अवधि एवं आसवन विधि पर निर्भर करता है। इस फसल से लगभग 150000 से 180000 रुपए प्रति हेक्टेयर का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
 

TAGS

cultivation of khas, khas ki kheti kaise karen, how to do cultivation of khas, what is khas, benefits of khas, drawbacks of khas, khas ke nuksaan, khas ke fayede, khas ke laddu, market price of khas, uses of khas, khas cropping in india, farming.

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org