जम्मू व कश्मीर के नहरी कमांड क्षेत्रों में धान-गेहूँ फसल,PC-AT
जम्मू व कश्मीर के नहरी कमांड क्षेत्रों में धान-गेहूँ फसल,PC-AT

जम्मू व कश्मीर के नहरी कमांड क्षेत्रों में धान-गेहूँ फसल अनुक्रम की जल उत्पादकता में सुधार हेतु किसानों के खेतों में लेजर लेवलर तकनीक का प्रसार

कृषि के लिये जल उपलब्धता में कमी के साथ साथ फसलों की पैदावार और इनपुट दक्षता में कमी मुख्य चिंता का विषय बनता जा रहा है। इसलिये जल की कमी को देखते जम्मू के विभिन्न नहरी कमांड क्षेत्रों में चान गेहूँ फसल अनुक्रम के तहत कुल क्षेत्र 1.10 लाख हैक्टेयर आता है।
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जम्मू के विभिन्न नहरी कमांड क्षेत्रों में चान गेहूँ फसल अनुक्रम के तहत कुल क्षेत्र 1.10 लाख हैक्टेयर आता है। इस क्षेत्र के कमांड क्षेत्रों में कृषि के लिये जल उपलब्धता में कमी के साथ साथ फसलों की पैदावार और इनपुट दक्षता में कमी मुख्य चिंता का विषय बनता जा रहा है। इसलिये जल की कमी को देखते जम्मू के विभिन्न नहरी कमांड क्षेत्रों में चान गेहूँ फसल अनुक्रम के तहत कुल क्षेत्र 1.10 लाख हैक्टेयर आता है। इस क्षेत्र के कमांड क्षेत्रों में कृषि के लिये जल उपलब्धता में कमी के साथ साथ फसलों की पैदावार और इनपुट दक्षता में कमी मुख्य चिंता का विषय बनता जा रहा है। इसलिये जल की कमी को देखते हुये यहाँ कम सिंचाई जल उपयोग के साथ अधिक फसल उत्पादन प्राप्त करना बहुत ही आवश्यक हो गया है। ट्रैक्टरों की सहायता से भूमि समतल ने किसानों के खेतों को काफी हद तक समतल कर दिया है लेकिन फिर भी वहाँ ऊबड़-खाबड़ भूमि या भूमि के ऊँची-नीची रह जाने से किसानों के खेतों में जल का प्रयोग, वितरण और इसकी भंडारण क्षमता प्रभावित हो रही है। इस घटना के चलते कृषि भूमि के ऊँचे भागों पर जल की उपलब्धता में कमी के कारण जल उत्पादकता में असमानता है और भूमि के नीचे भागों में जल भराव की समस्या सामने आ रही है। इसके लिये बहुत सी तकनीकै काम में ली जा सकती है इनमें से एक है प्रिंसीजन भूमि समतलन जिसमें भूमि को समतल करने के लिये लेजर लेवलर का प्रयोग किया जाता है।हुये यहाँ कम सिंचाई जल उपयोग के साथ अधिक फसल उत्पादन प्राप्त करना बहुत ही आवश्यक हो गया है। 

आज इस आधुनिक कृषि के युग में प्राकृतिक संसाधन जैसे जल एवं भूमि का सरंक्षण करने के लिये प्रिंसीजन भूमि समतलन को तकनीक बहुत ही प्रचलित होती जा रही है प्रिसीजन भूमि समतलन में इस प्रकार का भौगोलिक परिवर्तन शामिल होता है कि जिससे खेतों में भूमि पर 0 से 0.2% तक निरंतर दलान का निर्माण हो जाता है। इस तकनीक में बड़े हॉर्स पावर वाले ट्रैक्टरों और मृदा मूवर्स यंत्रों का उपयोग करके मृदा की कटाई या भराई द्वारा खेतों में वांछित भूमि ढलान/स्तर प्राप्त किया जाता है जो कि ग्लोबल पोजीस्टिंग सिस्टम (GPS) या लेजर निर्देशित उपकरण से संचालित होता है ताकि खेत की मृदा को किसी भी दिशा में स्थानांतरित किया जा सके और कृषि भूमि को अच्छे से समतल किया जा सके। इसमें समग्र बेहतर उत्पादकता प्राप्त करने के लिये सबसे पहले भूमि को ग्रेडिंग जरूरी होती है और इसी वजह से इस तकनीक को धान-गेहूँ फसल अनुक्रम में संसाधन (जल एवं भूमि) संरक्षण तकनीक के रूप में भी जाना जा सकता है।

इस तकनीक को अपनाने के कारण जल के प्रयोग, वितरण और भंडारण क्षमता तथा प्रयोग किये गये पोषक तत्वों और सिचाई जल की उपयोग क्षमता में वृद्धि के कारण लेजर लेवलर से समतल हुए भूखंडों में विभिन्न फसलों के उपज स्तर में सुधार प्राप्त हुआ है। यह संसाधन सरक्षण तकनीक जम्मू में नहरी कमांड क्षेत्रों के तहत लगभग 1.10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाये जाने वाले धान-गेहूँ फसल अनुक्रम के लिये बहुत ही अनुकूल है।

जम्मू में इस महत्त्वपूर्ण तकनीक के हस्तक्षेप के कारण समतल किये गये प्लॉटों में भूमि समतलन सूचकांक में 3.1 से लेकर 4.7 तक वृद्धि हुई। किसानों के खेतों में जल वितरण और जल भंडारण क्षमता में क्रमश: 80% और 70% तक बढ़ोतरी हुई। यहाँ सबसे अधिक प्रचलित, धान- गेहूँ फसल अनुक्रम के तहत उपज में 10.1 क्विटल हेक्टेयर की बढ़ोत्तरी प्राप्त हुई। इस महत्त्वपूर्ण फसल अनुक्रम में इस तकनीक को अपनाकर लगभग 25% तक सिंचाई जल को बचाया जा सकता है। लेजर लेवलर पर ₹ 12000 / हेक्टेयर (5 वर्षों में एक बार) के व्यय के बाद धान- गेहूँ फसल अनुक्रम से ₹11000/ हेक्टेयर / वर्ष का अतिरिक्त लाभ प्राप्त किया जा सकता है। लेजर लेवलर के द्वारा भूमि समतलन के अन्य लाभों में खरपतवार और चूहों का प्रभावी नियंत्रण आदि भी शामिल हैं।

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