जुगाड़ बना सफलता का मंत्र
यद्यपि प्रत्येक मनुष्य मेहनत और लगन से काम करने को तैयार रहता है पर पूंजी के अभाव में ऐसा संभव नहीं होता। तब पुराने उपकरणों को ही ठीक कराकर या नया आकार देकर मनचाहा काम कराया जाता है इसी को ‘जुगाड़’ कहते हैं। जामनगर के कालवाद गांव के बच्चू भाई सावाजी भाई थिसिया इसी प्रयास में जुट गए। बेहद गरीब परंतु धुन का पक्का यह युवक जुट गया ऐसी मशीन बनाने में जो खेती के सारे आवश्यक काम कर सके। बच्चू भाई केवल दसवीं तक ही पढ़े-लिखे हैं मशीनों की थोड़ी जानकारी, किंतु लगन की कोई कमी नहीं। हाथ में औजार हो तो कुछ से कुछ बना सकने की हिम्मत। उसकी मेहनत और लगन काम आई और उन्होंने एक ऐसा यंत्र बना डाला जिसमें महज तीन हॉर्स पॉवर वाला डीजल इंजन लगा था और जिसमें पूरे माह में केवल 1.5 लीटर डीजल का खर्चा आए। इसकी लागत लगभग 8,000 रुपए आई। इसके अतिरिक्त बच्चू भाई ने एक ऐसा ट्रैक्टर भी बनाया जिसमें स्टीयरिंग गोल न होकर एक हल के आकार का था जिसे आगे-पीछे किया जा सकता था। बच्चू भाई ने एक अन्य कृषि यंत्र बनाया है जो ट्रैक्टर की तरह ही खेत की बुआई और जुताई कर सकता है। सफलता का मूलमंत्र है मेहनत, लगन और ज्ञान। सफल होने के लिए मन और मस्तिष्क खुला होना चाहिए और सफल होने की उत्कंठा और अगुवाई करने की तीव्र इच्छा होनी चाहिए। क्योंकि केवल वही लोग असाधारण रूप से सफल और प्रसिद्ध हो सकते हैं जिन्हें अपने सपनों से आगे बढ़ने की चाह हो।
इसके साथ ही आवश्यकता होती है उपकरणों की जो उस व्यवसाय के लिए आवश्यक होते हैं। इन उपकरणों को खरीदने के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है। यद्यपि प्रत्येक मनुष्य मेहनत और लगन से काम करने को तैयार रहता है पर पूंजी के अभाव में ऐसा होना संभव नहीं होता। तब पुराने उपकरणों को ही ठीक कराकर या नया आकार देकर मनचाहा काम कराया जाता है इसी को ‘जुगाड़’ कहते हैं।
हरेक किसान की चाह होती है कि उसका अपना ट्रैक्टर हो। इससे खेतों में जुताई, बुआई, पम्पसेट चलाना, बीज बोने की मशीनें आदि लगाकर खेती के काम को आसान किया जा सकता है। आज के युग में हल-बैल किसान की पहचान नहीं रहे। यह पुराने युग की बात है जब कंधे पर हल रखकर बैल को हांकता हुआ किसान खेतों की तरफ जाता था और सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर था। आज का किसान ट्रैक्टर पर अपनी पत्नी को साथ बिठाकर रेडियो सुनते हुए खेतों पर जाता है और उसी से जुताई, बुआई, सिंचाई आदि खेती से संबंधित बहुत से अन्य काम करता है। इससे समय कम लगता है और फसल भी भरपूर होती है। पर ट्रैक्टर बहुत महंगा होता है, छोटे और मझोले किसानों की पहुंच से बाहर। तो क्या कोई ऐसा यंत्र बन सकता है जो ये सारे काम कर सके?
जामनगर के कालवाद गांव के बच्चू भाई सावाजी भाई थिसिया इस प्रयास में जुट गए। बेहद गरीब परंतु धुन का पक्का यह युवक जुट गया ऐसी मशीन बनाने में जो खेती के सारे आवश्यक काम कर सके। बच्चू भाई केवल दसवीं तक ही पढ़े-लिखे हैं, मशीनों की थोड़ी जानकारी, किंतु लगन की कोई कमी नहीं। हाथ में औजार हो तो कुछ से कुछ बना सकने की हिम्मत। इससे पहले भी वे रेडियो, रेडियो ट्रांसमीटर, बीज बोने की रोलिंग मशीन, विस्फोट करने वाला सर्किट, बिजली टेस्टर आदि बना चुके हैं। अब इनका उद्देश्य पुरानी मशीनों के पुर्जों से चलने वाला एक ऐसा हल जोतने वाला यंत्र बनाना था जो एक साथ कई काम कर सके जैसे पानी उठाने वाला पम्प चलाना, जनरेटर चलाने वाली मोटर, आटा चक्की चलाना, लोहा काटना आदि। उसकी मेहनत और लगन काम आई और उन्होंने एक ऐसा यंत्र बना डाला जिसमें महज तीन हॉर्स पावर वाला डीजल इंजन लगा था और जिसमें पूरे माह में केवल 1.5 लीटर डीजल का खर्चा आए। इसकी लागत लगभग 8,000 रुपए आई।
इसके अतिरिक्त बच्चू भाई ने एक ऐसा ट्रैक्टर भी बनाया जिसमें स्टीयरिंग गोल न होकर एक हल के आकार का था जिसे आगे-पीछे किया जा सकता था। जिस तरह बैलों को चलाने और इच्छानुसार मोड़ने के लिए दो रस्सियों की आवश्यकता होती है, उसी तरह इस ट्रैक्टर में दो जांच स्टिक लगी हैं। इस ट्रैक्टर में गीयर बाक्स को गत्तों से ढका गया है और एक डीजल इंजन को कबाड़ी से खरीदी हुई एक पुरानी चेसिस पर फिट कर दिया गया है। इसका इंजन दस हॉर्स पावर का है। इसे चलाने में आठ घंटों में केवल पांच लीटर डीजल ही खर्च होता है। स्टीयरिंग व्हील के बदले दो लीवर लगे हैं जो अगले पहियों को इच्छानुसार मोड़ने में मदद करते हैं। इंजन पिछले पहियों को चलाता है जिसमें ब्रेक भी लगी हुई है।
बच्चू भाई ने एक अन्य कृषि यंत्र बनाया है जो ट्रैक्टर की तरह ही बुआई और खेत की जुताई कर सकता है। उन्होंने इसका नाम मोटर साइकिल जोतने वाला स्कूटर व्हील इन रियर रखा है जिसे उन्होंने 2004 में एक पुरानी सुजुकी मैक्स 100 मोटर साइकिल में कई बदलाव लाकर बनाया है। इसके पिछले हिस्से में स्कूटर के दो छोटे पहिए/टायर लगाए हैं ताकि संतुलन बना रहे। इन सब पर पूरा खर्चा लगभग 4,000 रुपए आया।
छोटे-बड़े बीजों की बुआई के लिए बच्चू भाई ने एक और मशीन बनाई। एक सिलेंड्रिकल पीवीसी की ट्यूब जिसमें समान दूरी पर छेद कर दिए जिसमें बीज भरे जाते हैं। ट्यूब के दोनों खुले सिरों को पीवीसी ढक्कनों से बंद कर दिया जाता है ताकि बीज बिखरें नहीं। इसके साथ एक ‘यू’ आकार का एक डंडा लगा दिया गया है ताकि इसे खेत में चलाया जा सके। इस मशीन के दो मॉडल हैं- छोटे और बड़े बीजों के लिए अलग-अलग।
विद्युत परीक्षक- अनुभव के आधार पर बच्चू भाई ने एक ऐसा विद्युत परीक्षक यंत्र भी बनाया जिसकी लागत केवल 50 रुपए आई। इसके द्वारा विद्युत तारों को बिना स्पर्श कराए जांचा जा सकता है, जहां पर बिजली के तार केवल एक इंच के हो। बिजली का करंट पता चलते ही यंत्र में हल्के अलार्म के साथ एक बल्ब भी जल जाता है।
विस्फोट कराने वाला सर्किट- बच्चू भाई ने तीस वर्ष पहले मात्र सात सौ रुपए में एक ऐसा सर्किट बनाया जिसमें 500 वोल्ट बिजली के द्वारा डायनामाइट की छड़ों में हल्के विस्फोट कराकर आसानी से कुंआ खोदा जा सकता है।
बच्चू भाई को उनके इन प्रयोगों की सफलता पर भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद द्वारा स्थापित और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा स्वीकृत हनी बी नेटवर्क, अहमदाबाद की संस्थागत सहयोगी सोसायटी सतत टेक्नोलॉजीज और संस्थाओं के लिए अनुसंधान और पहल के लिए सोसायटी ‘सृष्टि’ (SRISTI) ने भी सराहा है।
खेद का विषय है कि हमारे देश में ऐसे इनोवेशन के लिए सरकारी तौर पर कोई सहायता नहीं मिलती जिससे खेती के कामों में सुधार लाया जा सके और न ही इन आविष्कारों को कोई पेटेंट दिया जाता है ताकि इन यंत्रों को बड़े पैमाने पर बनाया जा सके जिससे अन्य किसान भाई भी लाभ उठा सकें। हमारे पेटेंट कानून नए आविष्कारों को तो रजिस्टर करते हैं पर पुरानी मशीनों में सुधार करने को कोई प्रोत्साहन नहीं देते। साथ ही गरीब और कामगार लोगों की बात तो सुनते ही नहीं जबकि यही वर्ग मशीनों का प्रयोग करता है और उनमें कमियों को जानता है और इन कमियों को दूर करने के तरीके भी। जबकि अमरीका आदि देशों में ऐसे प्रयोगों को प्रोत्साहन दिया जाता है और उनके द्वारा सुझाए गए प्रस्तावों को स्वीकार करके पेटेंट प्रदान किया जाता है। यही कारण है कि वहां प्रति वर्ष सुधार की गई मशीनें प्रयोग में लाई जा रही हैं और उत्पादन में वृद्धि होती है। हमारे पेटेंट कानूनों में ऐसे संशोधनों की आवश्यकता है जो सुधारों को स्थान दे सकें।
आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी जुगाडू़ मशीनों को बनाने वालों को कुछ प्रोत्साहन मिले। उनके द्वारा बनाए गए सुधारों और नवीन आविष्कारों को भी संरक्षण मिलना चाहिए। इन्हें ‘इनोवेशन पेटेंट’ कहा जा सकता है। भारत सरकार को इस संबंध में ऐसी नीति बनानी चाहिए कि इन जुझारू लोगों की बौद्धिक संपदा को संरक्षण मिल सके जिससे इस पर आई लागत का कुछ भाग उन्हें प्राप्त हो सके।
(लेखक क्रमशः स्वतंत्र पत्रकार एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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