कुदरती खेती क्यों?

Published on
2 min read

इस तरह की खेती अपनाने के पीछे निम्नलिखित मुख्य कारण हैं।
1. रसायन एवं कीटनाशक आधारित खेती टिकाऊ नहीं है। पहले जितनी ही पैदावार लेने के लिए इस खेती में लगातार पहले से ज्यादा रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ रहा है।

2. इस से किसान का खर्चा और कर्ज बढ़ रहा है और बावजूद इसके आमदनी का कोई भरोसा नहीं है।

3. रासायनिक खाद और कीट-नाशकों के बढ़ते प्रयोग से मिट्टी और पानी खराब हो रहे हैं। यहाँ तक कि माँ के दूध में भी कीटनाशक पाये गये हैं। इसके कारण हमारा स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। इंसान और पशुओं में बांझपन बढ़ा है। बढ़ती बीमारियों, खास तौर पर कैंसर इत्यादि में, हमारे खान-पान की महत्वपूर्ण भूमिका को वैज्ञानिक और आमजन सब मानते हैं। (हालाँकि इन बीमारियों के होने में अकेले खान-पान की ही भूमिका नहीं है, खराब होते हमारे स्वास्थ्य में हमारी जीवनशैली का भी बहुत बड़ा हाथ है)। कई पक्षी और जीव-जन्तु खत्म हो रहे हैं, यानी जीवन नष्ट हो रहा है। यह भी याद रखना चाहिये कि भोपाल गैस कांड जिस फैक्ट्री में हुआ था, उस में कीटनाशक ही बनते थे।

4. रासायनिक खादों का निर्माण पेट्रोलियम-पदार्थों पर आधारित है और वे देर-सवेर खत्म होने वाले हैं। इस लिए, आज नहीं तो कल, हमें रासायनिक खादों, यूरिया इत्यादि के बिना खेती करनी ही पड़ेगी।

एक और बात पाई गई है। कुदरती खेती अपनाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले बहुत से किसान ऐसे हैं जिन्होंने पहले रासायनिक खेती भी जोर-शोर से अपनाई थी, अनेक पुरस्कार प्राप्त किये परन्तु जब कुछ समय बाद उस में बहुत नुकसान होने लगा तब उन्होंने नये रास्ते तलाशने शुरू किये और अंततः कुदरती खेती पर पहुँचे। इससे रासायनिक खेती की सीमाएँ स्पष्ट होती हैं।

इस समस्या के हल की तलाश का एक रास्ता आनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों (जीएम फसलों), जैसे बी.टी. कपास या बी.टी. बैंगन इत्यादि का भी है। जीएम फसलों का रास्ता ऐसी तकनीकों पर आधारित है जो न केवल किसानों की बड़ी और विदेशी कम्पनियों पर निर्भरता को और भी बढ़ा देगा, अपितु प्रकृति के साथ पहले से भी बड़ा खिलवाड़ है, ऐसा खिलवाड़ जो कई बार घातक सिद्ध भी हो चुका है। टमाटर में मछली के अंश मिलाने से पहले बहुत सोच-विचार और लम्बी अवधि के अध्ययनों की जरूरत है। ये अध्ययन उन कम्पनियों से स्वतंत्र होने चाहिये जो ये तकनीक ला रही हैं। दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं रहा। इसलिये ऐसी तकनीकों पर आधारित खेती को हम कुदरती या वैकल्पिक खेती में नहीं गिन रहे।

वैसे भी देश में जीएम फसलों को और बढ़ावा देने से पहले बी.टी. कपास के अनुभव की पूरी समीक्षा होनी चाहिये। कई जगह इस के दुष्परिणाम भी सामने आये हैं।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org