कुमायूँ की झीलें (Lakes of Kumaun in Hindi)

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कुमायूँ परिक्षेत्र उत्तर-पश्चिमी मध्य हिमालय में स्थित है। इस परिक्षेत्र में उत्तर प्रदेश के 4 पर्वतीय जिले सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र की जलवायु उपोष्ण कटिबन्धीय हैं तथा यहाँ अनेक मीठे जलस्रोत उपलब्ध हैं। कुमायूँ परिक्षेत्र में अनेक मीठे जल की झीलें/जलाशय हैं जो अपनी जैवविविधता तथा आर्थिक महत्ता के लिये जानी जाती है। पिछले 2-3 दशकों से विभिन्न प्रकार की गतिविधियों, विदेशी मछलियों के प्रत्यारोपण तथा अन्य मछलियों के अंधाधुंध दोहन के कारण इन झीलों का अस्तित्व संकटमय हो गया है। समय रहते यदि इन झीलों की प्रबन्धन योजना कार्यान्वित कर दी जाए तो यही झीलें भारतीय मूल की अति महत्त्वपूर्ण मछलियों के लिये उपयुक्त आवास एवं विकास के स्रोत साबित हो सकती है।

संसाधन

नैनीताल एक सुन्दर मनोरम पर्यटक स्थल है। नैनीताल जनपद (2135 वर्ग कि.मी. क्षेत्र) में ही कुमायूँ की प्रमुख झीलें स्थित हैं। भौगोलिक रूप से इस क्षेत्र की अक्षांशीय सीमाएँ 280 44’ व 330 49’ उत्तरी देशान्तर तथा 710 45’ व 810 01’ पूर्वी देशान्तर है। सभी झीलें समुद्र तल से 1400-2000 मी. की ऊँचाई पर होने के कारण शीत जल क्षेत्र में वर्गीकृत हैं। नैनीताल जनपद को ‘परगना छकाता’ के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है- ‘साठ झीलें’। वर्तमान में इनमें से कुल 9 झीलें ही प्रमुख हैं जो नैनीताल, भीमताल, नौकुचियाताल, सातताल, खुर्पाताल, नल दमयन्ती ताल आदि के नाम से जानी जाती है। अन्य झीलें भूस्खलन मिट्टी के कटाव तथा शहरीकरण के कारण नष्ट हो गयी हैं। कुमायूँ की झीलों में नैनीताल, भीमताल, नौकुचियाताल, सात ताल, खुर्पाताल, दमयन्ती ताल आदि का बहुत महत्व है। इन नामों से संयुक्त ‘ताल’ शब्द कुमायूँनी भाषा से उद्धृत है। तड़गताल, श्यामलाताल, अछारी ताल, सूखाताल आदि कुमायूँ क्षेत्र के कुछ शुष्क मानसूनी तालाब हैं जो सामान्यतः वर्षाऋतु में बारिश के पानी के एकत्र हो जाने से निर्मित हो जाते हैं तथा इनका प्रयोग स्थानीय लोगों द्वारा मत्स्य पालन सहित दूसरे अन्य उद्देश्यों के लिये भी किया जाता है। कुमायूँ क्षेत्र की जलवायु ठंडी है। यहाँ पर ग्रीष्मकालीन में दक्षिण-पश्चिम मानसूनों द्वारा वर्षा होती है। (औसत वर्षा 1500-2000 मिलीमीटर) कुमायूँ क्षेत्र की झीलें घने वन तथा पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे होने के कारण पानी तथा जैविक द्रव्यों से परिपूर्ण हैं। पर्वतीय क्षेत्र में प्राकृतिक झीलों के अतिरिक्त कुमायूँ क्षेत्र के तराई वाले इलाकों में अनेक जलस्रोत उपलब्ध हैं। इनमें तुमरिया, बैगुल, धौरा, बौट, हरिपुरा तथा नानक सागर प्रमुख हैं। ये मत्स्य उत्पादन के अतिरिक्त सिंचाई के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं।

पारिस्थितिकी स्तर

कुमायूँ क्षेत्र की सभी झीलें क्षारीय हैं परन्तु नौकुचियाताल में अम्लीयता भी देखी गयी है। जल तापक्रम के अनुसार इन झीलों को ‘वार्म मोनोमिटिक’ के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। सभी झीलों में विभिन्न जलस्तर पर तापक्रम गर्मियों में अलग-अलग तथा सर्दियों में समान देखा गया है। किन्तु 40 सेन्टीग्रेड से कम तापक्रम कभी अंकित नहीं किया गया। यद्यपि खुर्पाताल छोटा एवं उथला है तथापि यह बार-बार होने वाले मौसमी परिवर्तनों के प्रति अधिक संवेदी है, जिसके परिणामस्वरूप तापीय चक्र अनियमित हो जाता है। इन झीलों के पौष्टिक स्तर पर एकत्रित आंकड़े उनके पोषक स्तर को प्रतिबिम्बित करते हैं, किन्तु झील में अत्यधिक नगरीकरण के कारण कार्बनिक पदार्थों के एकत्रित हो जाने से ‘एनोक्सिक’ परिस्थितियाँ (Anoxic Conditions) उत्पन्न हो गयी है। इन कारणों से नौकुचियाताल व नैनीताल झील में प्रत्येक सर्दियों में हजारों मछलियाँ मर जाती हैं। इस क्षेत्र की अन्य झीलों में पोषक तत्वों का स्तर तुलनात्मक रूप में सामान्य से कम हैं तथा उन्हें ‘मिसोट्रौफिक’ (सामान्य झील) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

जैव विविधता

कुमायूँ की झीलों में उपस्थित प्लवकों की संख्या उष्ण कटिबन्धीय मौसम को प्रदर्शित करती है जो प्रायः उप तापीय स्थितियों से मिलती जुलती है। इसके अतिरिक्त प्रजातीय विभिन्नता तथा प्रजातीय संयोजन उपोष्ण एवं उपोष्णीय जल की विशिष्टताओं को भी प्रतिबिम्बित करता है। इन झीलों में प्रचुर मात्रा में कार्बनिक पदार्थों के होने के कारण प्रजातीय संयोजन भी अलग है। नैनीताल झील में क्लोरोफाइसी तथा साइनोफाइसी वर्ग समूह के शैवाल अत्यधिक मात्रा में होने के कारण जल घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा बिल्कुल शून्य है। भीमताल व सातताल में इस प्रकार के शैवाल अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध न होने के कारण जल सामान्य है परन्तु खुर्पाताल में पारिस्थितिकी कारणों से डाइनोफ्लैजेलेट्स प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।

कुमायूँ की झीलों का तटवर्ती क्षेत्र जलीय पौधों से परिपूर्ण है जिनमें माइक्रोफाइट्स पोलिगोनम, हाइड्रिला, पोटामोगेटोन, मीरियोफिलम, लैम्ना आदि प्रमुख है। शुष्क भार के आधार पर इन जलीय पौधों का उत्पादन 50.0-675.0 ग्राम प्रति वर्गमीटर है।

इन झीलों की जूप्लैंक्टन संख्या में रोटिफर्स (Rotifers) क्लैडोसिरनस (Cladocerans) तथा कोपिपोडस (Copepodes) प्रमुख वर्ग हैं। झील के तल में पाए जाने वाले प्राणी समूहों में कम ऑक्सीजन तथा प्रदूषण सहन करने वाले प्राणी वर्ग की संख्या अधिक है। उदाहरणतः ट्यूबिफैक्स व काइरोनॉमस प्रमुखता से पाए जाते हैं। नैनीताल झील में इफैमिरोप्टेरा की अनुपस्थिति इसके अत्यधिक प्रदूषण स्तर की ओर संकेत करती है। ओलिगोकीट्स एवं डिप्टेरा सभी झीलों के प्रमुख घटक हैं।

जल की बाह्य सतह पर फाइटोप्लैंक्टन उत्पादन का आकलन 280.0 भीमताल 1600 (नैनीताल) मिग्रा. सी एम -3 डी-1 के बीच आंका गया है। नैनीताल झील अत्यधिक प्रदूषित है तथा प्रदूषित होने के कारण मछलियाँ जूप्लैंक्टनों का उपयोग करने में असमर्थ हैं। इसी कारण झील के तल में ऑक्सीजन की मात्रा शून्य है।

मत्स्य एवं मात्स्यिकी

कुमायूँ की झीलों में मुख्यतः महाशीर (Tor, Putitora, Tor tor), कॉमन कार्प (Cyprinus carpio Sepcularis and Communis) तथा भारतीय मूल की कार्प (Labeo rohita, Cirrhinus mrigala and Catla catla) पायी जाती है। भीमताल तथा सात ताल झील मत्स्य उत्पादन में प्रमुख हैं। राज्य मत्स्य विभाग के तत्वाधान में डाले जाने वाले गिलनेट या काँटो के माध्यम से पकड़ी जाने वाली मछलियों में भीमताल का योगदान सर्वोपरि है। सात ताल, नौकुचियाताल व खुर्पाताल झीलों में भी मत्स्य उत्पादन सामान्य से अधिक है, इनमें पायी जाने वाली मछलियों में हिमालयन महाशीर, कॉमन कार्प तथा भारतीय मूल की कार्प मुख्य है। इन मछलियों से प्राप्त होने वाला मत्स्य उत्पादन व्यावसायिक नहीं कहा जा सकता। पकड़ी गयी मछलियाँ कम संख्या में होने के कारण स्थानीय स्तर पर ही प्रयोग में लायी जाती है। नैनीताल, भीमताल व सातताल झील में जलीय पौधों, शैवाल आदि के उपयोग हेतु कुछ विदेशी मछलियाँ जिनमें सिल्वर कार्प, (Hypophthalmichthys molitrix) ग्रास कार्प (Ctenopharyngodon idella) तथा अन्य प्रजाति की मछलियों का प्रत्यारोपण किया गया है। इन प्रजातियों के प्रत्यारोपण से मत्स्य उत्पादन या झील की मास्त्यिकी पर कोई व्यावसायिक प्रभाव नहीं पड़ा है।

रा. शी.मा. अनु. केन्द्र द्वारा सम्पादित मत्स्य संग्रहण के सांख्यिकी आंकड़ों से पता चलता है कि कुमायूँ की झीलों में महाशीर मछली के उत्पादन में कमी आयी है जबकि विदेशी मछलियों में शनैः-शनैः वृद्धि हुयी है। नैनीताल झील अत्यधिक प्रदूषण के कारण मछलियों की उत्तरजीविवता तथा उत्पादन के अनुकूल नहीं रह गयी है। महत्त्वहीन तथा छोटे आकार की कुछ मछलियाँ जैसे-पुंटीयस तथा मलेरिया रोकथाम हेतु प्रत्यारोपित गैम्बुसिया ही झील के किनारों पर देखी जा सकती है। भारतीय मूल की ट्राउट (असेला) जो कभी झील में बहुतायत पायी जाती थी आज उसका कोई अस्तित्व नहीं है।

कुमायूँ की झीलों से सम्बन्धित विचार योग्य बातें

- पिछले कुछ वर्षों में पर्यटकों की अत्यधिक आवाजाही, अवैज्ञानिक, तरीकों से मल-जल का निस्तारण, शहरीकरण आदि अन्य कारणों से नैनीताल झील अत्यधिक प्रदूषित हो गयी है। इस क्षेत्र की दूसरी झीलें अभी सामान्य अथवा सामान्य से नीचे स्तर पर हैं। सभी झीलों के विकास हेतु वैज्ञानिक रूप से बनायी गयी प्रबन्धन योजना का होना अति-आवश्यक है।

- वैज्ञानिक आधार पर बनायी गयी कार्यकारी योजना से ही इन झीलों का पारिस्थितिकी स्तर गिरना व जैव विविधता में ह्रास रोका जा सकता है।

- इन झीलों में पायी जाने वाली मत्स्य सम्पादा तथा उत्पादकता ठण्डे क्षेत्र में होने के कारण कम है फिर भी इन जलस्रोतों का विकास महाशीर तथा अन्य भारतीय मूल की मछलियों को संरक्षित रखने हेतु उचित कदम उठाना आवश्यक है, साथ ही भीमताल, खुर्पाताल व इसी वर्ग की अन्य झीलों में तेजी से बढ़ने वाली मत्स्य प्रजातियों का प्रत्यारोपण क्षेत्र में बढ़ती हुयी मछली की मांग को पूरा करने में सहायक हो सकता है।

- यह अति आवश्यक है कि झीलों का प्रबन्धन पारिस्थितिकी आधार पर किया जाए। यह भी सम्भव है कि भीमताल झील महाशीर मछली के लिये संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए, जिससे इसके अस्तित्व को बनाए रखा जा सके।

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