जैविक एवं प्राकृतिक खेतीः राष्ट्रीय प्रयास एवं योजनाएं (भाग 1)
भारत में वर्ष 2001 को रसायनमुक्त एवं टिकाऊ खेती के परिवर्तन की तरफ स्वर्णिम वर्ष माना जाता है। इस वर्ष से राष्ट्रीय जैविक कृषि नीति, जैविक कृषि पर टास्कफोर्स, राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम का प्रदर्शन तथा जैविक कृषि स्टेण्डर्ड के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये गये। वर्ष 2025 से रसायनमुक्त खेती के उत्पादन एवं मार्केटिंग को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के आठवें संस्करण द्वारा प्रमाणीकरण के नियमों में आसानी, पारदर्शिता को बढ़ावा, एनपीओपी पोर्टल, जैविक प्रमोशन पोर्टल, ट्रेसनेट 2.0, एपीडा पोर्टल तथा एग्रीएक्सचेन्ज पोर्टल की शुरुआत की गई। इससे जैविक खेती कार्यकारी तंत्र को और अधिक सरल एवं सुगम बनाने में मदद मिलेगी। वर्तमान में रसायनमुक्त खेती के कार्यक्रमों एवं योजनाओं से अगले तीन वर्षों में भारत से जैविक उत्पादों का निर्यात लगभग 20 हजार करोड़ रुपये पहुंचने का अनुमान है।"
रसायनमुक्त खेती (जैविक एवं प्राकृतिक) विविधीकृत कृषि की एक विशेष पद्धति है। इसमें अप्राकृतिक, संश्लेषित तथा प्रदूषण कारक पदार्थों या आदानों के उपयोग का निषेध होता है। गुणवत्ताकारी खाद्य उत्पादों के उत्पादन हेतु विशेष मानकों का प्रायोजन है। यह कृषि पद्धति अपने फार्म पर ही उत्पादित आदानों तथा प्राकृतिक जैविक प्रक्रियाओं के सम्पूर्ण मानकों के उपयोग पर आधारित है।
जैविक-कृषि दीर्घकालीन फसल उत्पादन में टिकाऊपन के साथ-साथ उच्चतम संसाधन दक्षता, प्रति इकाई क्षेत्र अधिक आय, प्रदूषण रहित खाद्य पदार्थ एवं रोजगार उपलब्ध करवाने में सहायक होती है। गांव व देश को स्वावलंबन एवं खुशहाली की तरफ बढ़ाती है। प्रमाणीकरण के विशेष मानकों, सही जैविक तकनीकों की जानकारी एवं अनुसंधान का अभाव तथा किसानों की जागरूकता तथा बाजार मांग की सही जानकारी जैविक कृषि से व्यापारीय लाभ की दर को प्रभावित करते हैं।
भारत में जैविक कृषि की व्यापक संभावनाएं हैं। इसके तहत वर्षा आधारित तथा सिंचित शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्र, पहाड़ी इलाके, बागवानी फसलें, चाय, कॉफी, बीजीय मसाले, फूल एवं सब्जियों आदि में आसानी से जैविक खेती की जा सकती है। पर्यावरण लागत तथा स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता बढ़ने के साथ विदेशों के अलावा भारत के शहरी क्षेत्रों में लोगों का रुझान रसायनमुक्त उत्पादों की तरफ बढ़ रहा है। वर्तमान में खेती की विधियों एवं प्रक्रियाओं को दो प्रभागों में बांटा जा सकता है, रसायनयुक्त तथा रसायनमुक्त खेती। जैविक तथा प्राकृतिक कृषि मुख्य एवं प्रचलित रसायनमुक्त खेती की पद्धतियां हैं, हालांकि रिजनरेटिव खेती, संरक्षण खेती, इकोलोजिकल फार्मिंग के तहत रसायनों का उपयोग किया जाता है, मगर वर्जित नहीं है। इन विधियों में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं सम्यकता पर सापेक्ष प्राथमिकता दी जाती है।
रसायनमुक्त खेती की वर्तमान स्थिति
रसायनमुक्त उत्पादों को पर्यावरण और सामाजिक रूप से जिम्मेदार दृष्टिकोण के साथ रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना कृषि की एक प्रणाली के तहत उगाया जाता है। विश्व के 188 देशों में जैविक खेती की जाती है। इसके तहत लगभग 4.5 मिलियन किसानों द्वारा 96 मिलियन हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि का जैविक तरीके से प्रबंधन किया जाता है।
जैविक खेती का बाजार वर्ष 2023 में 187.84 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 228.35 बिलियन डॉलर था। जैविक सब्जी की खेती का बाजार वर्ष 2023 में 8.69 बिलियन डॉलर के आसपास था। वर्ष 2022 में दुनिया की 2 प्रतिशत कृषि भूमि का प्रबंधन जैविक तरीके से किया गया था। भविष्य में रोजगार के अवसर और जैविक कृषि बाजार की होने के कारकों को चित्र में दर्शाया गया है।
भारत में विभिन्न कृषि जलवायु परिस्थितियों के कारण सभी प्रकार के रसायन मुक्त उत्पादों के उत्पादन की अधिक संभावना है। देश के कई हिस्सों में स्वतः जैविक एवं प्राकृतिक खेती की विरासत में मिली परंपरा एक अतिरिक्त लाभ है। यह घरेलू और निर्यात क्षेत्र में लगातार बढ़ रहे बाजार का लाभ उठाने के लिए अधिक रोजगार के अवसरों का वादा करता है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार दुनिया की जैविक कृषि भूमि के मामले में भारत का स्थान दूसरा और कुल उत्पादकों की संख्या के मामले में पहला है।
पारंपरिक कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में बढ़ती वैश्विक जागरूकता, साथ ही बढ़ते स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ता आधार ने जैविक खेती को भारतीय कृषि परिदृश्य में सबसे आगे ला दिया है। रसायनमुक्त उपज की मांग, टिकाऊ कृषि प्रथाओं का पालन और स्वस्थ जीवन शैली की इच्छा जैविक खेती क्षेत्र के विकास को प्रेरित कर रही है।
हालांकि, जैविक तथा प्राकृतिक खेती के तरीकों को अपनाना अपनी चुनौतियों के बिना नहीं है। किसानों के बीच सीमित जागरूकता, पारंपरिक से रसायनमुक्त तरीकों में लंबा संक्रमण काल और मानकीकृत प्रमाणन प्रक्रियाओं की कमी उद्योग के विकास में बाधा उत्पन्न करती है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और उद्योग के हितधारकों द्वारा जैविक किसानों के लिए एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए ठोस प्रयास किये जा रहे हैं। अनुमान बताते हैं कि जैविक खेती से रोजगार के नए अवसर खुलेंगे और भारत में करोड़ों उपभोक्ताओं के लिए अवसर पैदा होंगे। आगामी तीन वर्षों में भारत का जैविक उत्पाद निर्यात लगभग 20,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।
इसे सकारात्मक सरकारी नीतियों एवं बढ़ती मांग के कारण भविष्य में और अधिक बढ़ने की संभावना है।
रसायनमुक्त खेती के प्रोत्साहन हेतु सरकारी प्रयास एवं योजनाएं जैविक खेती वर्ष 1993 में कृषि मंत्रालय द्वारा गठित तकनीकी समिति ने पहली बार सैद्धान्तिक रूप में यह अनुमोदित किया कि भारत में रासायनिक पदार्थों के खेती में अधिक उपयोग को प्रबंधित करना चाहिए। क्रमबद्ध तरीके से इनका उपयोग कम किया जाना चाहिए। जैविक कृषि के सिद्धांतों को सरकारी दस्तावेज में स्वीकार करने के अलावा क्रियान्वयन रूप में लागू करना चाहिए।
वर्ष 1999 में कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा भारत में जैविक कृषि की संभावनाओं एवं कार्ययोजना का पता लगाने के लिए श्री कुंवरजी भाई जाधव की अध्यक्षता में एक कार्यदल का गठन किया गया, जिसने वर्ष 2001 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। अप्रैल, 2000 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम की शुरुआत की गई। वर्ष 2001 में राष्ट्रीय एक्रेडिशन कार्यक्रम विधिवत रूप से घोषित किया गया। इन कार्यक्रमों के तहत ऑर्गेनिक फार्मिंग के नियमों को बनाया गया। इन नियमों के तहत खेती एवं पशुपालन दोनों के संबंध में नियम बनाये गये हैं।
भारत सरकार के विदेश व्यापार कार्यालय द्वारा दिनांक 11 जून, 2001 को पब्लिक नोटिस संख्या 19 (आर.ई.-2001) वर्ष 1997-2002 द्वारा 1 जुलाई 2001 से ऑर्गेनिक प्रोडक्ट के रूप में इन्डिया ऑर्गेनिक लोगो के तहत निर्यात करने के लिये नये नियमों को लागू कर दिया गया है। ऑर्गेनिक प्रोडक्ट के प्रमाणीकरण के लिए चार संस्थाओं; स्पाईस बोर्ड, टी बोर्ड, कॉफी बोर्ड एवं एपीडा को अधिकृत एजेन्सी बनाया गया है। एपीडा ने जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए चावल, गन्ना तथा अनन्नास के आदर्श जैविक फार्म स्थापित किए हैं।
दसवीं पंचवर्षीय योजना के तहत भारत सरकार ने जैविक कृषि को राष्ट्रीय प्राथमिकता का क्षेत्र घोषित किया है। इसके तहत जैविक कृषि पर कार्यदल की रिपोर्ट के आधार पर जैविक कृषि पर राष्ट्रीय कार्यक्रम लागू किया जा रहा है। स्पाईस बोर्ड देश में जैविक मसालों के निर्यात के लिए विशेष योजनायें लागू कर रहा है। महाराष्ट्र के आस्था गांव को देश का पहला जैविक गांव घोषित किया गया तथा राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के 3 एचएच गांव को राजस्थान का पहला तथा देश का दूसरा जैविक गांव बनाया गया। इस प्रकार सामूहिक स्तर पर भी जैविक कृषि को प्रोत्साहन देने के प्रयास किए गये। भाकृअनुप, नई दिल्ली द्वारा जैविक कृषि पर विशेष जोर दिया जा रहा है। देश में जैविक कृषि अनुसंधान के बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान परियोजनाएं चलाई जा रही हैं तथा राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक जैविक कृषि कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं।
भारत में वर्तमान में प्रमाणित जैविक कृषि, चाय या कॉफी के बड़े बागानों तक सीमित है, परन्तु कई राज्यों में मसाले, चीनी, बासमती, कपास, गेहूं, आम इत्यादि क्षेत्रों में छोटे-छोटे प्रयास प्रगति पर हैं। अब तक मध्य प्रदेश, राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तरांचल एवं तमिलनाडु के अलावा 11 से अधिक राज्यों की जैविक कृषि नीति स्पष्ट कर ली है।