संकट के बीज

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कीटों के लगातार हमलों, बीजों के बढ़ते मूल्य और उपज का उचित दाम नहीं मिलने के कारण किसानों ने भारत की पहली आनुवंशिक रूप से परिवर्तित (जीएम) फसल यानी बीटी कॉटन से किनारा करना शुरू कर दिया है

इस शताब्दी के शुरुआती साल भारत में कपास किसानों के लिये काफी उम्मीदें लेकर आए थे। वर्ष 2002 में बीटी कॉटन नाम के आनुवंशिक रूप से बदले हुए (जीएम) बीज आने के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश बन गया। इन बीजों की वजह से कपास की खेती में कीटनाशकों पर होने वाले भारी खर्च में काफी कमी आई। आज देश के 96 प्रतिशत कपास क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कम्पनी मोनसैंटों का बीटी कॉटन उगाया जाता है।

लेकिन आज देश में बीटी कॉटन उगाने वाले 80 लाख किसान एक नई मुसीबत से जूझ रहे हैं। पिंक बॉलवर्म नाम के जिस कीट से बचाव के लिये बीटी कॉटन को लाया गया था, आज वही कीट बीटी कॉटन को तबाह कर रहा है। इसके अलावा कई दूसरे कीटों से भी बीटी कॉटन को इतना नुकसान पहुँच रहा है कि देश भर में किसान इसका विकल्प तलाश रहे हैं।

नागपुर स्थित केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान (सीआईसीआर) की एक रिपोर्ट में डाउन टू अर्थ ने पाया है कि देशभर के कपास क्षेत्रों में पिंक बॉलवर्म का भयंकर प्रकोप है। इससे भी चिन्ताजनक बात यह है कि सभी कपास उत्पादक राज्यों में कीटों ने बीटी कॉटन के लिये प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर ली है। सीआईसीआर पिछले 15 वर्षों से बीटी कॉटन पर नजर रखे हुए है। संस्थान ने फसल का नवीनतम प्रतिरोधी आकलन 2015-16 में किया था।

शोधकर्ताओं को महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के 46 जिलों में पिंक बॉलवर्म के लार्वा मिले। इन जिलों में मोनसेंटो के बॉलगार्ड-I और बॉलगार्ड-II बीजों की फसलों को नुकसान पहुँचने की जानकारी मिली थी। अध्ययन में पाया कि कीट का प्रकोप सभी जिलों में फैल चुका था, जिससे इन राज्यों में कपास की फसल को व्यापक नुकसान पहुँचा।

हालाँकि, वर्ष 2012 से ही पिंक बॉलवर्म के हमलों की जानकारियाँ मिल रही हैं लेकिन सर्वाधिक प्रकोप अक्टूबर, 2015 से जनवरी, 2016 के दौरान दर्ज किया गया। देश के सबसे बड़े कपास उत्पादक राज्य गुजरात में इसकी मार सबसे ज्यादा पड़ी। जनवरी 2016 तक राज्य की 25 से 100 प्रतिशत कपास की फसलों को इस कीट से नुकसान पहुँचा। रिपोर्ट के अनुसार, अकेले गुजरात में पिंक बॉलवर्म के चलते वर्ष 2014-15 में 5,712 करोड़ रुपये और 2015-16 में 7,140 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सीआईसीआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार, गुजरात में स्थिति और बिगड़ने वाली है। अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर उन्होंने डाउन टू अर्थ को बताया कि इस साल दिसम्बर तक राज्य को भारी संकट का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि कपास की फसल पूरी तरह खराब होने की आशंका है।

भारत के दक्षिणी राज्यों में, सीआईसीआर ने पाया कि दिसम्बर 2015 तक सभी तरह की बीटी कॉटन में पिंक बॉलवर्म के प्रकोप का खतरा पैदा हो गया है। आंध्र प्रदेश में चौथी और पाँचवी चुनाई के दौरान गुंटूर में 65.6 प्रतिशत, कुरनूल में 55.7 प्रतिशत, अनंतपुर में 41.57 प्रतिशत, प्रकासम में 33.6 प्रतिशत और कडप्पा में 29.33 प्रतिशत कपास में कीट का प्रकोप पाया गया। इससे पूरी फसल खराब होने की आशंका के चलते किसानों ने कपास चुनने के लिये मजदूर भी नहीं लगाए।

कीटों की चेतावनी

“सात-आठ साल पहले (गुजरात में) एक एकड़ बीटी कपास पर कीटनाशकों की लागत करीब 50 रुपये आती थी, लेकिन आज प्रति एकड़ 2,500 से 3,000 रुपये का खर्च आता है जो देसी बीजों पर होने वाले कीटनाशकों के खर्च से अधिक है।”
“अगर किसानों को अच्छी विकल्प मिला तो अगले दो वर्षों में कपास से मुँह मोड़ लेंगे।”

कपास के हमलावर

केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान ने कीट प्रतिरोध के लिये 39 जिलों में की गई जाँच में पाया कि गुलाबी बॉलवर्म ने 20 जिलों में बॉलगार्ड के प्रति, 18 जिलों में क्राई2एबी के प्रति और 15 जिलों में बॉलगार्ड-II के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लिया है

गुजरात

गुलाबी बॉलवर्म के प्रकोप वाले जिले (जनवरी 2016 के तीसरे हफ्ते तक) :

वडोदरा

72%

सूरत

92%

आनन्द

82%

सुरेंद्रनगर

92%

अहमदाबाद

100%

अमरेली

100%

राजकोट

100%

भावनगर

56%

बॉलगार्ड-I, बॉलगार्ड और क्राई2एबी के प्रति गुलाबी बॉलवर्म का प्रतिरोध इन जिलों में पाया गया : आनंद, अहमदाबाद, सुरेंद्रनगर, भावनगर, भरूच, वडोदरा, अमरेली, जूनागढ़

महाराष्ट्र

गुलाबी बॉलवर्म के प्रकोप वाले जिले (दिसम्बर 2015 के दूसरे हफ्ते तक) :

औरंगाबाद

25%

जालाना

24.72%

धुले

82.96%

जलगाँव

60%

नंदुरबार

64%

यवतमाल

72%

अमरावती

88%

बुलढाना

19-86%

रहुरी

20-60%

अकोला

76%

नांदेड़

100%

नागपुर

4%

बॉलगार्ड-I, बॉलगार्ड और क्राइ2एबी के प्रति गुलाबी बॉलवर्म का प्रतिरोध इन जिलों में पाया गया : नंदुरबार, नांदेड़, रहुरी

आंध्र प्रदेश

गुलाबी बॉलवर्म के प्रकोप वाले जिले (दिसम्बर 2015 के दूसरे हफ्ते तक) :

गुंटूर

65.6%

करनूल

55.7%

अनंतपुर

41.57%

प्रकासम

33.6%

कड़प्पा

29.33%

कृष्णा

6.66%

गुलाबी बॉलवर्म का प्रतिरोध इन जिलों में पाया गया : गुंटूर करनूल

तेलंगाना

गुलाबी बॉलवर्म के प्रकोप वाले जिले (दिसम्बर 2015 के दूसरे हफ्ते तक) : राज्य के 90 प्रतिशत क्षेत्र में कपास की फसल नष्ट कर दी गई।

आदिलाबाद

52.96%

खम्मम

32-100%

वारंगल

60-100%

करीमनगर

68-96%

गुलाबी बॉलवर्म का प्रतिरोध इन जिलों में पाया गया : वारंगल, आदिलाबाद, खम्मम, करीमनगर

मध्य प्रदेश

गुलाबी बॉलवर्म के प्रकोप वाले जिले (जनवरी 2016 के पहले हफ्ते तक) :

खंडवा

100%

बॉलगार्ड-I, बॉलगार्ड और क्राई2एबी के प्रति गुलाबी बॉलवर्म का प्रतिरोध इस जिले में पाया गया : खंडवा

“हम कम-से-कम एक-चौथाई खेतों में कपास उगाया करते थे, लेकिन इस साल कपास के बजाय मूँगफली और बाजरा लगाया है।”
“इस वर्ष स्थानीय देशी कपास को मजबूती देने का अच्छा मौका था। लेकिन इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य में की गई मात्र 116 प्रतिशत की वृद्धि बहुत कम है। इसके चलते स्थानीय किस्मों का चुनाव करने वाले किसान अब पछता रहे हैं।”
“बीजों की ऊँची कीमत के साथ ही कम पैदावार, उत्पादन में अन्तर और कीटनाशकों के लगातार प्रयोग के कारण कपास की खेती के खतरे बहुत बढ़ गए हैं।”

जीएम फसलों के कारोबार में गिरावट

“कम्पनियों के अधिग्रहण और विलय के मामलों में उछाल का मुख्य कारण कृषि व्यवसाय में मुनाफे की कमी है। कम्पनियाँ अपने खर्चों में कमी कर रही हैं और साथ ही साथ नए बाजारों में घुसने के रास्ते तलाश रही हैं।”

‘जल्द बड़े बदलाव की उम्मीद’


भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान (सीआईसीआर) के निदेशक केआर क्रांति ने डाउन टू अर्थ को साक्षात्कार में बताया कि आने वाले वर्षों में देशी कपास और गैर-बीटी कपास के बीजों की माँग बढ़ने वाली है। साक्षात्कार के कुछ अंश:


गैर-बीटी कपास की तरफ किसानों के झुकाव पर


पिछले 8 वर्षों में पहली बार कपास की बुआई-पट्टी वाले उत्तरी राज्यों में 72,280 हेक्टेयर में देसी कपास स्थानीय किस्में बोयी गईं। यदि देशी बीजों की समुचित आपूर्ति हो जाती, तो यह बुवाई क्षेत्र और बढ़ सकता था। इस बदलाव का मुख्य कारण वर्ष 2015 में सफेद मक्खी का आक्रमण और पत्तियाँ मुरझाने का (लीफ कर्ल) रोग था, जो इन कीड़ों के माध्यम से फैलता है।


कीटों का मुकाबला करने में बीटी कपास की विफलता पर


भारत में मात्र 6 वर्ष में ही पिंक बॉलवर्म ने कीटनाशकों से लड़ने की क्षमता विकसित कर ली। अन्य देशों में 20 साल बाद भी पिंक बॉलवर्म बीटी कॉटन के खिलाफ यह क्षमता हासिल नहीं कर पाया है। हमारे यहाँ बीटी कॉटन फसल की समयावधि अधिक (180 से 240 दिन) होने के कारण ऐसा हुआ। दूसरे देशों में इस फसल की समयावधि छोटी या मध्यम (150 से 180 दिन) ही है। पिंक बॉलवर्म सर्दियों में अधिक नुकसान करता है, बुआई के पहले 130-140 दिन के दौरान। बीटी कपास की भारतीय हाइब्रिड किस्मों में बॉलवर्म को जिन्दा रहने के लिये 60-100 दिन अधिक मिल जाते हैं, जिससे उनमें प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है।


भारत में एक विशेष बात यह भी है कि बीटी हाइब्रिड कपास के पौधों पर नॉन-बीटी बीज भी विकसित हो जाते हैं। ऐसा दूसरे देशों में नहीं होता। बीटी और गैर-बीटी बीजों के मिश्रण से बॉलवर्म को बायोटेक जहर के खिलाफ प्रतिरोध विकसित करने की आदर्श स्थिति मिल जाती है।


देशी कपास के लागत लाभ पर


देशी कपास की स्थानीय किस्में कम लागत पर भी अच्छा उत्पादन दे सकती हैं। लेकिन उत्तरी भारत की स्थानीय किस्म में रेशे का फाइबर छोटा होता है। जिसका उपयोग कताई के बजाय गद्दे, डेनिम, दैनिक और चिकित्सकीय उपयोग में आने वाली रुई में होता है। इसलिये इसका बाजार सीमित है। हालाँकि देशी और गैर-बीटी कपास के बुवाई क्षेत्र में वृद्धि कम है, लेकिन पिछले कई सालों में एक बदलाव का संकेत मिला है। आने वाले कुछ वर्षों में मैं एक सशक्त बदलाव की उम्मीद करता हूँ।

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