सूखे में आजीविका का साधन बनी कछार की खेती

सूखे में आजीविका का साधन बनी कछार की खेती

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नदी किनारे की कछार भूमि पर बरसाती जंगली सब्जियों की खेती छोटी जो वाले किसानों के लिए वर्ष भर आय का स्रोत बनी रहती है।

संदर्भ

बरसात के समय जंगल में बहुत सी जंगली सब्ज़ियाँ उग आती हैं, जो औषधीय दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण बाजार मूल्य भी अधिक रखती हैं। टेंटी का अचार बनाया जाता है, जिसे खाने से वात एवं श्वांस रोग में आराम मिलता है। ऐसे समय में जबकि पूरा बुंदेलखंड सूखाग्रस्त हो, इन जंगली सब्जियों को एकत्र कर लोग अपनी आजीविका चलाते हैं। वे इसे अपने घरेलू खाने के प्रयोग में लाते हैं और बाजार में बेचकर अच्छी आय भी प्राप्त करते हैं। इसके साथ ही इन सब्जियों का प्रसार नदी किनारे कछार की भूमि पर कर के कई परिवार अपने आय के स्रोत को वर्ष भर सुरक्षित रखते हैं। उनको पलायन नहीं करना पड़ता।

प्रक्रिया

पाई जाने वाली सब्ज़ियाँ

जंगली सब्जियों में ककोरा, जंगली करेला, टेंटी आदि।

कछार की खेती

बरसात के बाद नदी का पानी कम होने के बाद नदी के ऊपरी हिस्से में जो ज़मीन निकल आती है, उसे कछार कहते हैं ।

खेत की तैयारी

इस ज़मीन की जुताई हल-बैल से नहीं की जाती है।

बीज

देशी बीजों की आवश्यकता होती है।

बीज की बुआई

ज़मीन पर गड्ढे बनाकर उसमें लौकी, तुरई, खीरा, ककड़ी, ककोरा, जंगली करेला, टेंटी के बीज डाल दिये जाते हैं। प्रत्येक गड्ढे की आपस में दूरी 1 मीटर तथा गड्ढे की गहराई 0.5 मीटर होती है।

सिंचाई

इस ज़मीन में अधिक गड्ढा खोदने पर उसमें पानी निकल आता है। उसी पानी से पौधों की पानी की आवश्यकता पूर्ति की जाती है।

खेत की रखवाली

मुख्य रूप से नदी के किनारे होने के कारण जानवरों से बचाना पड़ता है। इसके लिए खेत के चारों तरफ बाड़ लगाते हैं, जो जंगल के कटीले पेड़ों को काटकर बनाई जाती है। इस प्रकार खेत की सुरक्षा की जाती है।

संसाधन

इस खेती के लिए विशेष संसाधन की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सिर्फ खुरपी, फावड़ा एवं कुदाल से ही यह पूरी खेती होती है।

मौसमी विश्लेषण

जंगली सब्बी/कछार की खेती से प्राप्त सब्जियों का मौसमी विश्लेषण निम्नवत् है-

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