ज़मीन को बनाएं उपजाऊ
ज़मीन को बनाएं उपजाऊ

धरती की उपजाऊ क्षमता को कैसे बनाएं

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भारत वर्ष में हरित क्रांति के आने के बाद से देश अन्न के मामले में अत्मानिर्भर हुआ है। किसान भाइयों ने खेती की उत्तम तकनीकें अपनाकर न केवल फसलों के उत्पादन में वृद्धि की है बल्कि खेती का व्यवसायीकरण कर अपनी आमदनी को भी कई गुना बढ़ाया है। खेती के व्यवसायीकरण के दौरान कई नए आयाम खेती के साथ जुड़ गए, जिनमें प्रमुख हैं : 1. संकरित या हाइब्रिड बीजों को अपनाना 2. रासायनिक खादों का प्रयोग 3. पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल 

नए संशोधित अतः संकरित बीजों के बढ़ते प्रयोग 

इससे किसान भाइयों की निर्भरता विशेषतः रासायनिक खादों पर बढ़ती चली गई और इसके बिना ज्यादा उत्पादन लेना मुश्किल होता चला गया। इन रासानिक खादों में भी यूरिया और डी.ए.पी. आज सर्वाधिक लोकप्रिय रासायनिक उर्वरक बन गए हैं। उत्तर भारत के कुछ प्रदेश जैसे पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, भारत में सबसे ज्यादा रासायनिक खादों का प्रयोग करने वाले प्रदेश बन चुके हैं। लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि अब इन प्रदेशों में फसलों के प्रति एकड़ उत्पादन में कोई विशेष बढ़ोतरी नहीं हो रही। आइये जानते हैं इसके कुछ प्रमुख कारण : 

  • 1. रासायनिक खादों के लगातार प्रयोग से धरती के pH में परिवर्तन तथा मिट्टी का अम्लीए या क्षारीय होना। 

  • 2. संकरित अथवा संशोधित बीजों के प्रयोग से धरती के भीतर उपलब्ध सूक्ष्म और प्राकृतिक नाइट्रोजन जैसे तत्वों का लगातार दोहन होना। 

  • 3. कई वर्षों से एक ही फसली चक्र का प्रचलन 

  • 4. मिट्टी के लाभकारी बैक्टीरिया तथा सूक्ष्म जीवाणुओं पर ज्यादा नाइट्रोजन के प्रयोग का दुष्प्रभाव 

  • 5. ग्लोबल वार्मिंग 

पौधे के समुचित विकास तथा बेहतर उपज के लिए जड़ों का पूर्ण विकसित होना भी बहुत जरूरी है। बीज अंकुरण के समय जड़ ही पौधे से निकलने वाला पहला भाग होता है। जड़ों के मुख्यतः तीन प्रमुख अंग हैं:

  • 1. प्राथमिक जड़ जो अंकुरण के समय निकलती है और सीधी जमीन में गहरी उतरती है। 

  • 2. माध्यमिक जड़ जो मुख्य जड़ से निकलती है तथा दाएं बाएं चलती हैं। 

  • 3. बहुत बारीक रेशेदार जड़ जो माध्यमिक जड़ों से निकलती है। 

जड़ों के तीन मुख्य काम हैं पौधे को खड़ा रखना, पानी सोखकर पौधे को उपलब्ध कराना, उर्वरक तथा सूक्ष्म तत्वों का दोहन कर पौधे को उपलब्ध कराना। अतः जड़ों का पूर्ण स्वस्थ और विकसित होना फसल की अधिक उपज लेने के लिए पहला जरूरी कदम है। इसीलिए अब सभी कृषि संस्थान, सरकारी प्रादेशिक कृषि विशेषज्ञ यहां तक कि भारत सरकार भी यूरिया आदि रासायनिक खादों का इस्तेमाल कम करने की बात करते हैं। 

आर्गेनिक खेती को आज की जरूरत माना जाता है। अब प्रश्न है कि क्या ऐसा संभव है? क्या मिट्टी की खराब होती सेहत को रोका जा सकता है? क्या मिट्टी की रासायनिक तत्वों पर बढ़ रही निर्भरता को कम किया जा सकता है ? 

उत्तर है, हां! पिछले एक दशक से पश्चिमी देशों में कई ऐसे तत्वों पर शोध किया जा रहा है, जिनका उपयोग कृषि में लाभकारी सिद्ध हुआ है। ये तत्व अगर विशेष मात्रा में मिलाकर किसी भी फसल में प्रयोग किये जाएं तो उपज में वृद्धि के साथ-साथ मिट्टी की सेहत में सुधार लाना भी आरम्भ कर देते हैं। 

ऐसे ही एक मिश्रण का नाम है टोकी जो प्राकृतिक तत्वों पर आधारित वैज्ञानिक तकनीक से तैयार किया गया है। इसके लगातार प्रयोग से फसल तो बढ़ती ही है साथ ही मिट्टी के अंदर कई सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं: 

  • 1. सूक्ष्म तत्वों की जड़ों को सुगमता से उपलब्धता 

  • 2. मिट्टी में कार्बन तत्व की बढ़ोतरी 

  • 3. जड़ों की अधिक लंबाई तथा सूक्ष्म जड़ों का अधिक बनना 

चलिए टोकी के मिश्रण को समझा जाए। 

टोकी में 7 प्राकृतिक तत्व हैं:

  •  1. हयूमिक एसिड : ये मिट्टी में माइक्रोबियल गतिविधि को उत्तेजित करता है। 

  • 2. कोल्ड वाटर केल्प : यह फसल वृद्धि के प्रत्येक चरण में मदद करता है। 

  • 3. एस्कॉर्बिक एसिड : पौधों को वातावरण के तनाव से उभरने में मदद करता है। 

  • 4. अमीनो एसिड : यह प्रोटीन के ब्लॉक के निर्माण के रूप में केन्द्रीय भूमिका निभाता है। 

  • 5. मयो इनोसिटोल फल, सब्जियां और दालें आदि जैसे पौधों में कई जैविक प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

  • 6. विटामिन बी-1: यह पौधे के स्वास्थ्य में वृद्धि करता है। 

  • 7. विटामिन ई : यह प्रोटीन संश्लेषण की दर में वृद्धि करता है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती है। 


इन सात तत्वों को इस तरह से मिश्रण में लिया गया है कि ये फसल के हर चरण में यानि जड़ निकलने से लेकर फसल पकने तक अपना-अपना योगदान देते हैं और उपज में प्रकृति के साथ मिलकर वृद्धि करते हैं। 

टोकी के इस्तेमाल की विधि तथा मात्रा 

टोकी की 5 किलोग्राम मात्रा अनाज व दलहनी फसलों में तथा 10 किलोग्राम गन्ना व आलू में प्रयोग की जानी चाहिए। इसका प्रयोग बिजाई के समय करना सबसे कारगर है हालांकि इसे पहली सिंचाई से पहले भी प्रयोग किया जा सकता है, यानी बिजाई से लेकर 30 दिन तक इसका इस्तेमाल होना चाहिए। पिछले 6 वर्षों से टोकी का इस्तेमाल भारत के कई राज्यों के किसान भाईयों द्वारा लगातार किया जा रहा है, जिनके अनुभव इस प्राकृतिक मिश्रण को लेकर बहुत अद्धभुत रहे हैं। इन सभी किसान भाइयों ने बताया है कि उपज में 10-15% के अतिरिक्त फसल की गुणवत्ता में भी सकारात्मक फर्क पड़ता है। टोकी को भारत में नोवोजाइम कंपनी के सहयोग से भारत इंसेक्टीसाइड्स लिमिटेड द्वारा लाया गया है। आज समूचे भारत के किसान इसके प्रयोग से मुनाफा कमा रहे हैं तथा मिट्टी की उर्वरता एवं सेहत को भी बरकरार रखे हुए हैं। टोकी के माध्यम से भारत इंसेक्टीसाइड्स का यही उद्देश्य और संदेश हैं कि प्रकृति के साथ मिल कर ही उपज बढ़ाई जा सकती है। टोकी 10 किलो के कैन और 5 किलो 1 किलो के बैग में उपलब्ध है। 

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