कृषि के टिकाऊपन में केंचुओं का योगदान
कृषि के टिकाऊपन में केंचुओं का योगदान

प्राकृतिक खेती के मुख्य घटक एवं इनके उपयोग के लाभ (भाग 2)

श्री बजरंग लाल ओला, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. सुशील कुमार शर्मा, डॉ. पी. के. राय
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प्राकृतिक खेती के आदानों को बनाने की विधियां : 

बीजामृत (बीज अमृत) निर्माण की विधि 

बुवाई करने से पहले बीजों का संस्कार अथवा संशोधन करना बहुत जरूरी है। इसके लिए बीजामृत बहुत ही उत्तम है। बीजामृत द्वारा शुद्ध हुए बीज जल्दी और ज्यादा मात्रा में उगते हैं। जड़ें तेजी से बढ़ती हैं। पौधे, भूमि द्वारा लगने वाली बीमारियों से बचे रहते हैं एवं अच्छी प्रकार से पलते-बढ़ते हैं। जीवामृत की भांति ही बीजामृत में भी वही चीजें डाली हैं जो हमारे पास बिना किसी कीमत के मौजूद हैं। 

100 किलोग्राम बीज के लिए बीजामृत बनाने के लिए आवश्यक सामग्री : 

  • 1. देशी गाय का गोबर 5 कि.ग्रा 

  • 2. गोमूत्र 5 लीटर 

  • 3. चूना या 1. कली 250 ग्राम 

  • 4. पानी 20 लीटर 

  • 5. खेत की मिट्टी मुट्ठी भर 

इन सभी पदार्थों को पानी में घोलकर 24 घंटे तक रखें। दिन में दो बार लकड़ी से इसे हिलाना है। इसके बाद बीजों के ऊपर बीजामृत डालकर उन्हें संस्कार अथवा संशोधन करना है। उसके बाद छाया में सुखाकर फिर बुवाई करनी है। 

जीवामृत के फायदे एवं जीवामृत बनाने की विधि : 

जीवामृत एक अत्यधिक प्रभावशाली जैविक खाद है, जिसे गोबर के साथ पानी में कई और पदार्थ जैसे गौमूत्र, बरगद या पीपल के नीचे की मिट्टी, गुड़ और दाल का आटा मिलाकर तैयार किया जाता है। जीवामृत पौधों की वृद्धि और विकास के साथ-साथ मिट्टी की संरचना सुधारने में काफी मदद करता है। यह पौधों में अनेक रोगाणुओं से सुरक्षा करता है तथा पौधों की प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाने का कार्य भी करता है, जिससे पौधे स्वस्थ बने रहते हैं। तथा फसल से बहुत ही अच्छी पैदावार मिलती है। 

जीवामृत बनाने की सामग्री -

  • 1. प्लास्टिक का एक ड्रम (लगभग 200 लीटर), 

  • 2. 10 किलो देशी गाय का गोबर, 

  • 3. 10 लीटर पुराना गौमूत्र, 

  • 4. 1-2 किलो गुड़, एक मुट्ठी बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी, 

  • 5. 1-2 किलो दाल का आटा/बेसन, 

  • 6. 1 ढकने का कपड़ा, 7. 180 लीटर पानी 

जीवामृत निर्माण की विधि 

सबसे पहले एक प्लास्टिक का बड़ा ड्रम लिया जाता है जिसे छाया में रख दिया जाता है। इसके बाद 10 किलो देशी गाय का ताजा गोबर, 10 लीटर पुराना गोमूत्र, 1-2 किलोग्राम किसी भी दाल का आटा/बेसन (अरहर, चना, मूंग, उड़द आदि का आटा), 1-2 किलो पुराना सड़ा हुआ गुड़ तथा एक मुट्ठी बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी को 180 लीटर पानी में अच्छी तरह से लकड़ी की सहायता से मिलाया जाता है तथा अच्छी तरह मिलाने के बाद इस ड्रम को कपड़े से इसका मुह ढक दें। 

इस घोल पर सीधी धूप नहीं पड़नी चाहिए। अगले दिन भी इस घोल को फिर से किसी लकड़ी की सहायता से दिन में दो या तीन बार हिलाया जाता है। लगभग 5-6 दिनों तक प्रतिदिन इसी कार्य को करते रहना चाहिए। लगभग 6-7 दिन के बाद, जब घोल में बुलबुले उठने कम हो जायें, तब समझ लेना चाहिए कि जीवामृत तैयार हो चुका है। 

जीवामृत का बनकर तैयार होना ताप पर भी निर्भर करता है। अतः सर्दी में थोड़ा ज्यादा समय लगता है किन्तु गर्मी में 2 दिन पहले तैयार हो जाता है। 

जीवामृत का प्रयोग 

फसल को दी जाने वाली प्रत्येक सिंचाई के साथ 200 लीटर जीवामृत का प्रयोग प्रति एकड़ की दर से उपयोग किया जा सकता है अथवा इसे अच्छी तरह से छानकर बूंद-बूंद या स्प्रिंकलर सिंचाई के माध्यम से भी प्रयोग कर सकते है, जो कि एक एकड़ क्षेत्र के लिए पर्याप्त होता है, छिड़काव के लिए 10 से 20 लीटर तरल जीवामृत को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। 

घन जीवामृत 

घन जीवामृत एक अत्यन्त प्रभावशाली जीवाणु युक्त सूखी खाद है जिसे देशी गाय के गोबर में कुछ अन्य चीजें मिलाकर बनाया जाता है। यह विधि भी बिल्कुल जीवामृत बनाने की तरह ही है। इसमें जब जीवामृत तैयार हो जाता है तब इसे गाय के गोबर के साथ मिलाकर 48 से लेकर 72 घंटे तक छाया में विघटित होने के लिए रखा जाता है। इसके बाद यह खेत में प्रयोग करने के लिए तैयार हो जाता है अथवा इसे बनाने के लिये 100 किग्रा देसी गाय के गोबर को, 2 किग्रा गुड़, 2 किग्रा दाल का आटा और 1 किग्रा सजीव मिट्टी (पेड़ के नीचे की मिट्टी या जहां रासायनिक खाद न डाली गई हो) डाल कर अच्छी तरह मिश्रण बना लें। इस मिश्रण में थोड़ा-थोड़ा गोमूत्र डालकर अच्छी तरह गूंथ लें ताकि घन जीवामृत बन जाए। 

जीवामृत और घन जीवामृत दोनों को ही खेत में बुवाई से पहले मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दिया जाता है। इसके बाद खेत में लाभदायक केंचुए जो मिट्टी के अंदर रहते हैं, वह मिट्टी के ऊपर आ जाते हैं जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और इससे मिट्टी की उर्वराशक्ति में काफी हद तक सुधार होता है। इसके साथ-साथ उत्पादन व फसल उपज की गुणवत्ता भी इनके प्रयोग से काफी अच्छी हो जाती है।

नीमास्त्र 

नीमास्त्र का उपयोग बीमारियों को रोकने या ठीक करने और उन कीड़ों या लार्वा को नियॆत्रण करने के लिए किया जाता है जो पौधे के पत्तों को खाते हैं अथवा पौधों का रस चूसते हैं। इससे हानिकारक कीड़ों के प्रजनन को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है। 

नीमास्त्र को तैयार करना बहुत सरल है और यह प्राकृतिक खेती के लिए एक प्रभावी कीट प्रतिरोधी और जैव कीटनाशक है। 

नीमास्त्र बनाने की विधि 

सर्वप्रथम एक ड्रम में 200 लीटर पानी लें और उसमें 10 लीटर गोमूत्र डालें फिर इसमें 2 किलो देसी गाय का गोबर मिलाएं। इसके बाद इसमें 10 किलो नीम की पत्तियां का बारीक पेस्ट या 10 किलो नीम के बीज का गुद्दा मिलाएं। फिर इसमें एक लंबी छड़ी से दक्षिणावर्त घूमाएं और एक बोरी से ढक दें। फिर इसे छाया में रखें क्योंकि यह धूप या बारिश के संपर्क में नहीं आना चाहिए। घोल को रोज सुबह और शाम घड़ी की सुई की दिशा में हिलाएं। 

नीमास्त्र 48 घंटे के बाद प्रयोग के लिए तैयार हो जाता है। इसे 6 महीने तक उपयोग के लिए भंडारित किया जा सकता है। नीमास्त्र को पानी से पतला नहीं करें। इस तैयार गोल को मलमल के कपड़े से छान कर और पत्ते पर स्प्रे के माध्यम से सीधे फसल पर छिड़काव करें।

नियंत्रण : 

नीमास्त्र द्वारा सभी रस चूसने वाले कीट, एफिड, जैसिड, सफेद मक्खी और छोटे कैटरपिलर को नियंत्रित किया जा सकता है। 

ब्रह्मास्त्र 

यह पत्तियों द्वारा तैयार किया गया एक प्राकृतिक कीटनाशक है जिसमें कीटों को दूर रखने के लिए विशेष एल्केलॉइड होते हैं। यह फलियां और फूलों में मौजूद सभी रस चूसने वाले कीटों और छिपी हुई इल्लियों को नियंत्रित करता है। 

ब्रह्मास्त्र बनाने की विधि 

सर्वप्रथम एक बर्तन में 20 लीटर गोमूत्र डालते हैं और इसमें 2 किलो नीम की पत्तियों का बारीक पेस्ट, 2 किलो क्रंच की पत्तियों का पेस्ट, 2, किलो सीताफल की पत्तियों का पेस्ट, 2 किलो अरंडी की पत्तियों का पेस्ट और 2 किलो धतूरे की पत्तियों के पेस्ट को मिलाते हैं। इसमें एक या दो झाग (आति प्रवाह स्तर) तक धीमी आंच पर उबलते हैं। इसके बाद घड़ी की सुई की दिशा में हिलाएं, फिर बर्तन को ढक्कन से ढक दें और इसे उबालते रहें। दूसरा झाग बनने के बाद, उबालना बंद कर दें और इसे 48 घंटे तक ठंडा होने के लिए रख दें ताकि पत्तियों में मौजूद अल्कालॉइड मूत्र में मिल जाएं। दो दिन के बाद घोल को मलमल के कपड़े से छानकर रख लें। इसे छाया में गमलों में (मिट्टी के बर्तन) या प्लास्टिक के ड्रम में रखना बेहतर होता है। तैयार ब्रह्मास्त्र को 6 महीने तक उपयोग के लिए संग्रहित किया जा सकता है।

अनुप्रयोग : 

ब्रह्मास्त्र की 6 से 8 लीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर, खड़ी फसल के पत्तों पर छिड़काव किया जा सकता है। कीट के हमले की गंभीरता के आधार पर इसका अनुपात निम्नानुसार बदला जा सकता है। 100 लीटर पानी में तीन लीटर ब्रह्मास्त्र, 15 लीटर पानी में आधा लीटर ब्रह्मास्त्र, 10 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर ब्रह्मास्त्र। 

निष्कर्ष : 

अतः किसान भाईयों के लिए यह सभी जीवामृत, घन जीवामृत, बीजामृत, नीमास्त्र एवं ब्रह्मास्त्र बहुत ही लाभदायक सिद्ध हो रहा है। जहां एक तरफ मिट्टी की उर्वरा शक्ति में सुधार तथा फसल उपज की गुणवत्ता के साथ-साथ कीट प्रबंधन बहुत आसानी से हो जाता है तथा इनके बनाने में खर्च बिल्कुल नहीं आता है। किसानों को इस तरफ ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है तथा यही आधुनिक समय की मांग भी है।

यह आलेख दो भागों में है -

लेखकगण - श्री बजरंग लाल ओला 1, डॉ. सुनील कुमार 2, डॉ. सुशील कुमार शर्मा, डॉ. पी. के. राय 4 1-सस्य विज्ञान विशेषज्ञ, 2- पौध संरक्षण विशेषज्ञ, 3-प्रधान वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केन्द्र, गुंता, बानसूर, अलवर 4-निदेशक, सरसों अनुसंधान निदेशालय, सेवर, भरतपुर, राजस्थान

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