'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' और सामाजिक अंकेक्षण
जब हम सामुदायिक एकजुटता की बात करते हैं, तब सबसे जरूरी हो जाता है लोगों का यह जानना कि वास्तव में योजनाओं, कार्यक्रमों और कानूनों में चल क्या रहा है? जब समाज को किसी भी कानून या योजना में मूक हितग्राही मान लिया जाता है, ठीक तभी से समाज व्यवस्था से दूर हो जाता है और व्यवस्था की समाज के प्रति जवाबदेहिता खत्म हो जाती है। आज बहुत जरूरी है समाज को व्यवस्था से सवाल-जवाब करने के लिये तैयार करना। उन्हें यह अहसास करवाना कि वास्तव में व्यवस्था लोगों के प्रति जवाबदेय है और यदि समाज लोक कार्यक्रमों की निगरानी नहीं करेगा, तो उनके हक सीमित और सीमित किये जाते रहेंगे। 'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' में सामाजिक अंकेक्षण का प्रावधान वास्तव में एक सतही प्रावधान नहीं है, यह समाज को जगाने और भूख के खिलाफ समाज की लड़ाई का बड़ा औजार है। बेहतर होगा कि हम इस प्रावधान को लागू करने में जुट जाएँ।
सामाजिक अंकेक्षण का मतलब
सामाजिक अंकेक्षण और व्यवस्था में बदलाव
सामाजिक अंकेक्षण का महत्त्व
'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' और इसकी योजनाओं के सामाजिक अंकेक्षण के मकसद
सामाजिक अंकेक्षण के चरण
सामाजिक अंकेक्षण के लिये तैयारी
दस्तावेज
(बच्चों और गर्भवती-धात्री महिलाओं का पोषण आहार) से
स्थानीय निकाय/स्कूल से (मध्यान्ह भोजन योजना)
हकधारकों के संवाद और उनके अनुभव/तथ्यों/ वक्तव्य को दर्ज करना
विश्लेषण की जानकारी को सार्वजनिक करना
'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' (उसमें शामिल योजनाओं) के सामाजिक अंकेक्षण में शामिल पक्ष
जानकारियाँ इकठ्ठा करना
विभागीय सामंजस्य
‘राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून-2013 और सामुदायिक निगरानी मैदानी पहल के लिए पुस्तक (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
क्रम और अध्याय | |
पुस्तक परिचय : राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013 | |
1 | |
2 | |
3 | |
4 | |
5 | |
6 |