अबुझ प्यास
कोयले से किस तरह हमारे जल की बर्बादी और प्रदूषण होता है
(टेनेसी, अमेरिका में 2008 में ‘किंग्स्टन’ प्लांट की 3.8 बिलियन लीटर कोयले की राख की गाद एमोरी नदी में डाला गया। फोटो: डॉट ग्रिफिथ)
हमारी धरती के दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों में से एक ‘पानी’ पर कोयले के कारण भी बुरी तरह से खतरा उत्पन्न हो रहा है। कोयले के खनन, परिवहन और उससे बिजली उत्पादन, इन सभी में भारी पैमाने पर साफ-पानी की बर्बादी होती है और बड़ी मात्रा में जल का प्रदूषण होता है। भारत में औसतन ‘1000 मेगावाट का कोयला-तापीय विद्युत गृह’ साल भर में इतने पानी की खपत करता है जितना कि सात लाख लोगों को पानी की जरूरत होती है। वैश्विक स्तर पर 'कोयला-तापीय विद्युत गृह' पानी की हमारी कुल मांग का लगभग 8% की खपत करते हैं। कोयला उद्योग की पानी की प्यास तब और अधिक चिंताजनक लगती है, जब हम देखते हैं कि कोयला का बड़े पैमाने पर उत्पादन और खपत करने वाले – भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका सरीखे कई देश जो पहले ही पानी के संकट से जूझ रहे हैं, फिर भी वे अपने कोयला उद्योग के विस्तार में जुटे हुए हैं।
कोयला एक प्रमुख प्रदूषक है। कोयले के जीवन-चक्र का हर रूप में इस्तेमाल पानी में भारी धातुओं और अन्य विषाक्त वस्तुओं के कारण इस हद तक प्रदूषण करता है, जो मनुष्यों और वन्य जीवन को बुरी तरह से हानि पहुंचाता है। कोयला-जनित विषाक्त तत्वों के संपर्क में आने से मनुष्य में जन्म संबंधी विकृतियों, रोगों और अकाल मृत्यु की दर में वृद्धि हुई है। इसी तरह, वन्य जीवन पर भी प्रभाव पड़ता है। कोयले के जीवन-चक्र से उत्पन्न होने वाले प्रदूषक तत्व अक्सर रंगहीन और अदृश्य से होते हैं, और इसीलिए कोयला जीवन-चक्र से दूषित पदार्थ हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए एक अदृश्य गंभीर खतरा हैं।
भाग-1 पानी की भारी खपत करने वाला
खनन और तैयारी में पानी की खपत
प्रदहन
कूलिंग प्रणालियों को चाहिए पानी ही पानी
पानी के बढ़ते हुए संघर्ष
भाग 2: कोयले का जीवन-चक्र किस तरह हमारे जल-स्रोतों को प्रदूषित करता है