आप अलवण जल के महत्त्व को पहले से ही जान चुके हैं जिसके बिना पृथ्वी पर जीवन का कोई अस्तित्व संभव नहीं है। इस पाठ में आप अलवण जल के स्रोतों एवं इसके उपयोग के बारे में जानेंगे तथा अलवण जल की गुणवत्ता को बचाए रखने के महत्त्व को समझेंगे।
उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात आपः
1. अलवण जल स्रोतों के वितरण के बारे में वर्णन कर पाएँगे ;
2. जल संग्रह करने, उसे संसाधित करने एवं घरेलू उपयोग के लिये उसके वितरण के बारे में सभी तरीकों का वर्णन कर सकेंगे ;
3. घरेलू उपयोग (पीने के पानी) को स्वच्छ करने के सबसे सामान्य उपाय के बारे में वर्णन कर सकेंगे एवं अस्वच्छ पेयजल से होने वाले परिणामों के बारे में बता पाएँगे ;
4. जल की गुणवत्ता की अवधारणा की व्याख्या कर सकेंगे ;
5. घरेलू, औद्योगिक एवं कृषि कार्यों के लिये जल का किस प्रकार उपयोग होता है, का वर्णन कर सकेंगे ;
6. कच्चे माल के रूप में जल के महत्त्व को बता सकेंगे तथा इसमें (घरेलू तथा औद्योगिक) बहिःस्राव को डालने से होने वाले दुष्परिणामों का भी वर्णन कर सकेंगे।
29.1 अलवण जल का वितरण
पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का एक बहुत छोटा भाग यानी सिर्फ 2.7 % भाग ही अलवण जल है जो जीवन के लिये इतना महत्त्वपूर्ण है। प्रायः इसकी अधिकतर मात्रा हिमखंडों, बर्फीली चोटियों (ग्लेशियरों), बादलों में समाहित रहती है। इस जल का बचा हुआ एक छोटा हिस्सा, सदियों से झीलों एवं धरती के नीचे के स्रोतों में जमा रहता है। यह आश्चर्य की बात ही है कि पृथ्वी पर अलवण जल का एकमात्र स्रोत महासागरों का खारा पानी ही है। लगभग 85 % वर्षा का जल सीधे समुद्रों में गिरता है एवं कभी भी पृथ्वी तक नहीं पहुँचता है। कुल वैश्विक अवक्षेपण के बचे हुए छोटे अंश में से, जो धरती पर गिरता है, झीलों, कुओं एवं नदियों में भरता है एवं नदियों को बहने देता है। इस प्रकार मानव जाति को मिलने वाला अलवण जल एक बहुत ही अमूल्य एवं दुर्लभ वस्तु है।
पृथ्वी की सतह का करीब तीन चौथाई भाग जल से आच्छादित है। एक अनुमान के अनुसार कुल जल का परिमाण 1400 mkm3 से भी अधिक है, जो पूरी पृथ्वी को ढकने के लिये पर्याप्त है, जिसकी गहराई 300 मीटर तक हो सकती है। इस जल का 97.3 % भाग महासागरों में रहता है। 2.7 % अलवण जल में से 2.14 % ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के रूप में जमा रहता है। अतः झीलों एवं नदियों का पूरा जल, वायुमंडल में स्थित जलीय वाष्प, मिट्टी, पेड़-पौधे एवं पृथ्वी के नीचे स्थित जल, कुल भाग का सिर्फ 0.5 % ही होता है। इसमें से भी 0.5 % (जोकि अलवण जल है), 98 % से अधिक भूजल के रूप में होता है, जिसमें से आधा 1000 मीटर से भी अधिक नीचे होता है, अतः सिर्फ 0.1 % ही नदियों में रहता है।
तालिका 29.1 : विश्व में जल का वितरण | ||
स्थान |
घनत्व 1012m3 |
कुल में से प्रतिशत |
जलाशय
|
1370 125 1.25 67 8350 - 29,200 37,800 |
94 0.01 0.0001 0.005 0.38 0.30 2.05 2.75 |
वायुमंडल (जल वाष्प) |
13 |
0.001 |
महासागर |
13,20,000 |
97.25 |
कुल योग |
1,360,000 |
100 |
स्रोतः स्मिट्ज (Schmitz) 1996 |
29.2 भारत में जल संसाधनों का वितरण
भारत में वार्षिक वर्षा 1170 मिमी होती है। विश्व में भारत के आकार के बराबर के अन्य देशों की अपेक्षा यह वर्षा सबसे अधिक है। केवल इस वर्षा से ही, भारत 4000 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) जल प्राप्त करता है, जिसमें हिमपात भी शामिल है। इसमें से 3/4 भाग केवल मानसून के दौरान ही मिलता है। इसका एक बड़ा भाग वाष्पीकरण एवं पेड़ पौधों की वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा नष्ट हो जाता है। जिससे पृथ्वी पर हमारे द्वारा उपयोग करने के लिये इसका आधा भाग ही बचता है। उद्वाष्पन द्वारा जल क्षय के बाद, देश की सतह पर जल प्रवाह का अनुमान 1800 BCM है।
भौगोलिक, हाइड्रोलॉजिकल एवं अन्य रुकावटों के कारण, यह अनुमान लगाया गया है कि केवल 700 BCM सतह के ऊपर के जल को ही उपयोग में लाया जा सकता है। वार्षिक आधार पर पुनःपूर्ति वाले भूजल स्रोतों में करीब 600 BCM जल होने का अनुमान है जिसमें से वार्षिक रूप से इस्तेमाल होने वाले संसाधनों में 420 BCM जल खर्च होता है। स्वतंत्रता के बाद से ही, देश में इस जल के श्रेष्ठतम उपयोग की योजनाएँ बन रही हैं जिसमें इंजीनियरिंग आविष्कारों जैसे बांध एवं बैराज आदि द्वारा इस जल को लंबे समय तक धरती की सतह पर रोके रखना भी शामिल है।
तालिका 29.2: भारत में जल संसाधनों का अनुमानित वितरण | |
उपखंड |
परिमाण, बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) |
कुल अवक्षेपण |
4000 |
- तुरंत वाष्पीकरण |
700 |
- मृदा में जल का रिसाव |
2150 |
- मृदा वाष्प |
1650 |
- भूजल |