भारतीय कृषि में सूक्ष्म सिंचाई की सार्थकता: प्रगति एवं प्रभाव विश्लेषण, PC- Home Depot
भारतीय कृषि में सूक्ष्म सिंचाई की सार्थकता: प्रगति एवं प्रभाव विश्लेषण, PC- Home Depot

भारतीय कृषि में सूक्ष्म सिंचाई की सार्थकता: प्रगति एवं प्रभाव विश्लेषण

अर्थव्यवस्था के विभिन्‍न क्षेत्र पानी के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, इससे कृषि क्षेत्र के लिए पानी की उपलब्धता में भारी कमी हो सकती है जोकि कृषि के सतत्‌ विकास के लिए समस्या खड़ी कर सकती है। यद्यपि, त्रिवार्षिकी 2014-15 में विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा भारत में सबसे अधिक शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल (68.4 मिलियन हेक्टेयर) था फिर भी देश में शुद्ध बुवाई क्षेत्रफल का लगभग आधा हिस्सा (5.%) असिंचित है और इसके कारणों में प्रवाह विधि (Flood Method) से सिंचाई करना प्रमुख है।
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भारत में शुद्ध कृषित क्षेत्रफल का लगभग 48.9% हिस्सा ही सिंचित है एवं शेष क्षेत्रफल वर्षाजल पर आधारित है। देश में अभी तक उपलब्ध परियोजनागत सिंचाई क्षमता का उपयोग नहीं किया जा सका है और कृषि में माँग के अनुरूप सिंचाई सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिए ई की नवीन तकनीक “सूक्ष्म सिंचाई” को व्यापक स्तर पर अपनाने की आवश्यकता है। सरकार “प्रति बूँद अधिक फ़सल” मिशन के तहत फव्वारा तथा बूँद-बूँद विधियों को बढ़ावा दे रही है, इसके अलावा गैर सरकारी एवं समाज सेवी संगठन भी सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ाने में रूचि ले रहे हैं। सूक्ष्म सिंचाई तकनीक अपनाने से जल-बचत के साथ इसकी उपयोग दक्षता भी बढ़ती है और फसलों की गुणवत्ता तथा उपज में वृद्धि होती है।

भारत में भूमिगत जल का स्तर इसके प्राकृतिक पुनर्भरण की अपेक्षा, विशेष रूप से उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में तेजी से गिर रहा है। एक नवीनतम आकलन दर्शाता है कि पिछले एक दशक (2007-2016) की अवधि में 61 प्रतिशत कुओं का जल स्तर 4 मीटर तक नीचे  गिर गया और इसके कारणों में भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन प्रमुख है। इसके अतिरिक्त वर्षा जल में कमी, पानी की माँग-आपूर्ति के बीच बढ़ता असंतुलन (बढ़ती जनसंख्या एवं कृषि), शहरीकरण तथा औद्योगीकरण आदि अन्य कारण भी भूमिगत जल के दोहन में उत्तरदायी हैं। देश की सर्वोच्च नीति निर्माण संस्था 'नीति आयोग” ने भी अपने एक नवीनतम प्रतिवेदन में देश में जल संकट की समस्या का उल्लेख किया है तथा इसके 2030 तक और भी भयावह होने का अनुमान व्यक्त किया है | जैसा कि भारतीय कृषि जल की प्रमुख उपभोक्ता है और इसके उपयोग को 50 प्रतिशत से कम लाने का सुझाव दिया जा रहा है, इसलिए जल के कृषि एवं मानव जीवन में महत्व को देखते हुए ऐसी कृषि पद्धतियों एवं सिंचाई विधियों को अपनाने की आवश्यकता है जो कि कम पानी चाहती हैं तथा साथ ही जल की बचत भी करती हैं।

फसलोत्मादन में सिंचाई जल की उपयोगिता इसके आदानों की प्रयोग क्षमता एवं फसल सघनता बढ़ाने और उपज बढ़ोतरी में सिद्ध की जा चुकी है। वर्तमान पानी की बढ़ती मांग और तेजी से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्‍न क्षेत्र पानी के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, इससे कृषि क्षेत्र के लिए पानी की उपलब्धता में भारी कमी हो सकती है जोकि कृषि के सतत्‌ विकास के लिए समस्या खड़ी कर सकती है। यद्यपि, त्रिवार्षिकी 2014-15 में विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा भारत में सबसे अधिक शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल (68.4 मिलियन हेक्टेयर) था फिर भी देश में शुद्ध बुवाई क्षेत्रफल का लगभग आधा हिस्सा (5.%) असिंचित है और इसके कारणों में प्रवाह विधि (Flood Method) से सिंचाई करना प्रमुख है। इस प्रचलित सिंचाई विधि की जल उपयोग क्षमता बहुत कम 40%) है। भारत में सिंचाई जल
उपयोग दक्षता का कम औसत विशेष रूप से पानी को खुली नालियों द्वारा खेतों तक पहुँचाने एवं वितरण घाटे के कारण है।

भारत सरकार ने भविष्य में पानी की चुनौतियों (घटती उपलब्धता और बढ़ती माँग दर) से निपटने हेतु जल प्रबंधन रणनीतियों एवं कार्यक्रमों की 1970 के दशक में ही शुरूआत कर दी थी, लेकिन इनके परिणाम बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहे हैं। अतएव कृषि में सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली को अपनाने पर बल दिया जा रहा है। इस सिंचाई प्रणाली में प्रमुख रूप से फव्वारा एवं बूँद-बूँद विधियाँ शामिल हैं।

सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, जल की बचत के साथ-साथ अतिरिक्त क्षेत्रफल में सिंचाई सुनिश्चित करती है। इस सिंचाई विधि के अनेक लाभों (जैसे कि अधिक क्षेत्रफल की सिंचाई क्षमता, अधिक उपज, कम लागत, शुद्ध आय में वृद्धि, गुणवत्ता उत्पाद, आदि) के बावजूद वर्ष 2018-2019 तक इसके अन्तर्गत कुल .25 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल लाया जा सका है। इसमें अधिकतर हिस्सा बागवानी फसलों का है। सिंचाई क्षेत्रफल को विस्तार देने, जल आपूर्ति में सुधार और सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली को गति देने के लिए अप्रैल 2015-2016 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) की शुरूआत की गयी। इस योजना के तहत सभी द्वारा संचालित सिंचाई कार्यक्रमों /परियोजनाओं को समाहित कर दिया गया है। व्यापक दृष्टि में इस योजना का उद्देश्य सभी खेतों तक सिंचाई के साधनों की पहुँच सुनिश्चित करना है जिससे कि प्रति बूँद अधिक उपज प्राप्त की जा सके तथा गांवों में समृद्धि लायी जा सके।

भारत में वर्ष 2005-06 तक कुल सिंचित क्षेत्रफल 84.3 मिलियन हेक्टेयर था जोकि पिछले एक दशक (2005-06  से 2014-15) में लगभग 2 मिलियन हेक्टेयर की बढ़ोत्तरी के साथ 2014-15 में 96.5 मिलियन हेक्टेयर हो गया। सिंचाई क्षेत्रफल में वृद्धि के साथ कृषित क्षेत्रफल में 8 मिलियन हेक्टेयर की वृद्धि से कुल कृषित क्षेत्रफल 198.4 मिलियन हेक्टेयर हो गया। सिंचाई क्षेत्र में अथक प्रयास के बावजूद लगभग आधा कृषित क्षेत्रफल असिंचित है। विभिन्‍न सिंचाई कार्यक्रमों के अपनाये जाने तथा सिंचाई विधियों में निरंतर सुधार के बावजूद सिंचाई क्षेत्रफल में  वांछित प्रगति नहीं हुई है। देश के विभिन्‍न सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों की बढ़ती माँग तथा इसकी घटती उपलब्धता के बीच सामंजस्य बनाये रखने के लिए सिंचाई विधियों में निंस्तर सुधार, वर्षा जल संचयन तथा सूखा-रोधी किस्मों के विकास पर
अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। 

भारत में सूक्ष्म सिंचाई परियोजना  जिसमें फव्वारा तथा बूँद-बूँद विधियाँ शामिल विशेषतः सरकारी सहायता द्वारा पोषित कार्यक्रमों के अन्तर्गत किसानों द्वारा अंगीकृत की जा रही हैं। सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली को भारत सरकार ने एक केंद्रीय परियोजना के रूप में वर्ष 2005-06 में शुरू किया था। वर्ष 2010-11  में इसे प्रोन्नत कर राष्ट्रीय
सूक्ष्म सिंचाई मिशन बनाया गया, और अप्रैल 2014 में इस मिशन को राष्ट्रीय संधारणीय कृषि मिशन के अन्तर्गत समाहित कर दिया गया। हालांकि अप्रैल 2015-16 से सूक्ष्म सिंचाई तथा सिंचाई की अन्य परियोजनाओं'कार्यक्रमों को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत शामिल कर दिया गया है। सूक्ष्म सिंचाई के अन्तर्गत संभावित क्षेत्रफल के आकलन हेतु पूर्व में गठित सूक्ष्म सिंचाई कार्यबल (2004) ने 69.5 मिलियन  हेक्टेयर क्षेत्रफल (27 मिलियन हेक्टेयर  बूँद-बूँद विधि और 42.5 मिलियन
हेक्टेयर फव्वारा विधि) का अनुमान  लगाया है।

सूक्ष्म सिंचाई के अन्तर्गत क्षेत्रफल विस्तार हेतु सरकारें (केन्द्रीय एवं राज्य) काफी सार्थक प्रयास कर रही हैं। इसके फैलाव हेतु किसानों को सिंचाई उपकरणों पर सरकारी अनुदान दिया जा रहा है जिससे किसान इसे अपनाकर खेती से अधिक लाभ प्राप्त करने के साथ-साथ जल संस्क्षण भी कर रहे हैं। जैसा कि ऊपर वर्णित किया जा चुका है कि सूक्ष्म प्रणालियों तथा इनके तहत विधियों एवं क्षेत्रफल के आधार पर सांकेतिक स्थापना लागत को ध्यान में रखकर अनुदान की गणना की जाती है तथा इसे सरकार द्वारा वहन किया जाता है तथा शेष धनराशि लाभार्थी को स्वंय लगानी पड़ती है।

सूक्ष्म सिंचाई विधियों को किसानों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए सरकारी एवं गैर-सरकारी दोनों स्तरों पर प्रयास किये जा रहे हैं। सरकारी स्तरों पर केन्द्रीय सरकारों द्वारा कृषि एवं संबधित विभागों के माध्यम से प्रदर्शनी एवं मेले आयोजित किये जाते हैं तथा विज्ञापन दिये जाते हैं। गैर सरकारी स्तरों पर इसमें जुटी कम्पनियाँ जैसे कि जैन
इरिगेशन लिमिटेड, आदि अपने वितरकों तथा विक्रेताओं के माध्यम से किसानों के बीच सूक्ष्म सिंचाई विधियों को लोकप्रिय बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जिला स्तर पर उद्यान एवं कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केन्द्र भी सूक्ष्म सिंचाई विधियों का प्रदर्शन करते हैं तथा इनके लाभ किसानों को बताते हैं। इसके अतिरिक्त प्रगतिशील किसान एवं अन्य समाजसेवी संगठन जैसाकि जमनालाल कानीराम बजाज ट्रस्ट (JKBT), सीकर, राजस्थान भी इस सिंचाई प्रणाली को बढ़ाने पर अधिक जोर दे रहे हैं।

सरकारी तथा गैर सरकारी स्तरों तथा किसानों के प्रयास के कारण सूक्ष्म सिंचाई के तहत 2018-19 तक कुल 11.25 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल
लाया जा चुका है। राजस्थान प्रान्त में सूक्ष्म सिंचाई के तहत सबसे बड़ा हिस्सा (7.9%), सृजित किया गया है, इसके बाद महाराष्ट्र (15.7%), आन्ध्र प्रदेश (15.5 ) गुजरात तथा कर्नाटक  (12.5% प्रत्येक) आते हैं। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रान्तों - हरियाणा (5.8%), मध्य प्रदेश (5.1%), तमिलनाडु (4.9%), छत्तीसगढ़ (2.9%), तथा तेलंगाना (2.2%) ने भी सूक्ष्म सिंचाई में सफलता अर्जित की है। इन दस प्रान्तों में सूक्ष्म सिंचाई के अन्तर्गत कुल 94% से अधिक क्षेत्रफल सृजित किया गया है। सूक्ष्म सिंचाई के सन्दर्भ में  राज्यों के बीच राजस्थान को नेतृत्व करने का गौरव हासिल है, साथ ही फव्वारा विधि के अन्तर्गत लगभग एक तिहाई हिस्सा (30%) राजस्थान में ही सृजित किया गया है। विश्लेषण दर्शाता है कि हरियाणा, गुजरात तथा कर्नाटक आदि राज्यों ने फव्बारा प्रणाली में अधिक रूचि दिखाई है जबकि आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिनाडु बूंद बूंद  विधि को अपनाने में अधिक इच्छुक है। 


नवीनतम आकड़ो के अनुसार वर्ष 2018-19  की दौरान करीब 1.6 मिलियन हैक्टयर  क्षेत्रफल में  सूक्ष्म सिंचाई सुविधा सृजित की गई।  आकड़े दर्शाते है की सूक्ष्म सिंचाई के तहत सबसे अधिक क्षेत्रफल 'अन्य' फसलों  के अन्तर्गत्त (6.8 लाख हैक्टयर )  सृजित किया गया।  इसके बाद बागवानी फसलों ( 2.49 लाख  हैक्टयर)  का स्थान आता है। वाणिज्यिक फसलों  में तिलहन (विशेष रूप से मूंगफली) एवं कपास को वरीयता मिली। आखिल भारतीय स्तर पर सूक्ष्म सिंचाई के अधीन बागवानी फसलों में फलों के तहत 0.79 लाख हेक्टेयर तथा सब्जियों के तहत 1.07 लाख हेक्टेयर सृजित किये गए। फलों में विशेष रूप से आम एवं नींबू वर्गीय फसलों के तहत सर्वाधिक क्षेत्रफल (32.4%, प्रत्येक), केला (14.5%) तथा अमरूद (5.5%), जबकि सब्जियों में प्रमुख रूप से हरी मिर्च (30%), टमाटर (28.5%), आलू (12.2 %), पत्तेदार सब्जियाँ (5.6%), प्याज (4.8%), भिंडी (3%) तथा अन्य सब्जियों (14.2%) के अन्तर्गत सिंचाई सुविधाएं सृजित की गयीं ।

यद्यपि सूक्ष्म सिंचाई संयंत्रों की स्थापना लागत इसके परम्परागत विधियों की अपेक्षा थोड़ी अधिक आती है। फिर भी जल की बढ़ती मांग एवं पटती उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए सरकारें (केन्द्र एवं राज्य अधिक से अधिक बढ़ावा एवं समर्थन दे रही हैं। प्रक्षेत्र के आकार एवं सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली की बूंद-बूँद विधि के अपनाने पर इसकी प्रति हेक्टेयर कीमत (पंक्ति से पंक्ति तथा पौधे से पौधे की दूरी के आधार पर) रुपये 21,643 से रूपये 1,12,237 निर्धारित की गयी है। जिन क्षेत्रों /प्रदेशों में बूंद-बूंद विधि का भेदन/आच्छादन कम हुआ है उन क्षेत्रों में स्थापना लागत प्रति हेक्टेयर रूपये 24,829 से रुपये 1,29,073 निर्धारित है। इसी प्रकार फवारा सिंचाई की स्थापना लागत पाइप की संख्या एवं इसके व्यास आकार पर निर्धारित होती है, जोकि पोर्टेबल फवारा सिंचाई संयंत्र के लिए रुपये 20,000 से रूपये 22,000 रखी गयी है। सरकार द्वारा सिचाई संयंत्रों की स्थापना लागत को नियमित अंतराल पर संशोधित एवं परिवर्धित किया जाता है 

सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, जल की बचत के साथ-साथ अतिरिक्त क्षेत्रफल में सिंचाई सुनिश्चित करती है। इस सिंचाई विधि के अनेक लाभों (जैसे कि अधिक क्षेत्रफल की सिंचाई क्षमता, अधिक उपज कम लागत, शुद्ध आय में वृद्धि, गुणवत्ता उत्पाद, आदि) के बावजूद वर्ष 2018-19 तक इसके अन्तर्गत कुल 11.25 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल लाया जा सका है। इसमें अधिकतर हिस्सा बागवानी फसलों का है। सिंचाई क्षेत्रफल को विस्तार देने, जल आपूर्ति में सुधार और सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली को गति देने के लिए अप्रैल 2015-16 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) की शुरूआत की गयी। इस योजना के तहत सभी विभागों/मंत्रालयों द्वारा संचालित सिंचाई कार्यक्रम परियोजनाओं को समाहित कर दिया गया है। व्यापक दृष्टि में इस योजना का उद्देश्य सभी खेतों तक सिंचाई के साधनों की पहुँच सुनिश्चित करना है जिससे कि प्रति बूंद अधिक उपज प्राप्त की जा सके तथा गांवों में समृद्धि लाई जा सके।

प्रक्षेत्र स्तर पर सूक्ष्म सिंचाई के प्रभाव आकलन हेतु किसानों से एकत्रित प्राथमिक आंकड़ों का प्रयोग है। किया गया है जिन्हें राजस्थान प्रान्त के बीकानेर जिले से एक सर्वेक्षण द्वारा एकत्र किया गया है। यह सर्वेक्षण भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि आर्थिकी एवम् नीति अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली। द्वारा परिचालित परियोजना के तहत और गैर- अंगीकरण करने वाले दोनों प्रकार के किसानों को सम्मिलित किया गया है। बीकानेर जिले में फव्वारा विधि किसानों में प्रमुखता से प्रचलित है।

विश्लेषण दर्शाता है कि फव्वारा विधि को अपनाकर चयनित किसानों ने अधिक क्षेत्रफल में प्रमुख फसलों को उगाया एवम् अधिक उपज प्राप्त की। आंकड़ों से पता चलता है कि रबी फसलों के कृषित क्षेत्रफल में में अतिरिक्त वृद्धि सुनिश्चित सिंचाई फव्वारा सिंचाई अपनाने वाले किसानों के कारण हुई जोकि फसल के विकास एवम् अधिक उपज के लिए आवश्यक है।

वास्तव में चने की फसल में, अन्य रबी फसलों जैसे कि गेहूँ एवम् सरसों की अपेक्षा कम पानी की आवश्यकता होती है। रबी मौसम की अन्य प्रमुख फसल गेहूँ के क्षेत्रफल में 56 प्रतिशत की वृद्धि मिली। खरीफ मौसम की फसलों में भी कृषित फव्वारा सिंचाई  अपनाने वाले किसानों  ने  की क्योंकि इस फसल में नियमित अंतराल पर सिंचाई करनी पड़ती है। फव्वारा सिंचाई अपनाने वाले किसानों ने अधिक मूल्य वाली फसलों जैसे कि मेथी और ईसबगोल को अपनाकर अधिक आय प्राप्त की। कृषित क्षेत्रफल में वृद्धि की भांति फसलों की उपज में भी बढ़ोत्तरी मिली जोकि सांख्यिकीय परीक्षण की दृष्टि से सार्थक थी। 

सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के अन्य लाभों में फसलोत्पाद गुणवत्ता में वृद्धि तथा कम लागत प्रमुख हैं। खेती की लागत में कमी आने के कारणों में उर्वरक उपयोग दक्षता में वृद्धि तथा कम श्रमिक लागत प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त इस सिंचाई विधि के प्रयोग से मृदा संरक्षण खेत के ढलान में किया जा  सकता है।

सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने में निजी एवं गैर सरकारी संगठनों का योगदान

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के शुरू होने के बाद सूक्ष्म सिंचाई के अन्तर्गत क्षेत्रफल आच्छादन में काफी प्रगति हुई है और इसके अन्तर्गत कुल 11.25 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल को लाया जा चुका है। सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने में जैन इरिगेशन सिस्टम का अहम योगदान है। यह कम्पनी सूक्ष्म सिंचाई के क्षेत्र में विश्व की दूसरी सबसे बड़ी कम्पनी है इसके उत्पाद 126 से अधिक देशों में 11,000 से वितरकों एवं विक्रेताओं के माध्यम से 85 मिलियन किसानों तक पहुंचाई जा रहे हैं। सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए कम्पनी ने 2300 एकड़ में   एकड़ में उच्चीकृत कृषि संस्थान, शोध एवं विकास इकाई, प्रदर्शन फार्म,  प्रशिक्षण तथा प्रसार केन्द्र विकसित किये हैं । प्लास्टिक पाइप के निर्माण यह भारत का सबसे कम्पनी तथा विभिन्न प्रकार के पाइप का निर्माण करती है। इसके अतिरिक्त यह कम्पनी किसानों को उचित दाम पर कृषि आदान उपलब्ध कराती है तथा उनके उत्पाद की खरीद करके विभिन्न प्रकार के प्रसंस्कृत उत्पाद तैयार करती है  जैन इरिगेशन न केवल उच्चीकृत कृषि सिंचाई संयंत्रों तथा अन्य कृषि अदानों की प्रगतिशील एवं इच्छुक  किसानों तक पहुँच सुनिश्चित करती है बल्कि कृषि क्षेत्र में सभी प्रकार की सेवा प्रदाता तथा मार्गदर्शक के रूप में भूमिका अदा करती है। इससे प्रभावित लाखों किसान वर्षों से विश्व स्तर पर उपभोक्ताओं को संतुष्टि प्रदान कर रहे है और अधिक आय प्राप्त कर रहे है 

भारतीय अर्थव्यवस्था के बदलते परिदृष्य में सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली को कृषि क्षेत्र में जल उपयोग दक्षता बढ़ाने वाली एक तकनीक के रूप में देखा जा रहा है  इस उन्नत सिंचाई प्रणाली में फव्वारा तथा बूँद-बूँद विधियां अधिक प्रचलित हैं। इनके प्रयोग से जल की पर्याप्त बचत होती है, जिससे कि अधिक क्षेत्रफल में सिंचाई की जा
सकती है तथा उत्पादन एवं उपज में बढ़ोत्ती होती है। सरकारी तथा गैर-सरकारी स्तरों पर प्रयास के बावजूद देश के काल क्षेत्रफल का लगभग आधा हिस्सा असिंचित है और
वर्षा जल पर आधारित है। सूक्ष्म सिंचाई विधियों का अंगीकरण समय की माँग है। यदि इस सिंचाई परियोजना को इसके वास्तविक परिप्रेक्ष्य में पूरा नहीं किया जाता है
तथा इसके तहत और अधिक क्षेत्रफल नहीं लाया जाता है तो आगामी दिनों में बदलते मौसम (मानसूनी वर्षा में कमी और इसके वितरण में भारी अनियमितता) तथा बढ़ते औद्योगीकरण के कारण खेतों की बढ़ती जल माँग को पूरा नहीं किया जा सकेगा और बढ़ती आबादी के लिए खाद्य समस्या एक गंभीर चुनौती हो सकती है। पिछले कुछ वर्षों में सरकारी स्तरों पर सूक्ष्म सिंचाई के ऊपर अधिक बल दिया जा रहा है और इसका वांछित परिणाम मिला है। निजी एवं समाज सेवी संगठन भी सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली को बढ़ावा देने में योगदान दे रहे हैं। आशा की जाती है कि अगले एक दशक में संभावित सूक्ष्म सिंचाई के तहत क्षेत्रफल (69.5 मिलियन हेक्टयर)  का लगभग  योजना का एक तिहाई हिस्सा इस नवोन्मेषी सिंचाई प्रणाली के अधीन आच्छादित हो जायेगा जोकि प्राकृतिक जल के संरक्षण, पानी की माँग-आपूर्ति के बीच संतुलन बैठाने और भावी पीढी के लिए भूमिगत जल दोहन में कमी  लाने में महत्वपूर्ण कदम होगा ।

संर्पक:- 

सन्त कुमार, प्रमोद कुमार एवं
मौहम्मद अवैस

भाकृअनुप- राष्ट्रीय कृषि आर्थिक एवं
नीति अनुसंधान संस्थान,

डीपीएस मार्ग, पूसा,

नई  दिल्ली -110012 

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