जल प्रदूषण की पर्यावरणीय सफाई में बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया की भूमिका,Pc-hmoob
जल प्रदूषण की पर्यावरणीय सफाई में बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया की भूमिका,Pc-hmoob

जल प्रदूषण की पर्यावरणीय सफाई में बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया की भूमिका (Part 1)

सूक्ष्मजीव प्राकृतिक या कृत्रिम दोनों सतहों से जुड़कर और पॉलीसेकेराइड, प्रोटीन व वाह्य डीएनए से मिलकर एक जटिल मैट्रिक्स बनाते हैं। वाह्य कोशिकीय बहुलक पदार्थों की सहायता से सतहों पर इन माइक्रोबियल संयोजनों को बायोफिल्म के रूप में जाना जाता है। ये वाह्य कोशिकीय बहुलक पदार्थ बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया को कई तरह पर्यावरणीय खतरों से बचाता है। बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया प्रदूषण के अच्छे संकेतक माने जाते हैं और जल निकायों में प्रदूषण उपचार के लिए सबसे अच्छे उम्मीदवार भी हैं। बायोफिल्म से विभिन्न बैक्टीरिया की पहचान की गयी है जिनका उपयोग जलीय पर्यावरण से प्रदूषकों को हटाने के लिए जैविक उपचार की प्रक्रिया में सफलतापूर्वक किया गया है। बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया पर आधारित बायोरिएक्टर इन दिनों पारंपरिक तरीकों की तुलना में प्रदूषित पानी की सफाई के लिए अधिक कुशल तरीके से उपयोग में लिये गये हैं। यह समीक्षा जलीय पारिस्थितिक तंत्र में प्रदूषक के उपचार में बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया की क्षमता और उपयोग का वर्णन करती है।
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पृथ्वी की सतह का एक तिहाई हिस्सा पानी से आच्छादित है, जिसमें से लगभग 98% पानी महासागरों और अन्य खारे जल निकायों में मौजूद है, जबकि अधिकांश मीठा पानी बर्फ की चादरों और ग्लेशियरों के रूप में मौजूद है। मीठे पानी के आसानी से उपलब्ध स्रोतों में नदी, झीलें, आर्द्रभूमि और जलभृत शामिल हैं। मानवजनित और अन्य गतिविधियों के कारण, जल निकायों में प्रदूषकों की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। जल निकायों में प्रदूषकों की बढ़ती दर चिंता का विषय है, क्योंकि यह जलीय पारिस्थितिक तंत्र में पारिस्थितिक तनाव / प्रतिबल पैदा करता है। जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में तनाव पैदा करने वाले मुख्य प्रदूषकों में आमतौर पर भारी धातुएँ, कीटनाशक, फार्मास्यूटिकल्स, औद्योगिक अपवाह, सीमित या अत्यधिक पोषक तत्वों की उपलब्धता इत्यादि शामिल हैं। जलीय पारिस्थितिक तंत्र में बहुत सारे सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, सायनोबैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, शैवाल आदि) पाये जाते हैं। 

सूक्ष्मजीव प्राकृतिक या कृत्रिम दोनों सतहों से जुड़कर और पॉलीसेकेराइड, प्रोटीन व वाह्य डीएनए से मिलकर एक जटिल मैट्रिक्स बनाते हैं। वाह्य कोशिकीय बहुलक पदार्थों की सहायता से सतहों पर इन माइक्रोबियल संयोजनों को बायोफिल्म के रूप में जाना जाता है। ये वाह्य कोशिकीय बहुलक पदार्थ बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया को कई तरह पर्यावरणीय खतरों से बचाता है। बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया प्रदूषण के अच्छे संकेतक माने जाते हैं और जल निकायों में प्रदूषण उपचार के लिए सबसे अच्छे उम्मीदवार भी हैं। बायोफिल्म से विभिन्न बैक्टीरिया की पहचान की गयी है जिनका उपयोग जलीय पर्यावरण से प्रदूषकों को हटाने के लिए जैविक उपचार की प्रक्रिया में सफलतापूर्वक किया गया है। बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया पर आधारित बायोरिएक्टर इन दिनों पारंपरिक तरीकों की तुलना में प्रदूषित पानी की सफाई के लिए अधिक कुशल तरीके से उपयोग में लिये गये हैं। यह समीक्षा जलीय पारिस्थितिक तंत्र में प्रदूषक के उपचार में बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया की क्षमता और उपयोग का वर्णन करती है।

परिचय 

पृथ्वी की सतह का अधिकतम भाग (लगभग 71%) जल से आच्छादित है। पृथ्वी पर उपलब्ध जल का लगभग 98% पानी महासागरों और अन्य खारे जल निकायों में उपलब्ध है, जबकि अधिकांश मीठे पानी का स्रोत बर्फ की चादरों और ग्लेशियरों के रूप में मौजूद है। आसानी से उपलब्ध मीठे पानी के स्रोत में नदी का पानी, जलाशय, झीलें, आर्द्रभूमि और जलभृत शामिल हैं, जो कुल जल आपूर्ति में 1% से भी कम का योगदान करते हैं। वैश्विक जनसंख्या में वृद्धि के साथ ही पानी के उपयोग की मांग भी बढ़ी है, साथ ही, मानवजनित गतिविधि, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक जल चक्र को प्रभावित कर रहे हैं।

जब हानिकारक पदार्थ (रसायन या अन्य पदार्थ) जल के स्रोतों में मिलकर जल की गुणवत्ता को दूषित करते हैं तथा इसे मनुष्यों के उपयोग या पर्यावरण के लिए विषाक्त बनाते हैं, जल प्रदूषण कहते हैं।

इन वर्षो में जलीय पर्यावरण में प्लास्टिक प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या पैदा कर रहा है। हर साल लगभग 300 मिलियन टन से अधिक विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है'। जिसका अधिकांश भाग विभिन्न कारणों द्वारा जल निकायों में मिल जाता है। बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया प्लास्टिक की सतहों पर बस जाते हैं और प्रदूषण के संकेतक के रूप में कार्य करते हैं। बायोफिल्म्स वाह्य कोशिकीय बहुलक पदार्थों (ई.पी.एस.) मैट्रिक्स में अंतर्निहित विभिन्न सूक्ष्मजीवों का संगठित समुदाय हैं, जो किसी सतह से जुड़े होते हैं। बायोफिल्म जलीय वातावरण के संपर्क में आने वाली किसी भी सतह पर विकसित हो सकती हैं। प्रोकैरियोट्स (प्राक्केंद्रकी जीव) समुद्री वातावरण में प्रारंभिक उपनिवेशक/औपनिवेशिक हैं और बायोफिल्म के प्रमुख घटक हैं । समुद्री वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया ऊर्जा, कार्बन स्रोत और अन्य पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए एक साथ मिलकर रहते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि सामान्यतया बैक्टीरिया बायोफिल्म जीवन शैली को अपनाते हैं। बायोफिल्म्स प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों सतहों की एक विस्तृत श्रृंखला पर पाई जाती हैं। बैक्टीरियल बायोफिल्म को जीवाणु जीवन शैली मुक्त-जीवित बैक्टीरिया से पूरी तरह से अलग होती है। बैक्टीरियल बायोफिल्म में सामाजिक सहयोग, संसाधन उपयोग और रोगाणुरोधी के संपर्क में आने के बाद जीवित रहना इत्यादि गुण होते है विकासवादी सफलता का कारण हैं।

जिस क्षण कोई भी सतह समुद्री जल में डूब जाती है या डुबाई जाती है, बायोफिल्म बनाने वाले प्रारंभिक बैक्टीरिया उस सतह पर बस जाते हैं । प्रारंभिक बायोफिल्म प्रक्रिया के दौरान, जीवाणु विभाजन, ई.पी.एस. उत्पादन और बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित अन्य मेटाबोलाइट्स सतहों के भौतिक तथा रासायनिक गुणों को संशोधित करने में मदद करते हैं और सतहों को आगामी बायोफूलिंग के लिए उपयुक्त बनाते हैं।

(चित्र 1 )

इस दौरान बैक्टीरिया सतह से पूर्णतया जुड़े नहीं होते हैं। जब मध्यामी/ माध्यमिक उपनिवेशवादी बैक्टीरिया इन सतहों से जुड़ते है तब ये अत्यधिक जटिल त्रि-आयामी (3-डी) बायोफिल्म बनाते हैं ।

बायोफिल्म की जटिलता के कारण ही बायोफिल्म में मौजूद अधिकांश बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं और अन्य प्रकार के तनाव के खिलाफ प्रतिरोध दिखाते हैं और सहन करने की क्षमता होती है। ये बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया जल निकायों में प्रदूषण उपचार के लिए सबसे अच्छे उम्मीदवार हो सकते हैं। बायोफिल्म्स बैक्टीरिया का उपयोग बायोरेमेडिएशन और प्रदूषित पानी से पोषक तत्वों को हटाने के लिए किया जा सकता है। प्रदूषित पानी की सफाई के लिए इन दिनों बायोफिल्म आधारित बायोरिएक्टर का उपयोग किया जाता है, जो पारंपरिक प्रदूषण उपचार संयंत्रों की तुलना में अधिक कार्यसक्षम होते हैं। इस समीक्षा में हमने जलीय पारिस्थितिक तंत्र में मौजूद प्रदूषण की पर्यावरणीय सफाई के लिए सर्वोत्तम उपलब्ध विकल्प के रूप में बायोफिल्म बैक्टीरिया का मूल्यांकन किया है।

प्रदूषित पानी के परिशोधन में बायोफिल्म बैक्टीरिया की भूमिका

बायोफिल्म प्रदूषित पानी के परिशोधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पिछले शोधों से बायोफिल्म बैक्टीरिया द्वारा औद्योगिक रासायनिक प्रदूषकों के क्षरण की क्षमता का पता चलता है। बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया भारी धातुओं के जैविक उपचार (बायोरेमेडिएशन) और पर्यावरण में मौजूद कुछ हानिकारक रसायनों के क्षरण में एक उत्कृष्ट भूमिका निभाते हैं और प्रदूषण के जैव-संकेतक के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं। जलीय निकायों में मौजूद रोगाणुओं के विभिन्न समूहों का परीक्षण अपशिष्ट जल के परिशोधन के लिए किया गया है"। बायोफिल्म समुदाय के सूक्ष्मजीवों का उपयोग विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों, रंगों, रसायनों और भारी धातुओं को आसान तथा पर्यावरण के अनुकूल तरीके से हटाने या कम करने के लिए किया जा सकता है। सारणी 1, में बायोफिल्म समुदाय के कुछ बैक्टीरिया सूचीबद्ध हैं, जिनका मूल्यांकन पर्यावरण में उनकी कार्यात्मक भूमिका के साथ प्रदूषित पानी से विभिन्न प्रकार के दूषित पदार्थों के उन्मूलन के लिए किया गया है। बायोफिल्म बनाने वाले सूक्ष्मजीवों के अनुप्रयोग द्वारा दूषित पानी से दूषित पदार्थों के उन्मूलन की प्रक्रिया में आत्मसात, अवशोषण और जैव अवक्रमण (बायोडिग्रेडेशन) शामिल हैं। 

बायोफिल्म बैक्टीरिया द्वारा पोषक तत्वों का आत्मसात

सभी जीवों को अपने अस्तित्व और वृद्धि के लिए पोषक तत्वों (कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस इत्यादि) की आवश्यकता होती है। पोषक तत्वों द्वारा प्रदूषण के प्राथमिक स्रोतों में उर्वरक, पशु खाद, मलजल उपचार संयंत्र (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) द्वारा स्रावित पानी, अपमार्जक (डिटर्जेंट), कार तथा बिजली संयंत्र, मलकुंड (सेप्टिक टैंक) और पालतू जानवर शामिल हैं। ये पोषक तत्व जब किसी कारणों से जल श्रोतों मे मिलते हैं तो जल मे पोषक तत्वो की अधिकता हो जाती है, जिसे यूट्रोफिकेशन कहा जाता हैं। यूट्रोफिकेशन प्रक्रिया के कारण जलीय पौधे की भरपूर वृद्धि होती है (उदाहरण शैवालों व जल कुंभी का बढ़ना)"। जलीय पौधे की वृद्धि के कारण पानी में घुली ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है, जिससे जल में रहने वाले जीवों (जलचर) को समस्या होती है।

जल में मौजूद पोषक तत्वों की अत्यधिक मात्रा को कम करने में बायोफिल्म बैक्टीरिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बैक्टीरियल विकास और कामकाज के लिए नाइट्रोजन और फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्वों की जरुरत होती है। नाइट्रोजन के अकार्बनिक रूपों का उपयोग बैक्टीरिया द्वारा उनके विकास के लिए किया जाता है। बायोफिल्म अक्सर अपने पड़ोसी निलंबित सूक्ष्मजीवों को प्राथमिक आवास प्रदान करते हैं"। अधिकांश पारिस्थितिक तंत्रों में, कार्बनिक पदार्थों के कार्बन का एक बड़ा हिस्सा जल में घुलनशील नहीं होता है। इन कार्बनिक कणों पर बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया चिपक जाते हैं जोकि कार्बन अधिग्रहण के लिए एक व्यापक रणनीति है"। बायोफिल्म द्वारा अवशोषित अधिकांश कार्बनिक पदार्थ कोशिकीय घटकों जैसे कि साइटोप्लाज्म में परिवर्तित हो जाते हैं, जो वाह्य कोशिकीय बहुलक पदार्थों के उत्पादन में मदद करते हैं।

चित्र 2

रूपांतरण प्रक्रिया के दौरान बहुत अधिक एटीपी ऊर्जा निकलती है। यह ऊर्जा सूक्ष्मजीवों के विकास और माइक्रोबियल समुच्चय / समूह के गठन को प्रोत्साहित करती है। हालांकि, सभी सामग्री को साइटोप्लाज्म या सेलुलर सामग्री में परिवर्तित नहीं किया जाता है तथा अधिकांश कार्बनिक पदार्थों को संग्रहित करके रखा जाता है, जिनका उपयोग बाद में सूक्ष्मजीवों विकास के दौरान किया जाता है। कोशिकाओं के अंदर संचित पॉलीसेकेराइड और पालिहाइड्राक्सी ब्यूटाइरेट का उपयोग विकृतीकरण के दौरान किया जाता है"। 

बायोफिल्म बैक्टीरिया द्वारा दूषित पदार्थों का अवशोषण

दूषित पदार्थों के अधिशोषक के रूप में बायोफिल्म बैक्टीरिया का उपयोग जल संदूषण उपचार के लिए आशाजनक तकनीकों में से एक है। सूक्ष्मजीवों और उनके समुच्चय के अवशोषण की प्रवृत्ति को जैव- अवशोषण के रूप में परिभाषित किया जाता है। जल निकायों से धातुओं को हटाने में जैव-अवशोषण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया ( स्यूडोमोनास एरुगिनोसा), कवक (एस्परगिलस नाइजर), खमीर ( राइजोपस ओरिजे) और शैवाल (चेटोमोर्फा लिनम) का उपयोग इन प्रदूषकों को अवशोषित करने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया का लाभ यह है कि ये विषाक्त पदार्थों का उत्पादन नहीं करते हैं तथा बायोफिल्म बैक्टीरिया वाह्य कोशिकीय बहुलक पदार्थों (ई.पी.एस.) द्वारा अपनी विविधता बनाए रखते हैं" ।

बायोफिल्म की संरचना भारी धातुओं को सोखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और बायोफिल्म में माइक्रोबियल समुच्चय की छिद्रयुक्त संरचना सक्रिय जैव-अवशोषण में मदद करती है" ।
अध्ययनों से पता चलता है कि बायोफिल्म उपस्थित बैक्टीरिया का उपयोग प्रदूषित जल से भारी धातुओं को हटाने में किया जा सकता है। 

उदाहरण के तौर पर स्यूडोमोनास एरुगिनोसा और बैसिलस सिरस समुच्चय का उपयोग भारी धातुओं से प्रदूषित जल में से जस्ता (II) को निकालने में किया गया है"। एस्चेरिचिया कोलाई एक बहुत ही प्रभावी जीवाणु है जिसका उपयोग सीसा, तांबा, कैडमियम और जस्ता जैसे कई भारी धातुओं को जल श्रोतों से हटाने में किया जाता है" । माइक्रोबियल बायोफिल्म्स द्वारा भारी धातुओं को सोखने की दक्षता उसकी जैविक संरचना, रासायनिक संरचना, कार्यात्मक समूहों और पीएच सहित कई पर्यावरण कारकों से प्रभावित होता है" । 

माइक्रोबियल बायोमास (जैव द्रव्यमान), हेवी मेटल बायोसॉर्बेट्स (भारी धातु जैव-अवशोषक) विशेष रूप से कम लागत वाले, सुरक्षित तथा तेजी गति से अवशोषण करने वाले होते हैं। इन बैक्टीरिया में प्रतिकूल परिस्थितियों में भी भारी धातुओं को हटाने की काफी अच्छी क्षमता है। इसके अलावा, इन माइक्रोबियल बायोमास को आसानी से संवर्धित किया जा सकता है तथा बायोरिएक्टर जैसे अपशिष्ट जल उपचार प्रणालियों उपयोग में लिया जा सकता है, जो न केवल भारी धातुओं को हटाने की दक्षता में सुधार करता है बल्कि सूक्ष्म पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ भी बनाए रखता है"।

कपड़ा रंगाई - छपाई उद्योग प्रतिदिन भारी मात्रा में अपशिष्ट जल उत्पन्न करता है", जो भूमि और सतही जल संसाधनों और मिट्टी के गुणों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। जो बदले में जन स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं। अधिकांश रंगाई-छपाई उद्योग कपड़ो को चमकीला रंग प्रदान करने वाले गुणों, रंगों की विस्तृत श्रृंखला, उच्च क्षमता, उच्च स्थिरता और धुलाई के साथ-साथ लुप्त होने के खिलाफ प्रतिरोधकता वाले कृत्रिम/ सिंथेटिक रंगों का उपयोग करते हैं। रंगाई - छपाई उद्योगों के अपशिष्ट जल से रंगों के क्षरण में बायोफिल्म बैक्टीरिया बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए विभिन्न बायोफिल्म बैक्टीरिया के समूहों का उपयोग मिथाइल ऑरेंज तथा कांगो रेड" के क्षरण में किया गया है। बैक्टीरिया द्वारा विभिन्न रंगों के क्षरण को चित्र 3 में दर्शाया गया है। 

बैक्टीरिया आधारित क्षरण कि विशेषता यह होती है कि ये विषैले पदार्थ कम या न के बराबर उत्पन्न करते हैं। बायोफिल्म बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित ई.पी.एस. में धातुओं और गैर- बायोडिग्रेडेबल कार्बनिक पदार्थों के अवशोषण के लिए कई स्थान उपलब्ध होते हैं"। ई.पी.एस. में मौजूद कुछ हाइड्रोफोबिक साइट (जलविरोधी स्थान) बैक्टीरिया द्वारा कार्बनिक प्रदूषकों के अवशोषण में मदद करते हैं। ऋण आवेशित ई.पी.एस. इलेक्ट्रोस्टैटिक इंटरैक्शन के द्वारा धन आवेशित कार्बनिक प्रदूषकों के साथ बंधने में सक्षम होते हैं।  इसके अलावा, ई.पी.एस. में मौजूद प्रोटीन में ह्यूमिक पदार्थों की तुलना में अधिक बंधन शक्ति और उच्च बंधन क्षमता होती है। बंधित ई.पी.एस. की तुलना में घुलनशील ई.पी.एस. में अधिक प्रोटीन का अंश होता है, जिस कारणवश घुलनशील ई.पी.एस. में उच्च बंधन क्षमता होती है। 


 

बायोफिल्म बैक्टीरिया द्वारा दूषित पदार्थों का जैव निम्नीकरण/ विघटनीकरण

जैव निम्नीकरण (जैव विघटन) की प्रक्रिया में सूक्ष्मजीवों द्वारा कार्बनिक पदार्थों का रासायनिक विघटन होता है। इन्हें हटाने के लिए पर्यावरण में रसायनों का सूक्ष्मजीवी क्षरण एक महत्वपूर्ण मार्ग है। प्लास्टिक तथा कार्बनिक रसायनों जैसे योगिकों के जैव निम्नीकरण (बायोडिग्रेडेशन) में अक्सर जैव रासायनिक प्रतिवरियाओं की एक जटिल श्रृंखला शामिल होती है। प्रदूषकों को वातापेक्षी (एरोबिक) या अवायवीय (एनारोबिक) तरीके से निम्नीकरण किया जा सकता है। पोषक तत्व (नाइट्रोजन और फास्फोरस) और सल्फर के यौगिक चिंता का विषय हैं, क्योंकि ये पानी की गुणवत्ता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। इन प्रदूषकों के निष्कासन में बायोफिल्म बैक्टीरिया का उपयोग सराहनीय है। वैसे बैक्टीरिया जो नाइट्रोजन के योगिकों का क्षरण करते हैं, को नाइट्रोजन निष्कासन की प्रक्रिया के अनुसार तीन समूहों में बाँटा गया है : (1) बैक्टीरिया जो जैविक नाइट्रोजन का क्षरण करके अमोनिया मुक्त करते हैं, (2) स्वपोषी बैक्टीरिया जो अमोनिया को नाइट्रेट में परिवर्तित करते हैं, तथा (3) बैक्टीरिया जो नाइट्रेट को नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित करते हैं"।

बायोफिल्म्स का व्यापक रूप से उपयोग बायोरिएक्टरों में अपशिष्ट जल के उपचार में दूषित पदार्थों के जैविक क्षरण के लिए किया जाता है। नाइट्रीकरण और विनाइट्रीकरण प्रक्रिया द्वारा नाइट्रोजनयुक्त यौगिकों को पानी से निष्काषित किया जाता है। फास्फोरस की अधिकता वाले जल क्षेत्रों में यूट्रोफिकेशन की प्रक्रिया ज्यादा तेज गति से होती है"। पादप प्लवक (फाइटोप्लांकटन) की वृद्धि के लिए फास्फोरस महत्वपूर्ण सीमित कारक माना जाता है, फास्फोरस की अधिकता से शैवाल उत्पादन की प्रक्रिया मे तेज़ी आती हैं"। इसलिए, जैविक फास्फोरस को जल से निष्काषित करना जरूरी है जिसमें बायोफिल्म बैक्टीरिया अहम भूमिका निभाते हैं। सक्रिय कीचड़ बायोफिल्म (एक्टिवेटेड स्लज बायोफिल्म) विधि का उपयोग करके अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र में जैविक फॉस्फेट को निष्काषित करने में बैक्टीरिया का उपयोग किया गया है, जो ऑर्थो-फॉस्फेट को पॉली- फॉस्फेट के रूप में अपनी कोशिका में संग्रहीत करते हैं। ऐसे बैक्टीरिया या उनके समूहों को पॉलीफॉस्फेट संचय करने वाले जीव के रूप में जाना जाता है।

औद्योगिक अपशिष्ट जल में सल्फेट की अत्यधिक मात्रा विद्यमान होती हैं"। जब सल्फर डाइऑक्साइड पानी और हवा के साथ मिलती है, तो यह सल्फ्यूरिक एसिड बनाती है। सल्फर का पर्यावरण में परिवर्तन सूक्ष्मजीवी गतिविधियों पर निर्भर करता है। सल्फर यौगिकों के सूक्ष्मजीव रूपांतरण में बैक्टीरिया के विशिष्ट समूहों का चयापचय शामिल होता है, जैसे कि सल्फेट कम करने वाले बैक्टीरिया, सल्फर- न्यूनीकरण और सल्फाइड-ऑक्सीकरण बैक्टीरिया, और प्रकाशाहारी सल्फर बैक्टीरिया"। बायोफिल्म के अवायवीय भाग में सल्फेट न्यूनीकरण खनिजकरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान देता है" । माइक्रोबियल समुच्चय जैसे बायोफिल्म्स में अन्य महत्वपूर्ण आंतरिक चक्र सल्फाइड ऑक्सीकरण के साथ मिलकर सल्फेट की कमी करते हैं"। सल्फाइड ऑक्सीकरण सहयोग से सल्फेट न्यूनीकरण बायोफिल्म बैक्टीरिया का महत्वपूर्ण आंतरिक चक्र हैं।

फिनोल एक महत्वपूर्ण औद्योगिक रसायन है जो व्यापक रूप से विस्फोटक, दवा, कीटनाशक, रंगद्रव्य, लकड़ी के संरक्षक और कच्चे माल या मध्यवर्ती के रूप में रबर उत्पादन में प्रयोग किया जाता है। जल निकायों में औद्योगिक, कृषि और घरेलू गतिविधियों से प्रदूषित अपशिष्ट जल के निर्वहन के कारण फेनोलिक यौगिक शामिल हो जाते हैं जो जहरीले होते हैं और मनुष्यों तथा जानवरों पर गंभीर और दीर्घकालीन प्रभाव डालते हैं। प्राकृतिक वातावरण में, फिनोल की
जैव अवक्रमण धीमी गति से होता है, जिसके कारण फिनोल पर्यावरण में जमा होते जाता है तथा दीर्घ काल तक उपस्थित रहता है। जलीय वातावरण में बैक्टीरिया, कवक, खमीर और जीवाणु सहित कई फिनोल- डिग्रेडिंग सूक्ष्मजीवों की पहचान की गई है। कई एसिनेटोबैक्टर की प्रजातियां फिनोल युक्त अपशिष्ट जल के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सूक्ष्मजीवों द्वारा फिनोल (यानी, बिस्फेनॉल ए या बी.पी.ए.) का बायोडिग्रेडेशन मुख्य रूप से लिग्निन-डिग्रेडिंग एंजाइम जैसे मैंगनीज पेरोक्सीडेज (एमएनपी) और लैकेज द्वारा किया जाता है"। एमएनपी एक हीम पेरोक्सी डेज है जो मैंगनीज (II) और हाइड्रोजन पेरोक्साइड की उपस्थिति में फेनोलिक यौगिकों का ऑक्सीकरण करता है जबकि लैकेज एक मल्टीकॉपर ऑक्सीडेज है जो पानी में ऑक्सीजन को कम करके फेनोलिक यौगिकों के एक इलेक्ट्रॉन ऑक्सीकरण को उत्प्रेरित करता है। 
 

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