खाद्य सुरक्षा की असली मंजिल है कुपोषण मुक्ति
खाद्य सुरक्षा की असली मंजिल कुपोषण से मुक्ति है। वंचित और बेसहारा आबादी की कुपोषण से शत-प्रतिशत मुक्ति। वह ऐसा प्रयास होगा जिसमें नीतियों, कार्यक्रमों, योजनाओं और सामाजिक सरोकारों की हकीकत नजर आ सकती है। हकीकत में वह सभ्य समाज और कल्याणकारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था की असली पहचान भी है। खाद्य सुरक्षा की असली मंजिल तो वह सतत विकास है जो नागरिकों को, पौष्टिक तथा सन्तुलित भोजन हासिल करने की जद्दोजहद से मुक्त करता है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आवश्यकतानुसार भोजन क्रय करने की क्षमता तथा निरन्तर उपलब्धता के लिए धन की टिकाऊ व्यवस्था करता है। इस पृष्ठभूमि में अन्न उत्पादन, खाद्य सुरक्षा की कभी भी खत्म नहीं होने वाली यात्रा का एक छोटा सा पड़ाव है। वह इष्टतम आर्थिक सुरक्षा है जो सम्मानपूर्वक जीने के लिए आवश्यक है। वह संभवतः कुपोषण से मुक्ति का पर्याय नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) के फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन ( Food And Agriculture Organization) की दृष्टि में खाद्य सुरक्षा वैश्विक समस्या है। फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन ने खाद्य सुरक्षा के चार स्तंभों की पहचान की है। पहला स्तंभ है - भोजन की सहज उपलब्धता, दूसरा स्तंभ है - भोजन तक सबकी सहज पहुँच, तीसरा स्तंभ है - उसका उपयोग और चौथा स्तंभ है - स्थायी खाद्य सुरक्षा या उसकी निरन्तरता। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन् 1948 के अपने मानव अधिकार घोषणापत्र (Human Right Declaration) में भोजन के अधिकार को मान्यता प्रदान की थी और कहा था कि खाद्य सुरक्षा का अधिकार, बाकी सभी अधिकारों का लाभ प्राप्त करने के लिए अनिवार्य है।
वल्र्ड फुड समिट (World Food Summit) की सन् 1996 में जारी अन्तिम रिपोर्ट में खाद्य सुरक्षा को परिभाषित किया गया है। परिभाषा का लब्बोलुआब यह है कि खाद्य सुरक्षा तभी मानी जा सकती है जब व्यक्ति को उसके सेहतमन्द और सक्रिय जीवनयापन हेतु, पर्याप्त मात्रा में, उसकी पसन्द का पोषक तत्वों से परिपूर्ण आहार, हर समय, उसकी पहुँच में उपलब्ध हो। धन और खाद्यान्न की कमी कभी आडे नहीं आए। खाद्य सुरक्षा की परिभाषा के उपर्युक्त सभी मापदण्ड भारत पर भी लागू हैं। यह परिभाषा प्रकारान्तर से कुपोषण मुक्ति को रेखांकित भी करती है।
पूरी दुनिया में लगभग एक अरब लोग भूख से पीडित हैं। भारत की बहुत बड़ी आबादी कुपोषण की शिकार है। इसी कारण, ग्लोबल हंगर इंडेक्स की 119 देशों की रेंकिंग में भारत, 103वें नम्बर पर है। वह अपने पड़ौसी देशों यथा पाकिस्तान, बांगलादेश, नेपाल और श्रीलंका से भी पीछे है। इसका एक अर्थ यह भी है कि पर्याप्त उत्पादन और पीडीएस व्यवस्था के बावजूद देश में लाखों लोगों को सन्तुलित और पोषक आहार नहीं मिल पा रहा है। अर्थात खाद्यान्नों का उत्पादन या खाद्य सुरक्षा हकीकत में, अन्तिम मंजिल नहीं मात्र पहला पडाव है। असली बात सन्तुलित भोजन तक लोंगों की पहुँच बनाना है। गरीबी का कुचक्र समाप्त करना है। न्यूनतम आय सुनिश्चित करने की चुनौती है। इसी कारण कुपोषण का मर्ज अमीरों पर लागू नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि पानी की उपलब्धता बढ़ाकर खाद्य सुरक्षा और पोषक आहार की मंजिल हासिल की जा सकती है। खाद्य सुरक्षा की चुनौतियाँ भले ही वैश्विक हैं, पर भोजन पर अधिकार तभी सुनिश्चित हो सकता है जब उत्पादन के लिए हानिरहित स्वच्छ पानी, खेती के लिए संसाधन और सेहत के लिए सुरक्षित मात्रा में पर्याप्त शुद्ध पानी उपलब्ध हो।
खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिए पानी आवश्यक तत्व है। उसे समुचित मात्रा में उपलब्ध कराना व्यवस्था की जिम्मेदारी है। निम्न कदम उठाकर किसी हद तक जिम्मेदारी को पूरा किया जा सकता है -
पानी पर अधिकार -
पानी के कुशल प्रबन्ध हेतु प्रोत्साहन -
पर्यावरण सुरक्षा हेतु प्रोत्साहन -
फसल विविधता हेतु प्रोत्साहन -
पानी से जुडा एक और मुद्दा है। यह मुद्दा अनदेखी के कारण सिर उठा रहा है और लोगों की सेहत के लिए गंभीर खतरा बन रहा है। वह खतरा है कीटनाषकों के कारण खाद्यान्नों में बढ़ता हानिकारक रसायनों का प्रतिशत और देश के कतिपय इलाकों के भूजल में बढ़ती आर्सेनिक की मात्रा और देश की मिट्टी और पानी में घुलता औद्योगिक अपशिष्ट। इस खतरे के समाधान से ही समाज सेहतमन्द रह पायेगा। यह मुद्दा खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।
कुछ लोगों की नजर में विपुल उत्पादन नही, अपितु कुपोषण ही असली समस्या है क्योंकि खाद्यान्न उपलब्धता और पीडीएस व्यवस्था के बाबजूद कुपोषण का होना इंगित करता है कि कुपोषण का असली कारण वह धनाभाव है जो वंचित और बेसहारा आबादी को कुपोषण के चक्रव्यूह में जकडे़ हैं। पर्याप्त पानी और सस्ते अनाज का रास्ता भूख तो कम कर रहा है पर कुपोषण के मोर्चे पर पूरी तरह कारगर नहीं है।
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