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खारे पानी का गाँव

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खारे पानी का गाँव। यहाँ समुद्र किनारे के किसी गाँव की बात नहीं हो रही है। हम उस गाँव की बात कर रहे हैं, जहाँ के लोग बीते 15 सालों से परेशान हैं पानी के खारे हो जाने से। लोगों के पास पीने के पानी का कोई दूसरा स्रोत नहीं होने से उन्हें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

यहाँ के लोग सरकारी अफसरों तक कई बार गुहार लगा चुके लेकिन कई साल गुजर जाने के बाद भी आज भी समस्या जस-की-तस बनी हुई है। वहीं पीने के पानी के लिये महिलाओं को दूर खेतों के जलस्रोतों से पानी भरकर सिर पर ढोना पड़ता है।

यह है मध्य प्रदेश में इन्दौर–बैतूल राष्ट्रीय राजमार्ग से थोड़ा अन्दर देवास जिले का सीमावर्ती छोटा सा गाँव पीपलकोटा। करीब साढ़े तीन हजार की जनसंख्या वाला। गाँव आने से पहले ही अपने सिर पर मटके और घड़े लिये पनिहारिनें हमें दिखाई पड़ीं। उनके साथ घर के छोटे–छोटे बच्चे भी थे जो घड़ों में पानी भरकर ला रहे थे।

कुछ किशोर साइकिलों पर चार–चार केन टाँगे चले आ रहे थे। हमारे साथ चल रहे इसी गाँव के रहवासी इरशाद खान ने खेतों के बीच दूर एक बोरिंग की और इशारा किया, जो ज़मीन से पानी उलीच रहा था। उन्होंने बताया कि ये महिलाएँ वहाँ से पानी लेकर आ रही हैं।

इरशाद बताते हैं कि गाँव के लोग बीते 15 सालों से इस समस्या का सामना कर रहे हैं। सन् 2000 तक सब कुछ सामान्य था लेकिन अचानक पहले एक बोरिंग का पानी खारा हो गया। लोगों ने कोई ध्यान नहीं दिया फिर इसके कुछ महीनों बाद गाँव के कुछ हैण्डपम्प भी खारा पानी देने लगे। लोगों ने पंचायत को बताया।

पंचायत ने अफसरों को बताया पर कोई झाँकने तक नहीं आया। कुछ महीनों बाद तो धीरे–धीरे गाँव के करीब–करीब सभी जलस्रोतों से खारा पानी ही आने लगा। अब तो यहाँ बोरिंग, हैण्डपम्प और कुएँ सभी जलस्रोतों में खारा पानी ही आ रहा है। लोग इस बात से परेशान भी हुए पर क्या करते।

पंचायत ने फिर से अफसरों को लिखकर भेजा पर इस बार भी कोई असर नहीं हुआ। गाँव के लोग भी इसे भूलकर अपने कामकाज में लग गए और बात आई गई हो गई पर महिलाओं का काम तब से ही बढ़ गया। अब उन्हें पीने के लिये पानी खेतों के जलस्रोतों से लाना पड़ता है। कोई एक से डेढ़ किमी दूर है तो कोई दो किमी तक भी।

बरसात में तो स्थिति बहुत बुरी हो जाती है। महिलाओं को घुटनों कीचड़ में नंगे पाँव पानी लेने जाना पड़ता है। कई बार मिट्टी में पैर फिसल जाते हैं। कई बार चोट भी लग जाती है पर इन सबसे न नेताओं को कोई मतलब है और न ही सरकारी अफसरों को। बीते साल चुनाव के वक्त वोट माँगने आये नेताओं ने भी जल्दी ही पानी की समस्या हल करने की बात कही थी पर चुनाव जीतने के बाद कोई इधर झाँका तक नहीं।

महिलाएँ कहती हैं कि यो पाप भगवान जाणे कद कटेगो.. हमारी पीढ़ी ने तो भुगती लियो, अब नई उछेर की छोरीहूण थोड़ी करेगा। (भगवान ही जानता है कि यह समस्या कब खत्म होगी.. हमारी पीढ़ी की महिलाओं ने तो खेतों से पानी लाकर भी गाँव को पिला दिया पर अब नए जमाने की बेटियाँ शायद ही कर सकेंगी।) किसी को हमारी फिकर ही नहीं है। कई बार एक खेत पर पानी नहीं मिलने पर पानी की आस में दूसरे खेत पर जाना पड़ता है। गर्मी के दौर में तो दूर–दूर तक भटकना पड़ता है।

गाँव के ही भुजराम दुलांवा बताते हैं कि खारे पानी की समस्या से पूरा गाँव परेशान है। खारे पानी का उपयोग बमुश्किल ही हो पाता है। पानी अब तो इतना खारा आता है कि इसका उपयोग नहाने और कपड़े धोने में भी नहीं कर पाते। नहाने से हाथ–पैर भूरे पड़ जाते हैं और खुश्की लगती है। यदि इससे कपड़े धोते हैं तो वे साफ़ नहीं निकल पाते और थोड़े ही दिनों में फटने लगते हैं। यदि चाय बनाने में गलती से इस पानी की एक बूँद भी मिल जाये तो पूरी चाय ही खराब हो जाती है।

रामेश्वर पटेल बताते हैं कि गाँव में पानी की कोई कमी नहीं है पर अब तो जहाँ भी खुदाई या बोरिंग होता है तो वहाँ खारा पानी ही निकलता है। गाँव के दो तरफ दो छोटी नदियाँ भी हैं। एक तरफ दतूनी नदी है तो दूसरी तरफ परेटी नदी है। इसलिये पानी की कोई कमी नहीं है और न ही जलस्तर की कोई दिक्कत है। बस गाँव के लोग खारे पानी की समस्या से ही त्रस्त हैं। हालाँकि गाँव बाहर के सभी जलस्रोत मीठा पानी देते हैं लेकिन गाँव के अन्दर के जलस्रोत खारा पानी।

यह तो तय है कि यह पानी प्रदूषित है पर बार-बार शिकायत के बाद भी अब तक लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अफसरों ने कभी यहाँ आकर पानी के सैम्पल नहीं लिये हैं। इस वजह से गाँव के लोगों में इस पानी को लेकर तरह–तरह की बातें चल रही हैं। दिलीप राठौर चाहते हैं कि इस पानी का सैम्पल लेकर इसकी जाँच हो कि आखिर यहाँ पानी किस वजह से खारा हो रहा है। इसमें कौन से तत्व की कमी या अधिकता है। कहीं यह पानी जहरीला तो नहीं हो रहा है और इसका लोगों के स्वास्थ्य पर तो कोई विपरीत असर नहीं पड़ रहा है।

पंचायत प्रतिनिधि बताते हैं कि इसकी शिकायत कई बार तहसील से लगाकर जिले तक के अधिकारियों से की है। दो साल पहले फिर से शिकायत की गई लेकिन किसी ने सुध तक नहीं ली। इस मामले में तहसीलदार अब अफसरों को भेजने की बात कह रहे हैं। फारूक खान और इलियास खान बताते हैं कि सरकारी अफसर चाहें तो जंगल की ओर बोरिंग करवाकर वहाँ से पाइपलाइन के जरिए मीठा और साफ़ पानी गाँव में वितरित किया जा सकता है।

इससे ग्रामीणों की समस्या दूर होने के साथ ही महिलाओं को भी दूर खेतों में पानी के लिये भटकना नहीं पड़ेगा। ग्राम पंचायत के पास इतना पैसा नहीं है कि वह ये सब कर सके। अफसरों के पास सरकारी योजनाओं की राशि है पर वे कोई मदद करें तब न। रेवाराम राठौर और गंगाधर राठौर कहते हैं कि सरकार लोगों को पानी पिलाने के लिये करोड़ों रुपए खर्च करती है पर हमारे गाँव के लिये कुछ नहीं हो रहा। हमारे साथ ही ऐसी उपेक्षा क्यों हो रही है।

गाँव के हालात से रूबरू होने के बाद हमने कन्नौद विकासखण्ड के तहसीलदार कुलदीप पाराशर से बात की तो उनका कहना था कि अब तक तो जानकारी में नहीं था लेकिन अब आपने बताया है तो लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों को जायजा लेने और समुचित कार्रवाई करने के निर्देश के साथ जल्दी ही पीपलकोटा भेजा जाएगा।
 

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