पाक का पानी रोकना आसान नहीं
सिंधु नदी जम्मू-कश्मीर से होकर पाकिस्तान में बहती है। हालांकि पाकिस्तान पिछले 56 साल में कई बार यह शिकायत कर चुका है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है और वह कुछ मामलों में अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता ट्रिब्युनल में भी गया है। जम्मू-कश्मीर होकर पाकिस्तान में बहने वाली सिंधु नदी वहाँ की लाइफ लाइन मानी जाती है। पाकिस्तान की आधी से ज्यादा आबादी की प्यास इसी से बुझती है। खेती से लेकर पाकिस्तान में 10 हजार मेगावाट बिजली इससे ही पैदा होती है। उरी हमले के बाद भारत पाकिस्तान को हर तरफ से घेरने की कोशिश कर रहा है। यही वजह है कि गत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंधु जल समझौता को लेकर एक समीक्षा बैठक बुलाई। इस बैठक में उन्होंने साफ कहा कि रक्त के साथ पानी नहीं बह सकता। साफ है, मोदी ने भारत की मंशा साफ कर दी कि उरी हमले के दोषियों को सजा दिलाने के लिये वह किसी भी हद तक जा सकता है।
भारत ने फिलहाल सिंधु जल समझौते को तोड़ने की बात नहीं कही है, लेकिन उसने अपने स्तर पर इस समझौते की समीक्षा करने और पहले से तय नियमों और मानकों के मुताबिक समझौते में शामिल नदियों के जल का पूरा इस्तेमाल करने का फैसला किया है। परिणामस्वरूप आने वाले दिनों में पाकिस्तान को भारी संकट का सामना करना पड़ सकता है।
पाकिस्तान के एक बड़े हिस्से के लोगों को एक-एक बूँद पानी के लिये तरसना पड़ सकता है। पाकिस्तान को हर मोर्चे पर घेरने के लिये भारत सरकार ने जिस तरह से नाकेबंदी शुरू की है उससे सम्भव है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुए सिंधु नदी जल समझौता रद्द कर दिया जाये।
सिंधु नदी जम्मू-कश्मीर से होकर पाकिस्तान में बहती है। हालांकि पाकिस्तान पिछले 56 साल में कई बार यह शिकायत कर चुका है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है और वह कुछ मामलों में अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता ट्रिब्युनल में भी गया है। जम्मू-कश्मीर होकर पाकिस्तान में बहने वाली सिंधु नदी वहाँ की लाइफ लाइन मानी जाती है।
पाकिस्तान की आधी से ज्यादा आबादी की प्यास इसी से बुझती है। खेती से लेकर पाकिस्तान में 10 हजार मेगावाट बिजली इससे ही पैदा होती है। सिंधु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। ये इलाका पाकिस्तान (47 प्रतिशत), भारत (39 प्रतिशत), चीन (8 प्रतिशत) और अफगानिस्तान (6 प्रतिशत) में है। सिंधु नदी उत्तर में हिमालय की पहाड़ियों से शुरू होकर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा होते हुए पाकिस्तानी पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान को पार करते हुए अरब सागर में जाकर खत्म होती है।
एक आँकड़े के मुताबिक करीब 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आस-पास के इलाकों में रहते हैं। सहायक नदियों चेनाब, झेलम, सतलुज, रावी और व्यास के साथ इसका संगम पाकिस्तान में होता है। बता दें कि विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद 19 सितम्बर 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था। तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयुब खान ने इस समझौते पर मुहर लगाई थी। तब से अब तक पाकिस्तान इस पानी को धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहा है। इसके तहत पाकिस्तान को 80.52 फीसद पानी यानी 167.2 अरब घन मीटर पानी सालाना दिया जाता है।
नदी की ऊपरी धारा के बँटवारे में उदारता की ऐसी मिसाल दुनिया की किसी और संधि में नहीं मिलेगी। यह संधि वास्तव में दुनिया की इकलौती अन्तरदेशीय जल संधि है, जिसमें सीमित सम्प्रभुता का सिद्धान्त लागू होता है और जिसके तहत नदी की ऊपरी धारा वाला देश निचली धारा वाले देश के लिये अपने हितों की अनदेखी करता है। इसके तहत सिंधु बेसिन में बहने वाली छह नदियों में से सतलुज, रावी और व्यास पर तो भारत का पूर्ण अधिकार है। वहीं पश्चिमी हिस्से की सिंधु, चेनाब और झेलम के पानी का भारत सीमित इस्तेमाल कर सकता है।
ऐसे में पहली नजर में तो ये लगता है कि समझौता तोड़नेे का फैसाल पाकिस्तान को प्यासा मार सकता है, लेकिन ये इतना आसान भी नहीं है। समझौते में तय हुआ था कि भारत सिंधु, झेलम और चेनाब पर बाँध नहीं बनाएगा। जिसकी वजह से भारत के सामने दिक्कत ये है कि पाकिस्तान के हिस्से वाली नदियों का पानी रोकने के लिये भारत को बाँध और कई नहरें बनानी होंगी। जिसमें बहुत पैसा और वक्त लगेगा। इससे विस्थापन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है और पर्यावरण भी प्रभावित होगा। यानी फौरी तौर पर पाकिस्तान इससे प्रभावित नहीं होगा। इसके अलावा पाकिस्तान चीन की मदद से भी दबाव बना सकता है।
चीन ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी तट राज्य और भारत निचला नदी तट राज्य है। इसका सीधा अर्थ है कि ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी तल पर स्थित चीन यदि पानी रोक देता है तो निचली तल पर स्थित भारत के लिये मुश्किलें बढ़ जाएँगी। चीन ऐसे मामलों में पहले कई बार खुलकर पाकिस्तान की मदद कर चुका है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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