पानी से बदलती कहानी
अपना तालाब अभियान की पहल पर ‘इत सूखत जल सोत सब, बूँद चली पाताल। पानी मोले आबरू, उठो बुन्देली लाल’ का नारा लगाते हुए लगभग 4 हजार लोग फावड़ों और कुदालों के साथ खुद ही तालाब की सफाई के लिये कूद पड़े। लोगों ने महज दो घंटे में ही तालाब की अच्छी खासी खुदाई कर डाली। पूरे 46 दिन तक काम चला और 21 हजार लोगों ने मिलकर सैकड़ों एकड़ में फैले जय सागर तालाब को नया जीवन दे दिया। खर्च आया महज 35 हजार रुपए। सरकारी आकलन से पता चला कि लोगों ने करीब 80 लाख रुपए का काम कर डाला था।
उत्तर प्रदेश के जल संकट ग्रस्त बुन्देलखण्ड इलाके में पानी की कमी दूर करने की नई राह नजर आई है। देवास का यह प्रयोग देश में पानी की कमी से जूझ रहे अन्य क्षेत्रों के लिये नजीर है।
सफलता का प्रतीक गोरवा गाँव
पानी से किस्मत बदलने का नाम है देवास जिले के टोंक खुर्द तहसील का गोरवा गाँव। करीब 1500 की आबादी वाले इस गाँव में साल 2006 तक पानी का संकट बहुत बड़ा था। उस वक्त गाँव के 1-2 सम्पन्न किसानों के पास ट्रैक्टर थे। पर गाँव के लोगों की खेती से उपज इतनी ही थी जिससे कि बमुश्किल पेट पाला जा सके। लेकिन उमाकान्त उमराव से मुलाकात ने गोरवा वालों की तकदीर बदल दी। आज गाँव के करीब हर किसान का तालाब है। तालाब भी ऐसे नहीं कि बस यूँ ही खोद लिया हो बाक़ायदा वैज्ञानिक मॉडल से बना हुआ। गाँव की ऊँची-नीची जमीन में खुदे तालाब ऐसे खोदे गए हैं कि एक तालाब भरने के बाद पानी खुद अगले तालाब का रुख कर ले। यह उमराव कि सिविल इंजीनियरिंग का नतीजा था। गाँव के पूर्व सरपंच राजा राम पटेल बताते हैं कि आज गोरवा गाँव में करीब 150 ट्रैक्टर हैं। यह खेती और तालाब खोदने में मदद करते हैं। आस-पास के गाँवों की भी हम तालाब खोदने में मदद करते हैं। राजाराम बताते हैं कि उमाकान्त उमराव को हर नए तालाब खोदने पर लोग याद करते हैं और वह आते भी हैं। दूसरे आईएएस अधिकारियों से उलट उमराव खुद आगे आकर खेतों में कुदाल चलाते हैं और हमारा हाल भी फोन से पूछते हैं। ऐसे में वह किसानों को प्रेरणा देते हैं। गोरवा के दो किसानों को जल संसाधन मंत्रालय की ओर से भूमि जल सम्वर्धन पुरस्कार भी मिला है।
क्या है देवास मॉडल
सामान्य तौर पर देवास मॉडल में कुछ भी खास नहीं है। तालाब किसानों ने खुद ही अपने खेतों में बनाए हैं। सवाल सीधा है हमारा भूजल बरकरार नहीं रहेगा तो फिर हमारे सामने पानी का दूसरा विकल्प क्या है? दूसरा सवाल यह भी है कि पूरी बारिश के बावजूद हमारा भूजल स्तर बरकरार क्यों नहीं रह पाता। इसके लिये गाँव में खोदे गए देवास के तालाब भूजल रिचार्ज का अहम जरिया बने। बारिश की भारी कमी वाले कुछ क्षेत्रों को छोड़ दें तो पूरे देश में वर्षाजल हमारी सिंचाई की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये काफी है। हर 100 लीटर वर्षाजल में महज 10 से 15 लीटर पानी ही नदियों और बाँधों में जा पाता है। अगर हम इन 100 लीटर में से 20 से 30 लीटर पानी को नदी और भूजल तक पहुँचा सके तो यह भूजल स्तर के लिये कारगर होगा। इजराइल जैसे देश में यह स्तर प्रति 100 लीटर में 62 लीटर है। उमराव ने इसके लिये कई मॉडलों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि पानी की खपत तीन तरीके से होती है। एक दैनिक उपयोग, दूसरा औद्योगिक और तीसरा खेतों में सिंचाई। सबसे ज्यादा करीब 90 फीसद तक पानी का सिंचाई में इस्तेमाल होता है। उमराव बताते हैं कि मुझे ऐसे वर्षाजल प्रबन्धन का मॉडल की तलाश थी जिससे किसानों की इच्छा पूरी हो सके। इसका सीधा फायदा किसानों को मिले। इससे पहले सरकारी नारे ‘जल ही जीवन है’ से अलग हट हमने इसे ‘जल बचाइए, लाभ कमाइए’ में बदला। इसकी वजह थी की फायदे की बात जल्दी समझ में आती है। नतीजा दिख रहा है। आज देवास और आस-पास के मालवा क्षेत्र में 12 हजार से ज्यादा तालाब खुद चुके हैं। प्रदेश सरकार तालाबों की सफलता को देखते हुए 2007 में बलराम तालाब योजना शुरू की। इसके तहत किसानों को 80 हजार से 1 लाख तक की आर्थिक मदद दी जाती है।
तालाब ने भर दी झोली
देवास जिले के कई इलाके में करीब 80 फीसद लोगों के खुद के तालाब हैं। इन तालाबों से न केवल पैदावार में इज़ाफा हुआ है बल्कि किसान मछली पालन भी कर रहे हैं। इससे इन्हें अतिरिक्त आय का जरिया भी मिला है। हिरण इन तालाबों से पानी पीते हैं। प्रवासी पक्षी यहाँ आ रहे हैं। इनके लिये किसानों ने तालाबों के बीच-बीच में टापू बना दिये हैं। जिससे इनकी संख्या बढ़ सके। तालाबों से किसानों की पैदावार भी बढ़ी है उपजाऊ मिट्टी अब बहकर तालाब में जाती है। किसान वापस इसका खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं। पानी की मौजूदगी से कई नगदी सब्जियों की बुआई हो रही है। किसान इन तालाबों से खुश है। उम्मीद है कि नए तालाब बनते रहेंगे।