पर्वतीय क्षेत्रों में प्राकृतिक जल स्रोत
पर्वतीय क्षेत्रों में प्राकृतिक जल स्रोत

प्राकृतिक जल स्रोतों का पुनर्जीवीकरण एवं उपयोग

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जल एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है, जिसके बिना जीवन सम्भव नहीं है, तथा जिसकी कमी के कारण जीवन की प्रत्येक कार्य प्रणाली पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त कृषि कार्यो में आरम्भ से अन्त तक जल का विशेष महत्व है, तथा जल की कमी के कारण कृषि उत्पादन में भारी कमी आ जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 90 प्रतिशत् आबादी कृषि पर आधारित है, परन्तु यहॉं लगभग 11 प्रतिशत् पर्वतीय भागों में ही उपलब्ध है, अर्थात 89 : क्षेत्रफल वर्षा पर आधारित है जो मुख्यतः ऊपरी पर्वतीय भागों में उपलब्ध है। लगभग दो-तीन दशकों पूर्व पर्वतीय क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में प्राकृतिक जल स्रोत उपलब्ध थे जिनका उपयोग पीने के पानी एवं गृह कार्यो के अतिरिक्त सिंचाई के काम भी आता था। परन्तु वर्तमान समय में अनियंत्रित शहरीकरण, सड़क निर्माण आदि के कारण पर्यावरण असंतुलन से अधिकतम प्राकृतिक स्रोत या तो पूर्णतः नष्ट हो गये हैं या केवल मौसमी बनकर रह गये हैं। दूर दराज के क्षेत्रों में आज भी ग्रामीण महिलाओं का अधिकांश समय दूर के प्राकृतिक स्रोतों से पीने योग्य जल लाने में ही लग जाता है। उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह अत्यावश्यक है कि उपलब्ध प्राकृतिक जल- स्रोतों का प्रवाह बढ़ाने की दूष्टि से इनका पुनर्जीवीकरण किया जाए ताकि पीने के पानी की उपलब्धता के अतिरिक्त सिंचाई के साधन भी बढ़ाये जा सके।

इस दिशा में शोध की दृष्टि से एक अध्ययन उद्यान एवं वानिकी विश्वविद्यालय, रानीचौरी के परिसर में उपलब्ध दो प्राकृतिक स्रोतों पर आरम्भ किया गया, जिसके उद्देश्य निम्नवत्‌ थेः

वानस्पतिक एवं यांत्रिक उपायों द्वारा प्राकृतिक श्रोतों के पुनःपूरण (रिचार्ज) में वृद्धि करना ताकि प्रवाह बढ़ सके।

जल स्रोतों के प्रवाह तथा जल की आवश्यकता के अनुरुप संचय टंक की डिजाइन व निर्माण।

वानस्पतिक उपाय के अंतर्गत स्रोतों के प्रतिप्रवाह में बांज, उत्तीस तथा विलों आदि वानिकी प्रजातियों का पौधारोपण करना तथा यांत्रिक विधि के अन्तर्गत 1.0 x 0.5 x 0.5 मी0 आकार के समलम्बाकार (1:4) गड्ढे 1 मी0 उर्ध्वाधर दूरी पर कन्टूर लाइन पर तथा 2 मी0 क्षैतिज अन्तराल (ढाल के अनुरुप) खोदना शामिल थे। लगातार साप्ताहिक अन्तराल पर इन स्रोतों के प्रवाह तथा वर्षा का मापन किया गया।


चूंकि स्रोत का पुनःपूरण (रिचार्ज) वर्षा की मात्रा पर निर्भर करता है, इसलिये अध्ययन से यह पाया गया कि प्रतिवर्ष अधिकाधिक वर्षा की मात्रा का भूमिगत पुनःपूरण हुआ, तद्नुसार जल स्रोतों का प्रवाह भी बढ़ सका। आरम्भिक तीन वर्षो के आंकड़ों के अनुसार जल स्रोतों के औसत मासिक प्रवाह एवं वार्षिक वर्षा के अनुपात के अनुसार एक स्रोत का अनुपात 0.0080, 0.0096 व 0.0087 घन मी0/प्रतिदिन/प्रति मिमी0 वर्षा, तथा दूसरे के लिये 0.022,0.025 व 0.023 घन मी0/प्रतिदिन/प्रति मिमी0 वर्षा पाया गया। अर्थात प्रतिवर्ष स्रोत के पुनःपूरण अनुपात वृद्धि पायी गयी। तीसरे वर्ष पुनःपूरण अनुपात में कुछ कमी का कारण गड्ढों मे मिट्टी एकत्र होने से पानी के अन्तःस्यन्दन में कमी हो सकता है।





 

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