राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना पर एक जमीनी अध्ययन

Published on
4 min read

आज से चार वर्ष पूर्व जबकि देश भर में रोजगार यात्रायें निकल रहीं थीं, उस समय इन यात्राओं में एक गीत गाया जाता था, जिसके बोल हैं ‘‘मेरे लिये काम नहीं’’। अंततः वर्ष 2005 में रोजगार गारंटी कानून आ गया और देश भर में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को साल भर में 100 दिन के काम की गारंटी मिली।

इस कानून की मूल मंशा यही है कि लोगों को गांव में काम मिले, गांव में स्थाई परिसंपत्तियों का सृजन हो और पलायन रूके। महिला और पुरूषों को समान काम व समान मजूदरी मिले। इसके अलावा कई सारे ऐसे प्रावधान जो मजदूरों की हकदारी बुलंद करते हैं। इन सब प्रावधानों के मध्यनजर यह जनता के हितों को संरक्षण करने वाला कानून बना।

मगर आज कानून के क्रियानवयन के तीन वर्ष बाद ‘‘क्या खोया क्या पाया’’ की तर्ज पर इस कानून की समीक्षा करें तो हम पाते हैं कि रोजगार यात्राओं में गाये जाने वाले इस गीत के बोल तो आज भी प्रभावी है और लोगों के पास आज भी काम नहीं। पलायन बदस्तूर जारी है। यदि काम मिल भी गया तो लोगों को 6 से 8 माह तक मजदूरी नहीं मिली है। न ही मजदूरों को बेरोजगारी भत्ता मिल रहा है और न ही अन्य हकदारियां। मजदूरों को उनके श्रम का न्यूनतम मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। इस नजरिये से यह जनता के हितों को संरक्षित करने वाला कानून तो नहीं ही है।

इस साल जबकि सूखा पड़ा तो लगा कि रोजगार गारंटी योजना के चलते लोगों को भूखा नहीं सोना पड़ेगा। अपना घर बार छोड़कर दूसरी जगह पलायन पर भी नहीं जाना पड़ेगा, लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत। लोग भूखे सो रहे हैं। लोग कहते हैं कि वे पलायन पर जाना पसंद करते हैं लेकिन नरेगा में काम करने नहीं आते हैं। उनकी अपनी दिक्कते हैं, अपने तर्क हैं। लेकिन यह चिंताजनक बात सामने आई कि आखिर लोग क्यों नहीं काम पर जाना चाहते हैं?आखिर ऐसे क्या कारण हैं?

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (नरेगा) असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, विकास से वंचित क्षेत्रों और समतामूलक अधोसंरचनात्मक ढांचों के विकास के साथ-साथ पर्यावरण-मिट्टी संरक्षण के मामले में अब तक की सबसे एकीकृत और रचनात्मक कानूनी पहल है। हम सब जानते हैं कि इस कानून के जन्म के पीछे जनसंघर्षों की एक महती भूमिका रही है। इन्हीं विचारों को पृष्ठभूमि में रखते हुये भोजन का अधिकार अभियान विगत 3 वर्षों से लगातार एक निश्चित समयान्तराल पर इस योजना के संदर्भ में सघन जमीनी अध्ययन (रैपिड असेसमेंट सर्वे) करता रहा है।

कानून के तीन साल पूरे होने के बाद हम भोजन का अधिकार अभियान सहयोगी समूह व उससे संबद्ध समस्त संस्था/संगठनों ने यह जानने की कोशिश की वास्तव में दिक्कत कहां आ रही है तो हमने जमीनी स्तर पर जाकर अध्ययन किया। इस बार अप्रैल से जून 2009 की अवधि के बीच एक बार फिर ऐसे ही अध्ययन यह जानने के मकसद से किया गया कि व्यवस्थाओं और जवाबदेहिता के स्तर पर नरेगा की दिशा क्या है?

इस अध्ययन में हमने 23 जिलों के 25 ब्लॉक के 112 गांवों के 2765 वयक्तियों से प्रत्यक्ष बातचीतकी। इस अध्ययन में हम कार्यस्थलों पर गये। समूह चर्चायें की। हमारे अधिकतर सवालों के जवाब समूह चर्चाओं से उभरे। इस विश्लेषण में हमने कई बार गांवों को आधार बनाया है तो कई बार हमने व्यक्तियों को आधार बनाया है। दरअसल जो लोगों ने कहा है हमने उसे ही पिरोने की कोशिश की। इस अध्ययन में हम किसी प्रारूप के साथ जमीन पर नहीं गये हैं, बल्कि ज्यादा से ज्यादा खुली चर्चायें की। प्रशासनिक अधिकारियों से साक्षात्कार किये। पोस्टऑफिस और बैंक कर्मियों से बातचीत की। इस अध्ययन में हमने प्रमुख रूप से केस स्टडी पर ज्यादा ध्यान दिया है, जिससे हम जमीनी स्तर की सच्चाईयों को बेहतर तरीके से उकेर सकें। यह एक समन्वित प्रयास है जिसमें प्रदेश के 23 संस्था एवं संगठनों ने केन्द्रीय भूमिका निभाई है। हम सबकी मंशा है कि नरेगा अपने मूल कानूनी स्वरूप में अपने लक्षित वर्ग तक पहुंचे और उसे अपने लक्ष्य तक पहुचाने की दिशा में यह हमारी एक कोशिश है।

इस अध्ययन में पहला पक्ष ऐसा शामिल किया गया है जो रोजगार गारण्टी योजना के बेहद बुनियादी प्रावधान हैं - काम के लिये आवेदन दिया जाना और पावती मिलना। दूसरा पक्ष व्यवस्थागत मसलों से सम्बन्धित है - काम न मिलना और जॉब कार्ड या ऐसे कारण जिनसे काम नहीं मिलता है। फिर तीसरे पक्ष में मजदूरी के भुगतान में देरी, बैंक एवं डाक घरों के खातों के जरिये भुगतान की नई व्यवस्था के बेहद शुरूआती अनुभवों की पड़ताल करने की कोशिश की गई है। चौथे पक्ष में यह विश्लेषण करने की कोशिश की गई है कि क्या नरेगा का मौजूदा जमीनी क्रियान्वयन बेरोजगारी भत्ते और मजदूरी मुआवजा के अधिकार को पनपने दे रहा है या नहीं? पांचवे पक्ष में कुछ व्यापक सवाल हैं।

इस अध्ययन की एक संक्षिप्त रिपोर्ट आपके समक्ष है। आशा है इस रिपोर्ट से उभरे बिन्दुओं पर आप सभी ध्यान देंगे और कुछ ठोस और सार्थक पहल की जायेगी। इस रिपोर्ट को हमने पांच प्रमुख भागों में विभाजित किया है, काम के लिये आवेदन, मजदूरी भुगतान, बैंक खाते न खुलना, कपिलधारा योजना और अंत में अन्य व्यापक सवाल जिसमें पारदर्शिता से जुडें मसलों को शामिल किया गया है।

यदि आप पूरा सर्वे देखना चाहते हैं तो डाऊनलोड करें

हर हाथ को मिले काम, काम का मिले पूरा दाम ।।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org