रायपुर जिले में तालाब (Ponds in Raipur District)

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मानव आदिकाल से ही प्राकृतिक वातावरण से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता रहा है। वह अपने जीवन को सरल एवं सुखमय बनाने के लिये प्राकृतिक वातावरण में यथासंभव परिवर्तन भी करता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत वह अनेक वस्तुओं की रचना करता है जो दृश्य होते हैं।

छत्तीसगढ़ में तालाबों का अस्तित्व मानव पर्यावरण अन्तर्सम्बंधों का परिणाम है। वर्ष में वर्षा के द्वारा जल की उपलब्धता 55 से 63 दिनों तक होती है। वर्षा के अतिरिक्त यहाँ जल की उपलब्धता के अन्य स्रोत नहीं हैं अतः शेष समय में जल की आपूर्ति हेतु तालाबों का निर्माण किया गया है।

तालाबों के निर्माण में उपलब्ध सहज तकनीक का उपयोग किया गया हैं। स्थानीय उपलब्ध मिट्टी का उपयोग मिट्टी की दीवार बनाकर जल-संग्रहण हेतु क्षेत्र तैयार किया गया है। सबसे सहज तकनीक एवं सस्ते मानवीय श्रम का उपयोग तालाबों के निर्माण में दृष्टिगत होता है। ग्रामों में जल संग्रहण एवं संवर्धन की यह तकनीक अधिवासों के विकास के समय से ही उपयोग किया जा रहा है। प्रत्येक ग्रामीण आदिवासी में घर के छतों तथा गलियों से निकलने वाले वर्षा-कालीन जल-अधिवासों के निकट की तालाबों में संग्रहित किया जाता रहा है।

कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में तालाबों के द्वारा सिंचित क्षेत्रफल भी पर्यावरणीय समायोजन का प्रतिफल है। धान के खेतों में फसलों को जल आपूर्ति हेतु एकल, युग्म व सामूहिक तालाबों का अस्तित्व मिलता है। तालाबों द्वारा सिंचाई छत्तीसगढ़ की कृषि का अभिन्न अंग रहा है। सिंचाई के अन्य तकनीक का विकास 1890 के पश्चात अंग्रेजी शासन व्यवस्था के अंतर्गत किया गया था। यह व्यवस्था अल्प वर्षा के परिणाम स्वरूप सिर्फ धान के फसल की रक्षा के उद्देश्य से शुरू की गई थी। सिंचाई तकनीक की तृतीय अवस्था 1965-66 के पश्चात कुँओं के निर्माण में प्रारम्भ हुई। उल्लेखनीय है कि यह वर्ष अकाल वर्ष के रूप में जाना जाता है। सिंचाई की नवीनतम तकनीक नलकूप से सिंचाई 1980 के दशक के बाद प्रारम्भ हुई।

तालाबों का वितरण

सारणी 2.1

विकासखण्ड

ग्रामों की संख्या

40 हेक्टेयर से कम सिंचाई क्षमता वाले तालाब

40 हेक्टेयर से अधिक सिंचाई क्षमता वाले तालाब

तालाबों की संख्या

जलाश्यों की संख्या

कुल क्षेत्रफल

में जल के अंदर भूमि प्रतिशत

तिल्दा

156

823

52

875

02

5.47

धरसीवा

130

672

50

722

02

5.23

आरंग

134

894

53

947

09

6.11

अभनपुर

135

570

25

595

03

4.52

बलौदाबाजार

124

527

197

724

02

5.74

पलारी

132

670

216

886

03

6.82

सिमगा

142

524

264

788

03

5.66

कसडोल

144

267

65

332

03

3.60

बिलाईगढ

216

669

201

870

04

4.24

भाटापारा

149

446

133

579

02

4.14

राजिम

136

594

22

616

06

4.53

गरियाबंद

156

287

27

314

04

2.12

छुरा

175

340

28

368

08

1.95

मैनपुर

100

310

28

338

01

3.38

देवभोग

169

389

27

416

03

1.88

कुल

2199

7982

1388

9370

55

65.39

स्रोत: भू-अभिलेख कार्यालय, रायपुर (छ.ग.)

भू-अभिलेख कार्यालय से प्राप्त उपर्युक्त आंकड़े यह स्पष्ट करते हैं कि सिंचाई क्षमता के अनुसार तालाबों की वर्गीकृत किया गया है। सारणी में उल्लेखित तालाबों के अतिरिक्त अन्य अवर्गीकृत तालाब भी पाए जाते हैं। जिले में 9370 तालाब हैं, जो सिंचाई एवं घरेलू उपयोग के लिये उपलब्ध हैं। उक्त संख्या में 1388 तालाब ऐसे हैं, जिनकी सिंचाई क्षमता 40 हेक्टेयर से अधिक है तथा 7982 तालाबों की सिंचाई क्षमता 40 हेक्टेयर से कम सिंचाई की है। इनके अतिरिक्त 55 जलाशय हैं, जो शासन के द्वारा अकाल-राहत अथवा धान के पौधों को सूखे से राहत दिलाने के लिये निर्मित किए गए हैं। जिले में कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.26 प्रतिशत भाग जल के नीचे है, यद्यपि इनमें तालाबों के अतिरिक्त नदियों एवं नालों का क्षेत्रफल शामिल हैं।

तलाबों का वितरण विभिन्न धरातलीय विशेषताओं को स्पष्ट करते हैं। महानदी खारुन दोआब (धरसीवां, अभनपुर, आरंग, पलारी, सिमगा, बलौदाबाजार, भाटापारा) के क्षेत्र में प्रत्येक अधिवास में 4 से लेकर 7 तक तालाब पाए जाते हैं। रायपुर उच्च भूमि (गरियाबंद, मैनपुर, देवभोग) में यह संख्या घटकर 2 से लेकर 4 तालाब तक हो जाती है। ट्रान्स महानदी क्षेत्र (कसडोल, बिलाईगढ़) में 3 से 5 तालाब प्रत्येक ग्रामीण अधिवास में पाए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि 40 हेक्टेयर से अधिक सिंचाई क्षमता वाले तालाब की उपलब्धता भी उपयुक्त धरातलीय विशेषताओं में नियंत्रित होते हैं। ये तालाब प्राचीन तालाब हैं जो लगभग 1950 के पूर्व निर्मित हुए हैं। स्वतंत्रता पश्चात निर्मित तालाब रायपुर उच्च तथा ट्रान्स महानदी क्षेत्र में शासन द्वारा निर्मित किए गए हैं। प्रत्येक वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में तालाबों के वितरण से यह स्पष्ट होता है कि प्रत्येक वर्ग कि.मी. में 1 तालाब महानदी खारुन दोआब के क्षेत्र में स्थित है। प्रत्येक 10 वर्ग किमी में 5 से 10 तालाब ट्रान्स महानदी क्षेत्र में स्थित है तथा प्रत्येक 10 वर्ग किमी क्षेत्र में 5 से 6 तालाबों का वितरण रायपुर उच्चभूमि में स्थित है उपयुक्त संख्या चट्टानों की उपलब्धता तथा कृषि योग्य भूमि की मात्रा को स्पष्ट करती है।

तालाबों का इतिहास

सारणी 2.2

निर्माण वर्षों के अनुसार तालाब

क्रमांक

विकासखण्ड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

तालाबों का निर्माण वर्ष

1850 के पूर्व

1950 के पूर्व

1

आरंग

05

29

02

27

2

अभनपुर

05

24

01

23

3

बलौदाबाजार

04

21

03

18

4

भाटापारा

04

33

05

28

5

बिलाई गढ

04

24

03

21

6

छुरा

04

21

01

20

7

देवभोग

04

18

02

16

8

धरसीवां

04

20

-

20

9

गरियाबंद

04

21

04

17

10

कसडोल

04

17

01

16

11

मैनपुर

04

20

-

20

12

पलारी

04

14

02

12

13

राजिम

02

06

-

06

14

सिमगा

02

06

-

06

15

तिल्दा

03

11

02

09

 

कुल

57

285

26

259

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा

उपरोक्त सारणी 2.2 से स्पष्ट है कि सर्वेक्षित जिले के अध्ययन क्षेत्रों में चयनित तालाबों में से 1950 के पूर्व निर्मित तालाबों की कुल संख्या 26 (9.12 प्रतिशत) एवं 1950 के पश्चात निर्मित तालाबों की संख्या 259 (90.88 प्रतिशत) पाया गया है।

1950 के पूर्व या ब्रिटिश कालीन तालाब:

1950 के पश्चात या वर्तमान कालीन तालाब

तालाबों के स्वामित्व

सारणी 2.3

क्र.

विकासखण्ड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

स्वामित्व अनुसार तालाबों की  संख्या

शासन

%

ग्राम. पं

%

निजी

%

1

आरंग

05

29

16

5.61

07

2.45

06

2.10

2.

अभनपुर

05

24

16

5.61

03

1.05

05

1.75

3.

बलौदाबाजार

04

21

15

5.26

04

1.40

02

0.70

4.

भाटापारा

04

33

22

7.71

01

0.35

10

3.50

5.

बिलाईगढ़

04

24

16

5.61

03

1.05

05

1.75

6.

छुरा

04

21

18

6.31

01

0.35

02

0.70

7.

देवभोग

04

18

15

5.26

01

0.35

02

0.70

8.

धरसीवां

04

20

18

6.31

-

-

02

0.70

9.

गरियाबंद

04

21

19

6.66

02

0.70

-

-

10.

कसडोल

04

17

13

4.56

03

1.05

0.1

0.35

11.

मैनपुर

04

20

18

6.31

01

0.35

01

0.35

12.

पलारी

04

14

09

3.13

03

1.05

0.2

0.70

13.

राजिम

02

06

06

2.10

-

-

-

-

14.

सिमगा

02

06

06

2.10

-

-

-

-

15.

तिल्दा

03

11

08

2.80

0.3

1.05

-

-

 

कुल

57

285

215

75.44

32

11.23

38

13.33

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा

उपरोक्त सारणी 2.3 से स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्रों के चयनित ग्रामीण क्षेत्र में चयनित तालाबों में शासकीय तालाबों की संख्या 215 (75.44 प्रतिशत) ग्राम पंचायत अंतर्गत तालाबों की संख्या 32 (11.23 प्रतिशत) एवं निजी भूस्वामी वाले तालाबों की संख्या 38 (13.33 प्रतिशत) पायी गयी है।

शासकीय तालाब

ग्राम पंचायत

निजी तालाब

धरातलीय मिट्टी के अनुसार तालाबों का वर्गीकरण

सारणी 2.4

तालाब की धरातलीय मिट्टी

क्र.

विकासखण्ड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

चयनित तालाब की धरातलीय मिट्टी

    

कन्हार

%

मटासी

%

भाटा

%

1.

आरंग

05

29

15

5.26

11

3.85

03

1.05

2.

अभनपुर

05

24

10

3.50

10

3.50

04

1.40

3.

बलौदाबाजार

04

21

08

2.80

09

3.15

04

1.40

4.

भाटापारा

04

33

11

3.85

13

4.56

09

3.15

5.

बिलाईगढ़

04

24

06

2.10

12

4.21

06

2.10

6.

छुरा

04

21

07

2.45

09

3.15

05

1.75

7.

देवभोग

04

18

06

2.10

07

2.45

05

1.75

8.

धरसीवां

04

20

09

3.15

05

1.75

06

2.10

9.

गरियाबंद

04

21

07

2.45

07

2.45

07

2.45

10.

कसडोल

04

17

03

1.05

08

2.80

06

2.10

11.

मैनपुर

04

20

08

2.80

08

2.80

04

1.40

12.

पलारी

04

14

05

1.75

04

1.40

05

1.75

13.

राजिम

02

06

02

0.70

02

0.70

02

0.70

14.

सिमगा

02

06

01

0.35

04

1.40

01

0.35

15.

तिल्दा

03

11

04

1.40

04

1.40

03

1.05

 

कुल

57

285

102

35.79

113

39.65

70

24.56

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा

उपरोक्त सारणी 2.4 से स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्रों में चयनित 285 तालाबों में कन्हार मिट्टी द्वारा निर्मित तालाब की संख्या 102 (35.79 प्रतिशत), मटासी मिट्टी द्वारा 113 (39.65 प्रतिशत) एवं भाटा मिट्टी द्वारा निर्मित तालाबों की संख्या 70 (24.56 प्रतिशत) पायी गयी है। चयनित तालाबों में सर्वाधिक मटासी मिट्टी एवं न्यूनतम भाटा मिट्टीयों में तालाब निर्मित है।

कन्हार मिट्टी वाले तालाब

मटासी मिट्टी के तालाब

भाठा मिट्टी के तालाब

तालाबों को प्रभावित करने वाले कारक

तालाबों के प्राकृतिक पक्ष:

तालाबों के प्राकृतिक पक्षों को निम्न भागों में विभक्त कर अध्ययन किया गया है, जो इस प्रकार है-

1. धरातलीय ढाल
2. जलवायु
3. चट्टानों की प्रकृति एवं प्रकार

(1) धरातलीय ढाल:-

तालाबों को प्रभावित करने वाले प्राकृतिक कारक में धरातलीय ढाल प्रमुख तत्व है जिन तालाबों में धरातलीय ढाल अधिक होती है, वहाँ पर जलस्तर ऊँचा होता है, क्योंकि वर्षा पश्चात जल ढाल की ओर प्रवाहित होते हुए तालाब में प्रवेश कर जाती है। प्रत्येक तालाब का अपना जल संग्रहण क्षेत्र होता है। जल-संग्रहण क्षेत्र का क्षेत्रफल मुख्य जल के द्वारा निर्धारित होता है। यह 1/2 किमी से लेकर 1.5 किमी तक हो सकता है। समतल भूमि पर जल संग्रहण की मात्रा तालाबों की गहराई पर निर्भर करती है। उथले तालाबों में वाष्पीकरण की अधिकता से ग्रीष्म ऋतु में जलाभाव की स्थिति निर्मित हो जाती है।

(2) जलवायु:

तालाब को जलवायु पूर्णतः प्रभावित करती है, इसके अंतर्गत महत्त्वपूर्ण कारक वर्षा एवं तापमान होते हैं। तालाबों के द्वारा वर्षा के जल को संग्रहण किया जाता है, जो मनुष्य के दैनिक जीवन में हर प्रकार के कार्यों में उपयोगी है। जिले में वर्षा सामान्यतः 55 से 63 दिन तक होती है। उस दौरान वर्षा का जल तालाब में संरक्षित करके वर्ष भर मानव उपयोग के लिये सहायक होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब सर्वसुविधा एवं कम लागत में तैयार होता है।

तापमान भी तालाब को प्रभावित करता है जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जाता है तो जल में वाष्प अधिक बनने लगता है, जिससे तालाब में जल-स्तर घटने लगता है और अध्ययन क्षेत्रों में देखा गया है कि इन्हीं कारणों से अधिकांशतः तालाब ग्रीष्म ऋतु में सूख जाते हैं, क्योंकि सर्वाधिक तापमान मई व जून माह में बढ़ता है। अतः जलवायु तालाब को पूर्णतः प्रभावित करती है।

(3) चट्टानों की प्रकृति एवं प्रकार:

तालाब को प्रभावित करने वाले कारकों में से चट्टानों की प्रकृति एवं प्रकार भी प्रभावित करती है। अध्ययन क्षेत्रों में कुछ ऐसे भी तालाब हैं, जो चट्टानी क्षेत्रों में निर्मित महानदी खारुन-दोआब के क्षेत्र में कुडप्पायुगीन क्षेत्र एवं चूना पत्थर पाए जाते हैं। तालाबों का सर्वाधिक घनत्व इन्ही शैल संस्तरों में उपलब्ध है। चूना पत्थर वाले भागों में तालाबों की स्थिति के कारण भूगर्भित जल का संग्रहण पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। तालाबों में जल संग्रहण से तथा भूगर्भिक जलस्तर के निर्मित होने से यहाँ नलकूप के माध्यम से भूमिगत जल का दोहन किया जा रहा है। जिले में उच्च भूमि के क्षेत्र आग्नेय एवं ग्रेनाइट शैल वाले हैं। इन शैल संस्तरों के कारण तालाब निर्माण की लागत में वृद्धि होती है तथा भूमिगत जल की उपलब्धता भी न्यूनतम हो जाती है।

तलाबों के सामाजिक पक्ष

तालाबों के आर्थिक पक्ष

भौगोलिक पृष्ठभूमि

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