A village of 7 Water-Springs
यूँ तो उत्तराखण्ड में जब भी पानी की बात आती है तो उसके साथ देवी-देवता या नाग देवता की कहानी का होना आवश्यक होता है। ऐसा कोई धारा, नौला, बावड़ी या ताल-तलैया नहीं है जिसके साथ उत्तराखण्ड में किसी देवता का प्रसंग न जुड़ा हो। यही वजह है कि जहाँ-जहाँ पर लोग देवताओं के नाम से जल की महत्ता को समझ रहे हैं वहाँ-वहाँ पानी का संरक्षण हो रहा है।
यहाँ हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी की यमुनाघाटी स्थित ‘सरबडियाड़’ गाँव की जहाँ आज भी पत्थरों से नक्कासी किये हुए गौमुखनुमा प्राकृतिक जलस्रोत का नजारा देखते ही बनता है। यहाँ के लोग कितने समृद्धशाली होंगे, जहाँ बरबस ही सात धारों का पानी बहता ही रहता है। स्थानीय लोग बोल-चाल में इन धारों को ‘सतनवा’ भी कहते हैं। यानि सात नौले। वर्तमान में आठ धारे हो गए हैं। ये सात की जगह आठ कैसे हुए यह कहानी भी जानने की जिज्ञासा पैदा करती है। कुल मिलाकर सातधारों से जुड़ी कहानी का लब्बोलुआब यही कहता है कि इस क्षेत्र के लोग जल संरक्षण के प्रति कितने समर्पित हैं।
प्रकृति प्रदत्त इस जलस्रोत को अर्थात पानी के इन सातो धारों को सर गाँव के लोगों ने पीने योग्य बनाया। ग्रामीणों ने कपड़े धोने, बर्तन धोने, नहाने इत्यादि के लिये इसी पानी को अलग जगह व्यवस्थित किया हुआ है। इसलिये भी पानी की महत्ता और बढ़ जाती है। सरबडियाड़ के अलावा सात गाँव और भी हैं जिनकी पेयजल की पूर्ति यही प्राकृतिक जलस्रोत करते हैं। बताते चलें कि इस क्षेत्र के आठ गाँव में कोई पेयजल लाइन नहीं है।

ग्रामीण इन धारों की प्रत्येक माह की संक्रांति पर कलियानाग के नाम से पूजा करते हैं। प्रत्येक दिन कलियानाग के मन्दिर में पूजा-अर्चना होती है। इस पूजा में इन्हीं धारों का पानी चढ़ाया जाता है। सायं को मन्दिर में दीया-बाती की जाती है, लेकिन यह सभी कार्य तब सम्पन्न होते हैं जब इन धारों के पानी का पुजारी पहले आचमन कर ले। जो लोग यहाँ कलियानाग के दर्शनार्थ आते हैं वे भी इसी पानी को चढ़ाते हैं और वापस अपने संग भी ले जाते हैं।
उल्लेखनीय हो कि पहाड़ जैसे-जैसे ऊँचा होगा वैसे-वैसे पानी की मात्रा कम होती जाएगी। परन्तु सरबडियाड़ में प्रकृति ने इतनी नेमते दे रखी हैं कि 2200 मी. की ऊँचाई पर भी सात धारों में लगातार पानी बहता रहता है और दो दर्जन से भी अधिक पनचक्कियाँ चलती हैं। जबकि सर गाँव के सात धारों के मूल स्रोत सरूताल समुद्रतल से 17500 फिट की ऊँचाई पर स्थित है, किन्तु सरूताल का पानी कभी भी कम नहीं होता है और-तो-और सरूताल के आस-पास कोई ग्लेशियर भी नहीं है, परन्तु यहाँ वर्ष के आठ माह तक बर्फ टिकी रहती है।

सर-बडियाड़ के सात धारों का आध्यात्मिक स्वरूप
एक
ज्ञात हो कि इस प्राकृतिक जलस्रोत से क्षेत्र में अनेकों कहानियाँ जुड़ी हैं। क्षेत्र के लोग इन धारों को कलियानाग की कृपा मानते हैं। कलियानाग के अलावा इन धारों की कहानी एक नया मोड़ लाती है कि सरबडियाड़ गाँव से लगभग 15 किमी खड़ी चढ़ाई चढ़कर सरूताल है। यह ताल सचमुच में अत्याकर्षक और रमणिक है।
ग्रामीण बताते हैं कि सरूताल में एक बार सर गाँव के ही एक भेड़पालक की मुरली गिर गई थी, जो उसी दिन बहकर सर गाँव स्थित इन सात धारों में से एक के मुँह से बाहर निकली और जिस भेड़पालक की मुरली थी उसी के पत्नी के बर्तन में जा गिरी। उसकी पत्नी ने जब मुरली को पहचाना तो ग्रामीणों को बताया कि उक्त मुरली तो उसके पति की है।

दो
इस क्षेत्र में किंवदंति है कि कृष्ण के एक कथानुसार उन दिनों यमुना में कलिया नाम का एक भयंकर विषधर साँप रहता था जिसने सम्पूर्ण वातावरण को विषमय बना रखा था। तब कृष्ण यमुना के किनारे गोकुल में अपने मित्रों संग खेलते थे। यमुना के जल में गिरे हुए गेंद को निकालने के बहाने से श्रीकृष्ण जल में कूद पड़े और कलियानाग को पकड़कर उसके फन पर नाचने लगे।
इस तरह कृष्ण ने कलियानाग पर पूर्ण रूप से विजय पा ली, किन्तु नाग की रानियों ने श्रीकृष्ण से विनय किया कि वे नाग को छोड़ दें। अर्थात कलियनाग को श्रीकृष्ण ने उस स्थान को छोड़कर चले जाने की आज्ञा दी और कहा कि वे अब हिमालय में जाकर रमणिक वन में अपना स्थान बनाएँ। ऐसा करने पर कलियानाग हिमालय की तरफ यमुना के किनारे चलता बना और पूर्व-उतर दिशा में ‘सरूताल’ के पास सरबडियाड़ गाँव में रहने लगा। इसी गाँव में आज भी कलियानाग का मन्दिर है।

तीन
एक और कहानी भी इन्हीं धारों से जुड़ी है जो कि लगभग 50 वर्ष पुरानी बताई जाती है। बतातें हैं कि जब गाँव के मुखिया के घर नई बहू आई तो उक्त बहू को इन धारों के पास पानी भरने की दिक्कत इसलिये हुई कि वह माईके पक्ष से भी मुखिया की ही बेटी थी। सो ग्रामीणों ने उनके सम्मान में अलग से एक पत्थर पर गाय के मुखनुमा जैसी नक्कासी की और नए जल धारे का निर्माण किया। तब से सर गाँव में सात धारों की जगह आठ धारे हो गए। इस आठवें जलधारे का नाम ‘बाकर्यानालू’ कहते हैं। काबिलेगौर यही है कि जब यहाँ पानी की इतनी भरमार है तो नए धारे के निर्माण करने में ग्रामीण एक घड़ी भी नहीं चूके।
पानी नहीं गंगाजल
सरबडियाड़ से निकलने वाली यह जलधारा आगे चलकर सरस्वती कहलाती है, क्योंकि सरूताल से निकलनी वाली जलधारा ही सरस्वती नदी है। कुछ स्थानीय लोग इस नदी को ‘बडियाड़ गाड’ भी कहते है। सरबडियाड़ क्षेत्र के आठ गाँवों के लोग सर गाँव में मौजूद इन सात धारों को पूजनीय ही नहीं बल्कि अपनी ‘लाइफ लाइन’ भी मानते हैं। इन्हीं धारों के पानी से 23 पनचक्कियाँ घूमती हैं। जो लोग इन पनचक्कियों के स्वामी हैं उनकी आजीविका के मूल स्रोत ये पनचक्कियाँ हैं।
सरबडियाड़ के अलावा सात गाँव और भी हैं जिनकी पेयजल की पूर्ति यही प्राकृतिक जलस्रोत करते हैं। बताते चलें कि इस क्षेत्र के आठ गाँव में कोई पेयजल लाइन नहीं है। क्षेत्र की लगभग 1500 से भी अधिक की जनसंख्या की पेयजल आपूर्ति इन्हीं प्राकृतिक जलस्रोतों से होती है। सर गाँव में स्थित ‘सतनावा’ इस क्षेत्र की जनसंख्या के लिये ईश्वर का तोहफा है। हालांकि इस क्षेत्र में इस पानी का उपयोग सिंचाई के लिये बिल्कुल भी नहीं किया जाता है परन्तु पानी इतना है कि दो दर्जन से भी अधिक पनचक्कियाँ यहाँ बारहमास चलती हैं। क्षेत्र के सर-लेवताड़ी, बडियाड़, डिंगाड़ी, पौंटी, छानिका, गौल, किमडार, कसलौं आदि आठ गाँवों के 23 परिवारों की आजीविका इन्हीं धारों से निकलनी वाली जलधारा पर टिकी है और लगभग 1500 आबादी की पेयजल की आपूर्ति भी ये जलधाराएँ करती हैं। यही नहीं सर गाँव के सात धारों की आध्यात्मिक महत्ता भी है। लोग इस पानी के आचमन बिना कोई शुभ कार्य आरम्भ नहीं करते। कलियानाग मन्दिर में जब पूजा होती है तो पुजारी इस पानी को गंगाजल से भी कमतर नहीं मानते।
ग्रामीणों का कहना है कि उनके क्षेत्र में आज तक दवानल की कोई घटना नहीं हुई है। क्योंकि सरूताल और सरबडियाड़ की जलधारा जो है इस क्षेत्र में। इसी पानी का कमाल है कि रमणिक वन का सौन्दर्य देखते ही बनता है। जबकि इस क्षेत्र में गर्मियों के मौसम में रमणिक वन में हजारों भेड़ पालक प्रवास पर आते हैं और उन्हीं भेड़-बकरियों के साथ सैकड़ों लोग प्रवास पर रहते है। मगर वनाग्नि जैसी घटना कभी इस क्षेत्र में नहीं घटी।
इसका कारण यदि है तो लोगों की प्राकृतिक संसाधनों के प्रति आध्यात्मि आस्था का होना। सर गाँव में लोग प्रत्येक संक्रांति को इन धारों की पूजा-अर्चना करते हैं। इन धारों के पास नंगे पाँव ही जाना पड़ता है। सर गाँव के ग्रामीणों के अपने लोक नियम भी हैं कि जलधारा के पास जूते सहित जाना दण्डनीय अपराध माना जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि ग्रामसभा में कई बार जल संरक्षण के लिये बजट आया भी तो उन्होंने उक्त बजट को अन्यत्र किसी और जल धारे पर खर्च किया। क्योंकि सर गाँव में मौजूद जलधारा देवता का है।

सर गाँव की खासियत
वैसे तो इन जल धाराओं का मूल स्रोत सरूताल है, परन्तु सर गाँव में कलियानाग देवता के मन्दिर के होने से इन जलधाराओं की और महत्ता बढ़ जाती है। सर गाँव पर प्रकृति इतनी मेहरबान हुई कि गाँव में हरियाली-ही-हरयाली बनी रहती है। बरसात के मौसम में इस गाँव के हर परिवार के घर के पहले हिस्से में जलस्रोत फूट निकलता है। इससे मालूम होता है कि सचमुच में ही यही सर गाँव है। वैसे भी सर का तात्पर्य जल से है। सर का शाब्दिक अर्थ जल की धारा से है यही वजह है कि इस गाँव में जल की कई धाराएँ विद्यमान हैं।
सरूताल से फूटी एक जलधारा
17500 फिट की ऊँचाई पर स्थित सरूताल यमुनोत्री से उत्तर-पूर्व की दिशा में हैं। यमुनोत्री भी कालिन्दी पर्वत की तट स्थली पर है। कालिन्दी पर्वत यानि बन्दरपूँछ की एक शाखा। उत्तर-पूर्व की दिशा में स्थित सरूताल से निकलने वाली जलधारा जहाँ जगह-जगह पूजनीय है वही सर गाँव के सतनावा से निकलने वाली जलधारा सरस्वती, बडियाड़ नाम से प्रचलित होकर 25 किमी बाद लोग इस पानी का भरपूर उपयोग करते हुए दिखाई देंगे।

इस तरह सर गाँव के सतनावा से निकलने वाली जलधारा कुल 45 किमी के अपने बहाव में 25 किमी के अर्न्तगत भरपूर उपयोग होती है। कह सकते हैं कि 45 किमी के फासले में 15000 की आबादी की जीवनरेखा सर गाँव से निकलने वाली जलधारा ही है जो गंगनाणी के पास यमुना में संगम बनाती है। अर्थात उत्तर पूर्व की दिशा में जहाँ सरूताल जैसे सरोवर है वही इस कालिन्दी पर्वत के पश्चिम छोर से रूपीन और सुपीन दो बड़ी नदियाँ निकलती है। जो कुछ हिस्से तक तिब्बत की तरफ बहती हुई हिमाचल के लाहुल-स्पिीत होती हुई नैटवाड़ में संगम बनाती है। नैटवाड़ में संगम होने के बाद से ये टौंस कहलाती है जो 70 किमी चलकर डाकपत्थर के पास यमुना में संगम बनाती है।
जल उपयोग की लालसा

सरबडियाड़ और सरूताल
पुरोला से 72 किमी और बड़कोट से 65 किमी दूर सरबडियाड़ में स्थित सरूताल समुद्रतल से 5257 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। 92 मीटर लम्बा और 72 मीटर चौड़ा ताल अपनी खूबसूरती के लिये क्षेत्र में विख्यात है। ताल के समीप पाँच वर्षों से डेरा डाले बाबा गिरी महाराज व महन्त जमना गिरी बताते है कि शिवपुराण में यह श्रीताल था, जो बाद में समीप के गाँव सर के नाम से सरूताल हो गया। मान्यता है कि इस ताल की परिक्रमा करने और इसकी पूजा पुष्पों से करने से मनोकामना पूर्ण होती है। इसके लिये प्रतिवर्ष यहाँ क्षेत्र के ग्रामीण इस ताल में पूजा के लिये जाते हैं।

यहीं से पथ-प्रदर्शन करके विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल हरकिदून, भराड़सरताल, देवक्यारा जाने का सुकून भरा रास्ता भी है। ग्रामीण प.महिमानन्द तिवारी, शिशपाल सिंह, जयवीर सिंह, विरेन्द्र, प्रताप सिंह, देवेन्द्र सिंह का कहना है कि इस प्रकृति प्रदत्त रमणिक क्षेत्र के विकास के लिये पहल नहीं की गई। इस कारण ये ताल और धारे पर्यटकों की दृष्टि से ओझल है। कुछ लोगों का मानना है कि ‘सरबडियाड़ के सात धारों’ का पानी मार्कटूली और एटकिंसन ने भी पीया। मार्कटूली ही ऐसा व्यक्ति था जिन्होंने सर्वप्रथम सरबडियाड़ के सातधारों का चित्र खिंचा था और यहीं से पहली बार हरकीदून का रास्ता ढूँढ निकाला था। इन धारों में लग्भग 350 इंच पानी बारह मास बहता है।



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