बाँधों के खिलाफ एवं अपने अधिकारों के लिये आप बहुत कुछ कर सकते हैं। सबसे पहला कदम यह है कि बाँधों एवं उसका आपके समुदायों पर क्या असर हो सकता है, इस बारे में जानकारी इकट्ठा करें। अगले कदम के तौर पर यह तय करना चाहिए कि आप क्या चाहते हैं एवं उसे कैसे हासिल किया जा सकता है। उसके बाद अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिये कार्यवाही करनी चाहिए। इस तरह एक अभियान शुरू किया जा सकता है।
यह महत्त्वपूर्ण है कि अपने अभियान को जितना हो सके उतना जल्दी प्रारम्भ किया जाय। कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यवाही आप पूरे अभियान के दौरान कर सकते हैं, जिसमें शामिल है जानकारी लेना एवं वितरण करना, अपने समुदाय के अन्य लोगों को संगठित करना एवं राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय समूहों के साथ मिलकर काम करना।
कुछ देशों में, समुदाय सदस्यों एवं उनके परिवारों के लिये विनाशकारी बाँध के खिलाफ संगठित होना खतरनाक हो सकता है। कई बार सरकारों या उनके बाँध निर्माण योजना की आलोचना करना जोखिमपूर्ण हो सकता है। यह महत्त्वपूर्ण है कि जब आप अपनी अभियान रणनीति तय करते हैं तो इन जोखिमों के प्रति सजग रहें।
यह अध्याय आपको यह सुझाव देता है कि अपने अभियान रणनीति को किस तरह विकसित करें। यह उन कार्यवाहियों को रेखांकित करता है, जिसे आप पूरी बाँध निर्माण प्रक्रिया के दौरान कर सकते हैं। अंत में, यह बाँध निर्माण के तीन चरणों का वर्णन करता है एवं महत्त्वपूर्ण कदमों की पहचान करता है, जिसे आप हरेक चरण के दौरान कर सकते हैं।

अपने अभियान के लिये योजना बनाना
1. जानकारी इकट्ठा करें
यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि बाँध किस तरह आपके समुदाय एवं नदी पर असर डालते हैं। आप अपने समुदाय के सदस्यों से जानकारी इकट्ठा करने के लिये फील्ड सर्वेक्षण कर सकते हैं। स्वैच्छिक संगठन, विश्वविद्यालय शोधार्थी एवं अन्य समूह भी आपको मदद कर सकते हैं। यहाँ पर उपलब्ध हैं विचार करने के लिये कुछ सवाल:
- बाँध एवं जलाशय से कौन से गाँव व जमीन प्रभावित होंगे?
- कितने लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा?
- कितने लोगों से उनके मछली पकड़ने का इलाका एवं कृषि-भूमि छीनी जाएगी?
- जमीनों, फसलों, घरों, एवं/या मछली पकड़ने का इलाका जो छीन जाएगा, उसकी कीमत क्या होगी?
- मुआवजा या पुनर्वास के तौर पर क्या प्रस्ताव किया जा रहा है?
- बाँध कौन विकसित कर रहा है? सरकार, निजी कम्पनी या दोनों?
- कौन बाँध के लिये पैसे दे रहा है?
भारत में बड़े बाँध को पर्यावरण मंजूरी मिलने के पहले सम्पूर्ण पर्यावरण असर आकलन का अभ्यास करना, उसको सार्वजनिक करना और उसके एक महीने बाद जन-सुनवाई होना क़ानूनन जरूरी है। लोग इस प्रक्रिया का उपयोग कर सकते हैं और कानून के उल्लंघन पर उचित कार्यवाही कर सकते हैं। जानकारी के लिये सूचना के अधिकार का उपयोग भी कर सकते हैं।
2. आपके लक्ष्य क्या हैं?

- आप क्या हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं?
- क्या आप विनाशकारी बाँध को रोकना चाहते हैं?
- क्या आप योजना में बदलाव चाहते हैं?
- क्या आप बेहतर मुआवजा चाहते हैं?
- क्या आप समुदाय को प्रभावित करने वाले बाँध के निर्णय में भागीदारी चाहते हैं?
यह सुनिश्चित करें कि आपके लक्ष्य में आपके समुदाय की भागीदारी हो। आपके लक्ष्य को आपके अभियान में माँग के तौर पर उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर: ‘‘पोलावरम बाँध को रोको’’ या ‘‘इंदिरा सागर बाँध प्रभावित समुदाय को ज्यादा मुआवजा दो!’’
3. कौन आपके सहयोगी हैं एवं कौन आपके विरोधी हैं?
समन्वय बनाना अभियान रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है। सोचें कि आपके संघर्ष में कौन आपका मददगार हो सकता है। आपकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि अपने समुदाय के अन्दर आम लोगों एवं अन्य समूहों के साथ आप कितना समर्थन जुटा सकते हैं।
यह भी समझ लें कि आपका विरोधी कौन है। उनकी क्या शक्तियाँ एवं कमजोरियाँ हैं? वे आपका विरोध करने के लिये क्या करेंगे? विरोधी अपने साथ अन्य समुदाय सदस्यों, सरकारी अधिकारियों, बाँध निर्माता कम्पनियों एवं वित्तपोषकों को शामिल कर सकते हैं।
4. आप किन लोग/संस्था को लक्ष्य बनाना चाहते हैं?
सोचिए कि आप जो चाहते हैं उसे आपको कौन दे सकता है। बाँध के बारे में निर्णय कौन तय कर रहा है? वे सरकार के अधिकारी हो सकते हैं। वे बाँध निर्माता कम्पनी हो सकते हैं। या वे बाँध के वित्तपोषक हो सकते हैं, जैसे कि विश्व बैंक या एशियाई विकास बैंक। ये आपके लक्ष्य हैं। आपके किस लक्ष्य को प्रभावित या प्रेरित करना सबसे आसान है? यदि आपकी सरकार ज्यादा जनतांत्रिक नहीं है तो, बाँध वित्तपोषकों या बाँध निर्माता को प्रभावित या प्रेरित करना आसान हो सकता है।
5. आपकी कौन सी रणनीति आपके लक्ष्य की मानसिकता बदलेगी?

6. आपके अभियान के लिये आप कैसी वित्तीय मदद चाहते हैं?
हरेक अभियान के लिये संसाधन की जरूरत होती है, चाहे वह यात्रा एवं प्रदर्शन आयोजित करने के लिये मदद हो, कम्प्यूटर एवं ईमेल देखने के लिये हो, टेलीफोन या फिर अभियान सामाग्रियों को छपवाना हो। कई समूह अपने समुदाय सदस्यों के दान पर निर्भर होते हैं। वित्तपोषण के अन्य स्रोतों में फ़ाउंडेशन, सहायता एजेंसियाँ एवं आपके देश में अन्य लोग शामिल हैं। यदि आपको वित्तीय मदद जुटाने में सहायता की आवश्यकता है तो, अपने देश में कुछ बड़ी स्वैच्छिक संगठनों से सम्पर्क करने का प्रयास करें। उनके पास धन जुटाने के सुझाव हो सकते हैं।

बाँधों के खिलाफ लड़ने के लिये महत्त्वपूर्ण रणनीतियाँ
बाँध निर्माण प्रक्रिया के हरेक चरण पर कुछ रणनीतियाँ प्रभावी हो सकती हैं। यहाँ पर कुछ कार्यक्रम के बारे में विचार दिए जा रहे हैं जिसे आप पूरे अभियान के दौरान कर सकते हैं।

लोगों को संगठित करने का एक तरीका है अपना संगठन बनाना। आप एक नेटवर्क बनाने के लिये अन्य संगठनों को भी जोड़ सकते हैं। पता करें कि क्या आपके देश में बाँधों पर कोई राष्ट्रीय या अन्य नेटवर्क है। आपकी अभियान रणनीति तय करने के लिये गोष्ठी आयोजित करें एवं कार्यवाही करने के बारे में चर्चा करें। स्वैच्छिक संगठनों, अकादमिकों, शोधार्थियों, वकीलों एवं तकनीकी विशेषज्ञों के साथ समन्वय बनाएँ। आपके संघर्ष के प्रति ध्यान आकर्षित करने के लिये पत्रकार वार्ता, यात्राएँ, प्रदर्शन, हड़ताल, बहिष्कार एवं चक्काजाम इत्यादि आयोजित करें। यदि आप बाँध के बारे में निर्णय लेने वाली संस्थाओं को लक्ष्य करते हैं तो ये कार्यवाहियाँ काफी सफल होती हैं। कस्बों एवं शहरों में सार्वजनिक गोष्ठियाँ आयोजित करें।

जानकारी वितरित करें
आपके समुदाय पर बाँध एवं बाँध के संभावित असर के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिये पर्चा, पोस्टर, रिपोर्ट एवं अन्य सामग्री तैयार करें। ये सामग्रियाँ प्रभावित लोगों, आम जनता, देश भर में पर्यावरणीय एवं मानवाधिकार समूहों एवं सरकारी एजेंसियों को वितरित की जा सकती हैं। आपके माँग को प्रचारित करने का यह अच्छा तरीका है।
जनमाध्यमों के साथ कार्य करें

सरकारों एवं वित्तदाताओं को प्रभावित करें
अपनी आशंकाओं के बारे में बताने के लिये निर्णयकर्ताओं से मिलें। आपकी माँगों के समर्थन के लिये स्थानीय एवं राष्ट्रीय सरकारी अधिकारियों एवं संसद सदस्यों या विधायकों को समझाएँ। आपके सरकार में निर्णयकर्ताओं एवं बाँध के वित्तपोषकों को लक्ष्य करने के लिये पत्र लेखन एवं याचिका देने का अभियान आयोजित करें। यदि बाँध किसी निजी बैंक या सार्वजनिक विकास बैंक द्वारा वित्तपोषित किया जा रहा है तो इन वित्तपोषकों को लक्ष्य करने के लिये अन्तरराष्ट्रीय स्वैच्छिक संगठनों के साथ मिलकर काम करें।
कानूनी कार्यवाही करें
कई बार बाँधों के निर्माण को आगे टालने, रोकने या प्रभावित समुदायों को बेहतर मुआवजा दिलाने के लिये कानूनी कार्यवाही का इस्तेमाल किया जा सकता है। वकील से सम्पर्क करें एवं यह पता करें कि क्या बाँध निर्माता कोई कानून तोड़ रहे हैं। कई वकील और बड़ी कानूनी कम्पनी अच्छे उद्देश्य के लिये मुफ्त में कार्य करेंगी।
विकल्पों का प्रस्ताव करें
बाँधों के विकल्पों के बारे में प्रस्ताव करने के लिये विशेषज्ञों की मदद लेने का प्रयास करें।
लोगों के विरोध से कोयल कारो परियोजना रद्द भारत के झारखण्ड राज्य (नवम्बर 2000 से पहले बिहार राज्य का हिस्सा) में कोयल कारो बाँध परियोजना की रूपरेखा 1973 में तैयार हो चुकी थी। बिहार राज्य विद्युत बोर्ड द्वारा कोयल एवं कारो नदी पर दो अलग-अलग बाँध बनाकर 710 मेगावाट बिजली बनाने की योजना थी। सन 1974 में परियोजना का काम चालू होने पर स्थानीय लोगों ने विरोध करते हुए निर्माण रोक दिया। परियोजना के अलग-अलग संघर्षों को आपस में मिलाकर सन 1975-76 में ‘कोयल कारो जन संगठन’ गठित हुआ। जन संगठन ने एक प्रस्ताव पारित करके 1978 में काम रोको अभियान शुरू किया। कोयल कारो जन संगठन के अनुसार इस परियोजना के बनने से 256 गाँवों से 150000 लोगों के विस्थापित एवं 50000 एकड़ जमीन डूबने की आशंका है। यह पूरा इलाका घने जंगलों से युक्त आदिवासी बाहुल्य इलाका है। सन 1980 में परियोजना एनएचपीसी (नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पॉवर कॉरपोरेशन) के हाथ में आ गई। एनएचपीसी अधिकारियों ने परियोजना का काम प्रारम्भ करने की बहुत कोशिश की। लेकिन जन संगठन विस्थापितों के पूर्ण पुनर्वास होने तक काम आगे न बढ़ने देने पर अड़ा रहा। जुलाई 1984 में परियोजना स्थल के आस-पास भारी पुलिस बल तैनात कर दी गई। महिलाओं ने वहाँ पर पुलिस बल का जमकर विरोध किया, अंततः एक माह बाद पुलिस बल को वापस जाना पड़ा। अगस्त 1984 में कुछ प्रभावितों ने उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की। सितम्बर 1984 को न्यायालय ने आदेश दिया कि जब तक सरकार न्यायालय द्वारा जारी शर्तों का पालन नहीं करती, परियोजना आगे नहीं बढ़ सकती। स्थानीय लोगों ने परियोजना से सम्बन्धित लोगों के आवाजाही पर निगरानी के लिये सन 1985 में डेरांग में एक नाका लगा दिया। इसी वर्ष जनसंगठन एवं एनएचपीसी के बीच आपस में समझौता हुआ कि एनएचपीसी एक गाँव को आदर्श गाँव के तौर पर बसाएगी। लेकिन वह गाँव आज तक नहीं बसाया जा सका, इससे लोगों का एनएचपीसी पर विश्वास नहीं रह गया। सन 1991 में सरकार ने परियोजना के लिये एक नयी पुनर्वास योजना की घोषणा की तो, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पहले लोगों का पुनर्वास करो तब परियोजना का काम आगे बढ़ाओ। जबकि 1990 के बाद से ही जनसंगठन ने परियोजना के लिये जमीन नहीं देने की घोषणा कर दी थी। सन 1995 में सरकार ने एक बार फिर परियोजना काम आगे बढ़ाने की घोषणा की। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव द्वारा 5 जुलाई 1995 को परियोजना का शिलान्यास किया जाना था। लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण वह कार्यक्रम रद्द हो गया। 1 फरवरी 2001 को पुलिस ने लोगों द्वारा निगरानी के लिये लगाए गये नाके को तोड़ दिया। जब स्थानीय लोग अगले दिन स्थानीय तपकरा पुलिस स्टेशन में नाका तोड़े जाने के कारण पूछने के लिये एकत्र हुए तो, निहत्थे लोगों पर पुलिस ने गोलीबारी कर दी। इस नृशंस घटना में 8 आदिवासी लोग मारे गये। स्थानीय लोगों ने परियोजना को अगले दो वर्षों तक रोके रखा। इतने उतार-चढ़ाव के बाद परियोजना की लागत बढ़कर पाँच गुना हो चुकी थी। आखिरकार भारत सरकार ने सन 2003 में इस परियोजना को रद्द करने का निर्णय लिया। जबकि एनएचपीसी ने अभी भी इसे भविष्य में बनाए जाने वाले परियोजना की श्रेणी में रखा है। स्थानीय लोग अभी भी सजग हैं। |
पिलार बाँध को रोकने के लिये ब्राजीलवासी संगठित

स्थानीय निवासी, एक स्वैच्छिक संगठन, विश्वविद्यालय शोधार्थी एवं गिरजाघर समूहों ने पिलार बाँध के खिलाफ संघर्ष करने के लिये एक समन्वय बनाया। लोगों ने यह पता करने के लिये एक साथ काम किया कि बाँध से उनके जीवन पर क्या असर पड़ेगा। लोगों ने कम्पनियों के अध्ययनों को पढ़ा, जिसमें कई समस्याएँ दिखीं। लोगों ने इन जानकारियों के बारे में सरकारी अधिकारियों से चर्चा की, वे भी बाँध के पर्यावरणीय असर के बारे में चिंतित थे।
स्वैच्छिक संस्था एवं शोधार्थियों ने बाँध की जन सुनवाई की तैयारी के लिये पर्यावरणीय अध्ययन के बारे में समुदाय को विस्तार से बताया। उनलोगों ने किसानों की जमीन, आजीविका एवं संसाधनों के बारे में उनके अपने विचारों को सरकारी अध्ययनों में प्रस्तुत अध्ययनों से तुलना करने में मदद की।
समुदाय जन सुनवाई के लिये पूरी तरह संगठित था। बच्चों ने पीरंगा नदी के बारे में कविताएं पढ़ी एवं निवासियों ने कम्पनियों को ‘‘वापस जाओ’’ की तख्तियाँ दिखायी। समुदाय नेताओं ने अपनी आशंका व्यक्त करते हुए कड़े वक्तव्य दिए। स्थानीय निवासियों का दबाव, कम्पनियों के पर्यावरणीय असर आकलन अध्ययन की आलोचना एवं सरकारी अधिकारियों की आशंकाओं ने कम्पनियों को बाँध परियोजना रद्द करने को बाध्य किया।
जब एक कम्पनी ने कई सालों बाद उस इलाके में नया बाँध बनाने का प्रयास किया तो लोगों ने फिर कहा ‘‘नहीं’’। जब कम्पनी बाँध बनाने के लिये नाप-जोख का काम कर रही थी तो लोगों ने उस स्थल पर कब्जा कर लिया। आखिर 43 दिनों बाद कम्पनी के तकनीकी विशेषज्ञ वहाँ से हट गए। जरूरत पड़ने पर समुदाय के लोग फिर से विरोध करने के लिये तैयार हैं।
थाइलैण्ड के ग्रामीणों की शोध प्रक्रिया

ढाई सालों से, थाइलैण्ड के 50 गाँवों के कैरेन जनजातीय लोगों ने मात्स्यिकी, पारम्परिक मछली पकड़ने के औजारों, जड़ी-बूटियों, सब्जियों के बागों एवं प्राकृतिक संसाधनों के बारे में आंकड़े एकत्र किए है। हलाँकि स्वैच्छिक संस्थाओं के सदस्यों एवं कार्यकताओं ने उन्हें आंकड़ों को एकत्र करने एवं रिपोर्ट लिखने में मदद की, लेकिन समुदाय के सदस्य ही प्राथमिक शोधार्थी थे। ग्रामीणों ने नदी में कई मछलियों, जड़ी-बूटियों एवं खाद्य पदार्थों की पहचान की, जिन पर वे अपने भोजन हेतु निर्भर हैं। ग्रामवासी अपने शोध को यह साबित करने के लिये इस्तेमाल करेंगे कि उनके जीवन के लिये नदी एवं जंगल कितने उपयोगी हैं।
शोध कैसे करें
पहला कदम : उन सबके साथ एक गोष्ठी आयोजित करें जो शोध का हिस्सा बनना चाहते हों। जितना ज्यादा हो सके उतने प्रभावित गाँवों के लोगों को आमंत्रित करें। उन सबके बारे में चर्चा करें जिनसे आपकी आजीविका नदी पर निर्भर है एवं निर्णय करें कि आप क्या शोध करना चाहते हैं।
दूसरा कदम : शोध अध्ययन करने के लिये लोगों को समूहों में बाँटें। समूह में उनलोगों को शामिल करना चाहिए, जोकि अध्ययन किए जाने वाले विषयों के विशेषज्ञ हों या उनको उस विषय में रुचि हो। उदाहरण के तौर पर, मछली के बारे में शोध मछुआरों द्वारा किए जाने चाहिए एवं सब्जी पैदा करने वालों द्वारा नदी तट के बागानों का शोध किया जाना चाहिए।
तीसरा कदम : तय करें कि आप शोध हेतु कौन सी प्रक्रिया अपनाना चाहते हैं। प्रस्तुत हैं कुछ विचार :
मात्स्यिकी : नदी को क्षेत्रों में बाँटे। हरेक क्षेत्र के शोध के लिये मछुआरों के एक समूह को नियुक्त करें। प्रत्येक बार मछली पकड़ने के बाद, प्रजातियों का नमूना एकत्र करें। एक गोष्ठी आयोजित करें ताकि लोग प्रत्येक प्रजातियों को उसके स्थानीय नाम से पहचान सकें। उनके निवास, विचरण प्रवृत्ति, आकार, वजन एवं प्रजनन प्रवृत्ति के बारे में चर्चा करें। यदि आपके पास कैमरा है तो, पकड़े गये प्रत्येक प्रजातियों का एक फोटो खींचे। फोटो को एक नोटबुक में चिपकाएं एवं फोटों के नीचे उनके बारे में समस्त जानकारी लिखें।
नदी तट के बागान : नदी को क्षेत्रों में बाँटें। प्रत्येक क्षेत्रों में, नदी तट पर घूमें एवं प्रत्येक नदी तट के बागानों का नाप-जोख करें। पता करें कि प्रत्येक बागान का मालिक कौन है, प्रत्येक व्यक्ति बागान में क्या उगाता है एवं वे सब्जियों को किस तरह इस्तेमाल करते हैं (उदाहरण के तौर पर खाने के लिये या बेचने के लिये)। यदि सब्जियाँ बाजार में बेची जाती हैं, तो यह लिखें कि उन्हें बेचने से उनको कितना पैसा मिलता है।
चौथा कदम : अपने निष्कर्षों का दस्तावेजीकरण करें। यह तय करें कि निर्णयकर्ताओं को प्रभावित करने के लिये कैसे उनका उपयोग किया जाय।
बाँध बनने के हरेक स्तर पर आप क्या कर सकते हैं
यह हिस्सा बाँध बनने के तीन चरणों एवं उन खास कार्यवाहियों के बारे में वर्णन करता है जिसे आप हरेक चरण में कर सकते हैं। बाँध निर्माण के तीन प्रमुख चरण होते हैं निर्माण पूर्व, निर्माण के दौरान एवं संचालन।

चरण 1: निर्माण पूर्व
अवधि : 2 से 20 साल या ज्यादा।
इस चरण में क्या होता है?
जब बाँध का निर्माण होता है उससे पहले, बाँध निर्माता योजना बनाते हैं एवं यह जानने के लिये कि बाँध बनाना संभव है या नहीं, वे कई अध्ययन पूरा करते हैं। वे यह भी जानना चाहते हैं कि बाँध का क्या असर हो सकता है। ज्यादातर अध्ययन सरकारी या विदेशी कम्पनियों द्वारा किए जाते हैं।
1. पूर्व संभाव्यता अध्ययन : यह अध्ययन सुनिश्चित करता है कि बाँध बनाया और संचालित किया जा सकता है। यह तय करता है कि चयनित स्थल बाँध निर्माण के लिये उचित है या नहीं, यह आकलन करता है कि कितना बिजली एवं पानी पैदा किया जा सकता है एवं बाँध के लागत का आकलन करता है।
2. संभाव्यता अध्ययन एवं विस्तृत डिजाइन : यह अध्ययन बाँध निर्माण के लिये जरूरी जानकारियों पर ध्यान देता है, जैसे कि मौसम, भूगर्भीय स्थिति एवं नदी में कितना पानी है, आदि। यदि आप अपने इलाके में बाहरी लोगों को नाप-जोख एवं जमीन में बोर करते हुए देखें तो संभव है वे संभाव्यता अध्ययन कर रहे हों। बाँध बनाने के लिये कितनी सामग्री चाहिए, यह कहाँ से आएगी व बाँध का लाभ-हानि का लेखा-जोखा भी इसका हिस्सा होते हैं।
3. पर्यावरण असर आकलन (इआईए) : बाँध के पर्यावरणीय असर को जानने के लिये इआईए अध्ययन किया जाता है। यह अध्ययन बाँध के कारण होने वाले पर्यावरणीय समस्याओं को कम करने के उपाय एवं पर्यावरण प्रबंध योजना भी सुझाता है। इआईए सामान्यतया कहती हैं कि ज्यादातर असरों को कम किया जा सकता है एवं बाँध बनाया जाना चाहिए। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। वास्तव में इआईए निर्णय प्रक्रिया का भाग होना चाहिए और इआईए प्रक्रिया के अंत में बाँध नहीं बनने का जवाब भी एक संभावित विकल्प होना चाहिए। पहले लिखा है उसके मुताबिक भारत में बड़े बाँध के लिये पर्यावरण मंजूरी मिलने के लिये इआईए सार्वजनिक होने के एक महीने बाद जनसुनवाई कानूनन आवश्यक है।
भारत के केरल में चालकुडी नदी पर प्रस्तावित अथिरापल्ली बाँध को वहाँ के समुदाय ने कई सालों से रोककर रखा है, क्योंकि उसका इआईए अपूर्ण था एवं जनसुनवाई में कानून का उल्लंघन हुआ था।
4. पुनर्वास योजना/सामाजिक विकास योजना : इसके अर्न्तगत उनलोगों के लिये पुनर्वास योजना शामिल होती है, जो जलाशय के इलाके में रहते हैं। इसमें अन्य प्रभावित लोगों के क्षति-पूर्ति के बारे में भी योजना शामिल होती है। बाँध के डाउनस्ट्रीम में रहने वाले प्रभावित लोग अक्सर इस योजना में छोड़ दिये जाते हैं।
जब ये अध्ययन हो जाते हैं तो बाँध निर्माता सरकारों एवं बैंकों से मिलकर बाँध निर्माण के लिये रकम जुटाने का प्रयास करते हैं।
इस चरण में आप क्या कर सकते हैं?
बाँध परियोजना को प्रभावित करने का यह सबसे अच्छा समय होता है। यदि आपको लगता है कि बाँध आपके समुदाय को गम्भीर व व्यापक नुकसान पहुँचाएगा और न्यायपूर्ण पुनर्वास की सम्भावना नहीं है तो बाँध को रोकने का प्रयास करें। यह जानकारी करें कि स्थानीय कानूनों के अन्तर्गत आपके क्या अधिकार हैं। माँग करें की सरकार जनसुनवाई आयोजित करे, ताकि आप इस पर चर्चा कर सकें कि बाँध से किसको फायदा होगा और किसको नुकसान होगा। जनसुनवाई के पहले बाँध से सम्बन्धित दस्तावेज स्थानीय भाषा में उपलब्ध होने का आग्रह रखें। बाँध को रोकने के लिये कानूनी कार्यवाही करने की कोशिष करें। बेहतर विकल्प विकसित करने या मुआवजा योजना तय करने के लिये विशेषज्ञों के साथ काम करें एवं उन्हें प्रचारित करें।
यदि बाँध को रोकने का आपका अभियान सफल हो जाता है तो, सरकार बाद में फिर उसे बनाने का प्रयास कर सकती है। लम्बी अवधि तक संघर्ष के लिये मजबूत समन्वय बनाना महत्त्वपूर्ण होता है।
बाँध अध्ययनों की समीक्षा करें
यह माँग करें कि अध्ययन सार्वजनिक तौर पर और स्थानीय भाषा में जारी किए जाएँ। यदि आप अध्ययनों की प्रतियाँ हासिल करने में सफल होते हैं तो, उसकी समीक्षा के लिये विशेषज्ञ तलाश करें एवं उनके समीक्षाओं को प्रकाशित करें। कई विशेषज्ञ इन समीक्षाओं को मुफ्त में करेंगे। विशेषज्ञों की समीक्षाएं अध्ययनों की समस्याओं को पहचान सकती है एवं यह अनुमान कर सकती हैं कि बाँध बनने से क्या नुकसान हो सकता है।
अपने अध्ययन करें

वित्तदाताओं को लक्ष्य करें
पता करें कि कौन बाँध के लिये पैसा देने वाला है। यदि वित्तपोषक किसी अन्य देश के हैं तो, उन देशों में स्वैच्छिक संस्थाओं से सम्पर्क करके आपके अभियान को समर्थन का आग्रह करें। इस गाइड के अंत में सम्पर्कों की सूची देखें।
कानूनी समझौतों की माँग करें
यदि आप आगे बढ़ने का निर्णय लेते हैं तो, सुनिश्चित करें कि आपके द्वारा एक कानूनी समझौते पर हस्ताक्षर किया जाय, जिसमें आपको वादा की गई हर बात शामिल हो। सुनिश्चित करें कि आप समझौते को समझते हों। ऐसी किसी चीज पर हस्ताक्षर न करें जो आपकी समझ में न आए। सरकार एवं बाँध निर्माता अक्सर आपको कहेंगे कि आपको नया घर एवं अच्छी जमीन मिलेगी, लेकिन यह शायद ही कभी सही होता है।
चरण 2: निर्माण के दौरान
अवधि : 5 से 25 साल।
निर्माण में अक्सर अनुमान से ज्यादा समय लगता है। ऐसा कई बार बाँध सम्बन्धी अध्ययन अधूरे होने के कारण, कभी तकनीकी दिक्कतों के कारण एवं कई बार भ्रष्टाचार के कारण होता है।
इस चरण में क्या होता है?

आप इस चरण में क्या कर सकते हैं?
यदि बाँध का निर्माण प्रारम्भ हो चुका हो तो भी आपका अभियान सफल हो सकता है। आप निर्माण रोकने, ज्यादा मुआवजा हासिल करने या परियोजना को बेहतर बनाने में सफल हो सकते हैं। आपके संघर्ष को जारी रखना काफी महत्त्वपूर्ण होता है।
प्रदर्शन आयोजित करें
इस चरण में, कुछ समूह निर्माण स्थल की राह में रोक लगाकर या अहिंसात्मक सीधी कार्यवाही करके निर्माण को रोकने का प्रयास करते हैं। यदि आप ऐसा नहीं कर सकते हैं तो निर्माण एवं पुनर्वास की निगरानी करें। यदि बाँध निर्माता या सरकार वह नहीं करती हैं जो उन्होंने करने के लिये वादा किया था तो, यह माँग करने के लिये विरोध प्रदर्शन या अन्य कार्यवाही करें कि वे अपने वादे को पूरा करें।
अन्तरराष्ट्रीय स्वैच्छिक संस्थाओं के साथ कार्य करें
यदि बाँध सार्वजनिक विकास बैंक द्वारा वित्तपोषित किया जाता है तो, अन्तरराष्ट्रीय स्वैच्छिक संस्थाओं के साथ काम करें ताकि वित्तदाता से बाँध के समस्याओं के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त कर सकें। यदि बाँध निर्माता निर्माण या पुनर्वास ठीक तरीके से नहीं कर रहे हैं तो कई बार ये वित्तदाता पर दबाव डाल सकते हैं। यदि स्थिति वास्तव में बहुत खराब है तो, वित्तदाता स्थिति में सुधार होने तक वित्तपोषण रोक सकते हैं। सरदार सरोवर योजना में नर्मदा बचाओ आन्दोलन के विरोध के कारण जापान सरकार तथा विश्व बैंक को देने वाले कर्ज को रद्द करना पड़ा था, जोकि एक ऐतिहासिक विजय था।
चरण 3 : संचालन
अवधि : करीब 50 साल (कई बार ज्यादा, कई बार कम)।

इस चरण में क्या होता है?
बाँध के बन जाने के बाद उसकी उम्र सीमा शुरू हो जाती है। कुछ जलाशय जल्द ही गाद से भर जाते हैं। कुछ बाँध असुरक्षित या टूट सकते हैं। जब बाँध एक बार अपनी उम्र पूरा कर लेता है तो उसे नवीनीकरण या डीकमीशन करने की आवश्यकता होती है। लोगों एवं नदियों पर बाँधों के असर के कारण विश्व भर में बहुत सारे समूह माँग कर रहे हैं कि बाँधों को डीकमीशन किया जाय। भारत में त्रिपुरा राज्य में गुमती बाँध को डीकमीशन करने की माँग कुछ सालों से बलवती होती जा रही है।
आप इस चरण में क्या कर सकते हैं?
क्षतिपूर्ति की माँग करें
यदि बाँध बन भी जाता है तो, कुछ कम्पनियों एवं सरकारों पर यह कानूनी जिम्मेदारी होती है कि वे क्षति-पूर्ति प्रदान करें। आपको शोध करना चाहिए कि क्या यह आप पर लागू होता है।
बाँध से प्रभावित विश्व भर में कई लोग अतीत में हुए नुकसानों के लिये क्षतिपूर्ति या मुआवजा की माँग कर रहे हैं वे माँग कर रहे हैं कि जिन एजेंसियों (सरकारों, बैंकों एवं कम्पनियों) ने बाँध बनाया है वे बाँध से होने वाले असरों की जिम्मेदारी लें एवं प्रभावित समुदायों को क्षति-पूर्ति प्रदान करें। कुछ सफल हुए हैं।
बाँध संचालन में बदलाव की माँग करें नदी को फिर से ज्यादा प्राकृतिक तरीके से बहने देने के लिये आप बाँध के संचालन में बदलाव की माँग भी कर सकते हैं। इसे बाँध पुनः संचालन कहा जाता है। इसमें दिन के अलग-अलग समय में बिजली उत्पादन की मात्रा में बदलाव शामिल हो सकता है या इसका मतलब हो सकता है बाँध के डाउनस्ट्रीम में ज्यादा पानी छोड़ना। विश्व भर में कई समूह बाँध के पुनः संचालन के लिये संघर्ष कर रहे हैं। भारत में हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार ने वर्ष 2005 में नियम बनाया है कि राज्य के तमाम बाँध के ठीक नीचे पूरे साल नदी में बाँध बनने से पहले जो न्यूनतम प्रवाह बहता था उसका 15 प्रतिशत या उससे ज्यादा पानी छोड़ा जाना चाहिए।
ग्वाटेमाला में क्षति-पूर्ति की माँग

वर्षों तक, पीड़ित लोग घोर गरीबी में रहे। लेकिन उनलोगों ने न्याय के लिये अपनी लड़ाई को कभी नहीं छोड़ा। प्रभावित लोग अब अपने सामाजिक, भौतिक एवं आर्थिक नुकसानों की भरपायी के लिये क्षतिपूर्ति की माँग कर रहे हैं।
कुछ स्वैच्छिक संस्थाओं एवं शोधार्थियों के साथ मिलकर प्रभावित समुदायों ने एक अध्ययन प्रस्तुत किया है, जिसमें पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों, गरीबी एवं खाद्य आपूर्ति में बाँध के असर को दस्तावेजीकरण किया गया है। इस अध्ययन ने यह दिखाने में मदद की कि माया आचि समुदाय ने क्या खोया है और वे क्षति-पूर्ति के हकदार क्यों हैं।
नवम्बर 2004 में, समुदाय ने बाँध स्थल पर एक बड़ा विरोध प्रदर्शन आयोजित किया। बाँध पर दो दिन कब्जे के बाद, सरकार क्षति-पूर्ति निर्धारित करने के लिये एक आयोग गठित करने पर राजी हुई। आयोग की पहली बैठक दिसम्बर 2005 में हुई।
नरसंहार के पीड़ीतों में से एक क्रिस्टोबल ओसोरियो सांचेज का कहना है कि, ‘‘क्षतिपूर्ति हमारे आत्मसम्मान को कायम करने में मदद करता है हमारी संस्कृति एवं हमारे अधिकार का सम्मान करता है। क्षति-पूर्ति का मतलब हम अपने परिवार का पोषण करने व फिर से बेहतर ढंग से रहने, समुदाय के लाभ के लिये परियोजना विकसित करने एवं लोगों की क्षमता बढ़ा पाने में सक्षम हो पाएँगे। क्षति-पूर्ति लोगों को यह महसूस करने में मदद करेगा कि भविष्य का भी मतलब होता है। जीवन के बारे में अच्छा महसूस करें।’’
कुछ भारत के अनुभव : भारत में नर्मदा घाटी में मध्य प्रदेश में बने बरगी तथा तवा बाँध से विस्थापित हुए हजारों परिवारों का पुनर्वास नहीं हुआ था। न ही उनको वादे के मुताबिक मुआवजा मिला था। बाँध बनने के कई सालों बाद उनके द्वारा किए गये संघर्ष के परिणामस्वरूप विस्थापित परिवारों को उन जलाशयों में मछली पकड़ने का अधिकार मिला। यह उनके नुकसानों की आंशिक क्षति-पूर्ति थी।

बाँध, नदी एवं अधिकार (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
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