प्रतिकात्मक तस्वीर
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जीवन को बचाना है तो जीवनशैली बदलिए

पृथ्वी पर बना प्राकृतिक ग्रीनहाउस हमारे लिए लाभकारी है। लेकिन मानव की आलसी प्रवृत्ति एवं भोगवादी संस्कृति के चलते मनुष्य का मशीनी सुख- सुविधा जिसमें एयर कंडीशनर, फ्रिन व ओवन आदि उपकरणों पर निर्भर होना एक सामाजिक स्टेटस समझा जाता है।
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परिवर्तन संसार का अपरिवर्तनीय नियम है। सर्दी, गर्मी और बरसात समय अनुसार आते ही रहते हैं। मनुष्य अपने जीवन जीने की सभी तैयारियां कर लेता है। गर्मी से बचने के लिए सबसे सामान्य उपाय में फ्रिज और एयर कंडीशनर जैसे उपकरणों का प्रयोग देश में क्या, पूरे विश्व में दिल खोलकर लगभग सभी वर्गों द्वारा किया जाता है। हालांकि फ्रिज और एसी से क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैसों का उत्सर्जन होता है जो ओजोन परत को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचती है। इसके चलते ओजोन परत में कई किलोमीटर लंबा छेद बन चुका है जिसके कारण हानिकारक पराबैंगनी किरणें जमीन पर सूरज की रोशनी के साथ आती हैं जो धरती पर पहुंच कर ग्रीन हाउस गैसों जैसे मेथेन, नाइट्रस ऑक्साइड के साथ मिलकर बहुत अधिक गर्मी पैदा करती हैं।

सूर्य से आने वाले दृश्य प्रकाश का बड़ा हिस्सा वायुमंडल से होकर पृथ्वी के पृष्ठ भाग में पहुंचता है जिसके कारण धरा का ऊपरी भाग गर्म हो जाता है। धरती के इस ताप ऊर्जा के एक हिस्से को दीर्घ तरंग अवरक्त विकिरण के रूप में विकिरित करता है। इस विकिरण ऊर्जा का ज्यादा हिस्सा कार्बन डाई ऑक्साइड, जलवाष्प एवं कुछ अन्य गैसों के अणु अवशोषण करता है तथा बाद में इस अवशोषित ऊर्जा को ताप के रूप में भूमि पृष्ठ की तरफ परिवर्तित कर देता है। इस प्रकार वायुमंडल एक कंबल की तरह काम करता है और धरती की गर्मी को दोबारा अंतरिक्ष में जाने से रोकता है।

जीवन के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए ग्रीन हाउस गैसों का होना परम आवश्यक है। प्राकृतिक ग्रीन हाउस प्रभाव न होने से पृथ्वी का तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से माइनस 73 डिग्री सेल्सियस के नीचे चला जाएगा। इस स्थिति में संसार के सारे समुद्र बर्फ की चादर ओढ़ कर जम जाएंगे। शुक्र ग्रह में अत्यधिक ग्रीन हाउस प्रभाव होने के कारण इसकी सतह का तापमान 500 डिग्री सेल्सियस पहुंचता है। पृथ्वी पर बना प्राकृतिक ग्रीनहाउस हमारे लिए लाभकारी है। लेकिन मानव की आलसी प्रवृत्ति एवं भोगवादी संस्कृति के चलते मनुष्य का मशीनी सुख-सुविधा जिसमें एयर कंडीशनर, फ्रिज व ओवन आदि उपकरणों पर निर्भर होना एक सामाजिक स्टेटस समझा जाता है।

पर्यावरण वैज्ञानिकों का यह मानना है कि कोयले की खपत और इसके उपयोग से कार्बन डाइअक्साइड गैस की मात्रा दो गुनी हो जाती है जिससे पृथ्वी का तापमान यहां रहने वाले जीव के लिए असहनीय हो जाता है। इस असहनीय गर्मी को टी-इफेक्ट (टेंपरेचर-इफेक्ट) कहते हैं। तापमान का प्रभाव मिट्टी के पानी की स्थिति के साथ परस्पर क्रिया करता है जिससे पता चलता है कि गर्म तापमान के साथ वर्षा में विभिन्नता से अनाज उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। अत्यधिक गर्मी पड़ने पर पानी फैलता है और ध्रुव की बर्फ पिघलती जाती है। इस कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है जिससे छोटे-छोटे द्वीपसमूह आने वाले समय में डूब जाएंगे और समुद्री किनारे पर बसे हुए शहरों में पानी भर जाएगा। इसका परिणाम पूरी इंसानी आबादी को चुकाना ही होगा।

शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में तापमान २ से 4 डिग्री कम होता है जिसका प्रमुख कारण यहां के हरे-भरे बड़े पेड़ जिसमें पीपल बरगद और पकड़ जैसे वृक्षों की बहुतायत है जो बढ़े हुए तापमान को अपने ऊपर से सोख लेते हैं तथा गांव में बने हुए कच्चे मकान तापमान को अपने अंदर जज्ब कर लेते हैं। किंतु शहरों में बने हुए कंक्रीट के जंगल जिन्हें हम बिल्डिंग या मकान कहते हैं उनमें तापमान को रोकने की कोई क्षमता नहीं होती जिस कारण सूरज की गर्मी कमरे की दीवारों से टकराकर कमरे में ही घूमती रहती है जो गर्मी को खत्म ही नहीं होने देती। इससे बचने के लिए हमें एयर कंडीशनर तथा फ्रिज जैसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचने वाली मशीनों का इस्तेमाल करना, एक मजबूरी सा दिखाई पड़ता है।

मानव का शरीर 46 डिग्री सेल्सियस तक स्वस्थ क्रिया विधि कर सकता है किंतु अगर 56 डिग्री सेल्सियस तापमान हुआ तो मनुष्य के सारे अंग जैसे किडनी, हृदय, फेफड़े, लीवर, त्वचा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और मनुष्य की अकारण ही मृत्यु हो जाएगी। अत्यधिक गर्मी के मौसम में मानवीय स्वभाव में परिवर्तन आता है जैसे कि चिड़चिड़ापन, ऊंची आवाज में बात करना, आंखों में जलन, हाथ-पैरों में कंपन, गला सूखना, नाक सूखना, नाक से खून आना, अत्यधिक गुस्सा करना आदि शामिल हैं। हीट वेव तथा लू के थपेड़ो से अचानक ब्रेन स्ट्रोक होने से मानव की मृत्यु हो जाती है। शरीर में पानी की कमी हो जाती है और वह अनावश्यक परेशानियों से गुजरने लगता है।

इस चिलचिलाती गर्मी से बचने के लिए सबसे व्यावहारिक उपाय है कि हम अपने घरों में पेड़ पौधे लगाए, टेरिस गार्डन बनाएं, गलियों में पेड़ लगाए, सड़क के किनारे वृक्षारोपण करें, खाली पड़ी हुई नदी के किनारे की जमीनों पर हरिशंकरी जैसे पौधों का रोपण करें और लगे हुए पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन जैसा प्रयास करें। शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण मानव जीवनशैली में आए हुए परिवर्तनों से हानिकारक गैसों के प्रति मानव को जागरूक किया जाये। पर्यावरण शिक्षा को रोचक तरीके से एक जन आंदोलन के तहत अभियान चलाया जाए।

स्रोत - लोक सम्मान, जून-जुलाई, 2024

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