महासागरीय जल की लवणता को प्रभावित करने वाले कारकों की परख (What is Salinity of Oceans)
महासागरीय लवणता समुद्री जल में घुले लवणों की मात्रा को मापती है। इसे प्रति हजार भाग (ppt) में व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, 35 ppt की लवणता का अर्थ है कि प्रत्येक 1,000 भाग जल में 35 भाग लवण है। 24.7 ppt से अधिक लवणता वाला जल खारा माना जाता है।
आइसोहलाइन मानचित्रों पर समान लवणता वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखाएं हैं, जो लवणता वितरण को दर्शाने में सहायता करती हैं।
महासागर की लवणता को निर्धारित करने वाले कारक
ताजे जल का प्रवाहः नदियों और पिघलते हिमनदों (ग्लेशियरों) से ताजे जल का प्रवाह महासागरीय लवणता को कम करता है। उदाहरण के लिए, ध्रुवीय प्रदेशों में विषुवतीय प्रदेशों की तुलना में लवणता कम पाई जाती है क्योंकि वाष्पीकरण कम होता है और बर्फ पिघलने से ताजा जल का मिश्रण होता है।
वाष्पीकरणः शुष्क प्रदेशों और उपोष्णकटिबंधीय उच्च दाब वाले प्रदेशों, जैसे कि भूमध्य सागर में वाष्पीकरण दर अधिक होने के कारण लवणता बढ़ जाती है।
महासागरीय धाराएं:
महासागरीय धाराएं अलग-अलग लवणता स्तरों के साथ जल का पुनर्वितरण करती हैं। उदाहरण के लिए, गल्फस्ट्रीम जलधारा उत्तरी अटलांटिक महासागर के पश्चिमी किनारों पर लवणता को बढ़ाती है।
तापमानः लवणता, तापमान और जल का घनत्व परस्पर एक-दूसरे से संबंधित होते हैं। उच्च तापमान आम तौर पर उच्च लवणता वाले क्षेत्रों से संबंधित होता है। उदाहरण के लिए, उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में आमतौर पर वाष्पीकरण दर में वृद्धि के कारण लवणता अधिक होती है।
इन कारकों को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि ये कारक महासागरीय परिसंचरण, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और वैश्विक जलवायु प्रतिरूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
महासागरीय लवणता का क्षैतिज वितरणः
उष्णकटिबंधीय प्रदेशः भूमध्य रेखा के पास और उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में, उच्च वाष्पीकरण दर के कारण महासागरीय जल अधिक लवणीय हो जाता है। उपोष्णकटिबंधीय उच्च दाब पेटी की विशेषता है नीचे उतरती हुई वायु, साफ आकाश और कम वर्षा है, इसके कारण यहां उच्च लवणता स्तर पाया जाता है।
उपध्रुवीय क्षेत्रों में पिघलते ग्लेशियरों से ताजा जल का प्रवाह होता है, जिससे लवणता का स्तर कम हो जाता है।
महासागरीय लवणता का ऊर्ध्वाधर वितरणः
सतही लवणताः सतही लवणता वाष्पीकरण, वर्षा, नदियों से आने वाले ताजे जल और पिघलती बर्फ की प्रक्रियाओं से प्रभावित होती है। इन प्रक्रियाओं के कारण महासागर की सतह पर लवणता का स्तर बढ़ या घट सकता है।
हैलोक्लाइनः इस क्षेत्र की विशेषता यह है कि यहां अधिक लवणीय सतही जल तथा गभीर, कम लवणीय जल के मिश्रण के कारण लवणता में अत्यधिक कमी आती है।
गभीर महासागर की लवणताः गहरे महासागर में गहराई के साथ लवणता में अधिक परिवर्तन नहीं होता।
महासागरीय लवणताः एक क्षेत्रीय अवलोकन (Ocean Salinity: A Regional Look)
विभिन्न प्रदेशों में महासागर की लवणता में भिन्नता का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:
हिंद महासागरः
समस्त हिंद महासागर की औसत लवणता 35 भाग प्रति हजार (ppt) है। बंगाल की खाड़ी में गंगा जैसी विशाल नदियों से आने वाले ताजा जल के कारण लवणता कम होती है। इसके विपरीत, अरब सागर में उच्च वाष्पीकरण और न्यूनतम ताजे जल के कारण लवणता अधिक होती है।
प्रशांत महासागरः
इस महासागर का विशाल आकार और इसकी विशिष्ट आकृति लवणता भिन्नता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पूर्वी प्रशांत महासागर में उत्प्रवाह (अपवेलिंग) से सतह की लवणता कम हो जाती है।
पश्चिमी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय प्रदेशों में उच्च वाष्पीकरण के कारण लवणता में वृद्धि हो जाती है।
अटलांटिक महासागरः
उत्तरी प्रदेशों, जैसे कि उप-ध्रुवीय उत्तरी अटलांटिक, में बर्फ पिघलने और वर्षा के कारण लवणता कम होती है। जैसे-जैसे जल दक्षिण की ओर बढ़ता है, वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है, तथा गल्फ स्ट्रीम जैसी गर्म जलधाराएं लवणता में वृद्धि करती हैं।
सर्वाधिक लवणीय क्षेत्र प्रायः उपोष्णकटिबंधीय उच्च दाब वाले क्षेत्रों (जैसे कि सरगासो सागर) में पाए जाते हैं।
जलवायु परिवर्तन महासागर की लवणता को कैसे प्रभावित करता है
वर्षणः वर्षा अधिक होने से महासागरों में ताजे जल में वृद्धि होती है, जिससे लवणता कम होती है। उदाहरण के लिए, भूमध्य रेखा के पास के क्षेत्र, जैसे कि उत्तरी प्रशांत महासागर में भारी वर्षा होती है, जिससे लवणता कम होती है।
वाष्पीकरणः उष्ण प्रदेशों, जैसे कि उत्तरी अटलांटिक महासागर में वाष्पीकरण अधिक होता है, जिससे जल अधिक लवणीय हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप उच्च लवणता वाले प्रदेशों का निर्माण होता है।
नदी अपवाहः नदियां महासागरों में ताजे जल का अपवाह करती हैं, जिससे लवणता प्रभावित होती है। जलवायु परिवर्तन से नदियों के प्रवाह में परिवर्तन होता है, सूखे के कारण कुछ नदियों का प्रवाह कम हो जाता है, जिससे लवणता में वृद्धि हो जाती है।
बर्फ का पिघलनाः हिमनद (ग्लेशियर) और समुद्री बर्फ के पिघलने से महासागरों में ताजे जल में वृद्धि होती है। इससे विशेषकर ध्रुवीय प्रदेशों में लवणता में कमी आती है। जलवायु परिवर्तन बर्फ पिघलने की प्रक्रिया को तेज कर देता है, जिससे यह प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है।
जलवायु पर लवणता में परिवर्तन का प्रभाव
महासागरीय परिसंचरणः लवणता वैश्विक स्तर पर ऊष्मा का वितरण करने वाली महासागरीय धाराओं को प्रभावित करती है। परिवर्तन इन धाराओं को धीमा कर सकते हैं, जिससे विषुवतीय प्रदेशों में उष्मन (तापन) और ध्रुवीय प्रदेशों में शीतलन के कारण जलवायु प्रभावित होती है।
जलीय चक्रः उच्च लवणता वाले जल को वाष्पित होने के लिए अधिक ऊष्मा की आवश्यकता होती है। इसके कारण वाष्पीकरण, मेघ जनन और वर्षा कम होती है, जिससे मौसम प्रतिरूप और वर्षा वितरण पर प्रभाव पड़ता है।
तापमान में परिवर्तनः उच्च लवणता वाला जल अधिक ऊष्मा को अवशोषित करता है, इसके कारण कनाडा और उत्तरी यूरोप जैसे प्रदेशों में तापमान बढ़ जाता है, जिससे चरम मौसमी दशाएं उत्पन्न होती है।
चक्रवातः उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में कम लवणता के कारण वायु की आर्द्रता में वृद्धि हो सकती है, जिससे उत्तरी हिंद महासागर जैसे प्रदेशों में अधिक तीव्र चक्रवातों को बढ़ावा मिल सकता है।
कुल मिलाकर, जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरीय लवणता में होने वाले परिवर्तन महासागरीय और वायुमंडलीय संतुलन बिगड़ जाता है। इसके कारण सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के साथ चरम मौसमी घटनाएं उत्पन्न होती हैं। महासागरीय लवणता और वैश्विक जलवायु पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए रणनीतियां विकसित करने के लिए इन संबंधों को समझना महत्वपूर्ण है।