सशक्त बिहार : ऊर्जा हासिल करने के लिए नीतिगत कदम

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बिहार के ग्रामीण इलाकों की ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए संस्थागत और सरकारी स्तर पर अपनाने की जरूरत है। इन इलाकों में अक्षय ऊर्जा संसाधनों का अपार भंडार है, बस उनका उचित इस्तेमाल करने की आवश्यकता है। राज्य की करीब 89 फीसदी आबादी (1.26 करोड़ घर) गांवों में रहती है और इनमें से 95 फीसदी लोग रोशनी के लिए मिट्टी के तेल पर निर्भर हैं। इस आबादी को बिजली मुहैया कराना महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए सबसे जरूरी है।

ऊर्जा किसी भी देश या राज्य के आर्थिक विकास की पहली जरूरत होती है। पूर्वी भारत के बिहार राज्य की हालात भी उससे भिन्न नहीं हैं। यहां पिछले कुछ सालों में हालात काफी बदले हैं और राज्य ने काफी आर्थिक विकास भी किया है। अब बिहार आर्थिक विकास की राह पर मजबूती से आगे बढ़ने के लिए भावी रूपरेखा तैयार कर रहा है। बिहार के लिए यह वक्त बेहद चुनौतीपूर्ण है। अपने विकास का पहिया आगे बढ़ाने के लिए उसे मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति का इस्तेमाल करना होगा। सन् 2000 में राज्य का विभाजन होने के बाद ज्यादातर पावर प्लांट झारखंड के खाते में चले गए। वर्तमान बिहार में मात्र दो थर्मल पावर प्लांट बचे, वे भी बेहद पुराने। परिणामस्वरूप बिहार बिजली उपलब्धता के मामले में देश के अन्य राज्यों से काफी पिछड़ गया। उसे अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरा करने के लिए 90 फीसदी बिजली बाहर से खरीदनी पड़ती है।

बिहार राज्य के लिए ये सुखद स्थिति नहीं है। उसे न केवल अपनी बिजली जरूरत को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार की दया पर निर्भर रहना पड़ता है बल्कि उसे इसकी काफी अधिक कीमत भी अदा करनी पड़ती है। ऐसे कमजोर स्थिति के साथ बिहार कैसे मजबूत और विकसित राज्य निर्मित कर पाएगा? राज्य में प्रति व्यक्ति बिजली खपत 100 यूनिट है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 717 यूनिट है। पिछल 25 साल में राज्य में कोई नई बिजली उत्पादन इकाई नहीं स्थापित हो सकी है। इसीलिए बिहार में बिजली आपूर्ति की हालत बेहद खस्ता है और व्यस्ततम समय (पीक आवर) में बिजली की मांग व आपूर्ति के बीच अंतर लगातार बढ़ता ही जा रहा है। हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी को मिलाकर कुल स्थापित क्षमता करीब 600 मेगावाट है जबकि व्यस्ततम समय (पीक आवर) में बिजली की मांग 3000 मेगावाट है।

सन् 2006-07 में यह घाटा करीब 17 फीसदी था तो 2007-08 में यह बढ़कर 31 फीसदी और 2009 10 में 40 फीसदी हो गया। सन् 2010-11 में यह घाटा बढ़कर 45 फीसदी पहुंचने का अनुमान है। बिजली की इस कमजोर हालत को ठीक करने के लिए बिहार सरकार के पास सबसे अच्छा उपाय यही है कि वह स्थानीय स्तर पर बिखरे पड़े अक्षय ऊर्जा संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करे। इन संसाधनों में सौर, पनचक्की, छोटे हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर व बायो एनर्जी आदि शामिल हैं।

इम्पावरिंग बिहार : पॉलिसी पथवे फॉर एनर्जी एक्सेस रिपोर्ट उन विकल्पों पर विस्तार से प्रकाश डालती है जिनको बिहार के ग्रामीण इलाकों की ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए संस्थागत और सरकारी स्तर पर अपनाने की जरूरत है। इन इलाकों में अक्षय ऊर्जा संसाधनों का अपार भंडार है, बस उनका उचित इस्तेमाल करने की आवश्यकता है। राज्य की करीब 89 फीसदी आबादी (1.26 करोड़ घर) गांवों में रहती है और इनमें से 95 फीसदी लोग रोशनी के लिए मिट्टी के तेल पर निर्भर हैं। इस आबादी को बिजली मुहैया कराना महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए सबसे जरूरी है।

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