क्यों नुकसानदेह है महासागरीय अम्लीकरण, क्या हैं समाधान
पर्यावरणीय संकटों की लंबी सूची में महासागर-अम्लीकरण एक ऐसा मुद्दा बनकर उभरा है, जो धीरे-धीरे वैश्विक खतरे की शक्ल ले चुका है। इससे न केवल समुद्री जैव विविधता प्रभावित हो रही है, बल्कि पारिस्थितिकी व्यवस्था भी बदल रही है।
हाल ही में, फ़्रांस के नीस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (यूएनओसी-3) के दौरान जारी की गई रिपोर्ट ओशन एसिडिफिकेशन: अनदर प्लैनेटरी बाउंड्री क्रॉस्ड ने सबका ध्यान खींचा। इसे प्लायमाउथ मरीन लैबोरेटरी (PML), अमेरिका की एजेंसी नेशनल ओशीनिक एटमोस्फ़ेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) और ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मिलकर तैयार किया है।
ग्रहीय सीमाएं: पृथ्वी पर जीने लायक स्थिति
प्लैनटरी बाउंड्री यानी ग्रहीय सीमाओं और उनके आकलन की अवधारणा साल 2009 में स्वीडन के स्टॉकहोम रेज़ीलिएंस सेंटर के निदेशक जोहान रॉकस्ट्रोम की अध्यक्षता में 28 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने दी। इसके तहत, पृथ्वी प्रणाली की नौ प्रमुख प्रक्रियाओं और उनसे जुड़ी सीमाओं को परिभाषित किया गया। अगर ये सीमाएं पार होती हैं, तो पर्यावरण में ऐसे बदलाव होना तय है जिन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता।
ये नौ प्रक्रियाएं हैं: जलवायु परिवर्तन, स्थलीय और समुद्री जैव विविधता घटने की दर, नाइट्रोजन और फॉस्फोरस चक्र में बदलाव, समतापमंडल में ओज़ोन परत का घटना, महासागर अम्लीकरण, दुनिया भर में मीठे पानी का इस्तेमाल, भूमि उपयोग में बदलाव, रासायनिक प्रदूषण, वायुमंडलीय एरोसोल का भार।
साल 2009 में इनमें से तीन सीमाएं पार हो चुकी थीं। यह संख्या साल 2015 में बढ़कर चार हो गई और 2023 में छह तक पहुंच गई। मौजूदा मानकों के हिसाब से महासागरीय अम्लीकरण की सीमा भी साल 2020 तक पार हो चुकी थी।
क्यों नुकसानदेह है महासागरीय अम्लीकरण
वायुमंडल में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) के समुद्र में घुलने के कारण समुद्र के भीतर की कार्बोनेट कैमिस्ट्री में आए दीर्घकालिक बदलाव को महासागरीय अम्लीकरण कहा जाता है। समुद्र में घुलने वाली CO₂ कार्बोनिक अम्ल (H₂CO₃) बनाती है, जो समुद्री पानी में हाइड्रोजन आयन छोड़ता है। इस अम्ल से पानी तो अम्लीय होता ही है। इससे निकले हाइड्रोजन आयन समुद्र में मौजूद कार्बोनेट आयन से मिलकर बाइकार्बोनेट बना लेते हैं, जिससे पानी में कार्बोनेट आयन (CO₃²⁻) की कमी होने लगती है।
कार्बोनेट आयन की कमी का असर कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO₃) के बनने और घुलने की प्रक्रिया पर होता है। जब समुद्र में CO₃²⁻ की सांद्रता घटती है, तो पानी में मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट का विघटन होने लगता है। इसके उलट, जब CO₃²⁻ ज़्यादा मात्रा में होता है, तो कैल्शियम कार्बोनेट का बनना आसान हो जाता है।
समुद्रों में अम्ल बढ़ने का सीधा असर समुद्री जीवों की शारीरिक संरचना, वृद्धि, उनके जीवित रहने और प्रजनन की क्षमता पर होता है (Doney et al. 2020; Findlay and Turley 2021)।
इसके अलावा कई प्रवाल भित्तियां, क्रस्टेशियन (झींगे, केंकड़े), मोलस्क, फ़ाइटोप्लैंक्टॉन, ज़ूप्लैंक्टॉन और शैवाल जैसे समुद्री जीव जिनका बाहरी ढांचा या कंकाल CaCO₃ से बनता है, वे अम्लीकरण से अप्रत्यक्ष रूप से भी प्रभावित होते हैं।
समुद्र में CO₃²⁻ की सांद्रता कम होने पर, उन्हें अपने खोल या ढांचे को बनाने या बनाए रखने के लिए ज़्यादा ऊर्जा की ज़रूरत होने लगती है। जिन स्थानों में पानी CO₃²⁻ के लिए असंतृप्त हो जाता है, वहां इन जीवों की CaCO₃ से बनी संरचनाएं तेज़ी से घुल सकती हैं (R. A. Feely et al. 2016; Findlay et al. 2011; Leung et al. 2020)।
आंकड़ों में समझें तो अम्लीकरण के कारण उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय प्रवाल भित्तियों के लिए उपयुक्त आवासों में 43% तक की कमी देखी गई। ध्रुवीय टेरोपोड्स (जैसे घोंघे) के लिए यह कमी 61% तक थी, जबकि तटीय द्विकपाटियों (दो-खोल वाले जीव, जैसे सीप) के आवासों में 13% तक की कमी दर्ज की गई है। जैसे-जैसे समुद्र अधिक अम्लीय हो रहे हैं, समुद्री जीवों के जीवन, प्रजनन और वृद्धि के लिए उपयुक्त आवास घटते जा रहे हैं।
ग्रहीय सीमा के तौर पर महासागरीय अम्लीकरण का दोबारा आकलन
अधिकतर ग्रहीय सीमाएं औद्योगीकरण से पहले की स्थितियों पर आधारित हैं। महासागरीय अम्लीकरण के लिए यह सीमा औद्योगीकरण से पहले के समुद्र में आर्गोनाइट की सांद्रता में 20% की गिरावट पर रखी गई। यानी अगर किसी जगह समुद्र में आर्गोनाइट की सांद्रता औद्योगीकरण से पहले की सांद्रता से 20 फीसद कम हो जाती है तो माना जाएगा वहां यह ग्रहीय सीमा पार कर ली गई है। नई रिपोर्ट में इस सीमा को घटाकर कर 10 फीसद कर दिया गया है।
आर्गोनाइट कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO₃) का वह रूप है जिसे समुद्री जीव अपने खोल और ढांचे बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 10% की सीमा ज़्यादा सख्त और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण लक्ष्य है। इस अध्ययन में पाया गया कि 20% की सीमा महासागरों में सतही जल से नीचे के कई महत्वपूर्ण समुद्री आवासों को सुरक्षा नहीं दे पाती है।
सबसे ज्यादा खतरे में कौन?
उच्च अक्षांशों (ध्रुवीय क्षेत्रों) में महासागर सबसे पहले अम्लीय हो रहे हैं, जहां pH स्तर पिछले दशक में 0.1 यूनिट तक गिरा है, जो समुद्री जीवन के लिए खतरनाक है।
जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की प्रवाल भित्तियां अम्लीकरण के कारण कमजोर पड़ रही हैं।
गहरे समुद्र में अम्लीकरण और ऑक्सीजन की कमी के कारण समुद्री जीवों के आवास और पोषण की उपलब्धता कम हो रही है।
जब समुद्री जीव संकट में आते हैं, तो पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। इसका असर सीधे मत्स्य पालन, खाद्य सुरक्षा, कार्बन भंडारण, और तटीय समुदायों की आजीविका पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, जब प्रवाल भित्तियां कमज़ोर होती हैं, तो न केवल मछलियों की प्रजातियां कम होने लगती हैं, बल्कि तटों की प्राकृतिक सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती है।
अम्लीकरण के पीछे बड़े कारण
CO₂ का संचरण: वायुमंडल से समुद्र तल तक
औद्योगिक-क्रांति के बाद फैक्टरियों, वाहनों और ताप-विद्युत संयंत्रों से निकलती CO₂ समुद्र में घुलकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है, जिससे pH स्तर घटता है और अम्लता बढ़ती है। कोयला, पेट्रोल और गैस पर हमारी निर्भरता इस दिशा में हमारा योगदान है।
हालिया रिपोर्ट बताती है कि साल 2020 तक सतही समुद्र का 40% और गहरे क्षेत्रों का 60% हिस्सा इस बदलाव की जद में आ चुका था।
वनों और आद्रभूमियों का विनाश: घटता कार्बन-सिंक
जंगलों की कटाई और आद्रभूमियों के अतिक्रमण के कारण प्राकृतिक कार्बन-संग्रहण प्रणाली नष्ट होती है। जिस CO₂ को इन प्राकृतिक प्रणालियों द्वारा अवशोषित कर लिया जाना था, वह भी समुद्रों के ज़िम्मे आ पड़ता है।
क्या हो सकते हैं समाधान
समुद्री अम्लीकरण एक साझा समस्या है। ऐसे में, समाधानों को भी बहुआयामी और सहयोगपूर्ण होने की ज़रूरत है।
1. कार्बन उत्सर्जन में कमी
महासागर-अम्लीकरणकी समस्या का बड़ा कारण है जीवाश्म ईंधनों की बढ़ती खपत। इससे निकलता CO₂ सीधे समुद्रों में घुलकर उनकी अम्लता बढ़ाता है। इससे निपटने के लिए वैश्विक ऊर्जा तंत्र में बदलाव लाकर सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और हाइड्रोजन जैसे स्वच्छ स्रोतों की ओर रुख करना ज़रूरी है।
2. शैवाल की खेती
महासागर-अम्लीकरण से निपटने में समुद्री शैवालों की खेती (मैक्रोएल्गल कल्टिवेशन) एक और प्रभावी उपाय हो सकता है। समुद्र में बड़े पैमाने पर उगाए गए शैवाल (सीवीड) वायुमंडलीय CO₂ को सोखते हैं और स्थानीय स्तर पर समुद्र का pH बढ़ा देते हैं।
जब ये समुद्र तल पर डूबते हैं, तो इनमें मौजूद कार्बन तलछट में दीर्घकालिक रूप से संग्रहित हो सकता है। लेकिन यदि इन शैवालों को खाद्य, ईंधन या उर्वरक के तौर पर इस्तेमाल किया जाए, तो इनमें संग्रहित CO₂ फिर वातावरण में लौट सकता है।
3. ब्लू कार्बन पारिस्थितिकी तंत्र
तटीय ब्लू कार्बन पारिस्थितिक तंत्र जैसे मैन्ग्रोव, समुद्री घास और खारी दलदली भूमि, प्राकृतिक रूप से CO₂ को सोखकर उसे अपने जैविक तंतुओं और तलछट में संग्रहित करते हैं। ये पारिस्थितिक तंत्र न केवल जलवायु नियंत्रण में सहायक हैं, बल्कि जैव विविधता और मत्स्य-आधारित आजीविका के लिए भी जरूरी हैं।
ब्लू कार्बन इकोसिस्टम समुद्री कार्बन को सोखने वाले प्राकृतिक फ़िल्टर हैं। इनकी रक्षा और पुनर्जीवन के लिए अंतरराष्ट्रीय 'ब्लू कार्बन फंड' बनाया जा सकता है।
4. तकनीक से निगरानी, डेटा से कार्रवाई
महासागर-अम्लीकरण से निपटने में समुद्र की सेहत पर नज़र रखने के लिए हमें सटीक और रीयल-टाइम डेटा चाहिए। विभिन्न स्टेकहोल्डर्स की मदद से AI, रिमोट सेंसिंग और सैटेलाइट सिस्टम को जोड़कर एक ओशन हेल्थ डेशबोर्ड बनाया जा सकता है, जो नीति-निर्माताओं को समय पर चेतावनी और दिशा दे।
5. कार्बन भंडारण या कार्बन कैप्चर
प्रत्यक्ष वायु निष्कर्षण (Direct Air Capture) ऐसी तकनीक है जो हवा से सीधे CO₂ को खींचती है और उसे भूमिगत चट्टानों या भंडारण स्थलों में संग्रहित करती है। यह प्रक्रिया अधिक ऊर्जा मांगती है। अगर इसे नवीकरणीय ऊर्जा के साथ जोड़ा जाए तो यह एक दीर्घकालिक समाधान बन सकती है।
वहीं, मिट्टी में कार्बन भंडारण (Soil Carbon Sequestration) अपेक्षाकृत पारंपरिक उपाय है, जिसमें कृषि पद्धतियों और वनस्पति के ज़रिए कार्बन को भूमि में स्थायी रूप से संग्रहित किया जाता है। इससे मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है।
6. समुद्र संबंधी शिक्षा और जागरूकता
महासागर-अम्लीकरण एक अदृश्य संकट है। इसलिए, जागरूकता और शिक्षा इसके समाधान की पहली ज़रूरत है। स्कूलों और समुदायों में ओशन लिटरेसी को शामिल किया जाना चाहिए, खासकर तटीय इलाकों में। इस तरह, मछुआरों, स्थानीय संगठनों और युवाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें संरक्षण की दिशा में भागीदार बनाया जा सकता है।